अंतरधार्मिक विवाह से संबंधित याचिकाओं के एक समूह पर विचार करते हुए 18 नवंबर, 2021 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता को लागू करने का आह्नान किया।
समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता की अवधारणा पूरे देश के लिए एक कानून का प्रावधान करती है, जोकि सभी धार्मिक समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि में लागू होगी।
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों है?
समान सिद्धांतः यूनिफॉर्म सिविल कोड विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाएगा ताकि तय सिद्धांतों, सुरक्षा उपायों और प्रक्रियाओं को निर्धारित किया जा सके तथा नागरिकों को विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों में मौजूद अंतर्विरोधों के कारण संघर्ष न करना पड़े।
धर्म आधारित भेदभाव को रोकनाः व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर लोगों के बीच अंतर करते हैं। वैवाहिक मामलों के संबंध में समान प्रावधानों वाला एक एकीकृत कानून उन लोगों को न्याय प्रदान करेगा जो इन भेदभावों के शिकार हैं।
अन्यायपूर्ण रीति-रिवाजों और परंपराओं को समाप्त करनाः एक तर्कसंगत, एकीकृत और एकसमान व्यक्तिगत कानून समुदायों में प्रचलित कई बुराईयों, अन्यायपूर्ण और तर्कहीन रीति-रिवाजों और परंपराओं को मिटाने में म करेगा।
पंथनिरपेक्षता को बढ़ावाः धर्म की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने के लिए एकसमान कानून का प्रावधान सही मायने में पंथनिरपेक्षता की आधारशिला है। यह धार्मिक आधार पर लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने में म करेगा और देश के पंथनिरपेक्षता के ताने-बाने को मजबूत करेगा।
वंचित वर्गों विशेषकर महिलाओं के अधिकारों का संरक्षणः यूनिफॉर्म सिविल कोड समाज के अति संवेदनशील वर्गों को सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होगा। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक परंपराओं के नाम पर पर्सनल लॉ के जरिए महिलाओं को उनके नैसर्गिक अधिकारों से वंचित किया जाता है।
धार्मिक सद्भाव को बढ़ावाः देश की पूरी आबादी के एकसमान सिविल कानूनों का पालन करने से विभिन्न पक्षों के बीच साम्प्रदायिक विवादों में कमी आएगी तथा देश में धार्मिक सद्भाव का निर्माण होगा।
कार्यान्वयन की चुनौतियां