52वें संविधान संशोधन 1985 के माध्यम से संविधान में 10वीं अनुसूची शामिल की गई थी, इसे ही सामान्यतः दल-बदल विरोधी कानून के नाम से जाना जाता है।
अयोग्य घोषित किये जाने के आधार
दल-बदल विरोधी कानून के अपवाद
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स्पीकर का निर्णय न्यायिक पुनरावलोकन के अधीन है?
10वीं अनुसूची में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि दल-बदल से संबंधित किसी भी मामले में अंतिम निर्णय सदन के अध्यक्ष का होता है और किसी भी न्यायालय की इस संबंध में कोई अधिकारिता नहीं है। हालांकि 10वीं अनुसूची के इस प्रावधान को किहोतो होलोहन मामले के तहत सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
10वीं अनुसूची का महत्व
दल-बदल विरोधी संवैधानिक प्रावधान ने संसदीय प्रणाली में अनुशासन और सुशासन सुनिश्चित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
इस संदर्भ में विभिन्न समितियों के विचार दिनेश गोस्वामी समिति
विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट
चुनाव आयोग का मत
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कमियां
10वीं अनुसूची में सदस्यों की स्वतंत्रता पर सीमाएं लगाई गईं, जिसमें उनकी असहमति और दल-परिवर्तन के मध्य अंतर को स्पष्ट नहीं किया गया।
आगे की राह