5 अक्टूबर, 2022 को पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और उसके सहयोगियों (ओपेक+) ने तेल उत्पादन में 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन (Barrel Per Day-BPD) की कटौती करने का निर्णय लिया है। कोविड-19 महामारी के आरंभ के पश्चात ओपेक+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में की गई यह सबसे बड़ी कटौती है।
वर्ष 1960 में स्थापित ओपेक+ का उद्देश्य सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना तथा उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम की कुशल एवं नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाजारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना।
तेल उत्पादन में कटौती के कारण
यूरोप में संभावित मंदीः यूरोप में मंदी की आशंका और चीन में लॉकडाउन उपायों के कारण सितंबर 2022 में कच्चे तेल की कीमत तेजी से कम होकर 90 डॉलर प्रति बैरल तक हो गई।
ओपेक+ सदस्यों की चिंताः ओपेक+ सदस्यों की चिंता है कि विपरीत वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में तेल की मांग कम हो सकती है। अतः वर्तमान कटौती को ओपेक+ सदस्यों के लाभ को बनाए रखने के एक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
वैश्विक प्रभाव
भारत पर प्रभावः भारत कच्चे तेल की अपनी आवश्यकताओं का लगभग 85% भाग आयात करता है, जिसमें से लगभग 80% भाग ओपेक+ से आयात किया जाता है। तेल के आयात बिल में वृद्धि होने से मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटा (CAD) तथा राजकोषीय घाटे में वृद्धि होगी। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होगा तथा शेयर बाजार प्रभावित होगा।
यूरोपियन देशों पर प्रभावः हाल ही में यूरोपीय संघ ने रूस से तेल निर्यात पर मूल्य सीमा (Price Cap on Oil Exports) लागू करने की अपनी योजना की घोषणा की थी। किंतु आपूर्ति को कम करने के वर्तमान निर्णय से वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है तथा इससे रूस को अपने कच्चे तेल के निर्यात की मात्र को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
अमेरिका पर प्रभावः तेल की कीमतों में वृद्धि अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर को कम करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को प्रभावित कर सकती है। अमेरिका ने ओपेक+ के इस कदम की आलोचना की है तथा इसे रूस की सहायता के लिए उठाया गया एक कदम बताया है।