भारत का संविधान संघात्मक है, इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के संबंध में प्रावधान किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 153-156, 161,163, 164 (1) तथा 213(1) में राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को उपबंधित किया गया है।
विभिन्न आयोगों और समितियों द्वारा दी गई सिफ़ारिशें
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राज्यपाल की भूमिका संबंधित विवाद
केंद्र सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोगः प्रायः केंद्र में सत्ताधारी दल के निर्देश पर राज्यपाल के पद के दुरुपयोग के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं।
पक्षपाती विचारधाराः कई मामलों में एक विशेष राजनीतिक विचारधारा वाले राजनेताओं और पूर्व नौकरशाहों को केंद्र सरकार द्वारा राज्यपालों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
कठपुतली शासकः हाल ही में राजस्थान के राज्यपाल पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। केंद्रीय सत्ताधारी दल के प्रति उनका समर्थन गैर-पक्षपात की भावना के विरुद्ध है जिसकी अपेक्षा संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से की जाती है।
एक विशेष राजनीतिक दल का पक्ष लेनाः चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी/गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने की राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का प्रायः किसी विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में दुरुपयोग किया जाता है।
शक्ति का अनुचित उपयोगः प्रायः यह देखा गया है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के लिये राज्यपाल की सिफारिश सदैव ‘तथ्यों’ पर आधारित न होकर राजनीतिक भावना और पूर्वाग्रह पर आधारित होती है।
आगे की राह
राज्यपाल का उत्तरदायित्त्वः एक लोकतांत्रिक सरकार के सुचारु रूप से संचालन के लिये यह बहुत आवश्यक है कि राज्यपाल को अपने विवेक और व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करते हुए तर्कपूर्ण, निष्पक्ष तथा कुशलता से कार्य करना चाहिये।
संघवाद को मजबूत बनानाः राज्यपाल कार्यालय के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघवाद तंत्र को और मजबूत किया जाना बहुत आवश्यक है।
राज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधारः राज्यपाल के रूप में ‘अपने किसी व्यक्ति/प्रतिनिधि’ का चुनाव करने के केंद्र के एकाधिकार को समाप्त करने के लिये यह नियुक्ति राज्य विधायिका द्वारा स्थापित एक पैनल द्वारा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त वास्तविक नियुक्ति प्राधिकारी अंतर-राज्य परिषद को होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार का।
राज्यपाल के लिये आचार संहिताः राज्यपाल के लिये संविधान में निर्धारित कर्तव्यों का निर्वहन करने हेतु केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा आपसी सहमति से एक ‘आचार संहिता’ (Code of Conduct) का निर्धारण किया जाना चाहिये।