Rohit Wazir

With profound experience of over 10 years and has been benefitting UPSC CSE aspirants since 2009.He has been associated with Chanakya IAS (Delhi), Unique Shiksha (Delhi) , Centre for career counseling ,Kashmir University,CSB (Hyderabad),Visiting faculty for Geography in HPU (shimla) and is currently associated with Samkalp (R K Puram , Delhi. The faculty is known for his unique pedogogy, emphasising on concept visualizations,doubt clearance, and correlation between Paper 1 and paper 2 which enhances the credibility of answers. He has played a vital role in success stories of many candidates with Geography optional with successful candidates every year. So grab the opportunity to learn the concepts of Geography in the simplest way and boost your confidence.



Dr. Neha R. Jain

Have an experience of more than 4 years teaching University Students.Presently working as a UPSC Mentor for UPSC General Studies,G.K (History and Geography) and Mentor for RAS.Given RAS Mains 2010.Post Graduate diploma in Guidance and Counselling, Regional Institute of Education Ajmer.Post-Doctoral Fellow in Social Psychology, Central University of Rajasthan, funded by ICSSR.PhD in Psychology, University of Rajasthan, Jaipur.UGC NET Qualified (Psychology).



रश्मिलता
यूपीपीसीएस 2021: रैंक-52, डिप्टी कलेक्टर


जीवन परिचय

  • पिता: श्री महेशचन्द्र (दुग्ध व्यवसाय)
  • माता: श्रीमती प्रकाशी देवी (गृहिणी)
  • शैक्षणिक योग्यता: हाईस्कूल- 69% (उत्तर प्रदेश बोर्ड, इलाहाबाद)
  • इंटरमीडिएट: 63% (उत्तर प्रदेश बोर्ड, इलाहाबाद)
  • स्नातक: बी.एस.सी. (जीव-विज्ञान)
  • परास्नातक: एम.ए. (इतिहास) - (डॉ. भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा)
  • अन्य शैक्षणिक योग्यता: नेट तथा जे.आर.एफ. (इतिहास)
  • अभिरुचियां: समसामयिक विषयों पर बात करना तथा लोगों को ऑब्जर्व करना।
  • आदर्श व्यक्ति: स्वामी विवेकानन्द, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, महात्मा गांधी जी।
  • सकारात्मक: धैर्य, लगन व कार्य के प्रति जुनून।
  • नकारात्मक पक्ष: जल्दी गुस्सा आना, लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेना।
  • वैकल्पिक विषय (मुख्य परीक्षा): हिन्दी साहित्य।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः यू.पी.पी.सी.एस. में शानदार सफलता के लिए आपको हार्दिक बधाई- आपकी सफलता में परिवार, मित्रों व शिक्षकों का सहयोग कैसा रहा? आपकी पृष्ठभूमि ने आपकी सफलता में किस प्रकार योगदान किया?

रश्मिलताः जी बहुत धन्यवाद! ईश्वर की असीम कृपा तथा परिवार का सहयोग, माता-पिता, भाईयों (श्री तेजेन्द्र सिह, श्री धमेन्द्र सिह, श्री सुरेन्द्र सिह) व तीनों भाभियों का आर्थिक मानसिक सहयोग मेरी सफलता में महत्वपूर्ण थी।

  • शिक्षकों/ मेंटोर के रूप में श्री रोहित सर (Test World), श्री अनिल कुमार (इंफोशिक्षा) सर की आभारी हूं।
  • मित्रों का विशेष सहयोग- मो. सुलेमान (असि- प्रोफेसर) अजीत सिह, अमित कुमार, एस- के- आर्या, डी- के- गुप्ता, गोविद शर्मा की मैं हृदय से आभारी हूं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने परीक्षा की तैयारी आरंभ कैसे की? तैयारी आरंभ करते समय आपने किन पहलुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया? परीक्षा की तैयारी शुरू करने का आदर्श समय क्या होना चाहिए?

रश्मिलताः ग्रेजुएशन करने के बाद जब मैं मेरे पिताजी के मित्र श्री प्रदीप चौधरी व श्री मानसिह से मिली तब उन्होंने मुझे इस तैयारी के लिये प्रेरित किया। इस प्रकार मैंने अपनी तैयारी शुरू की।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः भाषा माध्यम के कारण क्या आपको कोई लाभ हुआ? क्या आप मानती हैं कि अंग्रेजी भाषी लाभप्रद स्थिति में होते हैं?

रश्मिलताः मेरा इस परीक्षा में माध्यम हिदी था, क्योंकि मैं इसमें ही सहज थी और मेरी पृष्ठभूमि भी हिदी भाषी थी। लाभ या नुकसान का तो नहीं कह सकती, लेकिन मैं अपने माध्यम में ही सहज थी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपका वैकल्पिक विषय क्या था? इसके चयन का आधार क्या था? क्या वैकल्पिक विषय के चयन में आपने कथित लोकप्रियता को भी आधार बनाया?

रश्मिलताः मेरा वैकल्पिक विषय हिदी साहित्य था। इसके चयन में हिदी साहित्य का रफ़चिकर होना व छोटा सिलेबस भी इसकी खासियत रही।

  • वैसे विषय का चुनाव व्यक्तिगत और रफ़चिकर होना चाहिये, लेकिन सेलेक्शन में अकादमिक विषयों के ट्रेंड को भी समझना आवश्यक है। विषय में रफ़चि होना सबसे आवश्यक है।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः परीक्षा के तीनों चरणों की तैयारी के लिए आप कितना समय उपयुत्तफ़ मानती हैं? तीनों चरणों की तैयारी में आपकी समय की रणनीति एक जैसी रही या उसमें बदलाव भी किए?

रश्मिलताः इस परीक्षा की तैयारी की मांग, इसके सिलेबस के व्यापक होने के कारण एक से डेढ़ वर्ष में तो सिलेबस ही पूर्ण हो पाता है और फिर ठीक से समझने और परीक्षा की तैयारी तक 2 वर्ष तक का समय तो लग ही जाता है, अधिकतम तो 10 वर्ष भी लग सकता है जैसे कि मुझे एक लम्बा समय लगा।

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु रणनीति- तथ्यात्मक जानकारी व बेसिक समझ व अधिकतम रिवीजन।

मुख्य परीक्षा हेतु रणनीति- वैकल्पिक विषय पर पकड़-मजबूत व लेखन शैली पर विशेष ध्यान देना। (मुख्य परीक्षा के लिये टेस्ट सीरीज महत्वपूर्ण है)।

  • सामान्य अध्ययन के चारों पेपर पर विस्तृत समझा राइटिग प्रैक्टिस (फ्रलोचार्ट, डायग्राम व मैप आदि के साथ)।
  • उत्तर प्रदेश स्पेशल की भूमिका (सामान्य अध्ययन के तीनों पेपर में लगभग 8-9 प्रश्न)। अतः उत्तर-प्रदेश स्पेशल अवश्य तैयार करें।

साक्षात्कार- यह व्यक्तित्व परीक्षण के रूप में होता है, अतः इसे कुछ दिनों के भीतर तैयार नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसमें लम्बा समय लगता है, अतः परीक्षा की तैयारी की शुरूआत से एक प्रशासनिक अधिकारी जैसी सोच विकसित करनी आवश्यक है। समस्या समाधान वाला व्यक्तित्व बनाएं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन की अहमियत बढ़ा दी गई है। इसे पूरी तरह कवर करने व अच्छी तरह तैयार करने का सर्वोत्तम तरीका क्या हो सकता है? मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के विस्तृत पाठ्यक्रम को देखते हुए इसकी तैयारी के लिए आपने क्या रणनीति अपनाई? परीक्षा भवन में प्रश्नों को हल करने के लिए क्या आपने कोई विशेष रणनीति अपनाई?

रश्मिलताः मुख्य परीक्षा की रणनीति-

  1. सर्वप्रथम सामान्य अध्ययन के चारों पेपरों में आने वाले 20 प्रश्नों को हल करने की पूरी कोशिश करें।
  2. टेस्ट सीरज के माध्यम से अपना मूल्यांकन करना आवश्यक है।
  3. सामान्य अध्ययन के चारों पेपर में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिय हेडिग, डायग्राम, फ्रलोचार्ट व मैपिग का प्रयोग।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने अपने नोट्स बनाए? ये नोट्स किस प्रकार उपयोगी रहे? एक ही कोचिंग संस्थान के नोट्स का उपयोग कई छात्र करते हैं। ऐसे में इन नोट्स को औरों से अलग बनाने हेतु आपने क्या रणनीति अपनाई?

रश्मिलताः हां, मैंने स्वयं के नोट्स बनाए, मैंने रिवीजन के लिये शॉर्ट नोट्स बनाएं, जो पेपर टाइम में बहुत लाभकारी होते हैं (प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा दोनों के लिए)।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः नीतिशास्त्र व सत्यनिष्ठा के प्रश्न-पत्र की तैयारी के लिए आपने क्या किया? छात्रों को इस संदर्भ में आप क्या मार्गदर्शन दे सकती हैं?

रश्मिलताः मैने सामान्य अध्ययन के चौथे पेपर के लिये पतंजलि व दृष्टि पब्लिकेशन के नोट्स पढ़े और जहां भाषा की क्लिष्टता दिखायी दी उसे अपने अनुसार सरल कर लिया और वर्तमान समय के उदाहरण व हिदी साहित्य (वैकल्पिक विषय) के उदाहरणों को भी जोड़ा।

सुझाव- नीतिशास्त्र सामान्य अध्ययन के तीनों अन्य पेपर की तुलना में अधिक अंकदायी है, क्योंकि इस एक विषय को पढ़कर इसमें अधिक से अधिक अंक प्राप्त किये जा सकते हैं।

  • इसमें वर्तमान समय के उदाहरणों का प्रयोग, फ्रलोचार्ट इत्यादि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने निबंध की तैयारी कैसे की और परीक्षा भवन में इसके चयन और लेखन के लिए क्या रणनीति अपनाई?

रश्मिलताः निबंध का सिलेबस पूरी तरह से डिफाइन है-

1. खण्ड-अ 2. खण्ड-ब 3. खण्ड-स

  • उपर्युक्त तीनों खण्डों में साहित्य, समसामयिक घटाक्रम व राजनीतिक घटनाक्रम पर निबंध आते हैं।
  • प्रथम खण्ड के लिये मैंने अपने वैकल्पिक विषय (हिदी साहित्य) के माध्यम से तैयारी कर ली थी, क्योंकि इस खण्ड में साहित्य के साथ अन्य विषयों (संस्कृति, समाज, मूल्य इत्यादि) को जोड़कर पूछा जाता है।
  • दूसरे और तीसरे खण्ड में समसामयिक और राजनीतिक घटनाक्रम (जलवायु परिवर्तन, कृषि कानून, आजादी का अमृत महोत्सव इत्यादि) की तैयारी भी की थी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली क्या होनी चाहिए? इसके लिए आपने तैयारी के दौरान क्या तरीका अपनाया?

रश्मिलताः वर्तमान पाठ्यक्रम के अनुसार (सामान्य अध्ययन के 4 पेपर)।

  • 20 प्रश्नों में से 10 प्रश्न 125 शब्द व 10 प्रश्न 200 शब्दों में लिखने होते हैं।
  • 125 शब्दों वाले प्रश्नों को बिदुवार (प्वाइंट्स) लिखें व फ्रलोचार्ट, डायग्राम इत्यादि बनाएं।
  • 200 शब्दों वाले प्रश्नों को पैराग्राफ व बिदुवार दोनों रूप में लिख सकते हैं।
  • मैप अवश्य बनाएं। (उत्तर प्रदेश, भारत, विश्व)।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने कोचिंग ली? कोचिंग किस प्रकार उपयोगी रही? वैसे छात्र जो तैयारी हेतु कोचिंग की सहायता लेना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगी?

रश्मिलताः हां मैंने तैयारी की शुरुआत में अलग-अलग कोचिग संस्थानों में पढ़ाई की है, क्योंकि मेरे पास मार्गदर्शन की कमी थी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः जो छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगी? यदि कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि का या आर्थिक रूप से कमजोर छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहता हो, तो ऐसे छात्र को क्या करना चाहिए?

रश्मिलताः तैयारी प्रारंभ करने से पहले किसी से मार्गदर्शन अवश्य लें, जोकि इस परीक्षा की सफलता के लिये बहुत जरूरी है। अगर सम्भव हो सके तो चयनित लोगों को भी सुनें या उनसे मिलें क्योंकि वे अपनी कमियों से अवगत कराते हुए आपका मार्गदर्शन भी करेंगे।

  • कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि व ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थी भी इस परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं, क्योंकि मैं खुद ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही हूं।
  • इसके लिये मार्गदर्शन के साथ-साथ निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-
  1. सर्वप्रथम इस परीक्षा से सम्बन्धित जानकारी, पाठ्यक्रम, पैटर्न को अच्छे से समझें। पाठ्यक्रम (प्रारम्भिक व मुख्य परीक्षा) की एक-एक लाइन याद करें।
  2. विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का अध्ययन (प्राथमिक/ मुख्य परीक्षा) अवश्य करें।
  3. इस परीक्षा की तैयारी की शुरुआत करने के लिये सामान्य अध्ययन के सभी विषयों की NCERT की बुक्स (6-12) काफी लाभदायक सिद्ध होती है।
  4. इसके बाद सभी स्टैंण्ड़र्ड बुक्स पढ़ें।
  5. अगर सम्भव हो सके तो प्री व मेंस दोनों की टेस्ट सीरीज अवश्य करें। क्योंकि परीक्षा से पूर्व अपनी परीक्षा की तैयारी का मूल्यांकन आवश्यक है।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः तैयारी में पत्र-पत्रिकाओं से आपको कितनी सहायता मिली? आपने किन पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन किया? सिविल सेवा परीक्षा के लिए इन पत्र-पत्रिकाओं की कितनी उपयोगिता है?

रश्मिलताः पत्र-पत्रिकाएं सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र में आने वाले समसामयिक विषयों तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध साइंस-टेक आदि की तैयारी में बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं।

मैंने प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार के लिये सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (मासिक), समसामयिक घटनाचक्र, विजन के मेंस 365 को पढ़ा, जो मेरे लिये काफी लाभकारी सिद्ध हुआ।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल पत्रिका आपको कैसी लगी? आपकी सफलता में इसका कितना योगदान है? क्या आप इसमें किसी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा रखती हैं?

रश्मिलताः सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल की मैं नियमित रूप से पाठक रही हूं, प्रारम्भिक, मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार में समसामयिक विषयों की तैयारी में इसका काफी योगदान रहा।

सुझाव- यह पत्रिका भविष्य में भी सिर्फ सिविल सर्विसेज की तैयारी से सम्बन्धित सामग्री प्रस्तुत करने पर केन्द्रित रहे, ताकि भविष्य में भी सिविल सर्विसेज के प्रतिभागी परीक्षार्थी इससे लाभान्वित होते रहें।

धन्यवाद!



अभिषेक प्रियदर्शी
यूपीपीसीएस 2021: रैंक-35, डिप्टी कलेक्टर


जीवन परिचय

  • पिता: लाल बहादुर सिह, अध्यापक
  • माता: शोभावती सिह, गृहिणी
  • शैक्षणिक योग्यता: बी.टेक (IET, लखनऊ), केमिकल इंजीनियरिंग
  • अभिरुचियां: आत्म निरीक्षण एवं ध्यान
  • आदर्श व्यक्ति: कलाम सर, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द
  • सकारात्मक: मजबूत इच्छा शक्ति
  • नकारात्मक पक्ष: आलस्य

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः यूपीपीसीएस 2021 में शानदार सफलता के लिए आपको हार्दिक बधाई। आपकी सफलता में परिवार, मित्रों व शिक्षकों का सहयोग कैसा रहा? आपकी पृष्ठभूमि ने आपकी सफलता में किस प्रकार योगदान किया?

अभिषेक प्रियदर्शीः धन्यवाद! मेरी सफलता में मेरे पिता, जी-एस- वर्ल्ड संस्थान के शिक्षकों तथा अध्ययन सामग्री का विशेष रूप से योगदान रहा।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने परीक्षा की तैयारी आरंभ कैसे की? तैयारी आरंभ करते समय आपने किन पहलुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया? परीक्षा की तैयारी शुरू करने का आदर्श समय क्या होना चाहिए?

अभिषेक प्रियदर्शीः मैंने परीक्षा की तैयारी बी-टेक के अंतिम वर्ष से चालू कर दी थी। तैयारी के दौरान मैंने रिविजन और शॉर्ट नोट्स बनाने पर विशेष रूप से बल दिया। तैयारी का आदर्श समय ग्रेजुएशन का अंतिम वर्ष है।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः भाषा माध्यम के कारण क्या आपको कोई लाभ हुआ? क्या आप मानते हैं कि अंग्रजी भाषी लाभप्रद स्थिति में होते हैं?

अभिषेक प्रियदर्शीः शुरूआती शिक्षा मेरी हिदी माध्यम से हुई थी_ हालांकि परीक्षा मैंने अंग्रेजी माध्यम से दी क्योंकि अंग्रेजी में मैटेरियल काफी आसानी से उपलब्ध है। परंतु कुछ संस्थान, जैसे कि जी-एस- वर्ल्ड अब हिदी मीडियम के लिये भी सर्वश्रेष्ठ सामग्री लेकर आ रहा है।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपका वैकल्पिक विषय क्या था? इसके चयन का आधार क्या था? क्या वैकल्पिक विषय के चयन में आपने कथित लोकप्रियता को भी आधार बनाया?

अभिषेक प्रियदर्शीः मेरा वैकल्पिक विषय भूगोल था तथा चयन अभिरुचि के आधार पर ही किया था।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः परीक्षा के तीनों चरणों की तैयारी के लिए आप कितना समय उपयुत्तफ़ मानते हैं? तीनों चरणों की तैयारी में आपके समय की रणनीति एक जैसी रही या उसमें बदलाव भी किए?

अभिषेक प्रियदर्शीः मैं कम से कम 15 महीनों का समय उपयुक्त मानता हूं। मैंने तैयारी समन्वित तरीके से की थी, जी.एस. वर्ल्ड संस्थान की मुख्य परीक्षा की टेस्ट सीरीज जॉइन की थी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन की अहमियत बढ़ा दी गई है। इसे पूरी तरह कवर करने व अच्छी तरह तैयार करने का सर्वोत्तम तरीका क्या हो सकता है? मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के विस्तृत पाठड्ढक्रम को देखते हुए इसकी तैयारी के लिए आपने क्या रणनीति अपनाई? परीक्षा भवन में प्रश्नों को हल करने के लिए क्या आपने कोई विशेष रणनीति अपनाई?

अभिषेक प्रियदर्शीः मैंने पाठ्यक्रम और पिछले वर्ष में पूछे गये प्रश्नों पर ही विशेष जोर दिया तथा शॉर्ट नोट्स बनाकर उनका रिवीजन किया। सभी प्रश्नों को एक तय समय में तथा एक जैसी लगन से हल किया।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने अपने नोट्स बनाए? ये नोट्स किस प्रकार उपयोगी रहे? एक ही कोचिंग संस्थान के नोट्स का उपयोग कई छात्र करते हैं। ऐसे में इन नोट्स को औरों से अलग बनाने हेतु आपने क्या रणनीति अपनाई?

अभिषेक प्रियदर्शीः प्रीलिम्स के लिये तो नोट्स ज्यादा आवश्यक नहीं है। आप किताब में हाईलाइट कर लें परंतु मेन्स के नोट्स आप जहां से भी उस टॉपिक को देख रहे है, अपना बना ले और उसका बार-बार रिवीजन करें।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः नीतिशास्त्र व सत्यनिष्ठा के प्रश्न-पत्र की तैयारी के लिए आपने क्या किया? छात्रों को इस संदर्भ में आप क्या मार्गदर्शन दे सकते हैं?

अभिषेक प्रियदर्शीः इसमें जो भी महत्वपूर्ण मुख्य शब्द पाठ्यक्रम में दिये गये हैं, उनकी एक अच्छी परिभाषा, कम से कम 5 उदाहरण तथा कुछ महत्वपूर्ण कथन अपने पास रखें।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने निबंध की तैयारी कैसे की और परीक्षा भवन में इसके चयन और लेखन के लिए क्या रणनीति अपनाई?

अभिषेक प्रियदर्शीः निबंध की कोई विशेष तैयारी नहीं की सामान्य अध्ययन की विषयवस्तु का ही प्रयोग किया। हां, एक-दो टेस्ट जरूर लिखकर चेक करा लें और टॉपर्स कैसे लिखते हैं, थोड़ा प्रारूप अवश्य देख लें। कुछ बार-बार पूछे जाने वाले विषय पर महान लोगों के कथन जरूर याद रखें।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली क्या होनी चाहिए? इसके लिए आपने तैयारी के दौरान क्या तरीका अपनाया?

अभिषेक प्रियदर्शीः उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली में आपको इंट्रो, बॉडी तथा निष्कर्ष के प्रारूप को फॉलो करना पड़ेगा तथा प्रश्न की मांग को ध्यान में रखकर उसको छोटे-छोटे हेडिंग्स बनाकर उत्तर देना पड़ेगा। साथ में महत्वपूर्ण शब्दों को हाइलाइट करें।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने साक्षात्कार की तैयारी कैसे की? आपका साक्षात्कार कैसा रहा? आपसे कैसे प्रश्न पूछे गए? क्या किसी प्रश्न पर आप नर्वस भी हुए?

अभिषेक प्रियदर्शीः साक्षात्कार के लिये मैंने जी-एस- वर्ल्ड तथा अन्य संस्थानों में मॉक दिया और अपनी भेजी गयी वीडियो को देखकर तथा दिये गये फीडबैक पर सुधार किया। मेरा बोर्ड काफी सहयोगी था।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने कोचिंग ली? कोचिंग किस प्रकार उपयोगी रही? वैसे छात्र जो तैयारी हेतु कोचिंग की सहायता लेना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगे?

अभिषेक प्रियदर्शीः मैं बोलूंगा कि आप किसी संस्थान से मार्गदर्शन जरूर ले लें, जिससे आपकी खूबी तथा कमजोरी का जल्दी पता चल जाएगा। आपके समय की बचत होगी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः जो छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगे? यदि कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि का या आर्थिक रूप से कमजोर छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहता हो, तो ऐसे छात्र को क्या करना चाहिए?

अभिषेक प्रियदर्शीः जो छात्र आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वे अपनी इस स्थिति को अपनी ताकत बनाये और प्रेरित होकर पढ़ाई करें कि उन्हें अपनी इस स्थिति को एक दिन जरूर बदलना है।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः सामान्य धारणा यह है कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करने से पूर्व कोई कैरियर विकल्प भी अपने पास रखना चाहिए। क्या आपने भी कोई कैरियर विकल्प रखा था?

अभिषेक प्रियदर्शीः अगर आप UPSC की तैयारी कर रहे हैं तो राज्य सिविल सेवा को एक बैकअप के रूप में रख सकते हैं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः तैयारी में पत्र-पत्रिकाओं से आपको कितनी सहायता मिली? आपने किन पत्र-पत्रिकाओंका अध्ययन किया? सिविल सेवा परीक्षा के लिए इन पत्र-पत्रिकाओं की कितनी उपयोगिता है?

अभिषेक प्रियदर्शीः शुरुआती चरण में तथा बाद में साक्षात्कार के लिए समसामयिक मुद्दों पर जानकारी एकत्रित करने तथा अपनी राय बनाने के लिए क्रॉनिकल की CSC हिंदी मैंगजीन को मैंने पढ़ा था।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल पत्रिका आपको कैसी लगी? आपकी सफलता में इसका कितना योगदान है? क्या आप इसमें किसी प्रकार की बदलाव की अपेक्षा रखते हैं?

अभिषेक प्रियदर्शीः क्रॉनिकल पत्रिका समसामयिक मुद्दों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किसी मुद्दों को संपूर्ण रूप से, इसके सभी प्रश्नों को विश्लेषणात्मक रूप से प्रस्तुत करती है, जो कि एक सिविल सेवा परीक्षार्थी के लिये बहुत ही उपयोगी है।

अनुशंसित पुस्तक सूची

  • प्रारंभिकी सामान्य अध्ययन: घटनाचक्र तथा जी.एस. वर्ल्ड (उत्तर प्रदेश विशेष)
  • मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन: जी.एस. वर्ल्ड बुकलेट
  • मुख्य परीक्षा वैकल्पिक विषय: गाइडेंस IAS के नोट्स तथा जी.एस. वर्ल्ड टेस्ट सीरीज (वैकल्पिक विषय
  • पत्र एवं पत्रिकाएं: क्रॉनिकल प्रकाशन की CSC हिन्दी तथा इंडियन एक्सप्रेस समाचार-पत्र


बमबम कुमार
66वीं बीपीएससी परीक्षा श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी (LEO)


जीवन परिचय

  • पिता: सूर्य नारायण मंडल, किसान
  • माता: रानी देवी, गृहणी
  • शैक्षणिक योग्यता: M. Tech, IIT (ISM) DHANBAD
  • अन्य योग्यताएं: Gate Qualified अभिरुचियां: वंचित बच्चों को पढ़ाना व मार्गदर्शित करना
  • आदर्श व्यक्ति: पिता
  • सकारात्मक: सहनशीलता, समस्या समाधान कौशल
  • नकारात्मक पक्ष: अधिक सोचना
  • पूर्व चयन: एयर ट्रैफिक कंट्रोल अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ‘एयर टैªफिक कंट्रोल ऑफीसर’
  • वैकल्पिक विषय: इतिहास

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः बीपीएससी में शानदार सफलता के लिए आपको हार्दिक बधाई- आपकी सफलता में परिवार, मित्रों व शिक्षकों का सहयोग कैसा रहा? आपकी पृष्ठभूमि ने आपकी सफलता में किस प्रकार योगदान किया?

