स्थापत्य कलाः सिंधु स्थापत्य कला की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है, सुनियोजित नगर-निर्माण योजना। इसका आधार था- प्रमुख सड़कें। ये सड़कें उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर समकोण पर काटती थी।
धातु कलाः सिंधुवासियों को विविध धातुओं का पूरा ज्ञान था। वे स्वर्ण, रजत, ताम्र एवं कांसा से कलात्मक आभूषणों का निर्माण करते थे। खुदाई में बाजूबन्द, कंठहार, लम्बहार, भुजबन्द, चूड़ियां, अंतक, अंगूठियां आदि मिले हैं, जो काफी आकर्षक है। मोहनजोदड़ों से गलाए हुए तांबे का एक ढे़र मिला है।
मुद्रा कलाः इस काल में सेलखड़ी की मुहरें बनाई जाती थीं। खुदाई में मुहरें ढालने के सांचे और ठप्पे मिले हैं। उन पर विभिन्न पशु-पक्षियों की आकृतियां चित्रित है। उनमें से पशुओं से घिरे हुए योगीश्वर शिव की मुद्रा उल्लेखनीय है।
मृद्भांड कलाः सिंधु सभ्यता के नगरों में मिट्टी, अभ्रक की हंड़िया, प्याले तथा तश्तरियां मिले हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के अधिकांश बर्तन हल्के रंगों से रंगे हैं, कुछ थोड़े से काले एवं भूरे रंग के बर्तन भी मिले हैं।
स्थापत्य कला के प्राचीन स्कूल
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