राष्ट्रीय लॉकडाउन सम्पूर्ण भारत में ग्रामीण जीवन और आजीविका को प्रभावित किया है। देश के कुल श्रमबल का आधे से अधिक कर्मचारियों की संख्या कृषि एवं उससे संबंद्ध क्षेत्रों में कार्यरत है। भारत में अधिकांश किसान (लगभग 80%) लघु एवं सीमांत किसान है, जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है। 9 मिलियन से अधिक मछुआरे अपनी आजीविका के लिए मत्स्य पालन पर निर्भर है, जिसमें से 80 प्रतिशत लोग छोटे पैमाने पर मछली पालन का कार्य करते है। यह क्षेत्र लगभग 14 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
लॉकडाउन का प्रभाव
फसल कटाई में देरीः श्रम, मशीनरी, परिवहन सुविधाओं की अनुपलब्धता तथा आवाजाही का प्रतिबंधित होने के कारण रबी की फसलों की कटाई में देरी हुई है।
नकदी फसलों पर प्रभावः फल, सब्जियां और फूलों के साथ-साथ वृक्षारोपण के खेती करने वाले किसानों को अत्याधिक नुकसान हुआ है।
श्रम बल पर प्रभावः परिवहन की कमी के कारण कृषि मजदूर अपनी काम पर नहीं जा सके, इसके साथ ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय गा्रमीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मिलने वाले काम भी बंद हो गया।
मुर्गी पालन क्षेत्रः अंडे की कीमतों में लगातार गिरावट के साथ-साथ पोल्ट्री मांस की बिक्री में भी अत्याधिक गिरावट आई।
मत्स्य क्षेत्रः मार्च के अंत से मछुआरे समुद्र में जाने में सक्षम नहीं है और बाद में अप्रैल के मध्य से पूर्वी तट के साथ आने वाले मछली प्रजनन के मौसम के अनुरूप 45 दिनों तक मछली पकडने के प्रतिबंध के बारे में चिंतित हैं। श्रमिक न मिलने के कारण मछली पकडने में देरी, बाजार बंद होने तथा आवागमन प्रतिबंधित होने के कारण खारे और ताजे पानी में मछली पालने वाले किसान भी प्रभावित हुए है। यूरोप और अमेरिका में झींगा का निर्यात बंद होने के साथ ही स्थानीय स्तर पर भी मछली की कीमतों में गिरावट, मछली पालने वाले किसानों की आय को प्रभावित किया है।
जनजातीय आजीविका पर प्रतिकूल प्रभावः आदिवासी समुदाय खाद्य और पोषण सुरक्षा के मामले में सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं, केंदु के पत्तों और महुआ के फूलों जैसी गैर-वन उपज के संग्रह और बिक्री पर प्रतिबंध के कारण सर्वाधिक गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
सुझाव
ग्रामीण जीवन को बनाए रखने और पुनर्निर्माण के नुकसान को दूर करने के लिए राहत और पुनर्वास दोनों उपायों की आवश्यकता है।