प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) का लक्ष्य प्रत्येक खेत के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए एक पूर्ण सिंचाई आपूर्तिश्रृंखला, जल संसाधन, वितरण नेटवर्क और खेत-स्तरीय अनुप्रयोग समाधान विकसित करना है। योजना के पांच प्रमुख घटक हैं-

  1. त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP);
  2. कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट (CADWM);
  3. हर खेत को पानी (HKKP);
  4. प्रति बूंद अधिक फसल (PDMC);
  5. वाटरशेड डेवलपमेंट (WD)।

उद्देश्य

क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश आकर्षित करना।

  • सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना (हर खेत को पानी)।
  • पानी की अपव्यय को कम करने के लिए पानी के उपयोग दक्षता करना।
  • उचित सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियों को अपनाना (अधिक फसल प्रति बूंद)।
  • जलभृत् (aquifers) का पुनर्भरण बढ़ाना।
  • परिनगरीय कृषि के लिए उपचारित पानी के पुनः उपयोग की व्यवहार्यता की खोज करके स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • उचित सिंचाई प्रणाली में अधिक से अधिक निजी निवेश को आकर्षित करना।

अभी तक की प्रगति

इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2018-19 के दौरान 11-58 लाख हेक्टेयर भूमि को सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं के अंतर्गत लाया गया।

  • सूक्ष्म जल भंडारण निर्माण द्वारा ‘जलसंचय’ और ‘जल सिंचन’ के माध्यम से वर्षा जल संचयन सुनिश्चित किया गया है।
  • योजना के तहत बनाई गई संरचनाओं की जियो टैगिंग किया जाता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि हुई है।
  • भारत में बांध परियोजनाओं की मरम्मत और पुनर्वास के लिए बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डीआरआईपी) का संचालन किया जा रहा है।
  • कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया है; ताकि कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के बीच कावेरी नदी के जल विवाद की समाधान किया जा सके।
  • चुनिंदा अति-शोषित और भूजल संकट वाले क्षेत्रों में अटल भूजल योजना प्रारंभ किया गया है, ताकि सामुदायिक भागीदारी के साथ स्थायी भूजल प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
  • फास्ट ट्रैक सिंचाई परियोजनाओं के लिए नाबार्ड के तत्वावधान में दीर्घकालिक सिंचाई कोष का गठन किया गया है।

सुझाव

भारत के संपूर्ण ‘जल चक्र’ के प्रति व्यापक और समग्र दृष्टिकोण अपनाना।

  • सभी क्षेत्रों, घरेलू, कृषि और उद्योगों के लिए उचित ‘जल बजट’ सुनिश्चित करना।
  • पानी के उपयोग / पुनर्चक्रण / संभावित पुनर्चक्रण में लगे मंत्रालयों, विभागों, अनुसंधान और वित्तीय संस्थानों की विभिन्न योजनाओं का एकीकरण करना।
  • जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकासात्मक योजनाओं के अनुरूप जिले का विकासात्मक स्वरूप तैयार करना।
  • अशोक चावला समिति के सिफारिशों के अनुरूप जल संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए इन्हें ‘राज्य सूची’ से ‘समवर्ती सूची’ में स्थानांतरित करना।
  • संघ सूची में प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के प्राप्त शक्तियों का उपयोग संसद द्वारा किया जाना चाहिए, जिससे ‘सार्वजनिक हित’ में अंतरराज्यीय नदियों से सम्बंधित मामलों का निपटान हो सके।

चुनौतियां

  • मंत्रालयों के बीच शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का अतिव्यापीकरण।
  • नदी जोड़ो परियोजना को लागू करने की पर्यावरणीय और विद्युतीकरण लागत अत्यधिक है।
  • विकेंद्रीकृत राज्य स्तरीय योजना निर्माण एवं निष्पादन संरचना राज्यों को जिला सिंचाई योजना (डीआईपी) और राज्य सिंचाई योजना (एसआईपी) तैयार करने की अनुमति देती है; लेकिन जमीनी स्तर पर योजना निर्माण एवं निष्पादन संरचना अनुपस्थित है।
  • नदी परियोजनाओं से प्रभावित लोगों का पुनर्वास एक बड़ी चुनौती है।
  • जलभृत में तेजी से कमी और कई राज्यों के भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड का पाया जाना।