Question : आठवीं योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय जलविद्युत शक्ति निगम से अनेक जलविद्युत परियोजनाओं के लगाने की आशा की जाती है। प्रस्ताव की मुख्य विशेषताओं को संक्षेप में समझाइये।
(1991)
Answer : राष्ट्रीय जल विद्युत निगम लिमिटेड (National Hydroelectric power Corporation) ‘एन.एच.पी.सी.’ को कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत नवंबर 1975 में केंद्रीय क्षेत्र की विद्युत उत्पादन तथा प्रेषण परियोजनाओं के निर्माण और प्रचालन से संबंधित कार्य के लिए स्थापित किया गया। एन.एच.पी.सी. वर्तमान में दुलहस्ती जल विद्युत परियोजना (3 × 130 MW, जम्मू व कश्मीर), उरीजल विद्युत परियोजना (4 × 120 MW, जम्मू व कश्मीर), सलाल जल विद्युत परियोजना स्टेज-II (3 × 115 MW, जम्मू व कश्मीर), चमेरा जल विद्युत परियोजना स्टेज-I (3 × 180 MW, हिमाचल प्रदेश), टनकपुर जल विद्युत परियोजना (3 × 40 MW, उत्तर प्रदेश) व रंजीत जल विद्युत परियोजना (3 × 20 MW, सिक्किम) पर कार्य पूरा कर चुका है अथवा पूरा करने के समीप है। कोयलकारो जल विद्युत परियोजना (710 MW, बिहार) व धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना स्टेज-I (4 × 70 MW, उत्तर प्रदेश) का अनुमोदन हो गया है, लेकिन इसका कार्यारम्भ नहीं हुआ है। साथ ही, एन.एच.पी.सी. के पास बगलिहार जल विद्युत परियोजना (जम्मू-कश्मीर) व तीस्ता जल विद्युत परियोजना (सिक्किम) नयी परियोजनायें हैं। इसके अलावा बैरा सिडल जल विद्युत परियोजना (हिमाचल प्रदेश), लोकटक जल विद्युत परियोजना (मणिपुर) व कच्छ तिडाल परियोजना (गुजरात) पर भी एन.एच.पी.सी. ध्यान दे रहा है।
Question : ‘स्क्विड’ (SQUID) क्या है? सी.एस.आई.आर. की प्रयोगशालाएं इस पर कौन-सी कार्य कर रही हैं?
(1991)
Answer : स्क्विड (सुपर कंडक्टिंग डिवाइस) अत्यंत संवेदनशील चुम्बकीय क्षेत्र सूचक अर्थात चुम्बकत्वमापी है। राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नयी दिल्ली एवं राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला पुणे इस क्षेत्र में कार्यशील हैं।
Question : गैर-योजना खर्च क्या है?
(1991)
Answer : सरकार द्वारा ऐसी मदों पर किया गया व्यय, जो कि अर्थव्यवस्था के विकास में प्रत्यक्ष योगदान नहीं करता है, गैर योजना खर्च कहलाता है। जैसे ऋणों का पुनर्भुगतान, आंतरिक व बाह्य ऋणों पर ब्याज की अदायगी, रक्षा व्यय, सब्सिडी व राज्यों को अनुदान आदि।
Question : व्यापारिक बैंकों की सांविधिक नकदी अपेक्षाएं क्या हैं?
(1991)
Answer : बैंक नियमन कानून (1949) की धारा 24 के अनुसार, वाणिज्य बैंकों को अपनी कुल मांग एवं सावधि जमा का एक निश्चित न्यूनतम प्रतिशत नकदी, स्वर्ण और भारमुक्त अनुमोदित प्रतिभूतियों में तरल परिसंपत्ति के तौर पर रखना आवश्यक है।
Question : आई-सी-आई-सी-आई- क्या है?
(1991)
Answer : भारतीय औद्योगिक साख तथा विनियोग निगम (ICICI) जनवरी 1955 में निजी क्षेत्र में लघु तथा मध्यम उद्योगों के विकासके लिए स्थापित किया गया। यह दीर्घकालीन व मध्यकालीन ऋण प्रदान करता है - हिस्सा पूंजी में अंशदान डालता है, हिस्सों तथा ऋण-पत्रों की नयीश्रृंखला का नामांकन करता है, गैर-सरकारी विनियोग स्रोतों से प्राप्त ऋणों की गारंटी देता है तथा प्रबंधीय, तकनीकी और प्रशासकीय परामर्श भी देता है।
Question : हमारे पूंजी बाजार में हाल में हुए संस्थागत विकास के संदर्भ में निम्न संकेताक्षरों का प्रयोग किसके लिए है?
(i) सी.आर.आई.एस.आई.एल.
(ii) एस.ई.बी.आई.
(iii) एस.एच.सी.एल.
(1991)
Answer : (i) सी.आर.आई.एस.आई.एल. (CRISIL): क्रेडिट रेटिंग्स एंड इनफॉरमेशन सर्विस ऑफ इंडिया लिमिटेड।
(ii) एस.ई.बी.आई. (SEBI): सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी)।
(iii) एस.एच.सी.एल. (SHCL): स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया।
Question : उत्तर भारत की पहाड़ी अर्थव्यवस्था के प्रमुख लक्षण क्या हैं? उसके अपेक्षाकृत पिछड़ेपन के ये कारक कैसे बने?