बमबम कुमारः बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। किसी भी व्यक्ति की सफलता में परिवार का सहयोग महत्वपूर्ण होता है। मेरी सफलता में खासकर मेरे परिवार का बहुत बड़ा योगदान है। जिस परिस्थिति में रहकर उन लोगों ने मुझे पढ़ाने का सपना देखा था, वो गिने चुने लोग ही कर पाते हैं। उनकी ऐसी सोच और संघर्ष की वजह से ही मैं यहां तक पहुंच पाया हूं। हालांकि जीवन में अच्छे मित्र और मार्गदर्शक (शिक्षक) का होना अनिवार्य है, और मैं इस मामले में भी भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे लोगों का साथ मिलता रहा है।

जहां तक पृष्ठभूमि की बात है तो मेरे पिता किसान हैं, मैंने उनका संघर्ष बचपन से देखा है जिसने मुझे निरंतर मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने परीक्षा की तैयारी आरंभ कैसे की? तैयारी आरंभ करते समय आपने किन पहलुओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया? परीक्षा की तैयारी शुरू करने का आदर्श समय क्या होना चाहिए?

बमबम कुमारः M.Tech करने के बाद मैंने एक संस्थान में पढ़ाना शुरू किया। परंतु मन में था कि एक बार सिविल सेवा परीक्षा देनी चाहिए। मैंने BPSC की तैयारी के लिए पटना में ही परफेक्शन आईएएस जॉइन किया और यहीं से परीक्षा की तैयारी आरंभ हुई। तैयारी आरंभ करने से पहले मैंने पाठ्यक्रम को अच्छे से देखा और उसी के अनुसार मैंने महत्वपूर्ण टॉपिक्स को चिह्नित कर पढ़ना शुरू किया।

वैसे तो परीक्षा शुरू करने का कोई मानक समय नहीं होता है। इस परीक्षा की तैयारी कोई स्नातक के पहले भी शुरू कर सकता है, कोई स्नातक के बाद भी। जहां तक मेरा सवाल है, मैंने M.Tech के 2 साल बाद तैयारी शुरू की।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः भाषा माध्यम के कारण क्या आपको कोई लाभ हुआ? क्या आप मानते हैं कि अंग्रजी भाषी लाभप्रद स्थिति में होते हैं?

बमबम कुमारः भाषा माध्यम के बारे में, मैं यह कह सकता हूं कि आप जिस भाषा में सहज हैं वह ले सकते हैं। मैंने हिन्दी माध्यम में परीक्षा दी, क्योंकि मुझे लगता था मैं हिन्दी भाषा में अपनी बातों को सहजता से व्यक्त कर सकता हूं। आपको लगता है कि आप अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देने में अधिक सहज हैं तो अंग्रेजी से ही दीजिए, दोनों भाषाएं अपनी जगह सही हैं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपका वैकल्पिक विषय क्या था? इसके चयन का आधार क्या था? क्या वैकल्पिक विषय के चयन में आपने कथित लोकप्रियता को भी आधार बनाया?

बमबम कुमारः मेरा वैकल्पिक विषय इतिहास था। वैकल्पिक विषय के चयन में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है आपकी उस विषय में रुचि। फिर आप इतिहास को देखेंगे तो प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के GS-I में इतिहास से काफी प्रश्न पूछे जाते हैं। यही मेरा आधार था। मैंने लोकप्रियता को आधार नहीं बनाया।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः परीक्षा के तीनों चरणों की तैयारी के लिए आप कितना समय उपयुत्तफ़ मानते हैं? तीनों चरणोंकी तैयारी में आपकी समय की रणनीति एक जैसी रही या उसमें बदलाव भी किए?

बमबम कुमारः परीक्षा के तीनों चरणों की तैयारी के लिए जहां तक समय की बात है तो 1 वर्ष में हो सकता है, हालांकि अलग-अलग छात्रों के लिए यह अवधि घट या बढ़ भी सकती है।

परीक्षा के तीन चरण प्रारंभिक मुख्य परीक्षा एवं व्यक्तित्व परीक्षण, तीनों की अलग-अलग मांग है इसलिए रणनीति भी अलग-अलग ही होगी। प्रारंभिक के लिए मैंने तथ्यों पर ज्यादा ध्यान दिया और बहुत सारे मॉक टेस्ट दिए। हालांकि तीनों में समानता यह है कि जो चीजें आप प्रारंभिकी के लिए पढ़ते हैं वो मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में भी लाभदायक होते हैं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन की अहमियत बढ़ा दी गई है। इसे पूरी तरह कवर करने व अच्छी तरह तैयार करने का सर्वोत्तम तरीका क्या हो सकता है? परीक्षा भवन में प्रश्नों को हल करने के लिए क्या आपने कोई विशेष रणनीति अपनाई?

बमबम कुमारः मुख्य परीक्षा के लिए सामान्य अध्ययन को तैयार करने के लिए मैंने मूल पूस्तकों को पढ़ा था ताकि विषय वस्तु की अवधारणात्मक समझ हो जाए मेरी रणनीति रही थी कि में विगत वर्षों के प्रश्न को अच्छे से तैयार कर मुख्य बिंदु नोट कर लेता था और उसका एक स्ट्रक्चर तैयार कर बार-बार याद करने की कोशिश करता था।

परीक्षा भवन में प्रश्नों को हल करने के लिए मैंने सबसे पहले समय प्रबंधन करने की रणनीति बनाई थी, उसके लिए मैंने Perfection IAS का Mains Test Series दिया था। जिससे मैं 3 घंटे में सारे उत्तर लिख पाया।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने अपने नोट्स बनाए? ये नोट्स किस प्रकार उपयोगी रहे? एक ही कोचिंग संस्थान के नोट्स का उपयोग कई छात्र करते हैं। ऐसे में इन नोट्स को औरों से अलग बनाने हेतु आपने क्या रणनीति अपनाई?

बमबम कुमारः हां। आप जब किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं तो आपको अपना नोट्स बनाना चाहिए तथा शॉर्ट नोट्स भी बनाने चाहिए। ये नोट्स आखिरी वक्त के रिवीजन में बहुत उपयोगी होते हैं।

मैंने अपने नोट्स में उन बिंदुओं को ज्यादा स्थान दिया जो परीक्षा के दृष्टिकोण से ज्यादा महत्वपूर्ण थे तथा वैसे Tricky Questions थे जहां पर मैं गलती करता था या कर सकता था उन पर भी ध्यान दिया।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली क्या होनी चाहिए? इसके लिए आपने तैयारी के दौरान क्या तरीका अपनाया?

बमबम कुमारः वैसे तो उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली का कोई मानक रूप नहीं है, परंतु यदि आप प्रश्न के अनुसार, शब्द सीमा को ध्यान में रखते हुए उत्तर लेखन करते हैं, तो इसे एक अच्छा उत्तर लेखन माना जा सकता है। मैंने तैयारी के दौरान पूर्व में पूछे गये प्रश्नों की व्याख्या को देखकर उत्तर लेखन करना शुरू किया था। धीरे-धीरे उत्तर लेखन शैली बेहतर हो गई।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः आपने साक्षात्कार की तैयारी कैसे की? आपका साक्षात्कार कैसा रहा? आपसे कैसे प्रश्न पूछे गए?

बमबम कुमारः साक्षात्कार के लिए मैंने बहुत सारे चयनित प्रतियोगियों के मॉक इंटरव्यू के वीडियो को देखा तथा उसी के अनुसार मैंने तैयारी शुरू की।

अपने परिचय, रुचि, समसामयिकी, स्नातक विषय तथा एच्छिक विषय को तैयार किया।

फिर मैंने परफेक्शन IAS के Mock Interview Programe को जॉइन किया था।

मेरा साक्षात्कार साधारण ही रहा था। मुझसे पहले ठेंपब सवाल पूछे गये जैसे- ग्रेजुएशन कब किया, अभी क्या कर रहे हैं, पदों की प्राथमिकताएं क्या हैं, Hobby & Optional क्या हैं।

फिर मगध के इतिहास के बारे में, रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस का तर्क और मेरा विचार क्या है? G.I tag जंह क्या होता है, गया संस्कृति आदि के बारे में प्रश्न पूछे हैं। OTT Platform और कुछ खेल से जुड़े प्रश्न भी थे।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः क्या आपने कोचिंग ली? कोचिंग किस प्रकार उपयोगी रही? वैसे छात्र जो तैयारी हेतु कोचिंग की सहायता लेना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगे?

बमबम कुमारः हां। कोचिंग से आपको एक निरंतरता मिलती है तथा वो माहौल मिलता है जिसमें आप खुद को Motivated रख सकते हैं। हालांकि सफलता के लिए कोचिंग लेना ही है यह जरूरी नहीं है। आप स्व-अध्ययन से भी सफल हो सकते हैं। परंतु आप अगर कोचिंग की सहायता लेना चाहते हैं तो जरूर लीजिए, बस आपको याद रखना होगा कि आप नियमित क्लास लें और मेहनत आपको खुद ही करनी पड़ेगी।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः जो छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहते हैं, उन्हें आप क्या सुझाव देंगे?

यदि कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि का या आर्थिक रूप से कमजोर छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करना चाहता हो, तो ऐसे छात्र को क्या करना चाहिए?

बमबम कुमारः जो छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहते हैं उनके लिए यह सुझाव है कि आप सबसे पहले सेलेबस को ध्यान से विश्लेषित करे फिर उसी के अनुसार अपनी तैयारी को आगे बढ़ाएं। Basic Concept के लिए मानक टेक्स्ट बुक को पढ़िये।

आर्थिक रूप से कमजोर छात्र You Tube के सहारे अपनी तैयारी शुरु कर सकते हैं। You Tube पर फ्री में अच्छी सामग्री उपलब्ध है आप उनका उपयोग कर सकते हैं।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः सामान्य धारणा यह है कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी आरंभ करने से पूर्व कोई कैरियर विकल्प भी अपने पास रखना चाहिए। क्या आपने भी कोई कैरियर विकल्प रखा था?

बमबम कुमारः यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। कुछ लोगों का मानना है अगर आपके पास कैरियर विकल्प है तो आप निशि्ंचत रहेंगें और बेहतर कर पाएंगे वहीं कुछ लोगों का इसके विपरीत मानना है।

जहां तक मेरी बात है तो मैं Teaching करते हुए इस परीक्षा की तैयारी किया था।

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकलः सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल पत्रिका आपको कैसी लगी? आपकी सफलता में इसका कितना योगदान है? क्या आप इसमें किसी प्रकार की बदलाव की अपेक्षा रखते हैं?

बमबम कुमारः सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल पत्रिका काफी व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत की जाती है। इसमें BPSC मुख्य परीक्षा के 10 संभावित प्रश्नों की श्रंृखला सराहनीय है। इससे मुझे अपने उत्तर लेखन शैली को बेहतर करने में मदद मिली। मुझे नहीं लगता इसमें किसी प्रकार के बदलाव की जरूरत है।

अनुशंसित पुस्तक सूची

प्रारंभिक परीक्षा सामान्य अध्ययन

  • प्राचीन भारत : कक्षा 11 NCERT
  • मध्यकालीन भारत : सतीश चन्द्रा
  • आधुनिक भारत : रू स्पेक्ट्रम
  • वैकल्पिक प्रश्नों के लिए : घटना चक्र
  • बिहार विशेष : इम्तियाज सर की पुस्तक
  • राजव्यवस्था : एम लक्ष्मीकांत
  • भूगोल : NCERT घटना चक्र

मुख्य परीक्षा

  • मूल पुस्तकें प्रारंभिक परीक्षा की ही तरह।
  • वैकल्पिक विषय (इतिहास): मणिकांत सर के नोट्स
  • पत्र एवं पत्रिकाएं: क्रॉनिकल मैगजीन।


धर्मेंद्र सर
निर्देशकः पतंजलि आईएएस
कैसे करें तैयारी? कैसे दें साक्षात्कार?


सिविल सेवा की त्रि-स्तरीय परीक्षा प्रणाली (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं व्यक्तित्व परीक्षण) में व्यक्तित्व परीक्षण अर्थात् साक्षात्कार का महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि मुख्य परीक्षा के 1750 अंकों की तुलना में साक्षात्कार 275 अंकों का होता है, परन्तु अंतिम रूप से चयन और वरीयता-सूची में स्थान निर्धारण के क्रम में इसकी निर्णायक भूमिका होती है। उल्लेखनीय है कि यहां अंक-प्राप्ति के स्तर पर बड़ा अंतर दिखायी देता है। कुछ अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा में बेहतर नम्बर पाने के बाद भी साक्षात्कार में 30-40 प्रतिशत नम्बर पाकर बाहर हो जाते हैं जबकि मुख्य परीक्षा में कम नम्बर प्राप्त अनेक अभ्यर्थी साक्षात्कार में बेहतरीन अंक अर्जित कर अंतिम रूप से चयनित हो जाते हैं। जो भी अभ्यर्थी IAS/IPS आदि के रूप में चयनित होते हैं उनमें से अधिकांश के ‘इंटरव्यू’ में बेहतरीन अंक होते हैं। स्पष्ट है कि इस स्तर पर समुचित तरीके से किया गया सकारात्मक प्रयास आपकी सफलता में निर्णायक योगदान कर सकता है।

साक्षात्कार या व्यक्तित्व परीक्षण के माध्यम से देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन होने वाले उम्मीदवारों की मानसिक सजगता, समीक्षात्मक दृष्टिकोण, स्पष्ट एवं तार्किक अभिव्यक्ति, नेतृत्व क्षमता, संतुलित निर्णय की शक्ति, रुचि की विविधता, बौद्धिक एवं नैतिक ईमानदारी, आस-पास के परिवेश में घटित हो रही घटनाओं के बारे में अभिरुचि एवं दृष्टिकोण इत्यादि के संबंध में जांच की जाती है। यह जांच एवं आकलन विभिन्न क्षेत्रें के अति अनुभवी, वरिष्ठ, निष्पक्ष विशेषज्ञों के द्वारा की जाती है।

साक्षात्कार बोर्ड का उद्देश्य आपके ज्ञान मात्र का परीक्षण करना नहीं होता तथा कुछ प्रश्नों का उत्तर न देना साक्षात्कार के बिगड़ने का परिचायक नहीं है। साथ ही यह भी कि सभी प्रश्नों का उत्तर दे देना ही एक अच्छे साक्षात्कार का प्रतीक नहीं है। यहां यह बात अधिक महत्वपूर्ण होती है कि आप अवधारणात्मक प्रश्नों के संदर्भ में कैसा दृष्टिकोण रखते हैं, प्रश्नों का उत्तर आप किस प्रकार से देते हैं, आपका शारीरिक हाव-भाव (Body Language) कैसा है। जैसे- कुछ अभ्यर्थी किसी प्रश्न का उत्तर न जानने पर सॉरी बोलते वक्त अपराध या ग्लानि की भावना से युक्त हो जाते हैं और यह उनके चेहरे से अभिव्यक्त होने लगता है। दूसरी ओर कुछ अति आत्मविश्वासी उम्मीदवार बेहतरीन प्रश्नों के संदर्भ में बिना किसी विनम्रता के, कठोरता के साथ ‘सॉरी सर’ बोल देते हैं। ये दोनों स्थितियां ठीक नहीं है।

साक्षात्कार की तैयारी के संदर्भ में आप अन्य अभ्यर्थियों, मित्रें, परिवारजनों, अध्यापकों, चयनित प्रशासकों से विभिन्न मुद्दों पर व्यक्तिगत या सामूहिक वाद-विवाद (Group Discussion) कर सकते हैं। इस क्रम में छद्म साक्षात्कार (Mock Interview) भी दें। इस प्रक्रिया के क्रम में आप कभी स्वयं को बोर्ड के सदस्य के रूप में प्रस्तुत करें, तो कभी साक्षात्कार देने वाले उम्मीदवार के रूप में। इससे आप अपने भीतर तेज गति से परिवर्धन कर सकते हैं, अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकते हैं।

साक्षात्कार की तैयारी आप तीन भागों में बांटकर कर सकते हैं-

1. बायोडेटा (Bio-data)

2. विषय (Subject)

3. समसामयिकी (Current Affairs-National & International)

1. नाम

  • अपने नाम का अर्थ, नाम से संबंधित कोई महान व्यक्तित्व, उससे समानता और विषमता
  • एक गुण, जो आप उस महान व्यक्तित्व से लेना चाहेंगे।
  • अभ्यर्थी का नाम यदि किसी ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व का हो या किसी प्रमुख व्यक्तित्व से संबंधित है, तो फिर उस पर प्रश्न बन सकता है।

2. जन्म तिथि

  • महत्व
  • उस वर्ष यदि कोई विशेष घटना घटी हो, उसकी जानकारी

3. ग्राम

  • प्रमुख समस्याएं
  • प्रमुख विशेषताएं, संभावनाएं
  • आस-पास का चर्चित स्थल/घटना
  • ग्रामीण विकास के प्रमुख कार्यक्रम (केन्द्र + राज्य)
  • सामाजिक-आर्थिक दशाएं, आजीविका के साधन

4- जिला

  • जिले के नामकरण का आधार और उससे संबंधित जानकारी जैसे- सुलतानपुर, संत रविदास नगर, अम्बेडकर नगर, अहमदनगर, इलाहाबाद/प्रयागराज आदि।
  • प्रमुख विशेषताएं, समस्याएं, संभावनाएं व सीमाएं
  • चर्चित घटनाएं, प्रमुख व्यक्तित्व
  • DM बनने पर जिले के लिए कौन-से तीन काम सबसे पहले करेंगे?
  • जिला स्तरीय विकास कार्यक्रम
  • जिले की सामाजिक-आर्थिक स्थिति
  • अपने जिले का एक विकास मॉडल बताएं

5. राज्य

  • प्रमुख विशेषताएं
  • प्रमुख समस्याएं
  • आपके राज्य में क्या संभावनाएं हैं?
  • विस्तार व सीमाएं
  • चर्चित घटना, चर्चित व्यक्तित्व
  • राज्य स्तरीय विवाद (अन्य राज्यों से)
  • आंतरिक विवाद के वर्तमान मुद्दे
  • केन्द्र से संबंध की स्थिति (विवाद, मतभेद)
  • राज्य की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्थिति

6. बायोडेटा

  • IAS क्यों बनना चाहते हैं?
  • आप में ऐसा कौन-सा गुण है कि आपको IAS बना दिया जाए?
  • अपनी तीन कमजोरियां बताएं
  • वरीयता क्रम और उसके निर्धारण का आधार
  • IAS, IPS, IFS, IRS - कार्य एवं भूमिका
  • अपना परिचय दें (1 मिनट में)

7. अन्य पक्ष

  • इस कक्ष का वर्णन करें?
  • यदि आप किसी सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, तो फिर आपसे आपकी नौकरी, कार्य-क्षेत्र, समस्याएं, उसके निदान के उपाय, व्यक्तिगत अनुभव और उसे छोड़ने के कारण पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

8. गैप

  • एकेडमिक कैरियर (अगर एकेडमिक कैरियर में कोई गैप हो तो उसका कारण क्या है)
  • आपके स्कूल या कॉलेज का Motto क्या है।
  • Switch Over यानी एक क्षेत्र को छोड़कर दूसरे में क्यों आना चाहते हैं (शिक्षा से प्रशासन में)
  • आपने साइंस विषय को छोड़कर आटर्स के विषय को क्यों लिया है?
  • आप इंजीनियर हैं तो प्राइवेट सेक्टर में क्यों नहीं जाना चाहते?
  • शोध-विषय - मेथेडोलॉजी - डेटा कलेक्शन, परिकल्पना
  • उच्च शिक्षा की स्थितिए गठित प्रमुख आयोग और उसकी सिफारिशें (उच्च शिक्षा से संबंधित अभ्यर्थी इस पर ध्यान देंगे)

9. विषय

  • आपने विषय का चयन किस आधार पर किया है?
  • आपने दर्शनशास्त्र/इतिहास/भूगोल/ समाजशास्त्र--- विषय को क्यों चुना?
  • प्रशासन में इसकी क्या उपयोगिता है?

10. हॉबी

  • आपकी हॉबी (Hobby) प्रशासन में किस तरह मददगार होगी?
  • इसको अच्छी तैयारी करें तथा सभी संभावित पक्षों पर सोच लें।
  • Hobby से संबंधित उत्तर केवल तथ्यात्मक होने के बजाय बौद्धिक एवं व्यावहारिक (Intellectual Orientation) होना चाहिए।
  • जैसे यदि आपकी हॉबी Diary writing है तो फिर ऐसे प्रश्न बन सकते हैं कि-
  • आप क्यों Diary writing करते हैं?
  • लाभ एवं नुकसान क्या है?
  • Diary writing हॉबी के रूप में कैसे विकसित हुई?
  • क्या प्रशासन में आने के बाद भी आप इसे जारी रखेंगे?
  • Diary writing का प्रशासन में क्या योगदान होगा?
  • क्या आपने किसी की Diary पढ़ी है (हिटलर, जयप्रकाश नारायण आदि)?
  • Interview देने के बाद आप अपनी Diary में क्या लिखेंगे?
  • पिछली बार आपने Diary कब लिखी थी और क्या लिखा था?
  • क्या आप अपनी Diary हमें पढ़ने के लिए देंगे?
  • आज मोबाइल/आईपैड आदि का जमाना है ऐसे में Diary लिखना क्या अप्रासंगिक हो गया है?

11. जरूर पढे़ं

  • कुछ प्रमुख अखबारों के संपादकीय
  • मनोरमा ईयर बुक

12. आपके रोल-मॉडल कौन हैं?

13. आपके जीवन का दर्शन क्या है?

14. कोई अच्छा काम जो आपने किया है?

15. इंटरव्यू के दिन का महत्व (यदि कोई विशेष दिवस हो तो उससे संबंधित जानकारी)

  • क्या आपने आज का न्यूज पेपर पढ़ा है? 'आज के मुख्य समाचार क्या-क्या हैं?'

उत्तर के दो तरीके-

  • मुख्य पृष्ठ के समाचार को बताना
  • राजनैतिक समाचार, सामाजिक पक्ष, खेल पृष्ठ, राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित घटना।

16. कल्पनात्मक प्रश्न

  • अगर आपको CM या PM बना दिया जाए तो कौन-से तीन काम पहले करेंगे?
  • एक तरफ कुआं है, और दूसरी तरफ खाई है, किसमें गिरना पसंद करेंगे?
  • गाय और भैंस में क्या अंतर है?
  • यदि आप किसी जिले के DM हैं और आपकी कार को प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने घेर लिया है तो ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
  • अगर आपको भारत का प्रधानमंत्री / कृषि मंत्री / वित्त मंत्री बना दिया जाए तो फिर आप महंगाई रोकने के लिये/बेरोजगारी दूर करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाएंगे।

17. इन शब्दों को कम बोलें या न बोलें

  • ‘मतलब कि’, 'Actually', 'Basically', 'you know', 'Carry on', ‘जैसा कि मैने पहले भी कहा है', ‘देखिए' आदि

18. क्या करें

  • बोर्ड के सदस्यों के समक्ष नम्र तथा सकारात्मक रुख (Positive Temperament) अपनाएं। यदि आप बोर्ड के किसी सदस्य के विचार से असहमत हैं तो आप अपनी असहमति को विनम्रता के साथ प्रस्तुत करें। सीधे विरोध करने से बचें।
  • कई बार बोर्ड के किसी सदस्य द्वारा अभ्यर्थी को कुछ Hint दिया जाता है, ऐसी स्थिति में उस सदस्य को धन्यवाद दें।
  • तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर में प्रश्न कर्त्ता से नजरें अवश्य मिलाए रखनी चाहिए। यदि प्रश्न का उत्तर लंबा हो, तो फिर आप अन्य सदस्यों की तरफ एक नजर डाल सकते हैं।
  • यदि आपको किसी प्रश्न के उत्तर की पूर्ण जानकारी नहीं है या द्वं की स्थिति में हैं तो फिर वैसी स्थिति में आप Hint देने के लिये निवेदन कर सकते हैं, Guess करने की अनुमति मांग सकते हैं, या फिर आप जितना जानते हैं, उतना सीधे-सीधे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं और अपनी अपूर्णता के लिये बोर्ड से क्षमा मांग सकते हैं।
  • अगर आपका इंटरव्यू ‘तनावपूर्ण’ हो तो फिर वैसी स्थिति में आप अंतिम समय तक धैर्य को बनाए रखें। अगर आप अंतिम समय तक Positively बोर्ड के समक्ष विनयशीलता के साथ टिके रह जाते हैं, तो फिर वैसी स्थिति में बेहतरीन नंबर पाने की संभावना प्रबल हो जाती है, भले ही आपने कई प्रश्नों का जवाब पूरा न दिया हो या Sorry बोला हो।
  • तथ्यात्मक प्रश्नों का उत्तर तुरन्त दें। परन्तु यदि कोई अवधारणात्मक प्रश्न हो या विवादास्पद मुद्दे से संबंधित कोई प्रश्न हो, तो फिर वहां थोड़ा Pause अवश्य लें। इससे उत्तर की Framing करने में आसानी होती है।
  • सभी सदस्यों को समान रूप से सम्मान दें एवं विभिन्न सदस्यों को उत्तर देने के क्रम में समान रूप से दिलचस्पी दिखाएं। केवल अध्यक्ष के प्रति विशेष रूप से लगाव न दिखाएं। इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।
  • साक्षात्कार में अक्सर यह भी प्रश्न पूछा जाता है कि ‘आप अपनी कमजोरियों को बताएं'। ऐसी स्थिति में आप उन क्षेत्रें को बताएं जिसमें आप सुधार चाहते हैं तथा जिसके लिये आप प्रयासरत भी हैं।

19. क्या न करें

  • कभी भी वर्तमान व्यवस्था या लोकतंत्र पर सीधी उंगली न उठाएं। जब तक बोर्ड के सदस्य द्वारा पूछा गया प्रश्न पूरा न हो, बीच में न बोलें, टोका-टोकी न करें। प्रश्न को पूरा होने दें। यदि आप प्रश्न को न समझ पाएं तो एक बार आप प्रश्न को दोहराने के लिये सदस्य से निवेदन कर सकते हैं। प्रश्न के उत्तर की जानकारी होने पर मुस्कुराना प्रारंभ न कर दें।
  • यदि आप किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हैं तो फिर आप ईमानदारी का परिचय देते हुए स्पष्ट बता दें। घुमा-फिराकर जवाब देने का प्रयास न करें। बोर्ड को गलत या गड़बड़ उत्तर देकर भ्रमित करने का प्रयास न करें।
  • राजनीतिक विवादों में न उलझें। किसी जाति, समुदाय, धर्म या दल विशेष के प्रति पक्षतापूर्ण विचार अभिव्यक्त न करें।
  • कभी भी Chairman या सदस्यों के साथ कुतर्क न करें। अगर आप बोर्ड के किसी सदस्य की बात से असहमत हैं तो आप अपनी असहमति को विनम्रता के साथ प्रस्तुत करें।
  • चेहरे, बाल, शर्ट के बटन पर अपने हाथों को न फिराएं। टाई को बार-बार ठीक करने का प्रयास न करें।
  • साक्षात्कार बोर्ड की दया या सहानुभूति हासिल करने के लिये जज़्बाती न बनें या अपनी गरीबी या ग्रामीण पृष्ठभूमि आदि को बताकर सहानुभूति लेने का प्रयास न करें।
  • प्रश्नों का उत्तर न जानने पर चेहरे पर ग्लानि का भाव, हताशा, निराशा या अपराधबोध का भाव न झलकने दें। आप विनम्रता के साथ Sorry बोल सकते हैं।
  • कुर्सी पर बैठने के बाद आप अपनी स्थिति को बार-बार न बदलें। इससे बेचैनी, शिथिलता एवं आत्मविश्वास की कमी का पता चलता है।

20. साक्षात्कार के बाद

  • यदि Chairman आपसे हाथ मिलाने के लिये अपना हाथ बढ़ाएं तो आप हाथ मिला सकते हैं। आप अपनी तरफ से हाथ न बढ़ाएं।
  • Chairman द्वारा अनुमति दिये जाने पर आप सहज रूप से उठें और मन्द मुस्कान के साथ सभी को धन्यवाद कहकर बाहर आएं।
  • कक्ष से बाहर जाते वक्त पीछे मुड़कर न देखें।
  • अपना शिष्टाचार कक्ष से बाहर जाने तक बनाए रखें। कोई विशेष शारीरिक गतिविधि न करें।
  • संदेशः मन, वचन और कर्म के साथ आत्मविश्वास से युक्त होकर किया गया प्रयास कभी निरर्थक नहीं जाता। ईश्वर भी अच्छे कर्म का अच्छा फल देने के लिये बाध्य है। अतः आप अपना ध्यान नंबर पर न लगाकर अपने कर्म पर केन्द्रित करें। प्रयास करें कि साक्षात्कार में कोई गलती न हो। कोई ऐसी चीज न बोलें जो बोर्ड के सदस्यों को नागवार लगे। आप यह ध्यान रखें कि साक्षात्कार में अंतिम समय तक सकारात्मक दृष्टिकोण से युक्त होकर (Positive Bent of Mind) रहना है।

आप सफलता को शिरोधार्य करें -

इस मंगलकामना के साथ।

'PATANJALI IAS CLASSES'

अक्षय कुमार जायसवाल

दर्शनशास्त्र एक वैकल्पिक विषय के रूप में


दर्शनशास्त्र ही क्यों चुनें?

  • इसका पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत संक्षिप्त है, अतः इसका रिवीजन आसान है|
  • यह विषय समसामयिक घटनाओं व मुद्दों पर अपेक्षाकृत कम निर्भर है|
  • अन्य विषयों की तुलना में इसे कम समय (लगभग डेढ़ से दो माह) में तैयार किया जा सकता है|
  • पाठ्यक्रम का विभाजन बहुत सरल है|
  • विभिन्न दार्शनिकों केकथनोंका अनुसरण करना है, अतः अपनी कल्पना शक्ति के इस्तेमाल से बचा जा सकताहै|
  • समय-समय पर कई उम्मीदवार इसे चुनकर अच्छी रैंक हासिल कर चुके हैं जैसे- अथर आमिर खान (2015, सेकंड रैंक)
  • प्रश्न की मांग के अनुसार यदि उत्तर खूबसूरती से प्रस्तुत किया जाए तो यह अधिक अंकदायी विषय बन जाता है|

दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय और भ्रांतियां

दर्शनशास्त्र उबाऊ (बोरिंग) विषय है

यह मात्र एक कोरी कल्पना है क्योंकि यदिआपको ऐसा लगता है तो इसका अर्थ है कि आपने विषय को सिर्फ पढ़ना (रीडिंग) शुरू किया है अध्ययन (स्टडी) करना नहीं| एक बार विषयवस्तु, उद्देश्य तथा दार्शनिक के मन को समझ लेने के बाद दर्शनशास्त्र से रुचिपूर्ण विषय शायद ही कोई होगा।

दर्शनशास्त्र विषय चलन (ट्रेंड) से बाहर है|

आपको ऐसा इसलिए लग सकता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में चयनित अभ्यर्थियों में दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय रखने वाले अभ्यर्थी बहुत कम देखने को मिले हैं; परंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि यह चलन से बाहर है बल्कि तथ्य यह है कि अधिकतर उम्मीदवारों को दर्शनशास्त्र के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, अतः अपर्याप्त जानकारी तथा अन्य विषयोंके चयनकी बढ़तीआवृत्तिने दर्शनशास्त्र से चयन को हाल ही के वर्षों में प्रभावित किया है।

दर्शनशास्त्र विषय में अधिक अंक नहीं मिलते

यह बात बिल्कुल गलत है, क्योंकि पूर्व चयनित कई अभ्यर्थियों ने इस विषय के साथ अच्छे अंक अर्जित किए हैं ; जैसे- आनंदू सुरेश गोविंद ने वैकल्पिक विषय में कुल 319 अंक प्राप्त किए थे जो अपेक्षा से कहीं अधिक अच्छा स्कोर है|

यहां फिर यह बात दोहराना चाहूंगा कि यदि प्रश्न की मांग के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से उत्तर प्रस्तुत किया जाए तो यह विषय अधिक अंक अर्जित करने की क्षमता रखता है।

दर्शनशास्त्र अंग्रेजी माध्यम वाले अभ्यर्थियों हेतु सही विषय है

यह भी एक गलत भ्रांति है क्योंकि कोई भी विषय भाषा के अनुसार अंक प्रदान नहीं करता| आपकी कोई भी भाषा हो; विषय सामग्री की गुणवत्ता, कम शब्दों में अधिक बात कहना, दार्शनिकों के विचारों का प्रयोग व एक प्रवाहमय प्रस्तुतीकरण ही आपको अधिक अंक अर्जित करवाती है।

दर्शनशास्त्र प्राचीन इतिहास और एथिक्स जैसा विषय है

दर्शनशास्त्र में दार्शनिकों जैसे गौतम बुद्ध, महावीर जैन तथा षड्दर्शन के प्रवर्तकों आदि के शामिल होने के कारण इसे प्राचीन भारतीय इतिहास से संबद्ध कर दिया जाता है, परंतु इन दोनों विषयों में कुछ मौलिक अंतर भी है, जैसे-जहां दर्शनशास्त्र में इन दार्शनिकों की मीमांसा पर जोर होता है वहीं इतिहास में इनसे संबंधित सभी ऐतिहासिक पहलुओं को शामिल किया जाता है| इसी प्रकार एथिक्स की विषयवस्तु दर्शनशास्त्र के अंग ‘नीति मीमांसा’ का एक भाग है।

अंततः यह बात सत्य प्रतीतहोती है कि दर्शनशास्त्र में कुछ बिंदुओं पर इतिहास व एथिक्स विषय की झलक मिलती है।

दर्शनशास्त्र का मुख्य परीक्षा के अन्य प्रश्न-पत्रों में योगदान

दर्शनशास्त्र न सिर्फ वैकल्पिक विषय के रूप में बल्कि मुख्य परीक्षा के अन्य प्रश्न पत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे:-

  • सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 में इतिहास तथा भारतीय समाज सेक्शन के टॉपिक दर्शनशास्त्र के प्रश्न-पत्र-2 (सामाजिक-राजनीतिक दर्शन) से प्रभावित हैं,
  • इसी प्रकार सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-2 में संविधान का दर्शन तथा कल्याणकारी संकल्पना पर दर्शनशास्त्र का प्रभाव है,
  • वहीं सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-3 में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति कुछ इस प्रकार की रहती है कि तकनीकी पर्यावरण आदि विषयों के उत्तर देते समय दर्शनशास्त्र से इनपुट लिए जा सकते हैं।
  • सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-4 में नीतिशास्त्र स्वयं दर्शनशास्त्र की नीति मीमांसा पर आधारित है।

हाल ही में हुई 2021 की मुख्य परीक्षा के निबंध प्रश्न-पत्र पर गौर करें तो पाते हैं कि सभी 8 निबंधों के विषय सीधे दर्शनशास्त्र से लिए गए है जैसे:-

  1. आत्मसंधान की प्रक्रिया अब तकनीकी रूप से बाहरी स्त्रोतों को सौंप दी गई है।
  2. आपकी मेरे बारे में धारणा आपकी सोच दर्शाती है, आपके प्रति मेरी प्रतिक्रिया मेरा संस्कार है।
  3. इच्छा रहित होने का दर्शन काल्पनिक आदर्श (यूटोपिया) है, जबकि भौतिकता माया है।
  4. सत ही यथार्थ है और यथार्थ ही सत है।
  5. पालना झुलाने वाले हाथों में ही संसार की बागडोर होती है।
  6. शोध क्या है, ज्ञान के साथ एक अजनबी मुलाकात।
  7. इतिहास स्वयं को दोहराता है पहली बार एक त्रासदी के रूप में दूसरी बार एक प्रहसन के रूप में।
  8. सर्वोत्तम कार्य प्रणाली से बेहतर कार्य प्रणालियां भी होती हैं।

उक्त संदर्भित बातों से यदि गणितीय निष्कर्ष निकाला जाए तो दर्शनशास्त्र, अंक अर्जन की दृष्टि से महत्वपूर्ण वैकल्पिक विषय इस प्रकार साबित होता है।

वैकल्पिक विषय प्रश्न पत्र-1

250 अंक

वैकल्पिक विषय प्रश्न पत्र-2

250 अंक

निबंध

250 अंक

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-1, 2, 3 (संयुक्त रूप से)

150 अंक (औसतन)

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-4

150 अंक (औसतन)

स्पष्ट है कि सही रणनीति द्वारा दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय के साथ मुख्य परीक्षा में शामिल होने से लगभग 1050 अंक का वेटेज मिल सकता है।

यूपीएससी की अपेक्षाएं

वैकल्पिक विषय के संदर्भ में यूपीएससी यह मानकर चलता है कि विषय की समझ अभ्यर्थी में स्नातक/स्नातकोत्तर स्तर की है, अतः प्रश्नों के उत्तर देते समय आपको यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि उत्तर सारगर्भितएवं सटीक हो तथा विशिष्ट प्रकृति के हो, ना की सामान्य प्रकृति के (जैसे सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्रों में होते हैं)|

  • यहां भाषा की कोई बाध्यता नहीं है, जिस भी भाषा में आप सहज महसूस करते हैं तथा उक्त अपेक्षाओं को पूर्ण कर सकते हैं उसी भाषा का चयन करना चाहिए।

विषय तैयार करने में आने वाली चुनौतियां व समाधान

दर्शनशास्त्र आपके स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर विषय नहीं रहा है अर्थात यह आपके लिए नया है|

  • समाधान: आप पहले विषय के पाठ्यक्रम व पूर्व वर्षो में पूछे गए प्रश्नों का अध्ययन करें| फिर पाठ्यक्रम को सुविधा अनुसार बांटकर पहले उन टॉपिक्स को तैयार करें जिनसे प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।

नोट्स बनाएं या सीधे प्रिंटेड मैटेरियल/बुक से पढ़ें?

  • समाधान: यह पूर्णतः आपकी पसंद पर निर्भर करता है परंतु सलाह यही है कि आप उपलब्ध समय अनुसार शॉर्ट नोट्स जरूर बनाएं।

कितनी बार पढ़ें?

  • समाधान: संपूर्ण पाठ्यक्रम को कम से कम 3 बार तो गहराई से पढ़ना चाहिए तथा 2 बार रिवीजन के तौर पर। इस प्रकार कुल 5 बार पढ़ा जा सकता है|

उत्तर लेखन अभ्यास कब करें?

  • समाधान: कम से कम 4 माह तो उत्तर लेखन अभ्यास करना ही चाहिए। आप अपनी सुविधा अनुसार 3 माह लगातार प्रारंभिक परीक्षा के पहले तथा 1 माह लगातार प्रारंभिक परीक्षा के पश्चात यह लेखन अभ्यास कर सकते हैं|
Editorial Team
Civil Services Chronicle
हिंदी माध्यम में कैसे हों सफ़ल? भाग-3


उत्कृष्ट निबंध कैसे लिखें

आगामी मुख्य परीक्षा को ध्यान में रखते हुए हम इस अंक में प्राथमिकता के अनुरूप निबंध विषय के उत्तर लेखन के संबंध में विशेषज्ञ सलाह प्रस्तुत कर रहे हैं। सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र 1, 2 एवं 3 की तैयारी के लिए आवश्यक रणनीति की चर्चा पत्रिका के आगामी अंकों में प्रकाशित होने वाले विशेषज्ञ सलाह में की जाएगी।

संपादकीय मंडल

निबंध लेखन की वह महत्वपूर्ण विधा है जिसके द्वारा किसी भी विषय में लेखक के सामान्य ज्ञान, तार्किक विश्लेषण की योग्यता, सूक्ष्म निरीक्षण कला, जागरूकता, भाषा एवं अभिव्यक्ति की क्षमता के साथ-साथ उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जा सकता है। संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में निबंध एक महत्वपूर्ण प्रश्न-पत्र के रूप में शामिल है। चूंकि निबंध में रटने की कला का कभी भी मूल्यांकन नहीं होता तथा मौलिकता पर ही अच्छे नंबर निर्भर करते हैं, अतः अभ्यर्थी को मौलिक एवं सटीक निबंध लिखने का अभ्यास करना चाहिए। संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में निबंध का प्रश्न-पत्र 250 अंकों का होता है। इस प्रश्न-पत्र में अभ्यर्थी को 50-60 से लेकर 160-170 अंक तक आते हैं, अतएव अभ्यर्थी के अंतिम चयन में निबंध में प्राप्त अंकों का निर्धारक योगदान माना जा सकता है।

निबंध क्या है?

वस्तुतः निबंध साहित्य का वह स्वरूप है, जिसमें किसी विषय का विचारपूर्ण एवं रोचक पद्धति से सुसम्बद्ध एवं तर्कपूर्ण प्रतिपादन किया जाता है। निबंध जहां मन के भावों की स्वच्छंद उड़ान है, वहीं यह किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखन की गद्यात्मक अभिव्यक्ति भी है। चूंकि निबंध प्रायः अवधारणात्मक होते हैं, अतः उसमें बुद्धि की विश्लेषण क्षमता, समीक्षा शक्ति एवं अभिव्यक्ति सामर्थ्य की आवश्यकता होती है। उत्कृष्ट एवं प्रभावशाली निबंध की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं-

  1. निबंध का एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही एक विचार एवं एक दृष्टिकोण के आलोक में लिखा जाना चाहिए।
  2. निबंध की आत्म-अभिव्यक्ति ही निबंध की प्रमुख विशेषता है। इस तरह निबंध पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए।
  3. निबंध में विचारों को निश्चित श्रेणी में रखा जाना चाहिए अर्थात् एकसूत्रता एवं क्रमबद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। साथ ही इस क्रमबद्धता का अंत निष्कर्ष के साथ होना चाहिए।
  4. निबंध में लिखी गई बातों को साफ तौर पर लिखा जाना चाहिए अर्थात दृष्टिकोण स्पष्ट हो। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि निबंध के प्रत्येक विचार चिंतन हर एक भाव एवं आवेग की अभिव्यक्ति करते हों।
  5. निबंध में विचारों से यह स्पष्ट झलकना चाहिए कि उसमें मौलिकता है तथा उसमें आप के अनुभव शामिल हैं। किसी के विचारों या आदर्शों का अंधानुकरण निबंध में प्रभावहीनता भी पैदा कर सकता है।

निबंध के विषय

निबंध के अनेक विषय हो सकते हैं, यथा-राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भावात्मक, काल्पनिक, वैज्ञानिक आदि। किन्तु प्रतियोगी परीक्षाओं विशेषकर संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोगों की मुख्य परीक्षा में पूछे जा रहे ज्यादातर निबंध निम्नलिखित चार श्रेणियों के होते हैंः

  1. वर्णनात्मक निबंधः इस श्रेणी के अंतर्गत पूछे गए निबंध का संबंध विचारों, भावों तथा लेखक की प्रतिक्रियाओं से होता है तथा वह अपनी अनुभूति के आधार पर निबंध लिखता है।
  2. कथनात्मक निबंधः इस तरह का निबंध किसी घटना या घटनाओं कीशृंखला का कथनात्मक प्रस्तुतीकरण होता है। इसमें किसी घटना विशेष को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करते हुए अंत में अपना निष्कर्ष देने की अपेक्षा की जाती है।
  3. विवेचनात्मक या उद्घाटनात्मक निबंधः इस प्रकार के निबंधों की प्रमुख विशेषता यह होती है कि किसी विषय के संदर्भ में एक पूर्ण कथन द्वारा इसके समस्त पहलुओं का वर्णन करना होता है।
  4. तार्किक निबंधः इस प्रकार के निबंध का संबंध लोगों को तर्क से प्रभावित करने की योग्यता से जुड़ा होता है। इसलिए लेखक की सोच में गंभीरता तथा तर्क देने की मजबूत शैली ही इस प्रकार के निबंधों में चार चांद लगाती है। इस प्रकार के निबंध को लिखने में रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

निबंध कैसे लिखें?

किसी विषय पर विस्तार से सोचना और उसे विशेष रूप देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। दिमाग के सोचने की गति तेज है लेकिन लिखने की गति धीमी। दिमाग को एक विषय के इर्द-गिर्द बांधे रखना और सिलसिलेवार सोचने के लिए केंद्रित करना कठिन काम है। इसी अनुशासित किस्म के बंधे हुए रचना कर्म को निबंध कहा जाता है। इसके लिए मूलतः दिमाग के ऐसे प्रशिक्षण की जरूरत होती है कि वह एक मुद्दे पर टिककर विचार करे और उसे सिलसिलेवार अभिव्यक्त करे।

1.निबंध की सामग्रीः निबंध में क्या-क्या होना चाहिए, निबंध में किस-किस सामग्री का समावेश होना चाहिए यह तो निबंध का विषय ही तय करता है, किंतु फिर भी लगभग सभी तरह के निबंधों में कुछ खास सामग्री अवश्य होती है, जिसमें प्रमुख हैं- तथ्य, तर्क, कल्पना और अभिव्यक्ति कौशल। इन पर संक्षेप में विचार आवश्यक है।

क) तथ्यः हर निबंध में उस विषय से संबंधित कुछ तथ्य, सूचनाएं, आंकड़े आदि होने चाहिए। आर्थिक-वाणिज्यिक, वैज्ञानिक विषयों से संबंधित निबंधों में तो आंकड़ों की विशेष आवश्यकता होती है। ये तथ्य प्रामाणिक और यथासंभव अद्यतन होने चाहिए और हो सके तो उन स्रोतों का उल्लेख भी होना चाहिए जहां से ये तथ्य प्राप्त हुए हैं। तथ्यों के संबंध में मनगढ़ंत कल्पना की उड़ान से बचना चाहिए। किंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अधिक तथ्यों को भरने से मौलिक विचार दब जाते हैं तथा भाषा-शैली सपाट हो जाती है।

ख) विचारः निबंध में विचार की अभिव्यक्ति का विशेष महत्व है। विचारशील निबंधों में तो विचार ही मेरुदंड हैं। विचार न केवल सटीक और प्रासंगिक होने चाहिए, बल्कि वे एक के बाद दूसरे को पुष्ट करने वाले भी होने चाहिए। निबंध में मुख्यतः विचारशीलता की ही परीक्षा होती है। इसलिए निबंध में जो भी सामग्री प्रस्तुत की जाए वह वैचारिक दृष्टि से बहुत ही उत्कृष्ट होनी चाहिए। निबंध की समाप्ति एक वैचारिक परिणति के साथ होनी चाहिए। तथ्यों का प्रस्तुतीकरण एवं विशेष रूप से उनका विश्लेषण वैचारिकता पर आधारित होना चाहिए।

ग) कल्पनाः तथ्य एवं तर्क से किसी निबंध की नींव भरी जा सकती है, किन्तु उसकी सजावट विचारों की मौलिकता द्वारा होती है जो लेखक की कल्पना के द्वारा ही संभव है। एक भवन में जो महत्व सजावट का है, वही निबंध में कल्पना का है। बहुत से निबंध तो कल्पना केन्द्रित ही होते हैं।

  • कल्पनाशीलता को न तो पुस्तकों से प्राप्त किया जा सकता है और न इसे तुरंत विकसित ही किया जा सकता है, किन्तु नए ढंग से सोचते रहने से तथा जो जैसा है उससे भिन्न वह कैसा हो सकता है, अर्थात विकल्पों पर सोचते रहने से कल्पनाशीलता विकसित होती है। कल्पना यद्यपि विचारों की मौलिक उड़ान होती है, किन्तु उसकी डोर तथ्यों और तर्कों के हाथ में होती है। निराधार कल्पना का कोई महत्व नहीं है।
  • कल्पना के अपने वैकल्पिक तथ्य एवं तर्क होने चाहिए ताकि वे वास्तविक तथ्यों एवं तर्कों से सामंजस्य बिठाए रखे। किसी भी समस्या के समाधान जुटाने या निबंध में एक नई किस्म की दुनिया रचने में वह निरर्थक न लगे।

घ) अभिव्यक्ति कौशलः तथ्य, विचार और कल्पना को भाषा के माध्यम से व्यक्त करना होता है। यह भी कह सकते हैं कि भाषा के जरिए ही किसी व्यक्ति के तथ्य, विचार और कल्पना से परिचित हुआ जा सकता है। अतः निबंध में भाषा अपने-आप में एक सामग्री है। भाषा में निबंधकार का व्यक्तित्व सन्निहित होता है। अतः निबंध लेखन में भाषा का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

  • भाषा मूल रूप से एक व्यवहार है, वह व्यक्ति की चेतना में निरंतर विकसित होती है। उसको तथ्यों की तरह कुछ समय में ही विकसित नहीं किया जा सकता है। अतः व्यावहारिक होने के नाते भाषा का विकास उसके निरंतर प्रयोग करते रहने से ही होता है।

निबंध में अच्छे अंक कैसे?

संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में निबंध एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल है। इस पत्र में अच्छे अंक प्राप्त कर आसानी से प्रतियोगी अंतिम चयन में उच्च स्थान प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, इस पत्र में अभ्यर्थियों को 50-60 से लेकर 160-170 तक अंक प्राप्त होते हैं। जाहिर है ऐसे में जरा सी चूक न सिर्फ आपको 115-120 अंकों से वंचित कर देगी, बल्कि अंतिम चयन पर भी प्रश्न चिह्न लगा देगी। न्यूनतम एवं अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले प्रतियोगियों के लेखन में जो अंतर होता है, अगर आपने इस अंतर की पहचान कर ली तो यकीन मानिए आप इस प्रश्न-पत्र में काफी अच्छे अंक प्राप्त करेंगे।

आईएएस मुख्य परीक्षा में उम्मीदवारों को तीन घंटे की समय सीमा में किसी एक निर्दिष्ट विषय पर निबंध लिखना होता है। विषयों के संबंध में विकल्प दिया जाता है। उम्मीदवारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वो अपने विचारों को क्रमबद्ध करते हुए निबंध के विषय से निकटता बनाए रखें और अपनी बात संक्षेप में लिखें। प्रभावशाली एवं सटीक अभिव्यक्ति को विशेष वरीयता दी जाती है।

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा निबंध प्रश्न-पत्र में उम्मीदवार की विषय वस्तु पर पकड़, चुने हुई विषय वस्तु के साथ उसकी प्रासंगिकता, रचनात्मक तरीके से सोचने की उसकी योग्यता और विचारों को संक्षेप में युक्तिसंगत एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की क्षमता की जांच की जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए निबंध में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए निम्न बातों पर अमल करना चाहिए।

  • विषय का चयनः सर्वप्रथम निबंध में विषय चयन पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। इस संबंध में पहली सावधानी यही होनी चाहिए कि प्रश्न-पत्र में दिए हुए विषयों में जो भी विषय आपको पहली नजर में प्रिय लगे तथा जिस पर आप ठीक ढंग से अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हों, उसी विषय का चयन करें। उस विषय को चुनें, जिसके बारे में पर्याप्त तथ्य एवं तर्क हों और सबसे बड़ी बात जिसमें अपनी भाषायी सामर्थ्य दिखाने का पर्याप्त अवसर हो।
  • विषय के प्रारूप पर विचारः विषय चुनने के बाद उसकी भूमिका से उपसंहार तक के प्रारूप पर विचार करें। विचार करने में जल्दी न करें, पर्याप्त समय दें। विचार करते समय बिंदुओं को लिखते चलें। फिर उन बिन्दुओं के क्रम को अच्छी तरह देख लें। यह कार्य रफ में करें। इसके लिए पर्याप्त समय लेकर चलें; प्रक्रिया का यह चरण बहुत आवश्यक है।
  • निबंध लेखनः इसके बाद बिंदुवार निबंध लेखन आरम्भ करें। न तो शुरू में आधार बिन्दु लिखें और न ही बिन्दुओं के शीर्षक दें। हां, महत्वपूर्ण तथ्यों एवं विचारों वाले शब्दों तथा वाक्यों को रेखांकित (Underline) किया जा सकता है। अंत में लिखे हुए निबंध को गौर से पढ़ें तथा वर्तनी, शब्दों, तथ्यों, तर्कों, क्रमिकता आदि की दृष्टि से जहां जरूरी हो, संशोधन करें।
  • निबंध वही लिखें जिस पर आपकी पकड़ सबसे अच्छी हो। कई प्रतियोगी उस विषय पर निबंध लिखने का प्रयत्न करते हैं, जिस पर प्रायः कोई नहीं लिखता। यह एकदम गलत दृष्टिकोण है। हमेशा ध्यान रखें कि आपको अंक उत्तर पर मिलते हैं, प्रश्न पर नहीं।
  • कुछ विषयों पर विविध स्रोतों से सामग्री एकत्र करें, पढ़ें और उसका विश्लेषण करें।
  • विषय से न भटकें। अगर भूलवश भटकाव हो भी जाए तो उस गिलहरी की भांति वापस लौट जाएं, जो पेड़ के निचले हिस्से से चढ़कर पेड़ की पत्ती-पत्ती तक घूमकर पुनः वापस आ जाती है।
  • निबंध में प्रभावोत्पादक शुरुआत व सारगर्भित निष्कर्ष आधारस्तंभ की भूमिका निभाते हैं। अतः इसका विशेष ध्यान रखें।
  • निबंध सरल, स्पष्ट, विशिष्ट तथा सुंदर शैली में होना चाहिए। विचारों को यथासंभव मौलिक तथा ‘टू द पॉइंट’ रखें।

ऐसा विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि उपर्युक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर प्रतियोगी, निबंध में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।

Editorial Team
Civil Services Chronicle
हिंदी माध्यम में कैसे हों सफ़ल? भाग-2


विषयों की प्राथमिकता के आधार पर बनाएं अपनी रणनीति

- संपादकीय मंडल

पिछले अंक में हमने असफलता के लगभग प्रत्येक पहलू पर चर्चा की। इस अंक से हम लोग विधिवत रूप से समग्र तैयारी की रणनीति पर विचार करेंगे, कि हिंदी माध्यम में सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है।

सर्वप्रथम हम लोग थोड़ी चर्चा उस समय की करें, जिस समय हिंदी माध्यम से अच्छे परिणाम आते थे या हिंदी माध्यम के प्रतियोगी भी मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक से उत्तीर्ण होते थे, साथ ही वैकल्पिक व सामान्य अध्ययन के विषयों में भी अच्छे अंक प्राप्त करते थे।

  • अगर हम वर्ष 2000 के आस-पास की तैयारी की रणनीति की चर्चा करें तो उस समय ज्यादातर विद्यार्थी अपने सीनियर या शिक्षक के मार्गदर्शन में तैयारी करते थे। सीनियर सामान्यतः दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते थे। वे आपको अपना छोटा भाई या जूनियर समझकर सुझाव देते थे। प्रतियोगियों को भी अपने शिक्षकों व सीनियरों पर पूर्ण विश्वास होता था। क्लास में कम विद्यार्थी होते थे, शिक्षकों के पास भी समय होता था तथा उस समय शिक्षक भी विद्यार्थियों से खूब मेहनत कराने का प्रयास करते थे।
  • उस समय ऐसे शिक्षक बहुत कम होते थे, जो वर्तमान शिक्षकों की तरह कक्षा में निम्न स्तर का हास्य व्यंग करके छात्रों का बहुमूल्य समय बर्बाद करते थे। उस समय के शिक्षक निम्न स्तर के हास्य व्यंग करने को अपनी गरिमा के अनुकूल नहीं मानते थे। छात्रों और शिक्षकों का व्यवहार गुरु-शिष्य परंपरा का पूरी तरह से पालन करता था। शिक्षक कक्षा में तनाव को कम करने के लिए विषय से संबंधित ही किसी रोचक जानकारी को साझा करता था, ना कि फालतू के विषयों पर चर्चा करके।
  • वर्तमान में इस क्षेत्र में स्तरहीन शिक्षकों के आगमन ने क्लास का स्तर गिराया है। अब सामान्य तौर पर शिक्षक कथा-कहानी या व्यर्थ मुद्दों से संबंधित बातों में समय बर्बाद करने की कोशिश सिर्फ दो ही परिस्थितियों में करते हैं या तो उनके दिमाग में आगे पढ़ाने का कंटेंट ना हो या वे पूरी तैयारी के साथ ना आए हों।
  • किसी शिक्षक को तीन घंटे की क्लास लेने के लिए कम से कम 100 पृष्ठों से अधिक की सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही शिक्षक को 3 घंटे का एक UPSC के स्तर की क्लास लेने के लिए खुद भी 3-4 घंटे पढ़ना होगा और हम सभी जानते हैं कि इतना समय तो अब किसी शिक्षक के पास है ही नहीं, तो फिर वह आपकी कमियों और अच्छाइयों पर कितना ध्यान दे पाएगा।
  • उपरोक्त बातों से समस्या तो स्पष्ट हो गई कि शिक्षक तो योग्य हैं, परन्तु उनकी वर्तमान शिक्षण शैली अयोग्य है। अतः अभ्यर्थी को अपनी तैयारी की रणनीति बनाते समय उपलब्ध विकल्पों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करते हुए अपनी क्षमताओं के अनुसार उचित विकल्प का चयन करना चाहिए।

गुरु या मेंटर का चयन

हमें सबसे पहले गुगल गुरु, साक्षात्कार, यू-ट्यूब तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पढ़ने की रणनीति बनाने का त्याग करना होगा। हमारा मानना है कि जो भी टॉपर यू-ट्यूब या न्यूज चैनल या संस्थान में जाकर अपना अनुभव शेयर करता है वह ज्यादातर अपनी तैयारी की रणनीति से इतर अपने अनुभव बताता है और सबसे बड़ी बात यह कि ये टॉपर ज्यादातर अंग्रेजी माध्यम के होते हैं। वास्तव में अधिकांश सफल अभ्यर्थी तो यह भी कहने की स्थिति में नहीं होते कि रिजल्ट से पहले वे आश्वस्त थे सफलता मिलेगी ही।

  • जरा सोचें हम सभी अलग-अलग परिवेश, संस्कार, संस्कृति, शैक्षणिक पृष्ठभूमि, विश्वविद्यालयों आदि से आते है, हमने अलग-अलग विषय पढ़े होते हैं, ऐसे में हमारी तैयारी एक किसी व्यक्ति की सलाह या मार्गदर्शन के आधार पर कैसे हो सकती है?
  • आज भी गुरु के रूप में सबसे अच्छा विकल्प आपके शिक्षक तथा चयनित विद्यार्थी होते हैं। ऐसे छात्र भी आपके मेंटर हो सकते हैं जिन्हें परीक्षा का अच्छा अनुभव हो तथा जिन्होंने अच्छे अंकों के साथ मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण की हो। ऐसे मेंटर आपकी क्षमताओं का आकलन करके रणनीति तैयार करने में आपकी मदद कर सकते हैं। ध्यान रहे कि ये शिक्षक या चयनित विद्यार्थी अपनी कमियों में सुधार के फलस्वरूप ही सफल हुए है अतः वे अगर ईमानदारीपूर्वक आपका मार्गदर्शन करें तो आपको सफलता दिलवा सकते हैं।
  • आप जिस भी व्यक्ति, शिक्षक या अभ्यर्थी को अपना गुरु बनाएं, उस पर पूरा विश्वास करें, उनके मार्गदर्शन में आपने जो भी रणनीति बनायी हो उस पर पूरी तरह से अमल करें।

तैयारी की विधिवत रणनीति

सबसे पहले आप अंकों को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध रूप में विचार करें कि कैसे आप 950-1050 अंक तक प्राप्त कर सकते हैं। आपको यह निर्धारित करना होगा कि किस विषय की तैयारी कब करें, कैसे करें; क्या पढ़ें, क्या न पढ़ें।

  • सामान्यतः हिदी माध्यम का विद्यार्थी हर जगह शॉर्ट कट ढूंढताहै। वह सफलता के शॉर्टकट के चक्कर में अपना समय बर्बाद कर लेता है। उसकी कोशिश हमेशा वैसी सामग्री ढूंढने में होती है जिसमें उसे ज्यादा पढ़ना ना पड़े। इसलिए वह फालतू की अध्ययन सामग्री, यू-ट्यूबर के वीडियो आदि में अपना ज्यादा समय बर्बाद करता है। मानक पुस्तकों का अध्ययन करने की बजाय वह गाइड जैसी पुस्तकों या कोचिंग के स्टडी मैटेरियल से ही परीक्षा में टॉप करने की अपेक्षा रखता है। टॉपर बनने के लिए विधिवत रणनीति के साथ समग्र अध्ययन की जरूरत होगी, जिसके लिए किसी एक कोचिंग, शिक्षक या किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
  • हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों की एक सामान्य सोच यह होती है कि पहले प्रीलिम्स पास कर लें फिर मेंस देंगे या सिविल नहीं भी होगा तो क्या हुआ, पीसीएस कर लेंगे या कोई और नौकरी तो मिल ही जाएगी। यह वैकल्पिक सोच ही उसे संघर्ष करने से रोकती है। अगर आपने संकल्प ले लिया है कि हमें सिविल सेवा में जाना है तो तैयारी के शुरुआती दिनों में दूसरे विकल्प के बारे में सोचना घातक है।
  • वर्तमान दौर में सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए प्रत्येक विषय को मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से पढ़ने की जरूरत है, ना कि प्रीलिम्स के दृष्टिकोण से।
  • मुख्य परीक्षा की तैयारी करते समय पाठ्यक्रम के उन प्रश्न-पत्रों को सबसे पहले पढ़ें, जिनमें अपेक्षाकृत आसानी से बेहतर अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। आप निम्नलिखित तरीके से प्राथमिकता के आधार पर अपनी तैयारी की रणनीति बना सकते हैं-

क्र.

प्रश्न-पत्रों की प्राथमिकता

लक्षित अंक

1.

वैकल्पिक विषय

310

2.

निबंध

120

3.

एथिक्स (पेपर-4)

110

4.

साक्षात्कार

170

5.

पेपर-1

100

6.

पेपर-2

80

7.

पेपर-3

80

कुल

970

  • उपर्युक्त से स्पष्ट है कि वैकल्पिक विषय को सबसे पहले पढ़ें, तत्पश्चात प्राथमिकता के आधार पर क्रमशः निबंध, एथिक्स, साक्षात्कार तथा जीएस पेपर-1, 2, 3 की तैयारी करें। वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स एवं साक्षात्कार की तैयारी के लिए आवश्यक रणनीति की चर्चा आगे की गई है तथा जीएस पेपर-1, 2, 3 की तैयारी की रणनीति पर सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के अगले अंक (जनवरी 2022) में चर्चा की जाएगी।

वैकल्पिक विषय की तैयारी की रणनीति

  • आज भी आपका वैकल्पिक विषय आपकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। मुख्य परीक्षा पास करने के लिए वैकल्पिक विषय में 300-330 अंक का टार्गेट करना होगा, जो कि ईमानदारीपूर्वक किये गए प्रयास से प्राप्त किया जा सकता है। हिन्दी माध्यम में बहुत से ऐसे शिक्षक हैं जिनके मार्गदर्शन से आप मानविकी विषयों में 300-330 अंक तक प्राप्त कर सकते हैं।
  • सर्वप्रथम तैयारी के शुरुआती 6 माह अपने वैकल्पिक विषय पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करें। इस चरण में मानक पुस्तकों को पढ़ना, कोचिंग करना तथा व्यक्तिगत नोट्स बनाना महत्वपूर्ण है।
  • इसके पश्चात विगत 15 वर्षों में पूछे गए प्रश्नों को पाठ्यक्रम के अनुसार वर्गीकृत करके उनका उत्तर लिखना शुरू करें। क्रमशः पुराने से नये वर्ष की तरफ बढ़ते हुए उत्तर लेखन अभ्यास करें तथा अपने लिखे गए उत्तरों की तुलना पुस्तकों की हल सामग्री से करें। इस तुलना के आधार पर अपने उत्तर लेखन में सुधार कर सकते हैं। क्रॉनिकल बुक्स द्वारा विभिन्न वैकल्पिक विषयों के लिए प्रश्नोत्तर रूप में प्रकाशित “15 वर्ष- अध्यायवार हल प्रश्न-पत्र” पुस्तक इस सन्दर्भ में आपके लिए उपयोगी रहेगी।
  • आप शिक्षक या मेंटर से उन्हीं प्रश्नों का मूल्यांकन करवाएं जो पिछले 5 वर्षों के हों। इसके पहले के वर्षों के प्रश्नों के उत्तर लेखन का मूल्यांकन या तो आप स्वयं करें या अपने किसी समकक्ष अभ्यर्थी से इनका मूल्यांकन करवाएं तथा अपने समकक्ष अभ्यर्थी के उत्तर लेखन का मूल्यांकन आप करें। इस प्रक्रिया से आप एक-दूसरे की कमी और अच्छाई को जान पाएंगे। एक-दूसरे की कमियों का आकलन कर आपसी विमर्श से अपने उत्तर लेखन में सुधार लाया जा सकता है।
  • ध्यान रखें कि परीक्षा हॉल में आपको 10 अंक वाले प्रश्न को 7 मिनट में तथा 15 अंक वाले प्रश्न को 11 मिनट में लिखना होता है। इतने कम समय में उत्तर लिखने का अभ्यास अगर आप पहले से नहीं करेंगे तो परीक्षा हॉल में आप समय से अपना पेपर पूरा नहीं लिख पाएंगे। हिंदी माध्यम के ज्यादातर छात्रों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि परीक्षा हॉल में वे समय प्रबंधन नहीं कर पाते, ऐसे में या तो उनके कुछ प्रश्न छूट जाते हैं या वे आखिर में लिखे गए प्रश्नों को बेहद कम समय दे पाते हैं। अभ्यर्थी द्वारा समय प्रबंधन ना कर पाने के कारण एग्जामिनर को उनके उत्तरों में वह स्तर नहीं मिलता, जो उसके पूर्व के प्रश्नों के उत्तर में होता है, जिससे अभ्यर्थी को उस प्रश्न-पत्र में अच्छे अंक प्राप्त नहीं हो पाते।
  • जैसा कि हमने पहले कहा वर्तमान में हिंदी माध्यम के बहुत से ऐसे शिक्षक हैं जो अगर आपका उचित मार्गदर्शन करें तो वैकल्पिक विषय में 300+ अंक दिला सकते हैं। हमारा सुझाव है कि ऐसे शिक्षकों से आपको बचना चाहिए जो आपको समय ना दें, चाहे वे कितने भी बड़े शिक्षक क्यों न हों। वास्तव में समस्या सामग्री की नहीं बल्कि लेखन शैली की है। लेखन शैली में भी शब्दों का चयन तथा कम से कम शब्दों में अपने उत्तर का प्रस्तुतीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। निर्धारित समय सीमा और शब्द सीमा के अंदर सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को परीक्षा हॉल में प्रस्तुत करना भी काफी चुनौतीपूर्ण है। अतः बड़े नाम के पीछे ना भागकर वैसे लोगों के साथ जुड़ें, जो आपकी कमियों को उजागर कर आपको तराश सकें।
  • वैकल्पिक विषय के द्वितीय प्रश्न-पत्र पर अलग से ध्यान देने की जरूरत है। प्रायः यह सामान्य प्रक्रिया है कि वैकल्पिक विषयों के शिक्षक पेपर-2 पर कम ध्यान देते हैं या आपको करेंट अफेयर्स एवं विभिन्न पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित आलेखों से अपने नोट्स को अपडेट कर लेने की सलाह देते हैं। यहां ध्यान देने की जरूरत है कि वैकल्पिक विषय का दूसरा पेपर, पहले पेपर से अधिक अंकदायी है। अगर उसका अध्ययन ठीक से किया जाए, तो इसमें आप बढ़त ले सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वैकल्पिक विषय का दूसरा पेपर व्यावहारिक (applied) स्वरूप का है तथा इसके प्रश्नों का उत्तर लिखते समय इनपुट के रूप में व्यावहारिक या समसामयिक सामग्री शामिल की जा सकती है, जिससे आपके उत्तर औरों से अलग व बेहतर हो सकते हैं।
  • इसलिए अपने शिक्षक या मेंटर से पेपर-2 से संबंधित तैयारी की विशेष रणनीति पर चर्चा करें। ध्यान रहे कि प्रत्येक शिक्षक पेपर-2 पढ़ाने से बचता है, क्योंकि यह प्रश्न-पत्र समय बहुत लेता है और शिक्षक को इसे पढ़ाने के लिए खुद भी काफी समय देना पड़ता है। पेपर-2 को जब तक अंतरविषयी तथा बहुविषयी दृष्टिकोण (Interdisciplinary-Multidisciplinary approach) से नहीं पढ़ा जाएगा तब तक इसमें अच्छे अंक मिलना संभव नहीं है। अतः हमारा सुझाव है कि सर्वप्रथम वैकल्पिक विषय पर ध्यान दें और उसकी तैयारी में कोई कसर ना छोड़ें।

आपकी सफ़लता में निबंध महत्वपूर्ण

  • हिंदी माध्यम की सफलता में दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न-पत्र निबंध विषय का है। उत्कृष्ट निबंध लेखन कौशल कभी किसी एक पुस्तक को पढ़कर या किसी एक शिक्षक से क्लास लेकर अथवा परीक्षा के आखिरी दिनों में पढ़कर विकसित नहीं किया जा सकता। निबंध लेखन कौशल विकसित करने में शिक्षक की भूमिका सिर्फ इतनी ही है कि वह आपको इसके लिए मार्गदर्शन दे सकता है या निबंध के लिए महत्वपूर्ण विषय बता सकता है। शिक्षक द्वारा मार्गदर्शन से आप सिर्फ यह जान पाते हैं कि तैयारी के लिए क्या करना है; तैयारी तो आपको ही करनी होगी। यानी अगर तैरना है तो पानी में आपको स्वयं ही उतरना होगा।
  • निबंध लेखन में शिक्षक की भूमिका वैसी ही है, जैसे आप घोड़े को पानी तक तो ले जा सकते हैं, परन्तु उसे पीने के लिए बाध्य नहीं कर सकते; पानी तो घोड़ा अपनी मर्जी से ही पियेगा। उसी प्रकार निबंध लेखन के लिए आपको अपने आप को स्वयं तैयार करना होगा; अगर आप अपने निबंध लेखन में पुस्तकों द्वारा अर्जित ज्ञान ही लिखेंगे तो आपकों इसमें औसत अंक ही मिलेंगे।
  • निबंध में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए आपको वे सभी प्रयास करने होंगे जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक हैं। आपको समाज के प्रति अपने नजरिये, जीवन पद्धति तथा धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में तटस्थता लानी होगी, साथ ही विकास के साथ-साथ सांविधानिक पहलुओं की स्वतंत्र समझ भी विकसित करनी होगी।
  • एक अच्छा निबंध वही व्यक्ति लिख सकता है, जो विषयों को समझने और समझाने में सक्षम हो। इसकी सबसे पहली जरूरत है कि आप सभी विषयों की अधिक से अधिक सामग्रियों का अध्ययन करें और अपने सहपाठियों व शिक्षक से महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करें। इस परिचर्चा से आप अपने अंदर संवाद करने की क्षमता विकसित कर सकेंगे। निबंध लेखन के लिए इनपुट सिर्फ पुस्तकों से ही प्राप्त नहीं किये जा सकते बल्कि विषयों को सुनकर, देखकर या समझकर भी ये इनपुट प्राप्त किये जा सकते हैं। इसलिए तो निबंध, निरंतर तैयारी का विषय है।
  • परीक्षा के आखिरी दिनों में निबंध का सिर्फ अभ्यास ही किया जा सकता है। इसलिए अगर सही शिक्षक या मेंटर का मार्गदर्शन मिल जाए तो टेस्ट सीरीज जरूर कर लें, हालांकि टेस्ट सीरीज का लाभ तभी मिलेगा, जब वह शिक्षक स्वयं आपकी कॉपी चेक करे। आजकल विभिन्न संस्थानों द्वारा जो टेस्ट सीरीज संचालित की जाती है, उसमें ज्यादातर कोई विद्यार्थी ही कॉपी जांच रहा होता है। वैसे टेस्ट सीरीज से भी ज्यादा अच्छा यह होगा कि आप महत्वपूर्ण मुद्दों या प्रश्नों को कहीं से भी प्राप्त करके लिखें तथा अपने सहपाठियों के साथ समूह में चर्चा करें।
  • मानविकी पृष्ठभूमि वाला हिंदी माध्यम का कोई भी छात्र अच्छा निबंध लिख सकता है, क्योंकि मानविकी विषयों को पढ़ने के कारण उसका अपनी बातों को अभिव्यक्त करने का कौशल अन्य तकनीकी पृष्ठभूमि वाले छात्रों की तुलना में बेहतर होता है। हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की एक चुनौती यह है कि उन्हें अंग्रेजी माध्यम की तुलना में किसी भी तथ्य या महत्वपूर्ण बिंदु को अभिव्यक्त करने के लिए अधिक शब्द लिखने पड़ते हैं, परन्तु ‘शब्द संख्या की अधिकता’ की आपकी यह चुनौती निबंध लेखन में आपको बढ़त दिला सकती है। अतः निबंध में कैसे 120-130 अंक लाए जाएं इसका प्रयास कर आप दूसरी बाधा पार कर सकते हैं।
  • अच्छा निबंध लेखन आपके साक्षात्कार में बहुत सहायक होता है, क्योंकि स्तरीय निबंध लेखन से विषयों की समझ के मामले में आप बहुत परिपक्व हो चुके होते हैं। सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के आगे के अंकों में उत्कृष्ट निबंध लेखन से संबंधित विशेषज्ञ सलाह प्रकाशित की जाएगी।

