21वीं सदी में विभिन्न प्रकार के जूनेटिक रोगों का प्रकोप हुआ है। इस सदी में विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे- सिवीयर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS), इबोला (रक्तस्रावी बुखार), निप्पा वायरस, एन्सेफलाइटिस, स्वाइन फ्लू (H1N1) तथा बर्ड फ्लू (H5N1) हुआ है। इसका विश्व भर में लाखों घातक परिणाम हुआ है। वर्तमान में SARS-CoV2 जैसी वायरस का प्रकोप है, जिसने कोविड़-19 महामारी को जन्म दिया है।
जैविक आपदा
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) के अनुसार जैविक आपदाएं जैविक उत्पत्ति या घटना के कारण या जैविक वैक्टर द्वारा व्यक्त की जाती है, जिसमें रोगजनक सूक्ष्म जीवों, विषाक्त पदार्थो और बायोएक्टिव पदार्थो का संपर्क होता है, जो चोट, बीमारी, या अन्य स्वास्थ्य प्रभाव, संपत्ति की क्षति, आजीविका की हानी तथा सेवाओं, सामाजिक और आर्थिक व्यवधान या पर्यावरणीय क्षति के कारण होता है।
जैविक आपदा से निपटने के लिए विधिक प्रावधान
भारतीय संविधान में लोक व्यवस्था और स्वास्थ्य को राज्य सूची के अंतर्गत शामिल किया गया है तथा राज्य सरकार को जैविक आपदा से निपटने की प्राथमिक जिम्मेदारी है। संविधान में ऐसे कई विधान है, जो राष्ट्र के स्वास्थ्य को नियमित और नियंत्रित करते हैं। सरकार बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए इन विधानों को लागू कर सकती है। आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले वाले कुछ कानूनी उपकरण हैः
राष्ट्रीय स्तर पर बुनियादी ढांचा
जैविक आपदा से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संस्थाएं जिम्मेदार हैं, जो निम्नलिखित हैं:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है-
राष्ट्रीय कार्यकारी समितिः आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 8 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के उद्देश्य से इसका गठन किया जाता है। इस समिति को आपदा प्रबंधन हेतु समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने और राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का कार्यभार सौपा गया है।
राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समितिः कैबिनेट सचिव के अधिन राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति का गठन, आपदा की स्थितियों में संकट की समन्वय और निगरानी के लिए किया गया था। यह आपदाओं के समय राहत उपायों का प्रभावी समन्वय और कार्यान्वयन प्रदान करता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थानः इसे NDMA द्वारा सृजित व्यापक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अधिन आपदा प्रबंधन के लिए मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण का अधिदेश प्राप्त है।
राज्य स्तर पर बुनियादी ढांचा
राज्य स्तर पर जैविक आपदा से निपटने के लिए विभिन्न संस्थाएं जिम्मेदार है, जो निम्नलिखित है-
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): यह राज्यों में आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां और योजनाएं तैयार करता है। यह राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय, आपदा के शमन के लिए तत्पर रहने के उपायों तथा राज्य के विभिन्न विभागों की योजनाओं की समीक्षा के लिए उत्तरदायी है, जिससे रोकथाम, तैयारी तथा शमन उपायों का समेकन सुनिश्चित किया जा सके।
राज्य कार्यकारी समितिः यह राज्य मुख्य सचिव के नेतृतव में आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रावधानित राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना और राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय और निगरानी के लिए उत्तरदायी है।
जिला स्तर पर बुनियादी ढांचा
जिला स्तर पर जैविक आपदा से निपटने के लिए विभिन्न संस्थाएं जिम्मेदार है, जो निम्नलिखित है-
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): यह जिला स्तर पर आपदाओं से संबंधित योजना बनाने का केंद्र बिन्दु है।
स्थानीय निकायों की भूमिकाः अपनी निकटता के कारण स्थानीय निकाय अधिकांश नागरिकों के लिए संपर्क का प्रथम केंद्र होता है तथा ये गत्यात्मकता के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं को ज्ञात करने के लिए सर्वोत्तम है। राज्यों अथवा जिलों से होकर यात्रा करने वाले व्यक्तियों की निगरानी के लिए अंतिम बिंदु तक समन्वयात्मक प्रयासों को जारी रखना अनिवार्य है। इस प्रयास में पंचायतें, विशेष रूप से सामुदायिक संगरोध के दौरान, व्यक्तियों और परिवारों के प्रवेश एवं निकास की निगरानी हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण निकाय है।
