परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)

परंपरागत कृषि विकास योजना केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम (सीएसपी) के रूप में शुरू की गयी व्यापक योजना है, जिसे केंद्र और राज्य सरकार अलग-अलग अनुपात में वित्तपोषण करती है। परंपरागत कृषि विकास योजना के माध्यम से सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। इस योजना का एक लक्ष्य किसानों का स्वास्थ्य और जमीन की गुणवत्ता को बनाये रखना है।

मुख्य विशेषताएं

इस योजना के तहत पचास या अधिक किसान जैविक खेती करने के लिए 50 एकड़ भूमि वाले क्लस्टर का निर्माण करेंगे।

  • जैविक खेती के तहत 5.0 लाख एकड़ क्षेत्र को कवर करने के लिए 10,000 क्लस्टर बनाए जाएंगे।
  • प्रमाणीकरण पर खर्च के लिए किसानों पर कोई देयता नहीं होती है।
  • प्रत्येक किसान को तीन साल तक प्रति एकड़ 20,000 रु. प्रदान किये जायेंगे, जिसमें बीज से ले कर उपज को बाजार तक पहुंचाने का खर्च शामिल है।
  • जैविक उत्पादों के अधिक निर्यात को सुनिश्चित करने के लिए प्रमाणन प्रणाली में सुधार करना।
  • आगत (input) लागत को कम करने के लिए जैविक आदानों जैसे वर्मीकम्पोस्ट, जैव-उर्वरक आदि के उपयोग को बढ़ावा देना।

प्रगति

मूल्य श्रृंखला के निर्माण के लिए उत्पादन, प्रसंस्करण, विपणन और समर्थन एजेंसियों की ओर ध्यान केंद्रित किया गया है।

  • किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) द्वारा विपणन और ब्रांड निर्माण की पहल प्रारंभ की गयी है।
  • संग्रहण, एकत्रीकरण, ग्रेडिंग इकाइयों जैसे कार्यात्मक बुनियादी ढांचे के लिए सरकारी सब्सिडी प्रदान की जा रही है।
  • एकीकृत प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिए निजी उद्यमियों को ‘क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी’ प्रदान की जा रही है।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और पहाड़ी एवं आदिवासी क्षेत्रों के लिए जैविक मूल्यश्रृंखला विकासित करने की पहल की गयी है।

सुझाव

किसान उत्पादक कंपनियों (FPCs) और उद्यमियों को मूल्य श्रृंखलाओं के विकास और जैविक उत्पादों के विपणन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।

  • जैविक खेती में प्रति इकाई लागत को कम करने के लिए निवेश की ऑन-फार्म आगतों के उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • 70-80% कार्बनिक आदानों की जरूरत को पूरा करने के लिए एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (IOFS) मॉडल को बढ़ावा देना।
  • कटाई के बाद के संग्रह और एकत्रीकरण, मूल्य संवर्द्धन और प्रसंस्करण सुविधाओं का विकास कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के तहत सुनिश्चित करना।
  • उपभोक्ताओं के साथ जैविक उत्पाद के उत्पादकों को जोड़ने के लिए ‘फॉरवर्ड एंड बैकवर्ड लिंक’ बनाना।
  • कृषि उत्पादकों की वित्तीय व्यवहार्यता बढ़ाने के लिए किसान उत्पादक कंपनियों द्वारा जैविक उत्पादों का प्रत्यक्ष विपणन सुनिश्चित करना।

चुनौतियां

  • पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि में किसानों द्वारा उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है। दो या तीन वर्षों में प्रारंभिक रूपांतरण अवधि (अकार्बनिक से जैविक उर्वरकों में बदलाव) के दौरान, उपज का स्तर कम होने की उम्मीद है, क्योंकि मिट्टी को जैविक उत्पादन प्रणाली के प्रति प्रतिक्रिया करने में समय लगता है।
  • अधिकांश कृषक जैविक आदानों की खरीद पर निर्भर हैं। इसके कारण उत्पादन की लागत (15-20% तक) बढ़ जाती है।
  • स्वतंत्र तृतीय पक्षों के माध्यम से जैविक प्रमाणीकरण का अभाव।
  • उद्यमियों को आरंभिक वर्षों में सहायता एवं सलाह का न मिलना और समय पर औपचारिक ऋण तक पहुंच की कमी।