मुख्य परीक्षा की सफ़लता में तीसरी महत्वपूर्ण भूमिका पेपर-4 की है

मुख्य परीक्षा की सफलता में तीसरा किरदार जीएस पेपर-4 का है। सामान्यतः शिक्षक तथा विद्यार्थी इस प्रश्न-पत्र को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। पाठ्यक्रम या पिछले वर्षों में पूछे गए प्रश्नों को देखने पर यह विषय काफी सहज लगता है, परन्तु व्यावहारिक रूप में यह इतना सहज है नहीं।

  • नीतिशास्त्र का प्रश्न-पत्र ना तो मानविकी विषयों की तरह तथ्यात्मक है और ना ही तकनीकी विषयों की तरह सिद्धांतों पर आधारित। यह विषय पूरी तरह से व्यावहारिक व अनुभवजन्य स्वरूप का है। यह समाज, शासन-प्रशासन, मानवीय मूल्य, संस्कृति, जीवन दर्शन, कार्य शैली आदि से व्युत्पन्न विषय है, जो मानव व उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था में आई विकृति तथा अप्राकृतिक व अव्यावहारिक समस्याओं से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में सुधार की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसलिए इसे न ही कोई शिक्षक पढ़ा सकता है और न ही कोई पुस्तक।
  • यह विषय भी निबंध और साक्षात्कार की तरह ज्ञानार्जन की निरंतर प्रक्रिया के माध्यम से ही तैयार किया जा सकता है, जिसमें आपके द्वारा अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान का इस्तेमाल कर आप प्रश्नों का हल खोज पाएंगे। अगर आप ऐसा कर पाते हैं, तब आपको यह विषय स्कोरिंग लगेगा तथा इसमें अच्छे प्रयास से आप बेहतर अंक प्राप्त कर सकेंगे।
  • यह विषय आपकी समझ की परीक्षा लेता है ना कि सिर्फ ज्ञान की। यह विषय, सामान्य अध्ययन के अन्य तीन प्रश्न-पत्रों से अर्जित ज्ञान के आधार पर आपकी जो समझ विकसित हुई है, उसी की जांच करता है। इसीलिए इस विषय के संबंध में विभिन्न लोगों की अलग-अलग राय है। क्योंकि इस विषय को जिसने जैसा समझा है तथा जो जिस विषय का विशेषज्ञ है, उसी हिसाब से इस विषय की व्याख्या करता है।
  • सामान्यतः इतिहास और भूगोल को छोड़कर प्रायः सभी विषयों के शिक्षक इस विषय को पढ़ाते हैं और इसे अपने विषय के सबसे करीब बताते हैं। यही बात इस विषय को अलग बनाती है। इसलिए हम इस विषय को ज्ञान की परीक्षा नहीं समझ की परीक्षा का विषय बोलते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि इसके लिए आवश्यक समझ कैसे विकसित की जाए।
  • सर्वप्रथम इस विषय के लिए कोई एक ऐसी पुस्तक पढ़ें, जिसमें पाठ्यक्रम के अनुरूप सामग्री दी गई हो। इससे आप इस विषय से संबंधित शब्दावलियों (Terminologies) को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे तथा उसका प्रयोग सामान्य जन-जीवन, मानवीय, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर प्रशासन के दृष्टिकोण से समस्याओं को सुलझाने में कर पाएंगे। सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर प्रश्नों का हल सोचें, विचार करें, अपने सामान्य जीवन में अमल करें तो इस विषय को आसानी से तैयार किया जा सकता है।
  • इसलिए सुझाव यह है कि इस विषय की तैयारी के लिए कोचिंग से ज्यादा जरूरत पुस्तकों के अध्ययन और लेखन अभ्यास की है। LEXICON जैसी पुस्तक ने यह काम काफी आसान किया है, जिसने आपको पेपर-4 से संबंधित सभी टर्मिनोलॉजी से पूरी तरह से परिचित कराया है। सफलता सुनिश्चित करने के लिए पेपर-4 में आपको 110 अंक का टार्गेट करना होगा।

अंततः

  • अतः हमारा सुझाव यह है कि वर्तमान समय में विद्यार्थियों को वैकल्पिक विषय का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए तथा वैकल्पिक विषय, निबंध और एथिक्स पर सबसे ज्यादा जोर देते हुए 550 अंक सुरक्षित करने की रणनीति तैयार करनी चाहिए। अगर इन तीन पर आपकी पकड़ अच्छी हो गई तो साक्षात्कार में आप कम से कम 125 अंक जरूर ले आएंगे तथा इस प्रकार आप वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स व साक्षात्कार को मिलाकर 675 अंक तक ला सकेंगे।
  • अगर आप जीएस पेपर-I, II और III में सामान्य अंक (80-100) प्राप्त करने की रणनीति के तहत सोचें तो भी आप 975-1000 अंक तक पहुंचते हैं। पेपर-I, II एवं III को अंडर स्कोर करने का हमारा कारण हिंदी माध्यम के छात्रों का इन पेपरों में कम अंक प्राप्त होना है। जिसका मूल कारण निर्धारित शब्द-सीमा व समय-सीमा में सटीक उत्तर नहीं लिख पाना है। अतः आप उपरोक्त बातों को अपनी रणनीति में शामिल कर सकते हैं। आगामी अंक में जीएस पेपर-I, II एवं III की तैयारी से संबंधित रणनीति की चर्चा की जाएगी।
Editorial Team
Civil Services Chronicle
हिंदी माध्यम में कैसे हों सफ़ल? भाग-1


सिविल सेवा में हिन्दी माध्यम के छात्रों की असफलता की जिम्मेदारी किसकी?

- संपादकीय मंडल

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल इस अंक से हिंदी माध्यम में कैसे हों सफलनामक मार्गदर्शन शृंखला की शुरुआत कर रही है, जिसमें हम हिंदी माध्यम की असफलता से जुड़ी समस्याओं चुनौतियों की चर्चा करेंगे तथा समाधान भी देंगे। आज सोशल मीडिया या ऑनलाइन सामग्री या कोचिंग द्वारा दी गई सामग्रियों के बीच यह चयन करना मुश्किल हो गया है कि कौन सी सामग्री सही है, कौन सी गलत। इसी को देखते हुए सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल आने वाले अंकों में तथ्य प्रमाण के साथ एक-एक विषय की पड़ताल कर आपका मार्गदर्शन करेगी, बिना किसी लाग लपेट के।

परीक्षार्थियों की भूमिका

छात्रों को परीक्षा की तैयारी से पहले स्वयं की क्षमताओं का आकलन करना चाहिये। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि विगत 5-6 वर्ष पहले के प्रश्नों को हल करके देखें, अगर उसमें से 25 प्रश्नों का भी उत्तर आप कर पाते हैं तो कोचिंग से जुड़ें; अन्यथा पहले सेल्फ स्टडी के माध्यम से तैयारी की रूपरेखा तैयार करें, जिसमें मानक पुस्तकों या एनसीईआरटी के विस्तृत अध्ययन को प्राथमिकता दें।

  • सामान्यतः परीक्षार्थी अपना स्वयं का आकलन किए बगैर परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं। छात्र, इस नाम पर इस परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर देते हैं कि उनका कोई दोस्त, परिवार के किसी सदस्य की इच्छा है कि वो आईएएस बने।
  • छात्र सिर्फ साक्षात्कार, विज्ञापन और संस्थानों के बहकावे में आकर बिना जांच-पड़ताल के किसी भी संस्थान में जाकर एडमिशन ले लेते हैं। वैसे इस सोशल मीडिया मार्केटिंग के युग में सही जानकारी हासिल करना और उस पर विश्वास करना आसान भी नहीं है।
  • परीक्षा की तैयारी का सही समय स्नातक का प्रथम वर्ष है, खासकर हिंदी माध्यम के लिए; इसमें परीक्षा से पूर्व की बेसिक तैयारी का समय मिल जाता है तथा बेसिक तैयारी की समाप्ति के बाद की रणनीति बनाने में सुविधा होती है। साथ ही बेसिक तैयारी के दौरान ही अपनी विषय में रुचि या समझ विकसित हो जाती है, जिससे वैकल्पिक विषय का चयन करने में सहायता मिल जाती है। बेसिक तैयारी के बाद परीक्षा केन्द्रित होकर तैयारी की रणनीति बनानी चाहिये, यानी पहले आई.ए.एस. या पी.सी.एस. किसकी तैयारी करनी है, इसका निर्धारण करें।
  • यह निर्धारण अपनी-अपनी जरूरतों के अनुसार करना चाहिए। यानी अगर आपके पास समय (उम्र) है तो आप पहले पी.सी.एस. से शुरुआत कर सकते हैं तथा जब आप अपने अंदर विषयों को तार्किक रूप से समझने की क्षमता का विकास कर लें तब आई.ए.एस. की तैयारी के लिए आगे बढ़ें।
  • जिस स्थान यानी शहर से आपको तैयारी करनी है उसके चयन की रणनीति भी शुरुआत में ही तैयार करनी चाहिये, जिससे आप सोच-समझकर सहपाठियों व मार्गदर्शक का चयन कर पाएंगे। सहपाठियों व मार्गदर्शक का योगदान मुख्य परीक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, वे आपको भटकाव से बचाते हैं।
  • करेंट अफेयर्स के लिए न्यूज पेपर, पत्रिका आदि का चयन, उनके पढ़ने के तरीके व उन पर स्वयं के नोट्स बनाने की रणनीति भी शुरुआत में ही तैयार करें। शुरू से ही अंग्रेजी भाषा का कोई एक न्यूज पेपर या पत्रिका का अध्ययन अवश्य करें। तैयारी के शुरुआती दिनों में करेंट अफेयर्स या नोट्स के पीछे समय बर्बाद नहीं करना चाहिये; नोट्स तब बनाना शुरू करें, जब आप यह निर्धारित कर लें कि अगला प्रीलिम्स आपको कब देना है।
  • ऑनलाइन साइट, सामग्री व सोशल मीडिया के इस्तेमाल, चयन और जरूरतों को समझना, अनावश्यक के सुझावों से दूरी बनाना तथा क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, इसकी समझ विकसित करना भी जरूरी है।
  • पहले प्रिलिम्स या मेंसः हिंदी माध्यम का छात्र सामान्यतः यह सोचता है कि पहले प्रीलिम्स पास कर लें, फिर मेन्स की पढ़ाई की जाएगी, जबकि होना यह चाहिये कि सबसे पहले छात्र को वैकल्पिक विषय पर ध्यान देना चाहिए, तत्पश्चात मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन की तैयारी करनी चाहिए तथा इसके बाद प्रीलिम्स के लिए रिवीजन और अंत में टेस्ट सीरीज करनी चाहिये।
  • अपनी कमियों को पहचान कर लक्ष्य को निर्धारित करते हुए टाइम टेबल तैयार करना, समय की कीमत समझना और उसके अनुसार क्लास व स्टडी मैटेरियल आदि को पढ़ने में तालमेल बैठाना भी आपकी रणनीति का एक हिस्सा होना चाहिए। सामान्यतः छात्र क्लास के साथ-साथ स्टडी मैटेरियल का अध्ययन भी शुरू कर देते हैं; ऐसा करना नुकसानदेह है। स्टडी मैटेरियल का अध्ययन या तो क्लास से पहले करें या उस विषय की क्लास खत्म होने के बाद, रिवीजन के लिए। क्लास करते समय सिर्फ क्लास पर फोकस करें, क्लास में प्रश्न पूछना सीखें तथा ‘स्वयं द्वारा बनाए गए’ प्रश्न पूछें।
  • टेस्ट सीरिजः शुरुआत में ही टेस्ट सीरीज, उत्तर लेखन शैली, निबंध लेखन कला आदि की तैयारी के अनावश्यक दबाव से बचना चाहिये। इनकी तैयारी तब शुरू करें, जब आपका पाठ्यक्रम 60 प्रतिशत तक कम्पलीट हो गया हो।
  • अन्य से तुलनाः यदि आपने एक अच्छे कॉलेज/संस्थान से पढ़ाई की है, तो तैयारी की रणनीति अलग बनाएं तथा अगर आपने एक सामान्य कॉलेज/संस्थान से पढ़ाई की है, तो आपको तैयारी की रणनीति अलग बनाने की जरूरत है।
  • यदि आप 10+2 के स्तर पर या स्नातक स्तर पर या नौकरी में रहते हुए तैयारी करे रहे हैं, तो इन सभी के लिए आपको अपनी तैयारी की रणनीति अलग-अलग बनानी होगी। यहां तक कि यदि आप डिस्टेंस लर्निग से पढ़ाई कर रहे हैं, तब भी आपकी रणनीति अन्य प्रतियोगियों से अलग होनी चाहिए।
  • साथ ही आपको अंग्रेजी माध्यम के छात्रों एवं इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले छात्रों की तुलना में भी तैयारी की रणनीति अलग बनानी होगी, खासकर हिंदी माध्यम के छात्रों को।

स्टडी मैटेरियल क्लास नोट्स की भूमिका

प्रायः सभी कोंचिंग संस्थान के स्टडी मैटेरियल तथा क्लास नोट्स आदि पाठ्य सामग्रियों में नयापन नहीं है। इन पाठ्य सामग्रियों में प्रकाशन संस्थानों द्वारा छापी गई गाइड की तरह की सामग्रियों की ही नोट्स के रूप में प्रस्तुति होती है। ये पाठ्य सामग्रियां 2013 से पहले ही अपनी उपयोगिता खो चुकी हैं।

  • कोचिंग संस्थान की पाठ्य सामग्री के चयन में सावधानी बरतने की जरूरत है। स्टडी मैटेरियल या क्लास नोट्स के नाम पर कुछ भी खरीद कर पढ़ना हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए घातक सिद्ध हुआ है। छात्रों के लिए यह जानना जरूरी है कि सामान्य तौर पर कोई भी संस्था यह पाठ्य सामग्री उसके क्लास में पढ़ाने वाले शिक्षक से तैयार नहीं करवाती। सामग्री और क्लास में तालमेल नहीं होने के कारण परीक्षार्थी नोट्स को नवीनतम करने के बजाय, नए नोट्स तैयार करने में लग जाते हैं।
  • वर्तमान में स्टडी मैटेरियल या क्लास नोट्स, पत्र-पत्रिकाएं व पुस्तकें ऐसी होनी चाहिए कि छात्र इनके माध्यम से अपने उत्तर को कम से कम शब्दों में लिख सके। इनमें नवीन टर्मिनोलॉजी या शब्दों का समावेशन होना चाहिए। उत्तर लेखन में शब्दों के चयन का बहुत बड़ा योगदान है।

विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की भूमिका

सामान्यतः हिदी भाषी राज्यों में स्नातक स्तर में मानविकी विषयों की पढ़ाई का स्तर इतना निम्न है कि उससे मुख्य परीक्षा का उत्तर लिखना तो दूर एक साधारण प्रतियोगिता परीक्षा भी पास नहीं की जा सकती।

  • हिदी भाषी राज्यों के कॉलेजों में मानविकी विषयों की पढ़ाई, विषयों के विशेषज्ञों के ऊपर निर्धारित होती है। इन राज्यों में कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थानों को छोड़कर ज्यादातर कॉलेजों की स्थिति ऐसी है कि शिक्षक सामान्य तौर पर छात्रों को 5-10 प्रश्न तैयार करने को बोल देते हैं और परीक्षा में ज्यादातर प्रश्न उन्ही में से आ जाते हैं।
  • कॉलेज स्तर की परीक्षाओं में जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उनके उत्तर की शब्द सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं होती, जबकि इसके ठीक विपरीत UPSC द्वारा जो प्रश्न पूछे जाते हैं उनकी शब्द सीमा 150 तथा 250 शब्द की ही होती है। इसलिए स्नातक स्तर की सामान्य शिक्षा UPSC में उपयोगी साबित नहीं होती।

पत्र-पत्रिकाओं पुस्तकों की भूमिका

ऐसी पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें से बचे, जिनमें नवीन पाठ्यक्रम तथा लगातार बदलती प्रश्नों की प्रकृति के अनुरूप परिवर्तन नहीं किया गया है, उनमें पूर्व की भांति ही विषयों तथा सामयिक मुद्दों की प्रस्तुति जारी है।

  • मुख्य परीक्षा की तैयारी कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है, इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति बनाकर उसके अनुरूप पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों का चयन करना चाहिए। साथ ही मुख्य परीक्षा की निरंतर तैयारी जरूरी है, इसके लिए पाठ्यक्रम पर आधारित पत्रिकाओं के आलेख, विशेष सामग्री तथा नए संस्करण की पुस्तकों को पढ़ना जरूरी है।
  • पुस्तकों का चयन और हिंदी माध्यम में उनकी अनुपलब्धता सबसे बड़ी समस्या है, साथ ही बाजार में उपलब्ध अधिकांश पुस्तकें ऐसी हैं, जो प्रीलिम्स परीक्षा को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। अगर आपको UPSC की तैयारी करनी है तो स्नातक से ही अपनी पाठ्य-पुस्तकों का चयन सोच समझ करना चाहिये।

छात्रों की विरोधात्मक प्रवृत्ति

आयोग प्रशासकीय जरूरतों के अनुरूप अपने पाठ्यक्रम का निर्धारण करता है। इसलिए आयोग से यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वह अपने स्तर को हमारे अनुरूप करे, बल्कि हमें अपने आप को UPSC के अनुरूप ढालना होगा। अभी तक जिन समस्याओ के कारण रिजल्ट नहीं आ रहे हैं उन पर सुधार की कोई चर्चा ही नहीं होती।

  • हिंदी माध्यम के छात्र बात-बात पर आंदोलन करने चल देते हैं। छात्रों के आंदोलन करने से या आंदोलन का समर्थन करने से UPSC अपने आपको नहीं बदलेगा। यानी वह वर्तमान हिन्दी माध्यम के छात्रों की मांगों के अनुरूप अपने प्रश्न-पैटर्न व पाठ्यक्रम को नहीं बदलेगा।

आयोग की भूमिका

प्रश्नों के निर्माण से लेकर प्रारूप उत्तर लेखन तक आयोग की परीक्षा प्रक्रिया अंग्रेजी माध्यम के लोगों द्वारा संचालित की जाती है। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं तथा हिंदी माध्यम के छात्रों के सामने आने वाली मूल समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता; जैसे प्रश्न-पत्र का हिंदी के अनुकूल न होना तथा हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में प्रश्नों के ट्रांसलेशन में विषय विशेषज्ञों की जगह अनुवादकों का इस्तेमाल करना आदि।

  • तथ्य यह है कि अंग्रेजी में लिखी गई किसी सामग्री को हिंदी में लिखने के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता होती है। कभी-कभी तो ऐसा देखा जाता है कि किसी बात को लिखने के लिए अंग्रेजी में कम शब्दों की जरूरत पड़ती है, जबकि हिंदी में वही सामग्री लिखने में ज्यादा शब्द खर्च करने पड़ते हैं।
  • अतः यह स्पष्ट है कि जिस शब्द सीमा में UPSC द्वारा अपने प्रश्न के उत्तर की अपेक्षा की जाती है, उस शब्द सीमा में उत्तर लिखना हिंदी माध्यम के छात्र के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।
  • आयोग को यह चाहिए कि वह हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए प्रश्न-पत्र तैयार करने में अंग्रेजी माध्यम के विशेषज्ञों व अनुवादकों के बजाय हिंदी माध्यम के विशेषज्ञों को शामिल करे तथा एग्जामिनर की मॉडल उत्तर पुस्तिकाएं भी हिंदी माध्यम में ही बनाई जाएं।

शिक्षक की भूमिका

विचारणीय तथ्य यह है कि वर्तमान पाठ्यक्रम अधिकांशतः मानविकी विषयों पर आधारित है तथा इन विषयों पर हिन्दी माध्यम में आई.ए.एस. के क्षेत्र में विद्वानों की कमी नहीं है, फिर भी परिणाम क्यों नहीं आ रहे?

  • हिंदी माध्यम के शिक्षक, अंग्रेजी माध्यम की तुलना में विषयों को पढ़ाने में समय तो काफी देते हैं, लेकिन उन व्यावहारिक पक्षों को नहीं पढ़ाते जहां से प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • वर्तमान में हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को इस तरह से पढ़ाने की आवश्यकता है कि वह मुख्य परीक्षा के प्रश्नों को निर्धारित समय में 150 से 250 शब्दों में सटीक रूप से लिख सके। साथ ही वह इतना सक्षम हो कि प्रश्नों की प्रवृत्ति या प्रकृति को आसानी से समझ सके।
  • वर्तमान में सबसे ज्यादा प्रश्न उन क्षेत्रों से आ रहे हैं, जो व्यावहारिक हैं, जिन्हें किसी पुस्तक या पाठ्य सामग्री में ढूंढा नहीं जा सकता। चूंकि प्रश्न बहु-विषयी तथा अंतरविषयी प्रकृति के आ रहे हैं, इसलिए इन्हें अपनी समझ से ही लिखा जा सकता है।
  • सामान्यतः वर्तमान में प्रश्न विभिन्न विषयों या मुद्दों से जुड़ी समस्याओं, चुनौतियों, प्रभाव तथा परिणाम परअपने परंपरागत स्वरूप के साथ-साथ समकालीन संदर्भ लिए हुए होते हैं। इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को छात्रों में विषय की व्यापक समझ विकसित करनी होगी, ताकि वे ‘विश्लेषण करने के स्तर’ की क्षमता का विकास कर सकें।
  • आयोग विगत 10 वर्षों में 3 बार प्रश्नों की प्रकृति व प्रवृत्ति में व्यापक परिवर्तन ला चुका है, ऐसे में शिक्षक को छात्रों को हॉलिस्टिक रूप से पढ़ाना होगा, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जिस समय छात्र कोचिंग में पढ़ता है तथा जिस समय वह परीक्षा में शामिल होता है, उसमें 3 या उससे अधिक वर्ष का अंतर हो जाता है।
  • विडंबना यह है कि 5-7 साल का अनुभव रखने वाले शिक्षक भी परीक्षा की जरूरतों को अच्छी तरह समझने के बावजूद अपने पढ़ाने के तरीके में परिवर्तन नहीं ला रहे हैं। इसका कारण यह है कि वर्तमान में व्यावहारिक स्वरूप के तथा बहु-विषयी या अंतरविषयी प्रकृति के प्रश्न आ रहे हैं।
  • इन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षकों को अपने अध्यापन में व्यावहारिक पक्ष को ज्यादा पढ़ाना पड़ेगा, जिसे पढ़ाने में ज्यादा समय लगता है तथा उन्हें स्वयं भी अपने अध्ययन पर समय देना होगा, जिनका उनके पास अभाव है।

कोचिंग संस्थानों की भूमिका

सामान्यतः कोचिंग संस्थान के प्रबंधक बिना परीक्षार्थी की योग्यता को परखे उन्हें अपनी व्यावसायिक मजबूरियों की चलते परीक्षा के लिए प्रोत्साहित कर एडमिशन ले लेते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि हर एक छात्र की क्षमता एवं स्तर का व्यक्तिगत रूप से आकलन कर उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुरूप मार्गदर्शन प्रदान किया जाए। साथ ही संस्थानों को अपने पढ़ने-पढ़ाने के तरीके में व्यापक परिवर्तन लाना होगा, जो 500 या 1 हजार की संख्या वाले क्लास में संभव नहीं है।

  • कोई भी संस्थान सिर्फ परंपरागत तरीके से नोट्स लिखवाकर मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक नहीं दिलवा सकता। इस प्रकार के अध्ययन से आप अधिक से अधिक प्रारंभिक परीक्षा ही पास कर सकते हैं।
  • कोचिंग संस्थानों के फाउण्डेशन कोर्स के लिए छात्र लाखों रुपये तथा अपना 18 से 24 महीने का समय खर्च करते हैं। इन फाउण्डेशन कोर्स में संस्थान, छात्रों को सतही तौर पर सामान्य अध्ययन की तैयारी कराकर उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ देते हैं। कोचिंग संस्थानों की इस प्रवृत्ति में व्यापक सुधारक की जरूरत है।
  • वर्तमान में कोचिंग संस्थान शिक्षा को व्यवसाय की तरह देखते हैं और छात्रों को एक उत्पाद की तरह; जबकि शिक्षा एक सेवा है ना कि व्यवसाय।
ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली हेतु रणनीति (भाग 4)


