Question : आपके विचार में भारत में राष्ट्रीय एकता की समस्याएं क्या हैं? इनको दूर करने के लिए उपयुक्त सुझाव दीजिए।
(1988)
Answer : भारत की राष्ट्रीय अखंडता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि देश में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग परस्पर सद्भाव व मेल-जोल के साथ रहते हैं। किसी योजना की बात हो या किन्हीं संवैधानिक प्रावधानों की, अखंडता की बात शासकों के लिए सर्वोपरि है। अखंडता के लिए यह जरूरी है कि सभी समूहों और वर्गों को साथ लेकर चला जाए। सिर्फ राजनीतिक और भौगोलिक स्तर पर एकता रहने से ही काम नहीं चलता, अपितु सांस्कृतिक एकता का होना भी आवश्यक है। क्योंकि भारत में विभिन्न सांस्कृतियां अपने विभिन्न रंगों में मिलती हैं। फिर भी, कुछ जगहों पर जातीय समस्या उभर कर सामने आयी हैं। कहीं-कहीं तो जाति के आधार पर अलग प्रान्तों की मांग भी होने लगी है। भारत में असामान्य क्षेत्रीय विकास भी राष्ट्रीय एकता में बाधक रहा है। झारखंड आंदोलन को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। क्षेत्रीयतावाद व जातिवाद के बाद भाषावाद भी राष्ट्र की अखंडता के सामने प्रमुख समस्या है।
राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास हो तथा विभिन्न क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों का लाभ सभी वर्गों के लोगों को मिले। साथ ही सांप्रदायिक दंगों को सख्ती के साथ कुचला जाना भी जरूरी है। इसके लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को चाहिए कि लोगों के भीतर देश के प्रति वे एक भावनात्मक लगाव पैदा करने की कोशिश करें।
Question : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा निर्मित मसौदा नाभिकीय सिद्धांत की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं? इस संबंध में मीडिया रिपोर्टों में किन कमियों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है?
(1999)
Answer : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा गहन विचार-विमर्श के बाद छह पृष्ठ के राष्ट्रीय परमाणु नीति के प्रारूप को 17 अगस्त, 1999 को जारी किया गया। इस प्रारूप में यह कहा गया है कि परमाणु हमला होने की स्थिति में प्रधानमंत्री के आदेश पर भारत हमलावर देश को परमाणु शस्त्रों से ही ऐसा मुंहतोड़ जवाब देगा, जो दुश्मन देश के लिए अपूरणीय क्षति वाला साबित होगा। परमाणु शस्त्र इस्तेमाल करने का आदेश देने का अधिकार शीर्षस्थ राजनीतिक पदाधिकारी यानी प्रधानमंत्री अथवा उनके वैकल्पिक नामित पदाधिकारियों के पास होगा, ताकि परमाणु शस्त्र नियंत्रणश्रृंखला किसी भी परिस्थिति में टूटने न पाये। इस प्रारूप में परमाणु फौजों के उद्देश्य, विश्वसनीयता, अनुकूलन, कमांड, नियंत्रण, अनुसंधान, विकास, निरस्त्रीकरण तथा हथियार नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। परमाणु फौजें विमान, मोबाइल भू-केंद्रित प्रक्षेपास्त्र तथा समुद्र में स्थित सैन्य सामान-तीनों स्थानों पर तैनात होंगी।
प्रारूप में यह कहा गया है कि भारत न्यूनतम परमाणु प्रतिरोधक क्षमता के तहत पर्याप्त और कारवाई के लिए तैयार परमाणु बल अपने पास रखेगा। एक शक्तिशाली कमान तथा नियंत्रण प्रणाली कायम की जाएगी। भारत प्रभावी खुफिया और पूर्व चेतावनी क्षमता तक कारवाई के लिए व्यापक योजना और प्रशिक्षण जारी रखेगा तथा परमाणु बलों और हथियारों की तैनाती की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देगा। नीति में कहा गया है कि भारत के परमाणु बल विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता की अवधारणा के अनुरूप प्रभावी, स्थायी, लचीले, उद्देश्यपरक तथा विभिन्नता लिये हुए होंगे। भारत के पास यह क्षमता वह यथासंभव कम से कम समय में अपनी नाभिकीय क्षमता हमले के लिए इस्तेमाल कर सके तथा यह भी क्षमता होगी कि शत्रु के आक्रमण के कारण भारी नुकसान सहने के बावजूद जवाबी और प्रभावी कारवाई की जा सके। भारत का उद्देश्य शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक वातावरण में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास करना है, लेकिन इसके लिए शांति और किसी भी संभावित हमले से बचने की गारंटी भी जरूरी है। कुल मिलाकर, इस मसौदे में भारत के परमाणु बल के विकास तथा उसकी तैनाती के सिद्धांतों का खाका प्रस्तुत किया गया है।
