शासन कार्यों में आधिाकारिक भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शासन कार्यों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं को भी शामिल किये जाने की आवश्यकता बताई है।

प्रमुख बिंदु

सरकार को अन्य भाषाओं को शासन कार्यों में शामिल करने के लिये ‘राजभाषा अधिनियम’ (official Languages Act)- 1963 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।

  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (Environment Impact Assessment-EIA) अधिसूचना- 2020 का अनुवाद, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने का निर्णय दिया था।
  • भारत संघ द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

राजभाषा अधिनियम-1963

राजभाषा अधिनियम, 1963 ( वर्ष 1967 में संशोधन) निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषाओं को निर्धारित करता हैः

  • संघ के आधिकारिक उद्देश्य के लिये भाषा;
  • संसदीय कार्यवाही के लिये भाषा;
  • केंद्रीय और राज्य अधिनियमों के लिये भाषा;
  • उच्च न्यायालयों में निश्चित उद्देश्य के लिये भाषा।

संवैधानिक प्रावधान

संविधान के भाग-17 के अनुचछेद 343 से 351 तक में राजभाषा संबंधी प्रावधान किये गए हैं।

  • संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत संघ की राजभाषा के संबंध में प्रावधान किया गया है।
  • अनुच्छेद 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी संघ की राजभाषा है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।
  • तथापि संविधान के इसी अनुच्छेद 343 के खंड (2) के अनुसार किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के लागू होने के समय से पन्द्रह वर्ष की अवधि (अर्थात 26 जनवरी, 1965) तक संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए वह संविधान के लागू होने के समय से ठीक वह संविधान के लागू होने के समय से ठीक पहले प्रयोग की जाती थी। (अर्थात् 26 जनवरी, 1965 तक अंग्रेजी उन सभी प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाती रहेगी, जिनके लिए वह संविधान के लागू होने के समय से पूर्व प्रयोग की जाती थी।)
  • अनुच्छेद 343 के खंड (2) के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि में भी अर्थात् 26 जनवरी, 1965 से पूर्व भी राष्ट्रपति आदेश द्वारा किसी भी राजकीय प्रयोजन के लिए अंग्रेजी के साथ साथ देवनागरी रूप के प्रयोग की अनुमति दे सकते हैं।

राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर

  • राष्ट्रभाषाः राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है- समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात् आमजन की भाषा (जनभाषा जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन-जन के विचार- विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है। गौरतलब है कि जनता जब स्थानीय एवं तात्कालिक हितों व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।
  • राजभाषाः राजभाषा, किसी राज्य या देश की घोषित भाषा होती है जो कि सभी राजकीय प्रायोजनों में प्रयोग होती है। उदाहरणतः भारत की मुख्य आधिकारिक राजभाषा हिन्दी है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है।
  • इसके अलावा सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकारें अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती हैं।

क्षेत्रीय भाषा

संविधान में राज्यों के लिये किसी विशेष भाषा का उल्लेख नहीं किया गया। किसी राज्य की विधायिका उस राज्य में एक या अधिक भाषा अथवा हिंदी का चुनाव ‘आधिकारिक भाषा’ के रूप में कर सकती है।

  • राज्यों द्वारा आधिकारिक भाषा का चुनाव संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं तक सीमित नहीं है।
  • केंद्र तथा राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच संवाद के रूप में अंग्रेजी अथवा हिंदी (हिंदी के प्रयोग के लिये सहमति आवश्यक) का प्रयोग किया जा सकेगा।
  • आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ: संविधान की आठवीं सूची में 22 भाषाएं (मूल रूप से 14) शामिल हैं। ये हैं- असमिया, बंगाली (बांग्ला), बोडो, डोगरी (डोंगरी), गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।