सामान्य अध्ययन का तीसरा प्रश्न-पत्र सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण और विविधता लिए हुए है। इस अध्याय में आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन जैसे शीर्षक शामिल हैं। इनमें आर्थिक विकास के अतिरिक्त लगभग सभी शीर्षक एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से भले ही जीवन आसान हो रहा है, आर्थिक विकास के नये मानक बन रहे हैं, किंतु इस प्रौद्योगिकी की कीमत अब मानव समाज को चुकानी पड़ रही है। पर्यावरण बनाम आर्थिक विकास के नजरिये से देखें तो लगता है कि आज पर्यावरण, पिछले कई दशकों में हुए अविवेकपूर्ण आर्थिक विकास की कीमत चुका रहा है। जलवायवीय संकट एवं आपदाएं हमेशा कोई न कोई विपत्ति सामने लाती रहती हैं। चाहे वह उत्तराखंड में भूस्खलन हो या बंगाल की खाड़ी में उठने वाला समुद्री तूफान हो या बढ़ता हुआ धरती का तापमान या फिर जैव विविधता के संकट की स्थिति_ यह सब हमारे आम जीवन से जुड़े हुए हैं।

सामान्य अध्ययन का यह तीसरा पेपर सबसे ज्यादा कठिनाई लिए हुए प्रकट होता है क्योंकि आमतौर पर इतिहास और राजव्यवस्था के विपरीत यह पेपर जीवन की वास्तविक घटनाओं के सबसे ज्यादा करीब है और इस विषय पर अध्ययन सामग्री का एक समग्र रूप से उपलब्ध न होना भी अभ्यर्थियों के समक्ष निरंतर समस्याएं पैदा करता रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि एक ही विषय के तार कई विषयों से जुड़े रहते हैं। उदाहरण के लिए विकास के नाम पर पर्वतीय क्षेत्रें में नई-नई तकनीकों को अपनाकर कई मानदंड गढ़े गए, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता का नुकसान तो हुआ ही, कई आपदाएं भी सामने आईं और इन आपदाओं से सुरक्षा का एक नया संकट हमारे सामने खड़ा हो गया।

संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं, उनमें यह निर्धारण करना बहुत मुश्किल हो रहा है कि प्रश्न किस अध्याय से संबंधित हैं, एक ही प्रश्न का जुड़ाव प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, पर्यावरणीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन से जुड़ा रहता है, ऐसे में उत्तर को लिखना बहुत मुश्किल हो जाता है। फिर भी कुछ वर्षों से संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जिस प्रकार के प्रश्न पूछे जा रहे हैं उस आधार पर इस विषय से जुड़े हुए विभिन्न अध्यायों को पहचाना जा सकता है। इस पेपर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिन परिस्थितियों से भारत प्रभावित होता है अथवा हो रहा है, सामान्यतः वही विषय प्रश्न बनकर अभ्यर्थियों के सामने आ जाते हैं और अभ्यर्थी से उम्मीद की जाती है कि वह अपने व्यावहारिक और मौलिक ज्ञान का उपयोग करते हुए तथा निश्चित शब्द सीमा का पालन करते हुए उत्तर लिखे। अभ्यर्थियों के बीच सबसे बड़ा संकट यही है कि वे इतिहास और संविधान के अनुच्छेद के दायरे से अपने आप को कैसे निकालें और देश जिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है उसको कैसे देखें, सोचें, समझें और अपने उत्तर में लिखें।

इसी परिपेक्ष में सामान्य अध्ययन के इस तीसरे भाग को सरलीकृत करके फ्रलो-चार्ट के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। इसके साथ-साथ इस विषय से कैसे प्रश्न बन सकते हैं और किस प्रकार के प्रश्न अभी बन रहे हैं उनको भी टेबल के माध्यम से समझाया गया है।

पाठ्यक्रम

बनने वाले प्रश्न

विज्ञान व प्रौद्योगिकी विकास, अनुप्रयोग तथा उपलब्धियां

  • दैनिक जीवन व राष्ट्रीय सुरक्षा मानक
  • भारतीय प्रौद्योगिकी नीति
  • भारत की उपलब्धियां
  • नवीन प्रौद्योगिकी का विकास
  • प्रौद्योगिकी प्रयोग, हस्तान्तरण

दैनिक जीवन व राष्ट्रीय सुरक्षा में प्रौद्योगिकी की भूमिका

  • मिसाइल व रक्षा उपकरणों का विकास, विशेषता-उपलब्धियां
  • अंतरिक्ष कार्यक्रम, इसरो की गतिविधियां-उपलब्धियां- अनुप्रयोग
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स क्षेत्र में भारतीय पहल, नीति, समस्या चुनौती_ चिकित्सा क्षेत्र की नीति, समस्या, चुनौती, अनुसंधान

जैव प्रौद्योगिकी

  • जैव प्रौद्योगिकी नीति, अनुसंधान, विकास, अनुप्रयोग_ नई नीति की घोषणा
  • उपलब्धि व चुनौती

सूचना प्रौद्योगिकी

  • सूचना प्रौद्योगिकी नीति
  • अनुसंधान, विकास कार्यक्रम
  • डेटा सुरक्षा का प्रश्न
  • विभिन्न नवनिर्मित कानून व उनका मूल्यांकन

बौद्धिक संपदा अधिकार व डिजिटल मुद्दे

  • बौद्धिक संपदा का अर्थ, प्रभाव
  • प्रकार, अधिकार
  • विकासशील देशों में होने वाले परिवर्तन व उभरती चुनौतियां

कम्प्यूटर व इलेक्ट्रॉनिक्स

  • अनुसंधान व विकास
  • 5G तकनीक
  • सुपर कम्प्यूटर नीति

नवीनतम प्रौद्योगिकी उनके अनुप्रयोग व उभरती स्थिति व चुनौतियां

  • ऑप्टिकल फाइबर
  • अर्धचालकता, नैनो तकनीक
  • जी-एम- फसलें, स्वास्थ्यजनित प्रभाव
  • रोबोटिक्स, साइबर क्राइम
  • प्रशासनिक-सामाजिक-आर्थिक प्रभाव व हस्तक्षेप का विश्लेषण

पर्यावरण सुरक्षा व पारिस्थितिक तंत्र

  • जैव विविधता (बदलता परिदृश्य)
  • सामाजिक वानिकी (वन विनाश, वनाग्नि, आर्द्रभूमि, मैंग्रोंव वन)
  • पर्यावरण ह्रास के कारण
  • पर्यावरण प्रदूषण (कारण, नई रिपोर्ट)
  • पर्यावरण प्रदूषण (प्रकार, स्थिति, नियंत्रण)

वैश्विक तापन/जलवायु परिवर्तन

  • ग्रीन हाउस प्रभाव
  • ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव (भारत-विश्व)
  • नियंत्रण हेतु पहल (भारत व विश्व) व आवश्यक सुझाव
  • ओजोन क्षरण
  • अंटार्कटिका में भारतीय पहल

ऊर्जा

  • स्रोत, स्थिति, पहल, रिपोर्ट, नीति
  • परंपरागत व गैर परंपरागत स्रोत
  • वैश्विक व भारतीय पहल
  • विविध कार्यक्रम (उपलब्धि, समस्या)
  • चिकित्सा क्षेत्र की नीति, समस्या, चुनौती, नवीन अनुसंधान

सुरक्षा व आपदा प्रबंधन

  • आपदा प्रबंधन नीति (सुझाव, मूल्यांकन)
  • आपदाएं (बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन) वर्तमान स्थिति व नीति
  • पर्यावरणीय पहलू (ग्लोबन वार्मिंग व आपदाएं, कृषिवानिकी नष्टीकरण, शहरी जोखिम, विकास बनाम पर्यावरण, जैविक खतरे, भूवैज्ञानिक खतरे, एल नीनो, आकाशीय बिजली का कहर)

उपर्युक्त फ्लो-चार्ट और टेबल के माध्यम से सामान्य अध्ययन के तीसरे पेपर से बनने वाले अधिकांश प्रश्नों को समझा जा सकता है। एक परीक्षार्थी इन विषयों की आम समझ रखे, जैसी परिस्थितियों का सामना भारत कर रहा है, उन्हें देखे, समझे और एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर आवश्यक सुझाव दे, इसी की अपेक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा अपनी परीक्षा में की जाती है। इसमें किताबी ज्ञान की महत्ता बहुत कम होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें टू द पॉइंट मैटर का मिलना बहुत मुश्किल होता है। इस सन्दर्भ में सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल विगत दो दशकों से निरंतर अपनी गुणवत्ता को बनाए हुए परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को एकदम अपडेट मैटर उपलब्ध कराने के अपने अभियान में लगी हुई है।

ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली हेतु रणनीति (भाग 3)


उत्तर लेखन शैली से जुड़ी समस्याएं सामान्य अध्ययन के एक विषय सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित अध्यायों में भी व्यापक रूप से प्रकट होती हैं। सामान्य अध्ययन से जुड़े इस विषय को पहले भारतीय अर्थव्यवस्था शीर्षक से पढ़ा जाता था। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे संस्थानों, मार्गदर्शकों द्वारा लम्बे समय तक यही धारणा बनाई गई कि बस अर्थव्यवस्था में सामाजिक पक्ष जुड़ गया है। इस विषय पर सबसे बड़ी समस्या मानक पुस्तकों का उपलब्ध न हो पाना है। विश्वविद्यालयी पाठड्ढक्रम के आधार पर लिखी गई अर्थव्यवस्था की परंपरागत पुस्तकें बदले हुए पाठड्ढक्रम के हिसाब से काफी पुरानी हो चुकी हैं। कुछ पुस्तकें वही दो दशक पुराने वाले सिलेबस लिए हुए अभी तक छात्रें के बीच अपनी मौजूदगी बनाए हुए है। ज्यादातर पुस्तकें वही मांग-आपूर्ति, बैंक दर वाले पुराने पैटर्न को अपनाते हुए अनेक तथ्यों को समाहित करते हुए छात्रें को रटन्त विद्या मार्ग पर चलाती रही हैं, जबकि संघ लोक सेवा आयोग का पाठड्ढक्रम एक अभ्यर्थी से देश के सामाजिक-आर्थिक पक्षों की सामान्य समझ के आकलन क्षमता की अपेक्षा करता है।

नये प्रश्न पूछने की बढ़ती प्रवृत्ति से जुड़ी समस्याएं?

सामान्य अध्ययन से जुड़े इस विषय की पहली समस्या नये प्रकार के बनने वाले प्रश्नों की है जिनका उत्तर परंपरागत विश्वविद्यालय स्तर पर संचालित अर्थव्यवस्या की पुस्तकों में दूर-दूर तक नहीं मिलता। आज पूछे जाने वाले प्रश्नों का संबंध सीधे-सीधे देश की सामाजिक-आर्थिक नीतियों से जुड़ा होता है। कुछ प्रश्न तो इतने सम-सामयिक व व्यावहारिक स्तर के होते हैं कि उनको जानना, समझना तथा राजनैतिक समझ वाले पूर्वाग्रह को त्यागते हुए उनको उत्तर में बेहद संतुलित तरीके से लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण व कठिन कार्य है।

कुछ सम-सामयिक मुद्दों के माध्यम से इस विषय के बदले हुए पैटर्न को समझा जा सकता है। कृषि क्षेत्र में बने तीन नए कानून, इनका वर्तमान तक जारी विरोध, न्यूनतम समर्थन मूल्य का योगदान, देश की भंडारण नीति, एफ- सी- आई-, नेफेड की विवादित कार्यप्रणाली, अनुबंध व डिजिटल कृषि, निजी क्षेत्र का कृषि गतिविधियों में प्रवेश, कृषि वित्त, लोन माफी व जर्जर भारतीय बैंक, कृषकों की आत्महत्याएं, अन्नदाताओं के नाम पर जारी राजनीति आदि मुद्दों से मौजूदा भारत की आर्थिक नीति प्रभावित हो रही है।

कृषि क्षेत्र से जुड़े ये तमाम मुद्दे अपने अन्दर इतने अंतर्विरोध, विशेषताएं, आशंकाएं लिए हुए हैं कि इन मुद्दों के आधार पर एक समझ बनाकर परीक्षा उत्तीर्ण करना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है।

ठीक यही स्थिति गरीबी-बेरोजगारी, उद्योग, वित्त जैसे पुराने परंपरागत विषयों को लेकर उत्पन्न हो रही है। परीक्षा प्रणाली वर्तमान दौर की नीतियों से जुड़े मुद्दों पर प्रश्न पूछ रही है। वहीं पुस्तकें प्रछन्न बेरोजगारी की विशेषताएं व मिश्रित अर्थव्यवस्था के गुण बताकर नये अभ्यर्थियों को अभी भी दशकों पुराने पैटर्न पर चला रही हैं।

वास्तविकता तो यह है कि वर्तमान में संचालित सभी नीतियों का निष्पक्ष, संतुलित ज्ञान रखते हुए सामान्य अध्ययन के इस विषय (सामाजिक-आर्थिक विकास) से जुड़े प्रश्नों का शब्द सीमा के अंतर्गत उत्तर लिखना तभी संभव है जब एक अभ्यर्थी नियमित रूप से विभिन्न नीतियों पर अपनी समझ को शब्द सीमा के दायरे में बांधने की पूर्ण कोशिश करते हुए निरंतर उत्तर लेखन का अभ्यास करे।

एप्रोच को बदलें

सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े विषय के सन्दर्भ में पहली आवश्यकता तो यह है कि अभ्यर्थी इसका अध्ययन केवल अर्थव्यवस्था के भाग के रूप में न करें, बल्कि देश की सामाजिक-आर्थिक नीति के रूप में इसका अध्ययन करें। इस चार्ट को देखें_ इसमें परंपरागत प्रश्नों के स्थान पर किस प्रकार नये प्रश्न बन सकते हैं, इसे समझाने की कोशिश की गई है-

पाठयक्रम परंपरागत प्रश्न परिवर्तित पाठड्ढक्रम पर बनते नये प्रश्न
भारतीय अर्थव्यवस्था परिचय, प्रकृति, विशेषता, स्थिति, समस्याएं व चुनौतियां अर्थव्यवस्था के सामाजिक-आर्थिक पक्ष व वर्तमान परिदृश्य
मानव विकास सिर्फ सैद्धांतिक जानकारी मानव विकास की अवधारणा, उपागम, सरकार की नीतियां तथा वैश्विक व भारतीय रिपोर्ट
सतत-विकास सिर्फ सैद्धांतिक जानकारी सतत-विकास लक्ष्य, भारत की नीतियाँ, निष्पादन व सूचकांक
समावेशी विकास सिर्फ सैद्धांतिक व सामान्य जानकारी नीति, पहल, आवश्यकता, वर्तमान रणनीति, निष्पादन, चुनौती, समाधान
गरीबी व बेरोजगारी परिभाषा, प्रकार, मापन, कारण, दूर करने के प्रयास सामाजिक-आर्थिक पक्ष_ जनसंख्या वृद्धि व गरीबी_ बहु-आयामी गरीबी सूचकांक वैश्वीकरण की नीतियां व गरीबी-बेरोजगारी_ कोविड-19 का प्रभाव
कृषि विशेषता, योगदान, पंचवर्षीय योजनाएं, विकास हेतु पहल नये कृषि कानून व भारतीय कृषि की समस्याएं_ डैच् का प्रभाव, भण्डारण, बाजारीकरण व नए कृषि कानून, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव_ कृषकों की दोगुनी आय हेतु उठाये गए कदमों की समीक्षा
उद्योग क्षेत्र समग्र नीतियों की चर्चा लघु उद्योग की महत्ता, स्थिति, चुनौती व सरकारी प्रयास_ स्टार्ट-अप/ स्टैंड-अप व अन्य विकासात्मक योजनाओं का निष्पादन
मुद्रा व बैंकिंग मुद्रा जगत की अवधारणा, RBI की सरंचना व कार्य पद्धति RBI की नीतियों का मूल्यांकन_ वित्तीय समावेशन_ देश के विकास में वित्तीय नीतियां कैसे लागू हो रही हैं, प्रभाव, परिणाम, समस्याएं व सुझाव
कुपोषण व भुखमरी अवधारणा / सामान्य परिचय कुपोषण-प्रकार, मापन, प्रभाव, रिपोर्ट, दूर करने की नीति, सुझाव_ खाद्य सुरक्षा- आवश्यकता, नीतियां, वर्तमान परिदृश्य, समस्याएं, नई पहल, सुझाव
स्वास्थ्य (पाठड्ढक्रम का भाग नहीं) स्वास्थ्य - प्रणाली, स्थिति, मुद्दे, चुनौतियां, सरकार की नीति, राज्यों की स्थिति, सुझाव
ग्रामीण विकास (पाठड्ढक्रम में कृषि, गरीबी अध्याय से जुड़ा महज एक अध्याय) ग्रामीण विकास- अवधारणा, महत्त्व, विकास नीति, दृष्टिकोण, सरकारी प्रयास, उत्पन्न प्रभाव, समस्याएं व सुझाव
सामाजिक सुरक्षा (पाठड्ढक्रम का हिस्सा नहीं) सामाजिक सुरक्षा- अवधारणा, आवश्यकता, उद्देश्य, सुरक्षा की आवश्यकता क्यों, सम्बंधित प्रावधान, समितियां, रिपोर्ट, मूल्यांकन, सुझाव
असुरक्षित वर्ग (पाठड्ढक्रम का हिस्सा नहीं) असुरक्षित वर्ग- परिचय, वर्गीकरण, महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, दिव्यांग, अल्पसंख्यक, पिछड़े तथा जातिगत रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याणार्थ नीतियां

इस छोटी सारणी में विषय से जुड़े तमाम प्रसंगों को समेटने का प्रयास किया गया है। ये सभी मुद्दे प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा तथा निबंध के अतिरिक्त इंटरव्यू में भी पूछे जा सकते हैं।

भविष्य की राह

नये-पुराने अभ्यर्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वह अर्थशास्त्र के जटिल सिद्धांतों के मकड़जाल से निकलकर देश के विकास हेतु आवश्यक सामाजिक-आर्थिक नीतियों को समझे। सिविल सर्विसेस क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं पिछले दो दशक से इसी दायित्व को पूर्ण कर रही हैं।

नये अभ्यर्थी के साथ पुराने परीक्षार्थी भी इनका नियमित अध्ययन कर परीक्षा के मानकों को पूर्ण कर सकते हैं।

ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली हेतु रणनीति (भाग 2)


उत्तर लेखन शैली में प्रकट होने वाली समस्याएं सामान्य अध्ययन के एक विषय संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े अध्याय से भी व्यापक पैमाने पर प्रकट होती हैं। सामान्य अध्ययन से संबंधित विषयों में संविधान व राजव्यवस्था सबसे रोचक, व्यावहारिक के साथ मौलिक ज्ञान और समझ का आकलन करने वाला विषय है। मुख्य परीक्षा के साथ-साथ निबंध लेखन व साक्षात्कार में भी इसकी व्यावहारिक समझ एक निर्णायक भूमिका निभाती है। एक सामान्य विद्यार्थी के व्यावहारिक व प्रशासनिक समझ का पूर्णतया आकलन यह विषय आसानी से कर लेता है। देश के राजनैतिक-प्रशासनिक संरचनाओं से जुड़ा यह विषय विगत दो दशकों से सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का सबसे दिलचस्प व विस्तृत आयामों को अपने अंदर समेटने वाला प्रसंग बना हुआ है। हमेशा नए-नए प्रश्नों के बनने व उनके परीक्षा में पूछे जाने की संभावना बनी रहती है।

प्रश्न बनते कैसे हैं?

संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े विषय से परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के संदर्भ में पहली समस्या निरंतर बनने वाले नए प्रश्नों को लेकर होती है। जो अभ्यर्थी नियमित समाचार-पत्र, पत्रिकाओं का अध्ययन करते हैं उन्हें तो प्रश्नों की प्रकृति समझ में आती है, किन्तु नए अभ्यर्थी अपने पुस्तकीय ज्ञान को देश की व्यावहारिक परिस्थितियों से तुलना कर एक सहज, सरल और प्रशासनिक दृष्टिकोण अपने अंदर बनाने और उसी अनुरूप उत्तर लिखने की शैली को विकसित करने में असफल हो जाते हैं।

वास्तव में संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े मुद्दों को समझने के लिए देश की व्यावहारिक राजनैतिक-प्रशासनिक परिस्थितियों की वास्तविकता व उलझनों को समझना आवश्यक है। बिना इसे जाने, न प्रश्न के उत्तर को लिखा जा सकता है न निबंध या साक्षात्कार में विवादित प्रश्नों का व्यावहारिक उत्तर दिया जा सकता है।

इस तथ्य को विस्तार से समझने के लिए दो विशेष मुद्दों से जुड़े विशेष पहलुओं को परीक्षा प्रणाली के पैटर्न से जोड़कर देखने में वैचारिक स्पष्टता सामने आएगी। उदाहरण के लिए संविधान के अंतर्गत एक विषय, केन्द्र-राज्य संबंध है। संविधान में इनका स्पष्ट विभाजन श्रेणीकरण, शक्तियां सब कुछ परिभाषित है। किन्तु यह भी सच है कि केन्द्र व राज्य समय-समय पर इनकी सीमाओं का अतिक्रमण करते रहे हैं। पूर्व में राजमन्नार समिति (1969), सरकारिया आयोग (1983), पुंछी आयोग (2007) की रिपोर्ट में केन्द्र-राज्य संबंधों को सुधारने की पहल की गई।

अस्सी के दशक में जिस प्रकार प्रबल केन्द्रीकरण जैसी समस्या पनपी वैसी परिस्थितियों की आशंका आज फिर इस समय भी व्यक्त की जा रही है। केन्द्र द्वारा जीएसटी को लागू करना, राज्यों की आपत्ति, वित्त आयोग की सिफारिशों पर राज्यों द्वारा विरोध करना, केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के क्रियाकलापों को राज्य विशेष द्वारा न पालन करना, नए कृषि कानून के कुछ प्रावधानों को राज्यों से पूछे या सलाह लिए बिना पूरे भारत में लागू करने की कोशिशें, केन्द्र-राज्य के अच्छे संबंधों का प्रतीक सहकारी संघवाद की अवधारणा का कमजोर पड़ना जैसी कई नई प्रवृत्तियां सामने आ रही हैं। भारत के दो राज्यों ने तो संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील भी कर दी कि केन्द्र अपनी संवैधानिक सीमा का अतिक्रमण कर रहा है।

इन परिस्थितियों में सिविल सेवा की तैयारी में लगे परीक्षार्थी से उम्मीद की जाती है कि सर्वप्रथम वे केन्द्र-राज्य संबंधों के संवैधानिक प्रावधानों को जानें, इसके साथ वह उसके व्यावहारिक पहलुओं को देखें, समझें, उनका विश्लेषण करें कि यह उचित है या अनुचित। संविधान द्वारा निर्मित प्रावधान या दायरे में ये सभी केन्द्र व राज्य के आपसी संबंध सही तरीके से गतिमान हो रहे हैं अथवा नहीं, इसकी भी वास्तविक समझ एक परीक्षार्थी में है या नहीं, इसकी मांग संघ लोक सेवा आयोग अपनी परीक्षा में कर रहा है।

इसी तरह असम में लागू एन-आर-सी- से उत्पन्न जो भी परिस्थितियां पनपीं उससे अन्य राज्यों की राजनीति, प्रशासन और विचारधारा प्रभावित हो रही है। केन्द्र के इस प्रयास का विरोध राज्यों के द्वारा किया जा रहा है। देश के एक अल्पसंख्यक समुदाय का असहज होना, नागरिकता कानून का विरोध व इसके औचित्य, पश्चिम एशियाई देशों से प्रभावित होते रिश्तें जैसे विविध पहलुओं पर पिछले वर्षों में कई प्रश्न पूछे जा चुके हैं। यद्यपि बेहद विवादास्पद माने गए विषयों पर प्रश्न पूछने की परंपरा कम ही रही है।

किन्तु साक्षात्कार के स्तर पर प्रश्न पूछने की न कोई सीमा होती है न कोई विशेष दायरा। इस परिवेश में एक नए या पुराने परीक्षार्थी से उम्मीद यही रखी जाती है कि वह संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े सभी तथ्यात्मक पुस्तकीय ज्ञान की जानकारी तो रखे ही, इसके अतिरिक्त देश जिन परिस्थितियों का सामना कर रहा है संविधान की दृष्टि से वह उचित है अथवा नहीं, इस विषय का भी एक संतुलित व सारगर्भित एप्रोच बनाए। इस विशेष मौलिक समझ की मांग आज यह परीक्षा प्रणाली कर रही है।

वर्तमान की केन्द्र सरकार की विचारधारा (राष्ट्रवाद) के कई आयाम हैं, इसकी परिभाषा-व्याख्या व व्यावहारिकता को सरलीकृत करने में भी कई समस्याएं हैं। विपक्ष की राजनीति का मिटता स्तर राजनैतिक दलों की गुटबंदी, देश के वास्तविक मुद्दों को उलझाना, गुमराह करने आदि के दृश्य संसद के अंदर और बाहर सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों स्तरों पर प्रकट हो रहे हैं।

