असमानता की लड़ाईः पेप्सिको बनाम गुजरात किसान मामला

हाल ही में, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगम पेप्सिको ने गुजरात के 11 किसानों पर बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन करने के लिए मुकदमा दायर किया है। इन किसानों ने आलू की किस्म FL 2027 को उगाने में प्रयोग किया था; जिसका उपयोग पेप्सिको द्वारा चिप्स बनाने में किया जाता है।

पृष्ठभूमि

  • कंपनी ने फरवरी 2011 में आलू की दो हाइब्रिड किस्मों (FL 1867 और FL 2027) के पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। फरवरी 2016 में इन किस्मों को 15 वर्षों की अवधि के लिए पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम (पीपीवीएफआर) के तहत पंजीकृत किया गया था। इसने पेप्सिको को पंजीकृत विविधता पर विशेष अधिकार दिया।
  • पेप्सीको के अनुसार गुजरात के किसानों ने बिना लाइसेंस के इन FL 2027 किस्म के आलू को उगाकर इसके वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
  • हालांकि किसानों पर मुकदमा चलाने के बाद पेप्सिको को बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है, किसानों द्वारा FL 2027 उगाना बंद करने की शर्त पर पेप्सिको ने इस मामले को निपटाने की पेशकश की है।

पेप्सिको का दृष्टिकोण और दावे

अधिनियम की धारा 28 में पेप्सिको को विभिन्न प्रकार के उत्पादन का विशेष अधिकार प्रदान किया गया है। इसने अपने अधिकारों के उल्लंघन होने पर पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 64 के आधार पर दावा किया था। यह खंड पंजीकृत लाइसेंसधारी के अलावा किसी को भी बीज संवर्द्धक या उसकी किस्म को बेचने, निर्यात, आयात या उत्पादन करने के लिए प्रतिबंधित करता है।

किसान का दावा

किसानों ने पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 39 का हवाला दिया, जो किसान के अधिकार को संरक्षण करती है। अधिनियम के तहत, किसान कृषि उपज को बचा सकते हैं, उपयोग कर सकते हैं, बुआई कर सकते हैं, आदान-प्रदान कर सकते हैं, साझा कर सकते हैं या बेच सकते हैं; लेकिन वे संरक्षित किस्म के ब्रांडेड बीजों को बेचने के हकदार नहीं होंगे।

  • किसानों ने तर्क दिया कि कंपनी के साथ उनका समझौता केवल यह था कि पेप्सिको 45 मिमी से अधिक व्यास के आलुओं को एकत्र करेगा। हालांकि, अनुबंध के मानदंडों को पूरा नहीं करने वाले आलू को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी।
  • समझौते में इस अस्पष्टता का हवाला देते हुए, किसानों ने दावा किया कि उन्होंने परिचित समूहों से पंजीकृत बीज खरीदे हैं और किसान समुदाय पिछले चार वर्षों से इनकी बुआई कर रहे हैं।

पेप्सिको के दावे की आलोचना

एक बीज पर पेटेंट के अधिकार एक देश से दूसरे देश में भिन्न होते हैं। अमेरिका में यदि किसी ने एक बीज का पेटेंट कराया है, तो कोई भी अन्य किसान उसे विकसित नहीं कर सकता है।

  • इस मामले में भारत के पीपीवीएफआर अधिनियम की धारा 39(1)(iv) किसानों का बचाव करती है।
  • इस मामले में संरक्षित बीज ब्रांडेड बीज के रूप में नहीं बेचे गए थे। इसलिए पेप्सिको का दावा अमान्य लगता है।

पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001

पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम को इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ न्यू वेरिएंट्स ऑफ प्लांट्स (UPOV), 1978 के अनुरूप बनाया गया था।

  • इसका उद्देश्य पौधों की किस्मों, किसानों एवं संवर्द्धकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक प्रभावी प्रणाली स्थापित करना और नई किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करना है।
  • यह अधिनियम कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत स्थापित प्राधिकरण के माध्यम से पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार का संरक्षण करता है।

बौद्धिक संपदा अधिकार का अंतरराष्ट्रीय संरचना

  • अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा कानून का प्रमुख संरचना, यानी ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ न्यू वेरिएंट्स ऑफ प्लांट्स (UPOV), पौधों के संवर्द्धकों (breeders) को उनके द्वारा विकसित किस्मों पर विशेष अधिकार देता है और स्वदेशी और कृषक समुदायों के पारंपरिक अनुवंशिक संसाधनों और संबंधित ज्ञान अधिकारों की अवहेलना करते हैं।
  • इस पक्षपात ने विभिन्न राष्ट्रीय कानूनों को प्रस्थापित कर दिया है। इन कानूनों ने कॉर्पोरेट संवर्द्धकों (Breeders) के अधिकारों को किसानों के दावों पर प्राथमिकता दिया है।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून में पूर्वाग्रह को स्वीकार करते हुए, भारतीय पीपीवीएफआर अधिनियम (2001) को अधिनियमित किया गया। यह अधिनियम संवर्द्धकों, शोधकर्ताओं और किसानों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करता है।

