आतंकी वित्तपोषण, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय चुनौती

भारत के केन्द्रीय गृह मंत्रलय द्वारा 18-19 नवंबर, 2022 तक नई दिल्ली में तीसरा ‘नो मनी फॉर टेरर’ (NMET) मंत्रिस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य आतंकवादी संगठनों को गैर-कानूनी ढंग से दी जाने वाली वित्तीय मदद को रोकने पर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय शासन की प्रभावशीलता और उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक कदमों पर विचार विमर्श करना।

मुख्य विषय

नशीले पदार्थों की तस्करी, क्रिप्टो-करेंसी तथा हवाला जैसे संगठित अपराधों के बीच बढ़ते आपसी गठजोड़ ने आतंक के वित्तपोषण की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा दिया है। सम्मेलन में एफएटीएफ ने वित्तीय गबन और आतंक से जुड़ी संस्थाओं के दुष्कृत्यों की जांच पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

भारत का पक्ष

  • भारत ने आतंकवाद के वित्त पोषण का मुकाबला करने पर निरंतर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत में एक ‘स्थायी सचिवालय’ (Permanent Secretariat) स्थापित करने का सुझाव दिया।
  • नवीन प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के बजाय इसका उपयोग ‘आतंकवाद को ट्रैक करने, ट्रेस करने और निपटने’ के लिए किया जाना चाहिए।
  • ‘नो मनी फॉर टेरर’ पहल के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वैश्विक समुदाय को आतंकी वित्तपोषण के ‘प्रकार-माध्यम-तरीके’ (Mode – Medium - Method) को समझना चाहिए।

चुनौतियां हैं?

समन्वय की कमीः आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने हेतु सक्रिय अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच समन्वय की कमी है। कई वैश्विक आतंकवाद-रोधी पहलों के बीच एक समन्वित प्रयास गायब है।

राज्य-समर्थित आतंकवादः कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को दिया जाने वाला समर्थन ‘प्रभावी आतंकवाद-रोधी प्रतिक्रिया’ (Counter-Terrorism Response) को रोकता है।

वित्तीय गतिविधियों के बीच अंतरः एजेंसियों के लिए आतंकवाद से संबंधित वित्तीय गतिविधियों और वैध वित्तीय प्रवाह के बीच अंतर करना मुश्किल होता है।

कॉर्पोरेट से जबरन वसूलीः आतंकवादी समूह, विभिन्न व्यवसायों को अपनी नियमित व्यावसायिक गतिविधियों को जारी रऽने के लिए धन देने के लिए मजबूर करते हैं। भारत में, रेड कॉरिडोर में ऽनन और बुनियादी ढांचा गतिविधियों में ऐसा देखा जाता है।

संबद्ध संगठनों पर कार्रवाईः आतंकी समूहों द्वारा वित्तीय सहायता, रसद सेवाएं प्रदान करने, भर्ती को प्रोत्साहित करने और दुर्भावनापूर्ण प्रचार प्रसार करने के लिए कुछ मुखौटा संगठनों (गैर-लाभकारी संगठनों के भेष में) का प्रयोग किया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रयास

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF): 1989 में पेरिस में आयोजित G7 शिऽर सम्मेलन के दौरान स्थापित हुई थी। वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण पर नजर रखने वाली एक प्रमुख संस्था है।

वित्तीय खुफिया इकाइयां (FIUs): मनी लॉन्ड्रिंग तथा आतंकी वित्तपोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए एक वैश्विक समन्वय ढांचा तैयार करने हेतु वित्तीय खुफिया इकाइयों (एफआईयू) की एक प्रणाली स्थापित की गई है।

आतंकवाद विरोधी समिति (CTC): 11 सितंबर, 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ आतंकी हमले के बाद सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा सर्वसम्मति से संकल्प 1373 (2001) को अपनाया गया।

  • इस संकल्प के तहत ‘सुरक्षा परिषद की एक समर्पित आतंकवाद-रोधी समिति’ [Counter-Terrorism Committee (CTC) of the UNSC] की स्थापना की गई।
  • यूएनएससी के सभी 15 सदस्यों वाली इस समिति को संकल्प संख्या 1373 के कार्यान्वयन की निगरानी करने का काम सौंपा गया।

आतंकवाद के वित्तपोषण के दमन के लिए अंतरराष्ट्रीय अभिसमयः आतंकी वित्तपोषण पर यह अभिसमय एक संयुक्त राष्ट्र संधि (1999) है, जो आतंकवादी कृत्यों के लिए भुगतान करने को अवैध घोषित करती है।

आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने के लिए भारत के प्रयास

  • गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967, आतंकी फंडिंग एवं जाली मुद्रा प्रकोष्ठ तथा ‘जाली भारतीय मुद्रा नोट समन्वय समूह’ [FICN Coordination Group (FCORD)] FICN समन्वय समूहः जाली नोटों के प्रचलन की समस्या का मुकाबला करने के लिए केंद्र एवं राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के बीच खुफिया सूचना साझा करने के लिए गृह मंत्रलय द्वारा का गठन किया गया है।
  • इसके साथ ही नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) की स्थापना के साथ साथ विधायी और तकनीकी ढांचे को मजबूत बनाना; एक व्यापक निगरानी ढांचे का निर्माण; कार्रवाई योग्य खुफिया साझाकरण तंत्र तथा जांच एवं पुलिस कार्रवाई को मजबूत करना; संपत्ति की कुर्की का प्रावधान; कानूनी संस्थाओं और नई तकनीकों के दुरुपयोग को रोकना; तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय स्थापित किया गया है।

आगे की राह

  • आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के प्रयासों को ‘धन शोधन पर वैश्विक कार्यक्रम’ जैसे अंतरराष्ट्रीय अधिदेशों के अनुरूप और अधिक कठोर बनाने की आवश्यकता है। साथ ही आतंकवाद के राज्य-प्रायोजन पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाना होगा।