यूरोपियनों के आगमन के साथ ही वास्तुकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस काल में दो प्रधान शैलियां विकसित हुईं- देशी स्थापत्यकारों द्वारा बनाए गये राजपूताना के भवन तथा पाश्चात्य शैली की इमारतें। मुगल काल से ही राजस्थान के राजपूत शासकों द्वारा निर्मित राजमहलों की परम्परा चल पड़ी। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बांसवाड़ा, ग्वालियर, झांसी, कोटा, बूंदी आदि के महल इसी परम्परा के प्रमाण हैं। इसी तरह सवाई राजा जयसिंह ने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा, वाराणसी में वेधशाला केन्द्र के रूप में जंतर- मंतर जैसे स्थापत्यों का निर्माण कराया।