भारत सरकार ने वनों के संरक्षण तथा वनों के विकास के लिए वन संरक्षण अधिनियम (1980) पारित किया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वनों का विनाश और वन भूमि को गैर-वानिकी कार्यों में उपयोग से रोकना था।
इस अधिनियम के प्रभावी होने के पश्चात कोई भी वन भूमि केंद्रीय सरकार की अनुमति के बिना गैर वन भूमि या किसी भी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में नहीं लाई जा सकती तथा न ही अनारक्षित की जा सकती है।
आबादी के बढ़ने तथा मानव जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों का कटना स्वाभाविक है।
अतः ऐसे कार्यों की योजनाएं बनाते समय तथा वनों को काटने हेतु मार्गदर्शिकायें तैयार की गई हैं जिससे वनों को कम से कम नुकसान हो। इन मार्गदर्शिकाओं में निम्न बिन्दुओं पर अधिक ध्यान दिया गया हैः
वन सबंधी योजनाएं इस प्रकार हो ताकि वन संरक्षण को बढावा मिले।
वनों की कटाई जहां तक संभव हो रोका जाना चाहिए।
पशुओं के लिए चारागाहों को ध्यान रखना चाहिए व चारे के उत्पादन हेतु विशेष प्रावधान किये जाने चाहिए।
कुछ समय के लिए वनों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए ताकि इन इलाकों में पुनःपेड-पौधे उग सकें। पहाड़ों, जल क्षेत्रों, ढलान वाली भूमियों पर वनों को पूरी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए।