कोविड-19 महामारी के दौरान भारत गंभीर रूप से प्रभावित अपने पडोसी देशों के साथ-साथ विश्व के अन्य कई देशों को पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सहित अन्य दवाओं की आपूर्ति कर रहा है, जिससे वैश्विक स्तर पर चिकित्सा कूटनीति में भारत की भूमिका सुनिश्चित होगी। भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के दो सप्ताह के उपरांत ही आरोपित प्रतिबंध को हटा लिया।
वैश्विक स्थिति प्रदान करने वाले प्रमुख कारक
भारतीय दवाओं का विश्व स्तर पर उपस्थितिः भारतीय दवाओं का अमेरिका, जपान, ऑस्ट्रेलिया व पश्चिमी यूरोप के साथ-साथ विश्व के अन्य कई देशों में सुदृढ और व्यापक पहुंच है। भारत पूर्व से ही अफ्रीकी देशों, मध्य-पूर्व कैरिबियन देशों तथा लैटिन अमेरिका जैसे देशों में चिकित्सा तथा औषधीय सहायता प्रदान करता आ रहा है।
जेनेरिक दवाईयों का प्रमुख उत्पादकः भारत वैश्विक जेनेरिक दवाईयों के निर्यात में लगभग 20 प्रतिशत का निर्यात करता है।
आयुर्वेद और योग में अग्रणीः भारत आयुर्वेद और योग में वैश्विक गुरू माना जाता है। भारत के प्रयासों के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया।
प्रशिक्षणः भारत अपने पडोसी देशों के लिए डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मचारियों के प्रशिक्षण प्रदान कराने में अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया है, क्योंकि भारतीय डॉक्टर व चिकित्सा विशेषज्ञ सार्क देशों के डॉक्टरों तथा चिकित्सा कर्मचारियों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे हैं।
चुनौतियां
समर्थन और अवसंरचना का अभावः भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त और प्रभावी निवेश का अभाव है, जिससे अवसंरचना का विकास संभव नहीं है। वर्तमान में भारत अपने कुल GDP का 3.5 प्रतिशत व्यय स्वास्थ्य क्षेत्र में करता है, जिसमें निजी निवेश भी शामिल है।
औषधि सामग्री के लिए चीन पर निर्भरताः भारत अपने दवाओं के निर्माण के लिए कच्चे सामाग्री के लिए चीन पर अत्याधिक निर्भर है। एक अनुमान के अनुसार भारत का 70 प्रतिशत सक्रिय औषध सामग्री चीन से आयात होता है।
विदेशी विनियमः भारत 50 प्रतिशत से अधिक दवा का निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अत्याधिक विनियमित बाजारों में करता है। इसलिए भारतीय निर्माताओं को कठोर दिशा-निर्देशों का पालन करना पड़ता है। इसे पालन करने के लिए नियमित एवं कठोर निरीक्षण से गुजरना पडता है।
सुझाव
भारत को चिकित्सा के क्षेत्र में वैश्विक पहुंच बढ़ाने के लिए बजटीय आवंटन को बढाने की आवश्यकता है, जिससे नवीनतम खोज, अवसंरचना तथा शिक्षण के क्षेत्र में मजबुति प्रदान किया जा सके।