शहरी क्षेत्र विकास और वन्यजीव संरक्षण

  • शहरी विस्तार से जैव विविधता, आवास, पोषण गतिशीलता और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं सहित पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आ जाता है।
  • शहरीकरण जीव जंतुओं के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर सकता है, इससे बड़े जीवों को विचरण हेतु पर्याप्त स्थान प्राप्त नहीं हो पता है।
  • आक्रामक/गैर-देशी प्रजातियों के आगमन से प्राकृतिक रूप से निर्मित खाध-जाल विकृत हो जाता है तथा देशी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का उद्देश्य देश के वन्यजीवों को अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार से सुरक्षित करना था। इस अधिनियम को जनवरी, ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

पत्रिका सार