विचारधारा के स्तर पर अब तक प्रचलित संविधान में शामिल कई प्रावधानों में पंथनिरपेक्षता, समाजवादी मॉडल, सामाजिक न्याय, मिली-जुली संस्कृति, भाईचारा, सांप्रदायिक सद्भाव, सामाजिक सहिष्णुता-असिहष्णुता, पंचशील, गुटनिरपेक्षता, आइडिया ऑफ न्यू इंडिया, राष्ट्र के नागरिकों का मौलिक कर्त्तव्य, राज्य का कल्याणकारी स्वरूप जैसी कई राजनैतिक शब्दावलियों के अर्थ बदलते जा रहे हैं। पहले पाठ्यपुस्तकों में प्रचलित जानी-समझी गई अवधारणाएं कई रूपों में प्रकट होती जा रही है। ऐसे कई प्रसंग हैं जो देश की राजनीति में गतिमान हैं और इनका संबंध संविधान व राजव्यवस्था से प्रत्यक्षतः जुड़ा है।

उत्तर लिखने की समस्या

इन सभी परिस्थितियों का जानना, समझना, व्यावहारिक-वास्तविक परिस्थितियों का आकलन कर एक प्रशासनिक उत्तर लिखना सबसे बड़ी चुनौती अभ्यर्थियों के सामने आती जा रही है। विगत कुछ वर्षों के प्रश्न पत्र को उठाकर देखे तो एक सामान्य विद्यार्थी प्रश्नों को पढ़कर बुरी तरह दिग-भ्रमित और मानसिक उलझन में उलझ कर रह जा रहा है।

नागरिकता कानून के विरोध का औचित्य, रोहिंग्या समस्या, जम्मू-कश्मीर की उलझती राजनीति, मीडिया का पूर्वाग्रहपूर्ण स्वरूप से ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछे जा रहे हैं जिनको समझना-समझाना, उत्तर लिखना, शब्द सीमा का पालन करना सबसे बड़ी चुनौती है। सामान्य अध्ययन में परीक्षार्थियों का प्राप्तांक इसका जीवंत उदाहरण है।

एप्रोच को बदलें

संविधान व राजव्यवस्था के अध्याय में अभ्यर्थियों को अध्ययन एप्रोच बदलने की आवश्यकता है। एनसीईआरटी और एम- लक्ष्मीकांत जैसी परंपरागत अध्ययन सामग्री के अतिरिक्त देश में गतिमान राजनैतिक-संवैधानिक संस्थाओं के क्रियाकलाप पर एक प्रशासनिक समझ बनाना और उन्हें उत्तर लिखने में प्रयोग करने की शैली विकसित करनी होगी। इस चार्ट को देखें, इसमें परंपरागत प्रश्नों के अतिरिक्त, बदलती परिस्थितियों पर किस तरह एक सामान्य अभ्यर्थी को अपना अध्ययन-लेखन विकसित करना है यह समझाने की कोशिश की गई है-

पाठ्यक्रम परंपरागत प्रश्न परिवर्तित पाठ्यक्रम पर बनते प्रश्न
उद्देशिका उद्देशिका का महत्व शामिल नए शब्दों की व्याख्या, उद्देश्य, औचित्य (120 शब्द)
संघ व राज्य क्षेत्र राज्य निर्माण प्रक्रिया केंद्र शासित प्रदेशों की आवश्यकता, वर्तमान नीति में परिवर्तन (120 शब्द)
राज्य निर्माण राज्य निर्माण प्रक्रिया विशेष राज्यों के प्रावधान का औचित्य (120 शब्द) पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की आवश्यकता व अपरिहार्यता (120 शब्द) जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति (120 शब्द)
नागरिकता नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान
  • नागरिकता संशोधन विधेयक पर विरोध का औचित्य (120/250 शब्द)
  • एन-पी-आर- की आवश्यकता (50/120 शब्द)
  • एन-आर-सी- के अंतर्विरोध व अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं (120 शब्द)
प्रकारमहत्व
  • आरक्षण नीति पर नए न्यायिक निर्णयों का विश्लेषण (120 शब्द)
  • निजता का उल्लंघन व संरक्षण की आवश्यकता (120 शब्द)
  • सूचना के अधिकार के 15 वर्षों की उपलब्धियां, आवश्यक सुझाव, सुशासन में योगदान (120/250 शब्द)
  • UAPA (गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) कानून
  • सरकारी गोपनीयता कानून की आवश्यकता (120 शब्द)
  • अल्पसंख्यक राजनीति के अन्तर्विरोध (120 शब्द)
  • धर्मनिरपेक्षता-अल्पसंख्यकवाद पर राष्ट्रवाद का प्रभाव (120 शब्द)
  • असहिष्णुता बनाम मौलिक अधिकार (120 शब्द)
राज्य के नीति निदेशक तत्व
  • महत्व
  • उपयोगिता
  • मूल अधिकारों से तुलना
  • समान नागरिक संहिता की आवश्यकता, औचित्य, अन्तर्विरोध व राजनैतिक प्रभाव
  • गौ-वध निषेध व व्यावहारिक भारतीय राजनीति (120 शब्द)
केंद्र-राज्य संबंध
  • संवैधानिक प्रावधान
  • वित्तीय संबंध व समस्याएं
  • सहकारी संघवाद (120/250 शब्द)
  • राष्ट्रवाद बनाम समाजवाद (उ- प्र- के संदर्भ में 120 शब्द)
  • राष्ट्रवाद बनाम सामाजिक न्याय (बिहार के संदर्भ में 120 शब्द)
  • क्षेत्रीय राजनीति-धर्मनिरपेक्षता व राष्ट्रवाद संबंधी विचारधारा में अंतर्विरोध व वर्तमान स्थिति (250 शब्द)
  • केंद्रीयकरण व राज्यों की क्षेत्रीयता के मध्य वर्तमान में उठा अंतर्विरोध (120 /250 शब्द)
  • राज्यों की राजनीति में राष्ट्रवाद संबंधी केंद्र की विचारधारा व राजनैतिक गतिविधियों का प्रभाव (120/250 शब्द)
राज्य विधान मंडल
  • राज्यपाल की शक्तियां व विवाद
राज्यपालों की सक्रियता के वर्तमान उदाहरण, रिपोर्ट, पूर्व की समितियों की रिपोर्ट व इनके अपेक्षित प्रभाव (120/250 शब्द)

निर्वाचन व मताधिकार (निर्वाचन आयोग)

  • उपयोगिता
  • भूमिका
  • महत्व
  • परिसीमन आयोग की आवश्यकता, महत्व, प्रभाव औचित्य (120/250 शब्द)
  • चुनाव सुधारों पर निर्वाचन आयोग (120/250 शब्द)
  • राइट टू रिकाल व्यवस्था का प्रभाव-औचित्य (100/120 शब्द)
न्यायपालिका
  • शक्तियां
  • न्यायिक सक्रियता
  • संविधान संरक्षण में भूमिका
  • न्यायिक पुनरीक्षण व न्यायिक सक्रियतावाद (120 शब्द)
  • न्यायिक समस्याएं, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (120 शब्द)
  • न्यायपालिका की अवमानना (120 शब्द)
लोकतंत्र व मीडिया
  • मीडिया की भूमिका दायित्व
  • पक्षपातपूर्ण मीडिया के आसन्न खतरे (120 शब्द)
  • लोकतंत्र-सुशासन में मीडिया की भूमिका (120 शब्द)
  • फेक-न्यूज व लोकतंत्र (120 शब्द)
विचारधारा व राजनीति
  • दबाव समूह की भूमिका
  • क्षेत्रीयता का प्रभाव
  • राजनीतिक विचारधारा में राष्ट्रवाद व उसके राष्ट्रीय क्षेत्रीय-वैदेशिक प्रभाव (120 /250 शब्द)
  • राष्ट्रवाद संबंधी विचारधारा का धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद पर प्रभाव (120/250 शब्द)
  • ब्रेक्रिग इंडिया फोर्सेज संबंधी अवधारणा का मूल्यांकन (120 शब्द)
  • समाजवाद-सामाजिक न्याय-पंथनिरपेक्षता संबंधी अवधारणा का प्रभाव, क्रिया-प्रतिक्रिया (120 /250 शब्द)
संसद
  • उपयोगिता
  • भूमिका
  • महत्व
  • विपक्ष की वर्तमान भूमिका (120 शब्द)
  • विपक्ष की राजनैतिक क्रियाकलाप और वर्तमान के कुछ संवैधानिक परिवर्तन (120/250 शब्द)

ऐसे दर्जनों प्रसंग हैं, जो देश की वर्तमान व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं और इनके सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा समेत साक्षात्कार में हर परीक्षार्थी से पूछे जाने की संभावना सदैव बनी रहती है।

भविष्य की राह

नए व पुराने अभ्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि इन सभी मुद्दों को जानें, समझें, समाचार-पत्रें के स्तंभों का सावधानी से अध्ययन करें, अपने विशेष राजनैतिक-सामाजिक रुझानों-पूर्वाग्रहों से निकलें, सच्चाई व वास्तविकता से ज्यादा प्रशासनिक उत्तर में लिखे जाने वाले संतुलित उत्तर की महत्ता को समझें। इसके साथ-साथ सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के स्तंभ जो इस परिवर्तन को विगत कई वर्षों से प्रस्तुत करते जा रहे हैं। अपने अध्ययन व लेखन में प्रयोग करें। (क्रमशः)

ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
उत्कृष्ट उत्तर लेखन शैली हेतु रणनीति (भाग 1)


संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सबसे बड़ी समस्या उत्तर लेखन शैली को लेकर प्रकट होती है। पहले के कुछ दशकों में गुणवत्तापूर्ण सामग्री न मिलने की समस्या थी, किन्तु इंटरनेट क्रांति के पश्चात अब समस्या अध्ययन सामग्री की नहीं, बल्कि पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रारूप व दिन प्रतिदिन बदलते उनके पैटर्न को लेकर प्रकट हो रही है। यह बदलाव प्री और मेन्स दोनों स्तरों पर देखा जा रहा है। पहले के प्रश्न सामान्य अध्ययन के किसी विशेष खंड से जुड़े होते थे, किन्तु अब प्रश्न को देखकर यह बताना मुश्किल है कि इसका संबंध सामान्य अध्ययन के किस विषय से है। कभी-कभी एक ही प्रश्न का संबंध अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, सम-सामयिकी के साथ नैतिकता से भी जुड़ा होता है। इसके साथ ही प्रश्न के उत्तर की शब्द सीमा के निर्देशों का पालन करने में परीक्षार्थियों के बीच सबसे ज्यादा कठिनाई देखी जा रही है। प्रश्न का प्रारूप ऐसा होता है कि उसके विभिन्न आयामों को लिखने में 1200 शब्द भी कम पड़ जाएं, जबकि उसे 200 शब्दों में लिखने का निर्देश दिया जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि कम से कम शब्दों में प्रश्नों के अनुरूप सारगर्भित उत्तर लिखा जाए। बदलते पैटर्न को देखकर यह कहा जा सकता है कि अब किताबी ज्ञान के दिन पूरे हो चुके हैं। इसलिए परीक्षार्थियों को मौलिक ज्ञान खोजने की संघ लोक सेवा आयोग की मुहिम के अनुरूप उत्तर लिखने के दृष्टिकोण में बदलाव करना होगा।

बदलता एप्रोच

जब से परीक्षा प्रणाली में बदलाव हुआ है तथा मुख्य परीक्षा का सिलेबस बदला है, तब से ही सामान्य अध्ययन का पेपर दिन-प्रतिदिन व्यावहारिक होता जा रहा है। प्रतिदिन की होने वाली राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक घटनाओं का असर पूछे गए प्रश्नों पर स्पष्टतः देखा जा सकता है। विगत कुछ वर्षों के प्रश्न-पत्रों को देखें तो यह बदलाव पूछे गए प्रश्नों में झलकता है। इस समस्या का सर्वाधिक असर हिन्दी भाषी राज्यों के विद्यार्थियों पर पड़ रहा है। हिन्दी भाषी छात्रों में राज्यों की पहले से ही कमजोर शिक्षा प्रणाली की कई अंतर्निहित विसंगतियां उनके साथ ही रहती है, जो अंतिम सफलता मिलने में हमेशा अवरोध खड़ी करती रहती हैं। इस बदलाव को समझने के लिए सामान्य अध्ययन के हर विषय के एक-एक अध्यायों पर क्रमशः चर्चा अपेक्षित है।

इतिहास संस्कृति

इतिहास विषय का केन्द्रण मुख्य परीक्षा में ज्यादातर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े विविध प्रसंगों से जुड़ा है। इनमें भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना, उनके विविध चरण, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद के विविध चरण, स्वतंत्रता प्राप्ति, देश विभाजन, देश का नवनिर्माण जैसे अध्याय शामिल हैं। पहले के प्रश्न बेहद सहज व सरल होते थे, जो मानक व स्तरीय पुस्तकों के पढ़ने के पश्चात्त लिखे जा सकते थे, किन्तु इधर के वर्षों में प्रश्नों का प्रारूप विश्लेषणात्मक के साथ तुलनात्मक स्तर का होता जा रहा है। इसके साथ-साथ नैतिकता, निर्णय लेने की क्षमता, पूर्वाग्रह जैसे विशेष गुण भी परखे जाने लगे हैं। इनके अतिरिक्त वर्तमान में उमड़ रहे राजनैतिक-सामाजिक विचारों का भी प्रभाव इतिहास जैसे परंपरागत समझे गए विषय पर पड़ रहा है और इस बदलाव को ज्यादातर परीक्षार्थी समझ नहीं पा रहे हैं।

उदाहरण के लिए सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक राजनीति, गांधीवादी राजनीति, मुस्लिम राजनीति, पाकिस्तान की मांग, देश विभाजन के कारण, कश्मीर-हैदराबाद का अंतिम विलय, संविधान निर्माण, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू का योगदान, कश्मीर समस्या व नेहरू, सुभाष चंद्र बोस बनाम गांधी, सुभाष चंद्र बोस का योगदान, क्रांतिकारी आंदोलन बनाम अंहिसा, नेहरू बनाम पटेल, गांधी बनाम अम्बेडकर, राष्ट्रवाद की विचारधारा में गांधी बनाम टैगोर, सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता, सावरकर बनाम गांधी जैसे कई प्रसंग विभिन्न नए तथ्यों के साथ इधर के वर्षों में सामने आए हैं। ये सभी प्रश्न परीक्षाओं में पूछे भी जा रहे हैं। इनका उत्तर एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों के अतिरिक्त, बिपिन चंद्र की प्रसिद्ध पुस्तक स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के नोट्स या अध्ययन सामग्री में भी पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इस समस्या का पूरा असर उन परीक्षार्थियों पर पड़ता है जो न समाचार पत्र पढ़ते हैं, न उन्हें नए-नए इन बदलावों पर स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए प्रेरित किया जाता है। परीक्षार्थियों को यह कभी नहीं बताया जाता कि देश में हो रहे बदलावों को किस दृष्टि से देखें; उनका कैसे संतुलित तरीके से अपनी परीक्षा प्रणाली के अनुरूप प्रयोग करें, कभी भी दिगभ्रमित श्रेणी के उत्तर न लिखें। ये कमी आज ज्यादातर परीक्षार्थियों में देखी जा सकती है।

प्रश्नों को समझें

इधर के वर्षों में जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं उनमें परीक्षार्थियों के व्यक्तित्व, ज्ञान, रुझान, पूर्वाग्रह, निर्णय लेने की क्षमता का पूरा आकलन किया जाता है। इन विशेष बदलावों को कुछ विशेष प्रश्नों से समझा जा सकता हैः

  • क्या आप इस तथ्य से सहमत है कि वीर सावरकर ने सांप्रदायिक राजनीति को प्रारंभ किया, वहीं गांधीवादी आंदोलन धर्म निरपेक्षता का प्रतीक था।
  • दो राष्ट्रों के सिद्धान्त पर टिप्पणी कीजिए, इस संदर्भ में गांधी, जिन्ना व सावरकर की भूमिका का मूल्यांकन करें।
  • भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी व सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा का तुलनात्मक वर्णन व विश्लेषण करें। देश विभाजन व स्वतंत्रता प्राप्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, क्या आप इससे सहमत हैं, टिप्पणी करें।
  • स्वतंत्रता पश्चात नेहरू की नीतियों का मूल्यांकन करें, इनके प्रभावों की समीक्षा करें।
  • 1920 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन ने कई वैचारिक धाराओं को ग्रहण किया और अपना सामाजिक आधार बढ़ाया, विवेचना कीजिए।
  • धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं?

इन विशेष चुनिंदा प्रश्नों में अंतिम दो प्रश्न 2020 व 2019 की मुख्य परीक्षा में पूछे गए हैं तो इनके अतिरिक्त सभी प्रश्न किसी न किसी रूप में राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं में पूछे जा रहे हैं। इन प्रश्नों को समझना, उनकों स्टेप बाई स्टेप सहज, सरल व संतुलित तरीके से लिखना एक सामान्य परीक्षार्थी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। जिसे प्रत्यक्षतः देखा जा रहा है।

उत्तर को लिखना

इन प्रश्नों को लिखते समय परीक्षार्थियों से उम्मीद रखी जाती है कि वह विविध आयामों को अपने उत्तर में लिखें, वह भी शब्द सीमा (250/125 शब्द) के अंदर। उदाहरण के लिए एक प्रश्न को समझते हैं। 2020 के एक प्रश्न (1920 के दशक का राष्ट्रीय आंदोलन+कई वैचारिक धाराओं का ग्रहण+सामाजिक दायरे का विस्तार) को 250 शब्दों में 4 विभिन्न आयामों में लिखने के लिए कुछ विशेष बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिएः

  • राष्ट्रीय आंदोलन में विविध विचारधाराएं।
  • मध्यम वर्गीय कांग्रेसी आंदोलन।
  • उदारवादी/उग्रवादी/कांग्रेसी/जातिवादी/संप्रदायवादी आंदोलन।
  • गांधीवादी विचारधारा।
  • धार्मिक मजहबी (हिंदू महासभा/मुस्लिम लीग) विचारधारा।
  • साम्यवादी, समाजवादी, श्रमिक संघ, औद्यौगिक संगठन, देशी रियासतें, कृषक, दलित, महिला व क्षेत्रीय जातिगत आंदोलन।
  • इन सभी आंदोलनों का प्रभाव व दायरा और जुड़े लोगों की स्थिति।

ये 7 विविध प्रकार के पहलू हैं िजन्हें 250 शब्दों मे लिखे जाने की उम्मीद एक परीक्षार्थी से की जाती है। ठीक इसी तरह एक दूसरे वर्ष 2019 के प्रश्न में (धर्मनिरपेक्षता+भारतीय सांस्कृतिक प्रथाएं+चुनौतियां) इतिहास व संस्कृति, सामाजिक मुद्दे, सामाजिक न्याय, ‘एथिक्स, इन्टीग्रिटी व एप्टीटड्ढूड’जैसे सभी पक्ष एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इसे 150 शब्दों में लिखना है। इस प्रश्न को लिखते- समय यह उम्मीद की जाती है कि एक परीक्षार्थी निम्नलििखत विविध पहलुओं को ध्यान में रखे:

  • धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा व स्थिति।
  • धर्मनिरपेक्षता का व्यावहारिक प्रदर्शन।
  • भारतीय सांस्कृतिक प्रथाएं।
  • वर्तमान धर्मनिरपेक्ष राजनीति कैसे चुनौती दे रही है।
  • चुनौती देने वाली घटनाएं-क्रियाकलाप।
  • क्या यह सही है अथवा गलत।
  • क्या धर्मनिरपेक्षता महज तुष्टिकरण है।

ये 8 विविध पहलू इस प्रश्न के उत्तर में अपेक्षित हैं। जिनकी मांग यह प्रश्न कर रहा है और इन्हें 150 शब्दों में लिखना है।

हिन्दी राज्यों की व्यथा

परिवर्तित पाठ्यक्रम का सर्वाधिक नकारात्मक परिणाम हिन्दी बेल्ट पर पड़ा है। पूरे भारत में, तीन दशक से मशहूर एक प्रसिद्ध विशेषज्ञ एवं मार्गदर्शन देने वाली संस्था के प्रमुख ने हिन्दी बेल्ट के निराशाजनक परिणाम पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि समस्या परीक्षार्थियों में नहीं, बल्कि समस्या हिन्दी भाषी राज्यों की परंपरागत शिक्षा प्रणाली में है। जो हर विषय को रटते है, प्रश्नों को समझने की अपेक्षा पेज भर कर नंबर पाने की उम्मीद रखते हैं। ये वो तरीका है जो हाईस्कूल से ग्रेजुएशन तक विद्यार्थी अपनाते रहे हैं। क्वेश्चन को गेस करने और लिखने का परंपरागत तरीका सिविल सर्विसेज परीक्षाओं में आज भी उसी तरह आजमाया जा रहा है। देश व समाज की बदलती परिस्थितियों का आकलन कर उनको अपने उत्तर में कैसे समेटें, इसका न अभ्यास होता है न उत्तर लिखकर अपना आकलन करने की प्रवृत्ति। परीक्षार्थियों को मार्गदर्शन देने के नाम पर शिक्षण संस्थाएं भी अपने दायित्व को पूर्ण नहीं करतीं और न ही बदलते मानक व पाठ्यक्रम की तरफ नए परीक्षार्थियों को मोड़ने की कोशिश करती हैं। अनेक संस्थाओं के द्वारा तो सिर्फ अपने नोट्स रटने को प्रेरित कर यह दावा किया जाता है कि सब कुछ इसमें से ही फंसेगा। यही विश्वास परीक्षार्थियों के लिए ज्यादातर आत्मघाती होता है। देखा जाए तो यह वक्तव्य रटन्ट, घोटन्त, लिखन्त वाली विचारधारा पर ही की गई टिप्पणी है जो दशकों बाद आज भी हिन्दी बेल्ट पर शत प्रतिशत सही व सटीक बैठती है।

भविष्य की राह

इन विकट परिस्थितियों से बचने या निकलने के लिए परीक्षार्थियों को कुछ विशेष मुद्दों पर ध्यान देते हुए कुछ शैक्षणिक संस्कारों को अपने अंदर विकसित कर उनको अपनाना चाहिए:

  • पुस्तक अवश्य पढ़ें।
  • पूर्व के पूछे गए प्रश्नों का अवलोकन करते रहें।
  • प्रश्नों का फॉर्मेट (Answer Format) बनाने की कोशिश करें।
  • “क्या-कितना-कैसे-किस तरह”उत्तर लिखना है, इसका निर्धारण करें।
  • उत्तर को हमेशा ‘टू द प्वॉइन्ट’लिखने की कोशिश करें।
  • प्रतिदिन 2-3 प्रश्नों को लिखने की अवश्य प्रैक्टिस करें।
  • लिखे गए प्रश्नों का किसी प्रसिद्ध विशेषज्ञ से आकलन कराएं।
  • अपनी कमियों को पहचानें, संचार क्रांति का उपयोग करें।
  • देश की बदलती विचारधारा को समझें।
  • बदलती विचारधारा को कैसे संतुलित तरीके से समझें, लिखें व बोलें, यह संस्कार भी धीरे-धीरे अपने अंदर समाहित करें। किसी मुद्दे को पढ़ने से ज्यादा उसे प्रश्न-उत्तर शैली में लिखने की कोशिश करें।

ये कुछ महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जिन्हें परीक्षार्थियों, विशेषकर हिन्दी बेल्ट के परीक्षार्थियों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। ये शैक्षणिक संस्कार इंग्लिश मीडियम के परीक्षार्थियों में व्यापक पैमाने पर प्रकट होते हैं। सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं लम्बे समय से अपनी विविध पुस्तकों, मॉक टेस्ट, प्रश्नोत्तर शैली वाले स्तंभों के माध्यम से बदलाव लाने की मुहिम में शामिल हैं। (क्रमशः)

ओंकार नाथ
Career Consultant (Observer IAS)
निबंध परिचर्चा


निबंध का अर्थ

सामान्यतः निबंध की चर्चा होते ही विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले विषय हिन्दी साहित्य की प्रचलित अवधारणा ही सामने आने लगती है कि निबंध भावों एवं विचारों को समुचित तरीके से जोड़कर प्रस्तुत करने का एक माध्यम है, जिसमें किसी विषय पर व्यक्ति के भाव, विचार, अनुभव को प्रस्तुत किया जाता है। निबंध के संदर्भ में यह अवधारणा साहित्य के स्तर पर तो प्रचलित है किन्तु निबन्ध की इस विधा से एक प्रशासनिक अधिकारी की खोज कैसे होगी, सामान्यतः इस पर निष्पक्षता से चर्चा नहीं होती।

दरअसल निबंध एक नजरिया है, जो किसी विषय पर टीवी, समाचारपत्र, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से तथा वर्तमान की प्रचलित अवधारणा के जरिये किसी भी व्यक्ति के अंदर विशेष दृष्टिकोण के तहत निर्मित होता रहता है। एक ही विषय पर कई अलग-अलग विचारधाराएं सामने आती हैं और इन सबके अलग-अलग तर्क होते हैं, प्रत्येक तर्क को प्रस्तुत करने वाला विचारक इतना तार्किक होता है कि वह अपने तर्कों से स्वयं को सही व उचित बताता है और जिससे दूसरी विचारधारा गलत या कमजोर पड़ने लगती है। इस परिस्थिति में निबंध लेखन के लिए विषय, तथ्य, विश्लेषण करने की पद्धति की आवश्यकता प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों के लिए हमेशा एक वैचारिक संकट जैसी पहेली बनी रहती है।