अधिनियम के तहत प्रदान किये गये विभिन्न अधिकार

किसानों के अधिकार

एक किसान, जो एक नई किस्म विकसित करता है, वह उस किस्म के संवर्द्धक रूप में संरक्षण का हकदार होगा।

  • पीपीवीएफआर अधिनियम, 2001 के तहत, किसान को संरक्षित किस्म के बीज एवं इसके उत्पाद को सुरक्षित करने, उपयोग करने और एक या एक से अधिक बार बुआई करने का अधिकार होता है।
  • हालांकि, उसे पीपीवीएफआर अधिनियम, 2001 के तहत संरक्षित किस्म के ब्रांडेड बीज को बेचने का अधिकार नहीं होगा।
  • यह किसानों को विभिन्न प्रकार की गैर-प्रदर्शनकारी (non-performance) किस्मों के लिए मुआवजे का प्रावधान भी करता है।
  • अधिनियम के तहत प्राधिकरण या रजिस्ट्रार या ट्रिब्यूनल या उच्च न्यायालय के समक्ष किसी भी कार्यवाही से सम्बंधित शुल्क देने के लिए किसान उत्तरदायी नहीं होगा।

संवर्द्धक के अधिकार

  • संवर्द्धकों (Breeders) के पास संरक्षित किस्म के उत्पादन, बिक्री, वितरण, आयात या निर्यात के विशेषाधिकार होंगे।
  • संवर्द्धकों के अधिकारों के उल्लंघन के मामले में ‘सिविल रेमेडीज’का उपयोग किया जा सकता है।

शोधकर्ता के अधिकार

अधिनियम के तहत शोधकर्ता पंजीकृत किस्म के किसी भी बीज का प्रयोग अनुसंधान के लिए कर सकते हैं।

  • वे विभिन्न प्रकार के प्रारंभिक स्रोत का उपयोग कर दूसरी किस्म को विकसित कर सकते हैं, लेकिन बार-बार उपयोग के लिए पंजीकृत संवर्द्धक की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी।

भारत को भविष्य के खतरों को रोकने के उपाय करना चाहिए

  • किसानों को शिक्षित करनाः किसानों को कृषि से सम्बंधित विभिन्न दृष्टिकोणों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए और उनकी स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • पारंपरिक कृषि प्रणाली का उपयोगः किसानों को ऐसी कृषि प्रणाली से जोड़ा जाना चाहिए, जो स्व-स्थानिक (in situ) पारंपरिक किस्म के बीजों के संरक्षण और संवर्द्धन को बढ़ावा दे।
  • सख्त रिकॉर्ड रखने की प्रणाली का सृजनः एक स्थिर रिकॉर्ड रखने की प्रणाली को विकसित करने की जरूरत है, जो बिचौलिए की भूमिका को खत्म करने में मदद करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि उत्पादक को अधिकतम लाभ मिले। इसके लिए, ब्लॉकचैन या वितरित बहीखाता तकनीक (distributed ledger technology) का प्रयोग किया जा सकता है।
  • ब्लॉकचैन का उपयोगः ब्लॉकचैन के माध्यम से होने वाला सूक्ष्म भुगतान दुनिया भर के उपयोगकर्ताओं और इन बीजों के खरीरदारों से आने वाले मौद्रिक रिटर्न को सुनिश्चित करेगा। बदले में यह प्रभावी ढंग से खेती और स्वदेशी बीजों के सुधार को प्रोत्साहित करेगा और देश में किसानों तथा कृषि दोनों की सतत वृद्धि को सुनिश्चित करेगा।
  • पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान को पुनर्जीवित करनाः भारत की अमूल्य पारंपरिक पारिस्थितिकीय ज्ञान प्रणालियों को पुनर्जीवित करने एवं कृषि अनुसंधान, शिक्षा और सेवा विस्तार को मुख्यधारा में सम्मिलत करने की आवश्यकता है। वृक्षायुर्वेद और कृषि पाराशर जैसी भारतीय ग्रंथों में बतायी गयी तकनीकें स्वदेशी और पारंपरिक तकनीकें हैं।

सुझाव

यह सरकार और नीति निर्माताओं के लिए एक ‘वेक-अप कॉल’होना चाहिए, जिन्हें धारणीय ग्रामीण समाज, मृदा स्वास्थ्य संरक्षण, भारतीय किसानों के आर्थिक विकास तथा पूरे देश में बीज संप्रभुता को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ करने की आवश्यकता है।

  • कृषि पर कॉर्पोरेट प्रभुत्व को कम करने के लिए भारत को सार्वजनिक अनुसंधान में अधिक निवेश करना चाहिए; क्योंकि निजी कंपनियां बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन के कारण नई तकनीक लाने के प्रति इच्छुक नहीं होती हैं।