गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष

सितम्बर, 2021 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बिलसर गांव में गुप्तकाल (5वीं शताब्दी) के एक प्राचीन मंदिर के अवशेषों की खोज की। वर्ष 1928 में ASI द्वारा बिलसर को ‘संरक्षित स्थल’ घोषित किया गया था।

प्रमुख बिंदुः खुदाई से प्राप्त दो स्तंभों पर गुप्त वंश के शक्तिशाली शासक कुमारगुप्त प्रथम के बारे में 5वीं शताब्दी ईस्वी की ‘शंख लिपि’ में एक शिलालेख है।

  • सर्वप्रथम गुप्तों ने संरचनात्मक मंदिरों का निर्माण किया, जो प्राचीन रॉक-कट मंदिरों से अलग थे।
  • शिलालेख को महेंद्रादित्य से संबंधित समझा गया था, जो राजा कुमारगुप्त प्रथम की उपाधि थी, जिन्होंने अपने शासन के दौरान अश्वमेध भी किया था।
  • इसी तरह के शिलालेख वाले अश्व मूर्ति लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में है।

शंख लिपि

  • इसे ‘शेल-स्क्रिप्ट’ भी कहा जाता है, जो उत्तर-मध्य भारत में शिलालेखों में पाई जाती है और 4वीं एवं 8वीं शताब्दी की बीच की कालावधि से संबंधित है।
  • शंखलिपि और ब्राह्मी दोनों ही शैलीबद्ध लिपियां है जिनका उपयोग मुख्य रूप से नाम तथा हस्ताक्षर के लिये किया जाता है।
  • शिलालेखों में वर्णों की एक छोटी संख्या होती है, जो यह प्रदर्शित करती है कि शैल शिलालेख नाम या शुभ प्रतीक या दोनों का संयोजन है। इसकी खोज वर्ष 1836 में अंग्रेजी विद्वान जेम्स प्रिंसेप ने उत्तराखंड के बाराहाट में पीतल के त्रिशूल पर की थी।
  • शैल शिलालेखों के साथ प्रमुख स्थलः मुंडेश्वरी मंदिर (बिहार), उदयगिरि गुफाएं (मध्य प्रदेश), मानसर (महाराष्ट्र) और गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ गुफा स्थल।
  • इस तरह के शिलालेख इंडोनेशिया के जावा और बोर्नियो में भी पाए गए हैं।
  • अश्वमेध यज्ञ वैदिक धर्म की श्रौत परंपरा के बाद एक अश्व की बलि का अनुष्ठान है।
  • यह खोज इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक केवल दो गुप्तकालीन संरचनात्मक मंदिर पाए गए हैं - दशावतार मंदिर (देवगढ़) और भितरगांव मंदिर (कानपुर देहात)।