वन अधिकार अधिनियम, 2006

वन अधिकार अधिनियम (2006), वन संबंधी नियमों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो 18 दिसम्बर, 2006 को पास हुआ। यह कानून जंगलों में रह रहे लोगों के भूमि तथा प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार से जुड़ा हुआ है जिनसे औपनिवेशिक काल से ही उन्हें वंचित किया हुआ था। इसका उद्देश्य जहां एक ओर वन संरक्षण है वहां दूसरी ओर यह जंगलों में रहने वाले लोगों को उनके साथ सदियों तक हुए अन्याय की भरपाई का भी प्रयास है। इस कानून के मुख्य प्रावधान निम्न हैं-

  • यह जंगलों में निवास करने वाले या वनों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  • यह उन्हें चार प्रकार के अधिकार प्रदान करता है।
  • जंगलों में रहने वाले लोगों तथा जनजातियों को उनके द्वारा उपयोग की जा रही भूमि पर उनको अधिकार प्रदान करता है।
  • उन्हें पशु चराने तथा जल संसाधनों के प्रयोग का अधिकार देता है।
  • विस्थापन की स्थिति में उनके पुनर्स्थापन का प्रावधान करता है।
  • जंगल प्रबंधन में स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • जंगल में रह रहे लोगों का विस्थापन केवल वन्यजीवन संरक्षण के उद्देश्य के लिए ही किया जा सकता है। यह भी स्थानीय समुदाय की सहमति पर आधारित होना चाहिए।
  • वन संरक्षण अधिनियम (2006) स्थानीय लोगों का भूमि पर अधिकार प्रदान कर वन संरक्षण को बढ़ावा देता है। यह वन भूमि पर गैर कानूनी कब्जों को रोकता है तथा वन संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों के विस्थापन को अंतिम विकल्प मानता है। विस्थापन की स्थिति में यह लोगों का पुनर्स्थापन का अधिकार भी प्रदान करता है।