सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र, अवसर और चुनौतियां

गतिशील वैदेशिक नीति के दौर में हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) की परिस्थितियों में अधिक तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। यह क्षेत्र 21वीं सदी में व्यापार एवं प्रौद्योगिकी का मुख्य केंद्र रहा है।

  • ‘इंडो-पैसिफिक’ यानी हिंद-प्रशांत को वैश्विक भू-राजनीतिक शब्दावली में एक प्रमुख योग के रूप में शामिल करता है। एक खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत की स्थापना के लिये हितधारक देशों को एक ‘सहयोगी प्रबंधन’ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, क्योंकि इस क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थिरता एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।

महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व के सर्वाधिक आबादी वाला क्षेत्र है।
  • यह आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रें में से एक है।
  • एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस क्षेत्र के मुख्य भागीदार हैं।
  • यहां 60% वैश्विक आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन के 2/3 भाग के साथ यह क्षेत्र वैश्विक आर्थिक केंद्र होने की स्थिति रखता है।
  • यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) का एक विशाल स्रोत और गंतव्य क्षेत्र भी है।
  • विश्व की कई बड़ी आपूर्तिश्रृंखलाओं का हिंद-प्रशांत से महत्त्वपूर्ण संबंध है।
  • हिंद और प्रशांत महासागर में संयुक्त रूप से समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार का मौजूद होना।
  • यहां ऑफशोर हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री तल खनिज और दुर्लभ मृदा धातु (Rareearth metals) का भण्डार होना।

हिंद-प्रशांत की प्रमुख वर्तमान चुनौतियां

  • यह भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का क्षेत्र बन गया है। जैसे यह क्षेत्र ‘क्वाड’ (QUAD) और शंघाई सहयोग संगठन।
  • चीन द्वारा इस क्षेत्र का सैन्यीकरण करने का प्रयास।
  • चीन द्वारा भारत के हितों और स्थिरता के लिये एक प्रमुख चुनौती बनना।
  • भारत के पड़ोसी देशों को चीन से सैन्य और अवसंरचनागत सहायता प्राप्त होना।
  • म्यांमार को पनडुब्बियां और श्रीलंका को युद्धपोत प्रदान करने के साथ ही जिबूती (‘हॉर्नऑफ अफ्रीका’) में एक विदेशी सैन्य अड्डे का निर्माण किया जाना।
  • समुद्री डाका या पाइरेसी, तस्करी एवं आतंकवाद की घटनाओं सहित यह क्षेत्र गैर-पारंपरिक मुद्दों के लिये हॉटस्पॉट का कार्य करता है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौती

  • अवैध, अनियमित और असूचित (illegal, unregulated and unreported-UU) मत्स्यग्रहण और समुद्री प्रदूषण मुक्त, खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत समय की आवश्यकता है। यह आर्थिक सहयोग और सामूहिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ आर्थिक एवं सामाजिक मोर्चे पर हितधारक राष्ट्रों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ाता है या क्षेत्र एक खुले, परस्पर संबद्ध, समृद्ध, सुरक्षित और प्रत्यास्थी हिंद-प्रशांत पर लक्षित होने के साथ ही अधिक समावेशी एवं संवहनीय और सुरक्षित भविष्य के निर्माण को सुनिश्चित करता है।