आमतौर पर मीडिया ने भारत के इस परमाणु प्रारूप को सराहा है। लेकिन कुछ रिपोर्टों में भारत की न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने की नीति की आलोचना भी की गई है। मीडिया ने इस प्रारूप की कमी की ओर ध्यान दिलाते हुए यह स्पष्ट किया है कि भारत को परमाणु क्षमता हासिल करने की जरूरत मात्र आत्मरक्षा के लिए ही नहीं है और ऐसा करते वक्त उसे अपनी पूरी क्षमता को विकसित करने से नहीं चूकना चाहिए। मीडिया का मानना है कि भारत को परिस्थितियों के अनुरूप आक्रामक रुख अपनाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, जिसके लिए पूर्व क्षमता हासिल करना आवश्यक है।
Question : भारत की सीमाओं पर निगरानी को मजबूत करने के लिए किस नये प्रकार के उपग्रह को चालू करने का प्रस्ताव है? इस प्रकार के उपग्रह की विद्यमान आई.आर.एस. उपग्रहों के साथ तुलना कीजिए।
(1999)
Answer : ‘कार्टोसैट-1’ अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त एक उपग्रह है, जो पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं का पता लगाने वाले उपग्रहों की नईश्रृंखला का पहला उपग्रह है। इसे वर्ष 2000 में प्रक्षेपित किये जाने का विचार है। ‘इसरो’ का मानना है कि वर्तमान भारतीय दूर संवेदी उपग्रहों की तुलना में इससे कहीं अधिक सूचना प्राप्त हो सकेगी। ध्यातव्य है कि आई.आर.एस. उपग्रह कारगिल में घुसपैठियों की गतिविधियों का पता नहीं लगा सके और भारत को विदेशी उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों से ही काम चलाना पड़ा। कार्टोसैट यद्यपि वास्तविक अर्थो में जासूसी उपग्रह नहीं है और इसे मानचित्र से संबंधित कार्यों के लिए ही तैयार किया गया है, परंतु इस उपग्रह से प्राप्त चित्र सेना के लिए काफी उपयोगी साबित होंगे। भारत के पास जितने भी दूरसंवेदी उपग्रह हैं, उनसे जमीन पर मौजूद पांच मीटर से कम आकार की वस्तुओं को देख पाना संभव नहीं है। दूसरी ओर, दो सर्ववर्णिक अथवा श्वेत-श्याम कैमरे से युक्त कार्टोसैट-1 तीस किलोमीटर दूर तक की वस्तुओं के ढाई मीटर आकार का त्रिविमीयचित्र ले सकता है। सेना इस उपग्रह को इलेक्ट्रॉनिक युद्धास्त्रोंs, राडार तथा अन्य निगरानी उपकरणों के लिए एक प्लेटफॉर्म के रूप में भी इस्तेमाल कर सकती है।
Question : आठ देशों के समूह के नेताओं द्वारा कोलोन में हुई अपनी बैठक में पाकिस्तान द्वारा कारगिल में घुसपैठ पर की गई टिप्पणियों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
(1999)
Answer : जून’ 99 में कोलोन (जर्मनी) में समूह- आठ (जी-8) देशों का 25वां आर्थिक शिखर सम्मेलन शुरू हुआ, जिसमें आठ औद्योगिक देशों- अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान, कनाडा तथा रूस ने भाग लिया। इस सम्मेलन में सदस्य देशों ने एक स्वर से पाकिस्तान द्वारा भारत के कारगिल सेक्टर में की गई घुसपैठ की तीव्र भर्त्सना की। साथ ही, उन्होंने दक्षिण एशिया क्षेत्र में पाकिस्तान को आतंकवादियों को संरक्षण प्रदान करने तथा अस्थिरता फैलाने के लिए जिम्मेदार भी ठहराया। यद्यपि कुछ देश, जैसे- रूस, जर्मनी एवं फ्रांस यह चाह रहे थे कि पाकिस्तानी घुसपैठ के मद्देनजर उस पर कुछ दंडात्मक प्रतिबंध लगाये जायें, परंतु अन्य सदस्य देशों ने इससे असहमति जाते हुए पाकिस्तान को इसके प्रति आगाह भर किया। सदस्य देशों ने पूरे घटनाक्रम के दौरान भारत द्वारा अपनाये गये दृष्टिकोण तथा संयम की भूरि-भूरि प्रशंसा की। फ्रांस एवं रूस ने तो भारत द्वारा परमाणु क्षमता हासिल किये जाने को उचित भी ठहरा दिया।