गवर्नेंस 4.0: नवीन चुनौतियों के सन्दर्भ में आवश्यकता

वर्तमान कोविड-19 महामारी शासन 3.0 के दौरान ही उत्पन्न हुई और इस शासन के इस स्वरूप के ‘ट्रायल एंड एरर’ दृष्टिकोण से इस महामारी के बेतरतीब प्रबंधन एवं नकारात्मक प्रभाव सामने आए।

हाल ही में हुए विश्व आर्थिक मंच के दावोस शिखर सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि वैश्विक शासन व्यवस्था अब अपने पिछले अनुपयुक्त स्वरूपों से शासन 4-0 की ओर अग्रसर हो जो अधिक समावेशन के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक धारणा पर केंद्रित हो।

  • इस नए दौर में इस बदलाव की आवश्यकता इसलिये पड़ी क्योंकि चौथी औद्योगिक क्रांति और जलवायु परिवर्तन ने वर्तमान जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है और इसका दंश सर्वाधिक सुभेद्य समूहों, गरीब, कमजोर, महिलाओं और बच्चों ने झेला है।
  • यह महसूस हुआ है कि संस्थाएं और नेतृत्वकर्त्ता दोनों अपने उद्देश्यों के प्रति उपयुक्त नहीं हैं और वैश्विक शासन व्यवस्था के लिये ऐसे गवर्नेंस मॉडल की आवश्यकता है, जो व्यापार एवं वित्त जगत को प्राथमिकता देने के स्थान पर समाज एवं प्रकृति की प्रधानता पर ध्यान केंद्रित करे और ऐसी ही उम्मीद शासन 4-0 मॉडल से की जा रही है।

शासन 4.0 में निहित दृष्टिकोण

दीर्घकालिक रणनीतिक योजना का निर्माणः शासन 4.0 के तहत वर्तमान अल्पकालिक प्रबंधन दृष्टिकोण को दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण द्वारा प्रतिस्थापित करना होगा।

  • वहीं महामारी, सामाजिक-आर्थिक संकट और मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर ध्यान देने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कार्रवाई, मानव गतिविधि से होने वाली जैव विविधता की हानि एवं पर्यावरण की क्षति को दूर करने और अनैच्छिक प्रवास जैसी संबंधित चुनौतियों को संबोधित किया जाना भी आवश्यक है।

व्यवसायों द्वारा उत्तरदायित्व ग्रहण करनाः नए मॉडल के अंतर्गत अतीत के ‘टनल विजन’ (Tuel Vision) या संकीर्ण दृष्टिकोण और अद्योमुखी दृष्टिकोण (Top-Down Approach) को प्रतिस्थापित करना होगा। विसंगतियों से भरी जटिल और परस्पर-संबद्ध दुनिया में समाज के प्रत्येक हितधारक की भूमिकाओं में परिवर्तन लाया जाना चाहिये।

  • व्यवसाय अब अपने सामाजिक एवं पारिस्थितिक प्रभावों की उपेक्षा नहीं कर सकते और यह जवाबदेही सरकार की होगी कि वह सुनिश्चित करे कि व्यवसाय उत्तरदायित्व ग्रहण करें।

उभरती प्राथमिकताएँ: अर्थशास्त्र की संकीर्ण अवधारणा और अल्पकालिक वित्तीय हितों पर बल देना बंद करना होगा। इसके बजाय समाज और प्रकृति की प्रधानता किसी भी नई शासन प्रणाली के मूल में निहित होनी चाहिये। निश्चय ही वित्त और व्यवसाय अत्यंत महत्वपूर्ण हैं लेकिन उन्हें समाज और प्रकृति की सेवा करनी चाहिये, न कि समाज और प्रकृति का उपयोग करना चाहिये।

नए नेतृत्वकर्त्ताः कई नेतृत्वकर्त्ता शासन के एक नए युग का नेतृत्व करने को इच्छुक हैं, जिनमें पर्यावरण, समाज एवं शासन संबंधी मेट्रिक्स की वकालत करने वाले व्यावसायिक कार्यकारी से लेकर कुछ राजनीतिक नेता तक सभी शामिल हैं।

  • ऐसे नेतृत्वकर्त्ताओं का स्वागत किया जाना चाहिये जो अपने संकीर्ण हितों के बाहर मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं और जलवायु परिवर्तन से मुकाबले तथा सामाजिक अन्याय को दूर करने के लिये विशिष्ट कार्रवाई का समर्थन करते हैं।
  • शासन (Governance) का आशय निर्णय लेने और निर्णय लागू किये जाने की प्रक्रिया से हैं। इसका उपयोग कॉर्पोरेट शासन, अंतरराष्ट्रीय शासन, राष्ट्रीय शासन या स्थानीय शासन जैसे विभिन्न संदर्भों में किया जा सकता है।

शासन के स्वरूप

  • शासन 1.0 (Governance 1.0): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शासन 1.0 की अवधि में सार्वजनिक और कॉर्पोरेट शासन दोनों को ही एक ‘मजबूत नेता’ के शासन द्वारा चिह्नित किया गया।
  • इस प्रकार का नेतृत्व एक ऐसे समाज के लिये बेहतर था, जहां सूचना की लागत अधिक थी, पदानुक्रमित प्रबंधन अपेक्षाकृत सुचारू रूप से कार्य करता था और तकनीकि एवं आर्थिक प्रगति ने लगभग सभी को लाभान्वित किया था।
  • शासन 2.0 (Governance 2.0): इस मॉडल का उभार 1960 के दशक के अंत में हुआ और इसने भौतिक संपदा की प्रधानता की पुष्टि की। इसका उभार ‘शेयरधारक पूंजीवाद’ (Shareholder Capitalism) और प्रगतिशील वैश्विक वित्तीयकरण (Progressive Global Financialçation) के उदय के साथ-साथ हुआ।
  • इस मॉडल के तहत केवल शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह प्रबंधकों ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। हालांकि वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने इस मॉडल को एक झटका दिया लेकिन इसकी संकीर्ण दृष्टि आगे भी बनी रही है।
  • शासन 3.0 (Governance 3.0): इसके अंतर्गत ‘निर्णयन प्रक्रिया’ में ‘संकट प्रबंधन’ काफी महत्वपूर्ण हो गया, जहां नेतृत्वकर्त्ताओं का मुख्य ध्यान परिचालन संबंधी विषयों पर रहा है और वे संभावित अनपेक्षित परिणामों के प्रति एक सापेक्षिक उपेक्षा का प्रदर्शन करते हैं।
  • कोविड संकट का उभार इसी शासन 3.0 के दौरान हुआ है और इस मॉडल के ‘परीक्षण-और-त्रुटि दृष्टिकोण’ (Trial-And-Error Approach) से महामारी के बेतरतीब प्रबंधन एवं प्रभाव सामने आए हैं।