‘एक देश, एक निर्वाचनः स्थायित्व, लागत एवं संघ वाद की दृष्टि से

मौजूदा समय में ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर बहस का मुद्दा जोरों पर है। कुछ राजनीतिक दल इसके पक्ष में नजर आते हैं तो कुछ विरोध् में और कुछ ने अभी इस पर अपनी राय जाहिर नही की है।

  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा तथा विधनसभा चुनावों के एक साथ होने का समर्थन कई बार कर चुके हैं। एक साथ चुनाव करवाने का समर्थन करते हुए नीति आयोग की मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दोनों चुनाव एक साथ होने से शासन व्यवस्था में रुकावटें कम होंगी।
  • देश में पहले भी लोकसभा और विधनसभा का चुनाव एक साथ हो चुके हैं। जैसा की पहली चार लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव 1952, 1957, 1962 और 1967 में हुए थे। लेकिन उसके बाद राज्य सरकारें अपने पांच साल के कार्यकाल से पहले ही गिरने लगी और गठबंधन टूटने लगे और पिफर देश में विधनसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग कराए जाने लगे।

पृष्ठभूमि

यह विचार वर्ष 1983 से अस्तित्व में है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था। हालांकि वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव भारत में प्रतिमान थे।

  • लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में एक साथ हुए थे।
  • इसके बाद वर्ष 1957, वर्ष 1962 और वर्ष 1967 में हुए तीन आम चुनावों में भी यह प्रथा जारी रही।
  • लेकिन वर्ष 1968 और वर्ष 1969 में कुछ विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया।
  • वर्ष 1970 में लोकसभा को समय से पहले ही भंग कर दिया गया था और वर्ष 1971 में पुनः नए चुनाव हुए थे। इस प्रकार पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पूरे 5 वर्ष के कार्यकाल पूर्ण किये थे।
  • लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं दोनों के समय से पहले विघटन और कार्यकाल के विस्तार के परिणामस्वरूप लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के अलग-अलग चुनाव हुए हैं और एक साथ चुनाव का चक्र बाधित हो गया।

लाभ

  • इससे मतदान में होने वाले खर्च, राजनीतिक पार्टियों के खर्च आदि पर नजर रखने में म मिलेगी और जनता के पैसे को भी बचाया जा सकता है।
  • प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बढ़ते बोझ को भी कम किया जा सकता है।
  • सरकारी नीतियों को समय पर लागू करने में म मिलेगी और यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी मोड के बजाय विकास संबंधी गतिविधियों में लगी हुई है।
  • शासनकर्त्ताओं की ओर से शासन संबंधी समस्याओं का समाधान समय पर किया जाएगा। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसी विशेष विधानसभा चुनाव में अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिये, सत्तारूढ़ राजनेता कठोर दीर्घकालिक निर्णय लेने से बचते हैं जो अंततः देश को दीर्घकालिक लाभ पहुंचा सकता है।
  • पांच वर्ष में एक बार चुनावी तैयारी के लिये सभी हितधारकों यानी राजनीतिक दलों, भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI), अर्द्धसैनिक बलों, नागरिकों को अधिक समय मिल सकेगा।

चुनौतियाँ

इसकी राह में सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को समन्वित करने की है, ताकि दोनों का चुनाव निश्चित समय के भीतर हो सके।

  • राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ समन्वित करने के लिये राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को तदनुसार घटाया और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिये कुछ संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।

अनुच्छेद 83: इसमें कहा गया है कि लोकसभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष का होगा।

अनुच्छेद 85: यह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का अधिकार देता है।

अनुच्छेद 172: इसमें कहा गया है कि विधानसभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक की तिथि से पांच वर्ष का होगा।

अनुच्छेद 174: यह राज्य के राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार देता है।

अनुच्छेद 356: यह केंद्र सरकार को राज्य में संवैधानिक मशीनरी की विफलता के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है।

  • इनके अलावा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ संबंधित संसदीय प्रक्रिया में भी संशोधन करना होगा।
  • ‘एक देश-एक चुनाव’ के लिये सभी राजनीतिक दलों को राजी करना आसान काम नहीं है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मानना है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की आवधारणा देश के संघात्मक ढांचे के विपरीत सिद्ध हो सकती है।
  • इसके अतिरिक्त चुनाव में बड़ी मात्र में खर्च होने वाला धन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारणों में सबसे ऊपर है। ऐसे में चुनाव की बारंबारता में रोक भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत कदम साबित हो सकता है।
  • लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियां: वर्तमान समय में मतदान करने के लिये प्रत्येक मतदान केंद्र पर एक EVM का उपयोग एक VVPAT मशीन के साथ किया जा रहा है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर इनकी संख्या दोगुनी हो जाएगी।
  • अतिरिक्त मतदान कर्मियों के साथ बेहतर और चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी और यह काम केंद्रीय पुलिस बलों की संख्या बढ़ाए बिना करना संभव नहीं है। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में EVM और VVPAT मशीनों को सुरक्षित रखना भी एक बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि निर्वाचन आयोग को वर्तमान में ही इन्हें सुरक्षित रखने की समस्या से जूझना पड़ रहा है।