वास्तुकला/स्थापत्य कला

यूरोपियनों के आगमन के साथ ही वास्तुकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस काल में दो प्रधान शैलियां विकसित हुईं- देशी स्थापत्यकारों द्वारा बनाए गये राजपूताना के भवन तथा पाश्चात्य शैली की इमारतें। मुगल काल से ही राजस्थान के राजपूत शासकों द्वारा निर्मित राजमहलों की परम्परा चल पड़ी। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, बांसवाड़ा, ग्वालियर, झांसी, कोटा, बूंदी आदि के महल इसी परम्परा के प्रमाण हैं। इसी तरह सवाई राजा जयसिंह ने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा, वाराणसी में वेधशाला केन्द्र के रूप में जंतर- मंतर जैसे स्थापत्यों का निर्माण कराया।

  • दूसरी शैली के अन्तर्गत पुर्तगालियों ने गोवा में आइबेरियन प्रभाव वाले चर्चों का निर्माण किया। उनमें पुराना गोवा स्थित बोमजीसस का बसिलिका है, जिसमें सेंट फ्रांसिस जेवियर का शव सुरक्षित है। कैथेड्रल और असिसि चर्च इसके अन्य उदाहरण हैं। अंग्रेजों के अन्तर्गत विक्टोरिया शैली के स्थापत्यों का निर्माण किया गया। कोलकाता का फोर्ट विलियम, मद्रास का सेंट फोर्ट जार्ज इसके उदाहरण है।
  • दिल्ली के राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, कनॉट प्लेस आदि पर भी पश्चिमी शैली का प्रभाव है। राष्ट्रपति भवन हिन्दू, मुस्लिम तथा बौद्ध शैलियों का सम्मिश्रण है। राजधानी नयी दिल्ली के लिए सर एडविन लिटन्स तथा सर एडवर्ड बेकर ने डिजाइन बनायी थी। स्वाधीनता के बाद फ्रांसीसी वास्तुविद् कार्ब्युजियर द्वारा तैयार योजना पर चंड़ीगढ़ शहर का निर्माण किया गया।