सिविल सेवा परीक्षा में निबंध के माध्यम से परीक्षार्थियों के अंदर की मौलिक समझ का आकलन किया जाता है कि वह किसी विशेष विषय पर कितना व्यावहारिक ज्ञान और समझ रखता है। विषय के सकारात्मक - नकारात्मक पहलुओं के साथ समस्या का समाधान कैसे व किस तरह हो सकता है इसी की पहचान निबंध के माध्यम से सिविल सेवा परीक्षाएं करती हैं।

निबंध के प्रकार

निबंध के कितने प्रकार होते हैं ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया है किन्तु विगत कई वर्षों के पूछे गए प्रश्नों के आधार पर इनको व्याख्यायित करने का प्रयास किया जाता है। सामान्यतः दो खंडों में विभाजित कुल 8 निबंध पूछे जाते हैं जिनमें एक-एक निबंध का चुनाव कर प्रत्येक को 1200 शब्दों में लिखना होता है।

इन निबंधों में भावना प्रधान, अनुभव, वस्तुस्थिति लिए हुए विश्लेषण करने वाले निबंध वर्णनात्मक निबंध कहलाते है। इसे निबंधों में किसी भी परीक्षार्थी की भावना का आकलन होता है। वर्ष 2020 में इस शीर्षक से जुड़े चार निबन्ध पूछ लिए गए। इसमें ‘मनुष्य’ व ‘मनुष्य होने’ के बीच अर्न्तसंबंध, मानव व्यक्तित्व में विचारधारा की भूमिका, मानव समाज के अंदर की अंतर्रनिहित कमियां, सफलता ही मूलमंत्र है जैसे शीर्षक, कुछ गूढ़ शब्दों के माध्यम से पूछे गए जिनकों एक बार में पढ़ कर कोई परीक्षार्थी विचलित हो सकता है किन्तु ध्यानपूर्वक पढ़ने, चिन्तन करने, समझने के पश्चात पूछे गए शीर्षक के तहत शब्द सीमा के अंदर लेखन के नियमित अभ्यास से निबंध का उत्तर लिखा जा सकता है।

निबंध का दूसरा खंड विवरणात्मक विषय से जुड़ा रहता है जो देश व समाज की यथास्थिति से संबंधित होता है। इसमें देश पर पड़ने वाले प्रभाव-परिणाम की चर्चा कर परीक्षार्थी के सामाजिक ज्ञान का आकलन किया जाता है। सोशल मीडिया का प्रभाव, नए कृषि कानून, नई शिक्षा नीति, पक्षपात पूर्ण मीडिया जैसे वर्तमान के कई प्रचलित विवादित विषय इस श्रेणी में शामिल है। वर्ष 2020 के संघ लोक सेवा आयोग के प्रश्नों को देखें तो दूसरा खंड इस श्रेणी से जुड़ा रहा, जिसमें सभ्यता व संस्कृति, सामाजिक न्याय व आर्थिक समृद्धि, समाज का पुरुष प्रधान पितृसत्तात्मक स्वरूप, अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करने में प्रौद्योगिकी जैसे शीर्षक वाले निबंध पूछे गए जो क्रमशः सामान्य अध्ययन से जुड़े विषय इतिहास व संस्कृति, राजव्यवस्था व अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय व अंतरराष्ट्रीय संबंध से संबंधित थे, किन्तु उनका जुड़ाव वर्तमान भारत से संलग्न कर पूछा गया।

निबंध लिखने का तरीका

एक सामान्य समस्या आती है कि निबन्ध लिखें कैसे, उसके लिखने का तरीका क्या हो। इसके लिए कुछ विशेष मानदंडों का पालन करना चाहिए-

  • सर्वप्रथम शीर्षक का चुनाव करें;
  • शीर्षक का प्रारूप बनाएं;
  • शब्द सीमा का ध्यान रखते हुए निबंध के प्रारूप का विभाजन करें;
  • शीर्षक से जुड़े तथ्य, आंकड़े, संदर्भ को एकत्र कर एक स्थान पर पहले ही लिख लें;
  • फिर स्टेप बाई स्टेप लिखें, व्याख्या करें;
  • निबंध का विश्लेषण हमेशा सकारात्मक, देशबोधक, उम्मीदपरक, भविष्योउन्मुखी होना चाहिए।

ये कुछ महत्वपूर्ण निर्देश हैं जिनका पालन करके निश्चित समय सीमा में परीक्षार्थी बेहतर अंक प्राप्त कर सकते है। अधिकांश परीक्षार्थी टाइम और वर्ड मैनेजमेंट में संतुलन नहीं बना पाते किन्तु निरन्तर अभ्यास से इसमें सुधार लाया जा सकता है।

किस विचारधारा को लिखें?

एक बड़ी व्यावहारिक समस्या विचारधारा को लेकर आती है। यह समस्या सोशल मीडिया के आने पर ज्यादा गंभीर हुई है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि देश के ज्यादातर मीडिया जगत कुछ विचारों से विविध खेमों में बंटे हैं, उनकी रिर्पोटिंग कई उलझनें पैदा करती है। एक परीक्षार्थी के लिए उनमें संतुलन बनाना बेहद कठिन कार्य है। उदाहरण के लिए नए कृषि कानून, किसान आंदोलन, कोविड की स्थिति, चीन से सीमा पर तनाव, राफेल विमान खरीद जैसे कई मुद्दों पर इतने तथ्य, विश्लेषण, आँकड़े सामने आते रहे जिससे किसी भी स्थिति में उलझनें दूर नहीं हो सकतीं। इस परिस्थिति में भी परीक्षार्थी को कुछ विशेष मानदंडों का पालन करना चाहिए-

  • प्रत्येक विषय के सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं को एकत्र करें;
  • किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें;
  • किसी भी संगठन, पार्टी, दल या खास विचारधारा से सहानुभूति न रखें;
  • क्रांतिकारी, उत्तेजक शब्दों या विचारों का प्रयोग न करें;
  • अपनी बात सहज, सरल शब्दों में रखें;
  • हमेशा संतुलित, मर्यादित शब्दों का प्रयोग करें;
  • कभी भी हमलावर या प्रहार करने की भाषा या तथ्य का प्रयोग न करें।

वास्तव में ये कुछ विशेष सावधानियां होती हैं जिनके पालन करने की अपेक्षा एक प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने वाले परीक्षार्थी से की जाती है। ज्यादातर ऐसा देखा गया है कि परीक्षार्थी इन विभिन्न प्रकार के विवादित प्रसंगों में संतुलन नहीं बना पाते, जो बना लेते है उन्हें बेहतर अंक मिलते है।

प्रशासनिक अधिकारी व निबंध

एक प्रशासनिक अधिकारी के तमाम गुणों की खोज निबंध के माध्यम से कैसे होती है, वास्तव में यही सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग है, जिस पर विशेषकर हिन्दी भाषी राज्यों से जुड़े परीक्षार्थी ध्यान नहीं देते। हिन्दी भाषी राज्यों की विशेषता कहें या विडंबना, उनके हर विषय या प्रसंग का जुड़ाव किसी न किसी विशेष विचारधारा से होता है। राजनैतिक रूप से बेहद जागरूक व सक्रिय रहे इन राज्यों के निवासियों में बचपन से ही प्रत्येक विषय पर एक विशेष विचारधारा बनने लगती है जो अंत तक हावी रहती है। यह सोच, समझ, रुझान, निबंध लेखन में भी झलकता है। उदाहरण के लिए इतिहास व संस्कृति में प्राचीन जाति-वर्णव्यवस्था, हिन्दू मुस्लिम संबंध, देश विभाजन, स्वतंत्रता प्राप्ति, संविधान निर्माण, मूल अधिकार, न्यायपालिका, पंचायती राज, समाजिक रीति रिवाज, आरक्षण व्यवस्था, मीडिया का स्वरूप, महिलाओं की स्थिति जैसे कई प्रसंगों पर उनकी समझ किताबी ज्ञानों से एक दम अलग होती है। जबकि एक प्रशासनिक अधिकारी से उम्मीद की जाती है वह सभी प्रकार के वैचारिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हो, वह किसी प्रकार का वैमनस्य समाज की किसी जाति, धर्म, संप्रदाय, समुदाय, पार्टी, संगठन से न रखे। उसका दृष्टिकोण निरपेक्ष हो, वह हमेशा सकारात्मक सोच रखे, वह हमेशा सही दिशा में बदलाव की उम्मीद रखे, वह हिंसक क्रांतिकारी या सत्ता को पलटने जैसी विचारधारा का पोषक न हो।

इसी प्रकार के कुछ विशेष गुण संघ लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षार्थी के लेखन के माध्यम से जाँचे जाते हैं। कई बार किसी विषय पर बेहतरीन लेखन भी उम्मीद के अनुसार नंबर नहीं दिला पाता। इसका कारण कहीं न कहीं विचारों का भटकाव या प्रस्तुतीकरण में कुछ विशेष खामियों की ओर इशारा करता है, जिन्हें परीक्षार्थी लेखन करते वक़्त समझ नहीं पाते। सामान्यतः जो उनके हृदय व मस्तिष्क में होता है वही लेखन में झलकने लगता है। किसी भी प्रसंग पर स्पष्ट समझ व निरन्तर अभ्यास से ही इन विशेष गुणों को सही दिशा दी जा सकती है।

संपादकीय लेख व निबंध

प्रशासनिक सेवा के अधिकांश परीक्षार्थी निबंध लेखन अभ्यास के साथ सम-सामयिक मुद्दों के लिए अखबारों, पत्रिकाओं में प्रकाशित संपादकीय लेखों का प्रयोग करते है। द हिन्दू, इंडियन एक्सप्रेस, फ्रंटलाइन, इंडिया टुडे, दैनिक जागरण, जनसत्ता जैसी कुछ विशेष पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों का वैचारिक व तथ्यात्मक प्रभाव गहराई से पड़ता है। ज्यादातर परीक्षार्थियों का लेखन संपादकीय शैली में होता है, जो कि उतना सही नहीं माना जाता। संपादकीय लेखों से भी विशेष विचारधारा झलकती है जिसमें विशेषज्ञ अपनी बातों, तथ्यों से किसी भी प्रसंग पर इतनी विशेषताएं या खामियां गिना देते हैं कि एक निष्पक्ष दृष्टिकोण का बनना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में संपादकीय लेखों को पढ़ते वक्त कुछ विशेष सावधानियां बरती जानी चाहिए जैसे-

  • संपादकीय लेखों से विचार या तथ्य को निकालें;
  • हमेशा सकारात्मक तथ्यों को एकत्र करें;
  • नकारात्मक तथ्यों को हमेशा चुनौती समझें;
  • सिर्फ वैश्विक, अंतरराष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर के संगठन के आंकड़ों, विश्लेषणों का प्रयोग अपनी बातों को रखने में करें;
  • संशकित, उलझन, अन्जान भय, नकारात्मक प्रभावों वाले लेखों से बचें;
  • वामपंथ, दक्षिणपंथ, लिबरल, नेशनलिस्ट जैसे वैचारिक खेमे के समर्थन वाले विचारों से बचें;
  • एक ही विषय पर दो अलग-अलग वैचारिक खेमों के सिर्फ कुछ विचारों को लें ताकि संतुलन बना रहे।

वास्तव में ये कुछ ऐसे निर्देश हैं जिनका निरन्तर पालन करने से न सिर्फ समझ का दायरा विस्तृत होता है वरन् परीक्षा में बेहतर परिणाम भी मिलते हैं। उदाहरण के लिए नए कृषि कानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा कृषि क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं पर इतने संपादकीय लेख उपलब्ध हैं, जिनसे वैचारिक उलझन हमेशा बनी रहती है। इनमें संतुलन बनाना बेहद आवश्यक है ताकि सामान्य अध्ययन के साथ निबन्ध व साक्षात्कार के स्तर पर भी इस संतुलित ज्ञान का प्रयोग किया जा सके।

निबंध और वास्तविकता

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रसंग समाज की वास्तविकता और प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों की प्रवृत्ति को लेकर है। भारत के एक सामान्य नागरिक का अनुभव देश के पुलिस प्रशासन, न्यायपालिका एवं सरकारी विभागों के प्रति कैसा है, यह किसी से छुपा नहीं है। ज्यादातर नागरिकों का उत्तर नकारात्मक प्रवृत्ति का ही मिलेगा। उसी तरह भ्रष्टाचार-कालाधन, विदेशी निवेश, भारत-चीन विवाद, भारत-पाक संबंध, राज्यपालों की षडयंत्रकारी भूमिका, गरीबी का मापन, बेरोजगारी दूर करने के उपाय, विश्व व्यापार संगठन व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तें, संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका जैसे दर्जनों विषयों पर लेख, विचार व तथ्य सामने आते रहते हैं।

प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगे एक परीक्षार्थी का सामना पुस्तकीय तथ्यों के अध्ययन करने के पश्चात समाज की वास्तविकता से होता है। कुछ परीक्षार्थी जो महज पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित होते हैं उनका चयन अंतिम रूप से नहीं हो पाता; होता भी है तो इसमें लंबा समय लग जाता है। कुछ परीक्षार्थी जिनका सामाजिक ज्ञान अन्य से बेहतर होता है, वे सामाजिक घटनाओं के प्रति सजग होते हैं किन्तु जैसे-जैसे उन्हें समाज का सच पता चलता है, वास्तविक कारण सामने आते है, वे अपने इन अनुभवजन्य ज्ञान और प्रशासनिक अधिकारी की आवश्यकता में संतुलन नहीं बना पाते, परिणामस्वरूप वे अपने नकारात्मक अनुभवों को लिख आते हैं। अपने अनुभवजन्य ‘सच’ को लिखने की यह प्रवृत्ति सामान्य अध्ययन के साथ निबंध के अतिरिक्त इंटरव्यू में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते समय भी प्रकट होती है।

उदाहरण के लिए इस देश में भ्रष्टाचार सरकारी विभाग का एक प्रमुख गुण है। पिछले कई वर्षों से अनेक सरकारें इसे नियंत्रित करने की सिर्फ घोषणा ही करती रही हैं। सीबीआई व सीवीसी जैसी संस्थाएं महज मुखौटा बनी हुई हैं। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की मानें तो केन्द्र व राज्य स्तर पर 2014 तक 500 बड़े व 5000 छोटे घोटाले हो चुके हैं, किन्तु इनमें 1 प्रतिशत लोगों को भी सजा नहीं हो पाई है। न्यायालयी भ्रष्टाचार के संदर्भ में देखें तो इस देश की ज्यादातर अदालतों में निर्णय भ्रष्टाचार से प्रभावित हैं। एक सामान्य नागरिक के लिए अदालती क्रियाकलाप चक्रव्यूह की तरह हैं जो उसे टार्चर करते रहते हैं।

पड़ोसी देशों के साथ बनते बिगड़ते संबंधों की सच्चाई पर गौर करें तो हम पाते हैं कि भारत-चीन विवाद में चीन का पलड़ा अभी भी भारी है। 14देशों के साथ उसकी सीमा लगती है, सभी के साथ उसका विवाद है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट व वैश्विक लेखकों की मानें तो चीन भारत से 10 वर्ष आगे है, उसके घरेलू उत्पाद भारतीय उद्योगों को तबाह कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त भारत-पाक संबंधों में विश्लेषक यही मानते हैं कि अगले 50 वर्षों तक फिलहाल सुधार हो ही नहीं सकता; पाकिस्तान का जन्म ही भारत विरोध पर हुआ है और यह अंत तक जारी रहेगा।

राज्य में राज्यपालों की भूमिका पर ध्यान दें तो हम देखते हैं कि राज्यपालों के संबंध में न जाने कितनी कमेटियों ने अपनी रिपोर्ट दी, सुधार की पहल की, किन्तु अभी भी उनकी षडयंत्रकारी भूमिका ही सामने आती रही है; पांडिचेरी (फरवरी 2021) का उदाहरण सामने है। इसी तरह से गरीबी और बेरोजगारी ही समस्या भी आर्थिक वृद्धि की कड़वी सच्चाई बयां करती हैं। वैश्विक संगठनों में संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं महज अमरीका जैसे देशों के हाथों की कठपुतलियां हैं, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका सालों से संदेह के घेरे में है।

कुल मिलाकर देखें तो मामला भारत का हो या विश्व का, कुछ चुनिंदा लोग, संस्थाएं, संगठन ही इन सभी पर कब्जा किए हुए हैं और अपने अनुसार सत्ता चला रहे है। इन्हीं सब सामाजिक वास्तविकताओं से सिविल सेवा की तैयारी कर रहे परीक्षार्थी रूबरू होते हैं, परिणामस्वरूप यही सच उनके लेखन में भी प्रकट होने लगता है। उदाहरण के लिए परीक्षार्थियों को लेखन में कुछ विशेष दृष्टिकोण व भाषा शैली का प्रयोग करना चाहिए जैसे-

  • भ्रष्टाचार व कालाधन भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेष समस्या है, जिन पर उचित नियंत्रण करने की आवश्यकता है;
  • भारत-चीन संबंधों को विश्लेषित करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि चीन का विवाद लगभग सभी देशों से है;
  • वैश्विक संगठनों में कुछ विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव देखा जा रहा है, जिनका दृष्टिकोण विकासशील देशों के प्रति भेदभावपूर्ण वाला है।

ऐसी संतुलित भाषा शैली का प्रयोग बहुत कम परीक्षार्थी कर पाते हैं। समाज व देश की समस्या कहें या सच्चाई, ये पहले भी थीं, अभी भी हैं और आगे भी रहेंगी। इनमें परिवर्तन धीरे-धीरे होता है। इस परिस्थिति में एक प्रशासनिक अधिकारी की तैयारी में लगे परीक्षार्थी से उम्मीद की जाती है कि वे व्यावहारिक ज्ञान रखें, वास्तविकता समझें तथा सच्चाई जानने के बाद भी उनकों संतुलित दृष्टि से प्रस्तुत करें; साथ ही हमेशा सुधार की उम्मीद रखें। इन विशेष प्रशासनिक गुणों वाली प्रवृतियों का विकास एकाएक नहीं हो सकता। हर घटना, प्रसंग पर क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, से ज्यादा आवश्यक है कि क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है।

ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जिनमें देखा गया है कि एक सामान्य विद्यार्थी भी उच्च रैंक प्राप्त कर लेता है वहीं बहुत मेधावी विद्यार्थी अंतिम रूप से भी चयनित नहीं हो पाते। इस प्रवृत्ति का शिकार हिन्दी भाषी राज्यों के परीक्षार्थी सबसे ज्यादा रहे हैं। यह तब होता है जब उत्तर लिखते समय वैचारिक जंजाल उन्हें उलझा कर रख देता है; किन्तु सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल जैसी पत्रिकाएं उनको एक दृष्टिकोण देती हैं तथा किसी संकीर्ण दृष्टिकोण को अपनाने से बचाती हैं। शेष वे किसी कैरियर कंसल्टेंट की सहायता से निरन्तर अभ्यास कर अपने इस भटकाव को रोक कर स्वयं को संतुलित कर सकते हैं। समाज की वास्तविकता व प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में लिखे जाने वाले निबंध दो अलग-अलग कड़ी हैं; इनमें सामंजस्य व संतुलन आवश्यक है।

निबंध के विषय क्या हो सकते हैं?

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रसंग है कि निबंध के विषय क्या-क्या हो सकते हैं तथा वर्तमान में सिविल सेवा की तैयारी में लगे परीक्षार्थी किन-किन विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। इस पर स्वयं को फोकस करने के लिए सबसे बेहतर विकल्प है कि देश जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है उसका अवलोकन करते रहें; उनसे जुड़े डेटा, फैक्ट, फिगर, एनालिसिस, रिपोर्ट का अध्ययन करते रहें। उदाहरण के लिए संविधान व राजव्यवस्था से जुड़े विषयों में नागरिकता, निजता रूपी मूल अधिकार, अल्पसंख्यकवाद, धर्म आधारित शिक्षा, धर्मान्तरण, समान नागरिक संहिता, मीडिया सेंसरशिप, पूर्वाग्रहपूर्ण मीडिया, केन्द्र-राज्य संबंध, न्यायिक सक्रियता, जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति, पंथनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, भारतीय समाज की विविधता जैसे विषयों पर नए-नए प्रकट होते स्वरूप, पड़ोसी देशों के साथ बदलते संबंध, आंतरिक सुरक्षा को चुनौती देने वाले नए-नए तत्व जैसे अनेकों प्रसंग हैं जिन पर एक संतुलित समझ या नजरिया बनाने की आवश्यकता है। पिछले दो दशकों के निबंध के प्रश्न पत्रों को उठाकर देखें तो पता चलता है कि पूछे गए प्रसंग का संबंध कहीं न कहीं देश की मौजूदा व्यावहारिक परिस्थितयों से जुड़ा रहा है, जिनको अध्ययन की सुविधा के लिए संविधान व राजव्यवस्था, आर्थिक विकास, पर्यावरण या आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयगत शीर्षकों से जोड़ कर बताया जाता है। यह देखने में सामान्य लगता है किन्तु इतना सामान्य होता नहीं है।

निबंध के प्रथम खंड के लिए सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल में प्रकाशित विविध प्रसंगों की व्याख्या का नियमित अध्ययन बेहद प्रभावकारी है, जिसमें विषय, विषय के प्रस्तुतीकरण तथा उनकी व्याख्या बेहद सहज, सरल शब्दों में की जाती है, जिनका नियमित अध्ययन परीक्षा में हमेशा उत्कृष्ट अंक प्राप्ति का एक माध्यम बन कर प्रकट होता रहा है। वहीं दूसरे खंड के लिए निरन्तर अभ्यास करने की आवश्यकता है। विषय का संतुलित, सारगर्भित, उचित व पूर्वाग्रह से मुक्त होना तथा महत्वपूर्ण डेटा, फैक्ट-फिगर, विश्लेषण एवं रिपोर्ट के माध्यम से किसी प्रसंग की व्याख्या आधारित लेखन ही मौलिक प्रतिभा की खोज करने वाले संघ लोक सेवा आयोग का पहला पैमाना है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में एक सामान्य समझ वाले व्यावहारिक, प्रशासनिक व्यक्ति की खोज की जाती है जो वर्तमान के सिस्टम की विशेषताओं व खामियों से परिचित हो, उसे समझे और कुछ सुधारों के साथ देश के सिस्टम को चलाए; न कि किसी खोजी रिपोर्टर की तरह किसी मुद्दे को परत दर परत उधेड़े या सच को उजागर करे।

ये ही कुछ विशेष प्रसंग हैं जो निबंध परिचर्चा में शामिल हैं तथा इन पर अमल करके सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।



Question :पिछले साल मैंने दसवीं की परीक्षा पास की थी। मैं आइएएस अधिकारी बनना चाहता हूं। इसके लिए मुझे क्‍या करना चाहिए?

Question :मैंने आइएएस की परीक्षा के लिए आवेदन तो कर दिया है, पर शायद परीक्षा न दे सकूं। ऐसे में मेरा यह अटेम्‍प्‍ट काउंट हो जाएगा?

Question :मैं 12वीं साइंस स्‍ट्रीम का छात्र हूं। आगे आइएएस बनना चाहता हूं, पर मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं स्‍नातक किस विषय से करूं? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। कृपया यह भी बताएं कि आइएएस की परीक्षा में किस विषय से सबसे ज्‍यादा प्रश्‍न पूछे जाते हैं?

Question :मैं 12वीं में हूं और आगे आइपीएस बनना चाहता हूं। कृपया मुझे बताएं कि मैं 12वीं के बाद बीए करूं या बीएससी?

Question :मैंने कॉमर्स से 12वीं किया है। आइएएस बनना चाहता हूं, पर मुझे समझ में नहीं आ रहा कि बीए करूंगी या बीबीए। कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए।


   सफलता के लिए आखिर सही रणनीति क्या होनी चाहिए?
   क्या असफलता के लिए गलत रणनीति जिम्मेवार है?
   रैंक व अंतिम चयन का निर्धारण कैसे होता है?
   साक्षात्कार से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों पर चर्चा करें?
   वैकल्पिक विषय के चयन के आधार क्या हैं?
   अंतिम रूप से चयन में सामान्य अध्ययन ज्यादा महत्वपूर्ण है या वैकल्पिक विषय?
   मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय कौन-कौन से हैं?
   मुख्य परीक्षा का पाठ्यक्रम क्या है?
   मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन पाठ्यक्रम को विस्तार से समझाएं ?
   प्रारंभिक परीक्षा की रूपरेखा क्या हैं?