1 अक्टूबर, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च, 2018 को दिए अपने फैसले से सम्बंधित निर्देशों को वापस ले लिया, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को प्रभावी रूप से कमजोर किया गया था।
दुरुपयोग का आरोप और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ऐसे मामले आये, जिसमें व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अधिनियम के तहत झूठी शिकायतें दर्ज कराई गई थीं, जैसे तकनीकी शिक्षा निदेशक (DTE), महाराष्ट्र का मामला। इसलिए इस कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश देना जरूरी था; ताकि निर्दोषों की रक्षा की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान रुख
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार एससी/एसटी समुदायों का समानता और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। उनके साथ अब भी भेदभाव किया जाता है। अस्पृश्यता अभी भी विद्यमान है।
सुझाव
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 2018 न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसका लाभ अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन से ही सुनिश्चित हो सकता है।