गैर-सरकारी संस्थान
कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों की सहायता करने में नागरिक समाज संगठन अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। नागरिक समाज संगठनों को औपचारिक और अनौपचारिक संगठनों की श्रेणी के रूप में परिभाषित करने का कार्य विश्व बैंक द्वारा किया जाता है, जिसमें सामुदायिक समूह, गैर-सरकारी संगठन, श्रमिक संघ, स्वदेशी समूह, धर्मार्थ संगठन, व्यवसायी संघ तथा अन्य प्रतिष्ठान शामिल है।
जैविक आपदा प्रबंधन से संबंधित चुनौतियां
विभिन्न प्रकार के उत्पन्न हो रहे आपदाओं के कारण जैविक आपदा के प्रबंधन के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियां मौजूद है-
जैविक आपदा से संबंधित स्पष्ट नीतियों का अभावः राष्ट्रीय स्तर पर जैविक आपदाओं से संबंधित कोई स्पष्ट नीति नहीं है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्यान मंत्रालय की मौजूदा आकस्मिक योजना लगभग 10 वर्ष पुरानी है, जिसे व्यापक पुनरीक्षण की आवश्यकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित सभी घटकों जैसे शीर्ष संस्थानों, महामारी विज्ञान, निगरानी, शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान, आदि को मजबूत करने की आवश्यकता है।
मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की कमीः जिला और उप-जिला स्तरों पर मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, महामारी विज्ञानियों, माइक्रोबायोलॉजिस्ट और वायरोलॉजिस्ट की भी कमी है। देश में कुल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लगभग 61% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एक ही डॉक्टर उपलब्ध है।
सीमित मा़त्रा में मेडिशीन के आपूर्तिः राज्य द्वारा संचालित अस्पतालों में सीमित मा़त्रा में मेडिशीन की आपूर्ति होती है। सामान्य स्थितियों में भी मरीजों को बाहर से दवाईयां खरीदना पडता है। एंथ्रेक्स वैक्सीन, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसी दवाओं के भंडारण में कमी है।
जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाएं: जैविक आपदाओं को प्रभावी प्रबंधन तथा शीघ्र निदान के लिए जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाएं की आवश्यकता है। मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में BSL-4 प्रयोगशाला नहीं है तथा BSL-3 प्रयोगशालाएं भी सीमित मा़त्रा में है।
नवीनतम खोज और विकास में कमीः जैविक आपदा का मुकाबला करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलु तैयारी है और तैयारियों में कमी के परिणामस्वरूप ही बायोटेक्नोलॉजी और बायो-मेडिक्स में रिसर्च एवं विकास की कमी है।
समाधान
कोविड-19 जैसी जैविक आपदा से निपटने के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है-
उपयुक्त दृष्टिकोण अपनाकर
अधिक बजटीय आवंटनः बायोमेडिक्स में नवीनतम खोज और विकास, जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि जैसे क्षेत्रों में सुधार करने के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता है।
संस्थागत समन्वय सुनिश्चित करनाः सरकारी विभागों, वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज संगठनों तथा स्थानीय निकायों के बीच सभी स्तार के संपर्क को सुगम बनाना।
सुझाव
अब तक आपदा प्रबंधन हेतु केवल निकास, राहत और पुनर्निर्माण पर बल दिया जाता रहा है। हालांकी किसी आपदा को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए किसी को क्या करना चाहिए, इसे प्रमुखता देने की आवश्यकता है। इसलिए आपदा प्रबंधन में प्रतिबंध और बचाव को शामिल करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
कोविड-19 ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत देश की आपदा प्रबंधन रणनीति और संबंधित प्रावधानों की कमियों पर ध्यान देने के लिए अवसर प्रदान किया है। भारत ने इस आपदा से निपटने के लिए कानूनी संरचना के साथ-साथ स्थानीय निकायों में नागरिक सुरक्षा से लेकर सैन्य और अर्द्ध-सैन्य बलों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संस्थानों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया गया।