(1989)
Answer : कश्मीर, हिाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश तथा उससे जुड़े कुछ भाग उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। फल, आलू व अन्य सब्जियां इस क्षेत्र में उत्पादित की जाने वाली प्रमुख फसलें हैं। भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के कारण उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था शेष भारत से काफी अलग है। उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-
अतः भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इन क्षेत्रों में सरलता से परिवहन, औद्योगिक बाजार, कृषि आदि सुविधाओं का विकास नहीं किया जा सकता। आवागमन की दुर्गमता बाजारों के विस्तार व व्यावसायिक क्रियाकलापों में मुख्य बाधा है। श्रम आपूर्ति, शक्ति के साधन, बाजार सुविधाएं, कच्चे माल व वित्तीय साधनों की समस्याएं इन क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना में मुख्य बाधा हैं। अनुपजाऊ मृदा, अपर्याप्त सिंचाई सुविधाएं, अधिकांशतः सब्जी के बाजार और जमीन की कम पानी सोखने की शक्ति उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि के निम्न उत्पादन के लिए उत्तरदायी हैं।
Question : किसी भी देश में ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ क्या होता है? भारत के लिए इसकी प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
(1994)
Answer : किसी देश का अनन्य आर्थिक क्षेत्र उस देश के समुद्री तट से समुद्र के अंदर का वह क्षेत्रफल है, जिसके सभी संसाधनों पर उस देश का ही अधिकार होता है एवं वह उस क्षेत्र का उपयोग किसी भी रूप में करने के लिए स्वतंत्र होता है। भारत का अनन्य आर्थिक क्षेत्र समुद्र में 24 लाख वर्ग किलोमीटर है।
भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के संसाधन मौजूद हैं, जिनमें सजीव और निर्जीव दोनों प्रकार के संसाधन हैं। सजीव संसाधनों में मछली प्रमुख है। सजीव संसाधनों का भंडार अनुमानतः 40 लाख टन है, जिसके केवल 24.4 लाख टन का ही दोहन हो पा रहा है। निर्जीव संसाधनों में बहुमूल्य खनिज पदार्थ प्रमुख हैं, जिनका समुचित दोहन कर भारत आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध हो सकता है। सजीव संसाधनों में मछली के अलावा समुद्री वनस्पतियां, समुद्री जीव-जन्तु आदि प्रमुख हैं। सबसे अधिक मत्स्य उत्पादक देशों में भारत का विश्व में आठवां स्थान है। भारत द्वारा प्रतिवर्ष 30 लाख टन पकड़ी जाने वाली मछलियों में से 56 प्रतिशत अनन्य आर्थिक क्षेत्र से ही पकड़ी जाती हैं। समुद्री पौध तथा जीवों का इस्तेमाल औषधि निर्माण में भी किया जा सकता है।
Question : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार की दिशा में जो बदलाव आया है, उसका वर्णन कीजिए।
(1998)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। भारत को काफी मात्र में खनिज तेल के अलावा मशीनी उपकरण व अन्य चीजों का बाहर से आयात करना पड़ा। निर्यात में कमी के कारण व्यापार संतुलन कुप्रभावित हुआ और तभी से भारत इस समस्या से भी जूझ रहा है।
आज भी विश्व व्यापार के कुल प्रतिशत का मात्र 0.6 प्रतिशत हिस्सा ही भारत के नाम है। लेकिन आज भारत के व्यापार में मात्रात्मक व गुणात्मक बदलाव आया है। जहां पहले हम खाद्यान्नों का आयात करते थे, वहीं आज हम उनका निर्यात कर रहे हैं। इसी तरह हम खनिज, तैयार माल, विद्युत उपकरण, चमड़ा उत्पाद, रत्न, आभूषण, कपड़ा, सेवा आदि का निर्यात कर रहे हैं। शुरू में हम अमेरिका, रूस, जर्मनी व जापान से वस्तुएं आयात करते थे, पर अब अन्य देशों यथा- ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, आस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ आदि देशों से भी वस्तुएं आयात कर रहे हैं।
विश्व व्यापार के वैश्वीकरण तथा व्यापारिक गुटों में बंट जाने से भारत के समक्ष एक नयी चुनौती सामने आयी है। इस प्रतियोगिता में गुणात्मक तथा मात्रात्मक सुधार लाने हेतु नयी आयात-निर्यात नीति की घोषणा की गई। इसके अंतर्गत कई वस्तुओं पर से निर्यात प्रतिबंधों को हटा लिया गया। VABAL तथा पास बुक प्रणाली समाप्त कर दी गई। इसके स्थान पर नई पास बुक प्रणाली लागू की गई है। EPCG स्कीम में ड्यूटी की दर घटा कर 15 प्रतिशत से 10 प्रतिशत कर दी गई। व्यापार प्रक्रिया को सरल बनाया गया। निर्यात संवर्द्धन हेतु निर्यातोन्मुखी इकाइयों की स्थापना की गई। इन सभी उपायों से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा तथा भारत विश्व व्यापार के मानचित्र में अपना स्थान बना सकेगा।