अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AAIJS)

दिसम्बर, 2021 में, केंद्र सरकार केंद्रीय सिविल सेवाओं की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AAIJS) को नए सिरे से स्थापित करने की तैयारी कर रही है।

  • AIJS सभी राज्यों के लिये अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों और जिला न्यायाधीशों के स्तर पर न्यायाधीशों की भर्ती को केंद्रीकृत करने हेतु एक सुधार है।
  • जिस प्रकार संघ लोक सेवा आयोग केंद्रीय भर्ती प्रक्रिया आयोजित करता है और सफल उम्मीदवारों के संवर्गों का आवंटन करता है, उसी प्रकार से निचली न्यायपालिका के न्यायाधीशों को केंद्रीय रूप से भर्ती करने और राज्यों का आवंटन करने का प्रस्ताव रखता है।
  • ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2019’ के अनुसार, न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं की समुचित भागीदारी नहीं होना चिंता का विषय है। अगर अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा का गठन हो जाएगा तो यह समस्या भी खत्म हो जाएगी और महिलाएं अपनी प्रतिभा साबित कर इस क्षेत्र में अपना स्थान बना सकेंगी। इससे लैंगिक असमानता भी खत्म होगी और त्वरित न्याय की अवधारणा भी सफल होगी।

विगत प्रस्ताव

AIJS को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

  • न्यायाधीशों की भर्ती और प्रशिक्षण के लिये एक मानक, केंद्रीकृत परीक्षा आयोजित करने के लिये यूपीएससी जैसे वैधानिक या संवैधानिक निकाय पर चर्चा की गई।
  • विधि आयोग की 1978 की रिपोर्ट में इस विचार को फिर से प्रस्तावित किया गया था, जिसमें निचली अदालतों में मामलों की देरी और एरियर पर चर्चा की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का रुखः वर्ष 1992 में ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम द यूनियन ऑफ इंडिया में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को ।AIJS स्थापित करने का निर्देश दिया।

  • वर्ष 1993 में फैसले की समीक्षा की गई, हालांकि अदालत ने इस मुद्दे पर पहल करने के लिये केंद्र को स्वतंत्र छोड़ दिया।
  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया और एक केंद्रीय चयन तंत्र का प्रस्ताव रखा।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार, जिन्हें अदालत द्वारा न्याय मित्र (अदालत का मित्र) नियुक्त किया गया था, ने सभी राज्यों के लिये एक अवधारणा नोट परिचालित किया जिसमें उन्होंने अलग राज्य परीक्षा के बजाय एक सामान्य परीक्षा आयोजित करने की सिफारिश की।
  • योग्यता सूची के आधार पर उच्च न्यायालय साक्षात्कार के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे। दातार ने कहा कि यह संवैधानिक ढांचे को न तो परिवर्तित करेगा और न ही राज्यों या उच्च न्यायालयों की शक्तियों को प्रभावित करेगा।

एआईजेएस के लाभ

  • कुशल न्यायपालिकाः यह राज्यों में अलग-अलग वेतन और पारिश्रमिक जैसे संरचनात्मक मुद्दों का समाधान करने, रिक्तियों को तेजी से भरने और राज्यों में मानक प्रशिक्षण सुनिश्चित करने हेतु एक कुशल अधीनस्थ न्यायपालिका सुनिश्चित करेगी।
  • ईज ऑफ डूइंग बिजनेसः सरकार ने भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार के अपने प्रयास में निचली न्यायपालिका में सुधार का लक्ष्य रखा है, क्योंकि कुशल विवाद समाधान रैंक निर्धारित करने में प्रमुख सूचकांकों में से एक है।
  • जनसंख्या अनुपात में न्यायाधीशों को नियुक्त करनाः एक विधि आयोग की रिपोर्ट (1987) ने सिफारिश की है कि भारत में 10-50 न्यायाधीशों (तत्कालीन) की तुलना में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 50 न्यायाधीश होने चाहिये।
  • अब स्वीकृत संख्या के मामले में यह आंकड़ा 20 न्यायाधीशों को पार कर गया है, लेकिन यह अमेरिका या यूके की तुलना में क्रमशः 107 और 51 न्यायाधीश प्रति मिलियन लोगों की तुलना में कुछ भी नहीं है।
  • समाज के सीमांत वर्गों का उच्च प्रतिनिधित्वः सरकार के अनुसार, ।AIJS समाज में हाशिये पर जीवन यापन कर रहे
  • लोगों और वंचित वर्गों के समान प्रतिनिधित्व के लिये एक आदर्श समाधान है।
  • प्रतिभाशाली समूह को आकर्षित करनाः सरकार का मानना है कि अगर ऐसी कोई सेवा स्थापित होती है, तो इससे प्रतिभाशाली लोगों का एक समूह बनाने में म मिलेगी जो बाद में उच्च न्यायपालिका का हिस्सा बन सकते हैं।
  • बॉटम-अप अप्रोचः भर्ती में बॉटम-अप अप्रोच निचली न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद जैसे मुद्दों का भी समाधान करेगा।

एआईजेएस चुनौतियां

संघीय ढांचे को कमजोर करनाः एआईजेएस को संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए एवं एआईजेएस निर्मित करते समय शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

  • प्रस्ताव में कम वेतन एवं उच्च न्यायपालिका में पदोन्नत होने की कम संभावना सहित निचली न्यायपालिका को त्रस्त करने वाले संरचनात्मक मुद्दों को सम्मिलित नहीं किया गया है।
  • परिनियोजित न्यायिक अधिकारी स्थानीय कानूनों एवं रीति-रिवाजों से अनभिज्ञ होंगे जो मामलों के न्याय निर्णयन करने में महत्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से वैवाहिक या वसीयतनामा अथवा संपत्ति के मामलों जैसे सिविल मामलों में जहां अंतिम परिणाम स्थानीय रीति-रिवाजों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
  • एआईजेएस को प्रायः न्यायपालिका में रिक्त पदों के समाधान के रूप में देखा जाता है। यद्यपि, सभी राज्यों में रिक्तियों की संख्या एक समान नहीं है। इसके अतिरिक्त, अधिकांश रिक्तियां अधीनस्थ स्तर पर मौजूद हैं न कि जिला न्यायाधीशों के स्तर पर। देश भर में बहुत सारे कोचिंग संस्थान पनपने लगेंगे एवं, इसलिए सिविल सेवाओं के समान शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाएगा।