धन शोधान निवारण अधिनियम (PMLA), 2002

यह जनवरी 2003 में अधिनियमित किया गया था और जुलाई 2005 से लागू हुआ।

  • यह धन शोधन के अपराध को परिभाषित करता है। धन शोधन एक प्रक्रिया या गतिविधि है, जिसमें किसी अपराध से प्राप्त आय या अवैध सम्पति को निष्कलंक घोषित किया जाता है। इसके अलावा, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रयास करने या सहायता करने या शामिल होने को भी अपराध माना गया है।
  • अधिनियम में ग्राहक की पहचान, लेनदेन के रिकॉर्ड के सत्यापन और रख-रखाव के लिए बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और बिचौलियों के दायित्व का वर्णन है। इसके साथ ही वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (FIU-IND) को उपरोक्त सूचना जुटाने में भी सक्षम करता है।
  • FIU-IND की स्थापना वर्ष 2004 में की गई थी, जो संदिग्ध लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, विश्लेषण और प्रसार करने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी है।
  • यह धन शोधन और संबंधित अपराधों के खिलाफ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खुफिया, जांच और प्रवर्तन एजेंसियों के प्रयासों को समन्वित और मजबूत करती है।
  • ऐसी संस्थाएँ जो आधार का उपयोग कर सकती हैं: किसी इकाई को आधार के माध्यम से प्रमाणीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है, यदि यूआईडीएआई (UIDAI) संतुष्ट है कि यहः (i) गोपनीयता और सुरक्षा के निश्चित मानकों का अनुपालन, या (ii) कानून द्वारा अनुमति, या (iii) केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किसीउद्देश्य के लिए प्रमाणीकरण की मांग करती हो।
  • स्वैच्छिक उपयोगः व्यक्ति अपनी पहचान स्थापित करने के लिए स्वेच्छा से अपने आधार नंबर का उपयोग प्रमाणीकरण या ऑफलाइन सत्यापन के लिए कर सकता है और केवल संसद के कानून द्वारा इसे अनिवार्य बनाया जा सकता है।
  • बच्चों के लिए आधारः नामांकन एजेंसियों को बच्चे के नामांकन से पहले उनके माता-पिता या अभिभावक की सूचित सहमति (informed consent) लेनी होगी। इसके अलावा अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद बच्चा अपने आधार को रद्द करने के लिए आवेदन कर सकता है।
  • कुछ मामलों में सूचना का प्रकटीकरणः सूचना प्रकटीकरण के मानदंड को कठोर बना दिया गया है, सूचना प्रकटीकरण से सम्बंधित आदेश जारी करने वाले प्राधिकरण या अदालत की रैंक बढ़ा दी गई है। जैसे उच्च न्यायालयों (या ऊपर) ने जिला न्यायालय (या ऊपर) और सचिव ने एक संयुक्त सचिव को प्रतिस्थापित किया है।
  • यूआईडीएआई फंडः इसने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण फंड की स्थापना की; जिसमें सभी शुल्कों और अनुदानों से प्राप्त आय को शामिल किया जायेगा। इसका उपयोग यूआईडीएआई से सम्बंधित विभिन्न खर्चों में किया जाएगा, जिसमें उनके कर्मचारियों के वेतन, भत्ते आदि शामिल हैं।
  • शिकायतें: पहले अदालतें केवल यूआईडीएआई शिकायत दर्ज कराने पर ही अपराध का संज्ञान ले सकती थीं, लेकिन अब व्यक्ति अपनी पहचान के प्रतिरूपण या प्रकटीकरण के लिए भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
  • आधार पारिस्थितिक तंत्रः संशोधन आधार पारिस्थितिकी तंत्र को परिभाषित करता है; जिसमें नामांकन एजेंसियों, अनुरोध करने वाली एजेंसियों और ऑफलाइन सत्यापन चाहने वाली संस्थाओं को शामिल किया गया है। अधिनियम के तहत, अपने कार्यों के निर्वहन के लिए यूआईडीएआई इन संस्थानों को आवश्यक निर्देश जारी कर सकता है।
  • शिकायतों का न्याय निर्णयन और जुर्मानाः यूआईडीएआई आधार प्रणाली में किसी भी असफलता के लिए किसी भी इकाई के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकती है; यदि इकाई (i) अधिनियम का अनुपालन या यूआईडीएआई के निर्देशों का अनुपालन नहीं करता है, और (ii) यूआईडीएआई द्वारा मांगी गई आवश्यक जानकारी प्रस्तुत नहीं करता है। न्यायनिर्णय यूआईडीएआई द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा किया जाएगा, जो एक करोड़ रुपये तक जुर्माना लगा सकता है और ‘दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण’ (टीडीसैट) अपीलीय प्राधिकारी होगा।

संशोधन की आलोचना

आधार के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करने के लिए संशोधन लाया गया था।

  • यह बैंकों और दूर संचार कंपनियों की मदद करेगा, लेकिन इसे पीएमएलए 2002 के तहत शामिल सभी विनियमित वित्तीय सेवा फर्मों, म्यूचुअल फंड, बीमा और भुगतान फर्मों तक विस्तारित किया जाना चाहिए था, जो तुरंत ई-केवाईसी का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
  • आधार व्यक्ति के बारे में संवेदनशील डेटा एकत्र करता है और इसे निजी संस्थाओं के साथ साझा करता है। इससे डेटा चोरी या हैकिंग के मामले में गोपनीयता भंग हो सकती है। ऑफलाइन डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई विधि नहीं है।
  • डेटा सुरक्षा के खतरे से बचने के लिए न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट के आधार पर डेटा सुरक्षा बिल पास करने के बाद इसे लाया जाना चाहिए था।

समर्थन में तर्क

  • संसद के पास सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करने की विधायी शक्तियां हैं।
  • आधार एक ‘फुलप्रूफ सिस्टम’है, जो मजबूत एंड-टू-एंड 2048-बिट एन्क्रिप्शन से बना है और वर्तमान में देश के 123 करोड़ से अधिक लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। आधार प्रणाली में कार्डधारक की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं, जो डेटा लीक होने की आशंकाओं को दूर करता है।
  • डेटा सुरक्षा बिल पास करके और डेटा सुरक्षा नियामक प्राधिकरण के गठन के बाद अन्य वित्तीय एजेंसियों को आधार डेटा के उपयोग की अनुमति दी जा सकती है।
  • आधार केवल नाम, पिता का नाम, जन्म तिथि, उपयोगकर्ता के आवासीय पते का ही खुलासा करता है और मेडिकल रिकॉर्ड या जाति, धर्म और समुदाय के विवरण के बारे में कोई जानकारी नहीं देता है।
  • सरकार ने आश्वस्त किया कि वह सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद डेटा सुरक्षा के लिए एक व्यापक कानून ला रही है; जो डेटा सुरक्षा पर न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट पर आधारित होगा।

सुझाव

डेटा सुरक्षा और इसके विनियमन पर व्यापक कानून लाना, जो दुनिया भर में साइबर सुरक्षा हमलों के बढ़ते खतरे और डेटा चोरी के बढ़ते मामलों के बाद एक ज्वलंत मुद्दा बना है। जैसे गूगल और फेसबुक पर डेटा लीक और चोरी होना।

  • यूआईडीएआई प्रणाली में विश्वास को बढ़ाने के लिए ऑफलाइन डेटा की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करना चाहिए और आधार के उपयोग को स्वैच्छिक बनाना चाहिए। केवल कल्याणकारी योजनाओं में लीक को रोकने के लिए ही आधार का उपयोग करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। जैसे जेएएम ट्रिनिटी (जन धन, आधार और मोबाइल- JAM) के माध्यम से सब्सिडी में बचत करना।
  • आधार डेटा के जबरन प्रकटीकरण (forced disclosure) का न्यूनतम उपयोग होना चाहिए और आधार प्रशासन पारदर्शी होना चाहिए।
  • प्रकटीकरण (disclosure) पर निर्णय लेने के लिए अधिकार प्राप्त अधिकारियों पर जवाबदेही निर्धारित की जानी चाहिए।
  • आधार डेटा के किसी भी दुरुपयोग को रोकने के लिए, आधार से जुड़ी डेटा सुरक्षा के बारे में सूचना का प्रसार करना चाहिए और लोगों का सूचनात्मक रूप से सशक्तिकरण करना चाहिए।