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विशेषज्ञ सलाह
सिविल सेवा की त्रि-स्तरीय परीक्षा प्रणाली (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं व्यक्तित्व परीक्षण) में व्यक्तित्व परीक्षण अर्थात् साक्षात्कार का महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि मुख्य परीक्षा के 1750 अंकों की तुलना में साक्षात्कार 275 अंकों का होता है, परन्तु अंतिम रूप से चयन और वरीयता-सूची में स्थान निर्धारण के क्रम में इसकी निर्णायक भूमिका होती है। उल्लेखनीय है कि यहां अंक-प्राप्ति के स्तर पर बड़ा अंतर दिखायी देता है। कुछ अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा में बेहतर नम्बर पाने के बाद भी साक्षात्कार में 30-40 प्रतिशत नम्बर पाकर बाहर हो जाते हैं जबकि मुख्य परीक्षा में कम नम्बर प्राप्त अनेक अभ्यर्थी साक्षात्कार में बेहतरीन अंक अर्जित कर अंतिम रूप से चयनित हो जाते हैं। जो भी अभ्यर्थी IAS/IPS आदि के रूप में चयनित होते हैं उनमें से अधिकांश के ‘इंटरव्यू’ में बेहतरीन अंक होते हैं। स्पष्ट है कि इस स्तर पर समुचित तरीके से किया गया सकारात्मक प्रयास आपकी सफलता में निर्णायक योगदान कर सकता है।
साक्षात्कार या व्यक्तित्व परीक्षण के माध्यम से देश के सर्वोच्च प्रशासनिक पदों पर आसीन होने वाले उम्मीदवारों की मानसिक सजगता, समीक्षात्मक दृष्टिकोण, स्पष्ट एवं तार्किक अभिव्यक्ति, नेतृत्व क्षमता, संतुलित निर्णय की शक्ति, रुचि की विविधता, बौद्धिक एवं नैतिक ईमानदारी, आस-पास के परिवेश में घटित हो रही घटनाओं के बारे में अभिरुचि एवं दृष्टिकोण इत्यादि के संबंध में जांच की जाती है। यह जांच एवं आकलन विभिन्न क्षेत्रें के अति अनुभवी, वरिष्ठ, निष्पक्ष विशेषज्ञों के द्वारा की जाती है।
साक्षात्कार बोर्ड का उद्देश्य आपके ज्ञान मात्र का परीक्षण करना नहीं होता तथा कुछ प्रश्नों का उत्तर न देना साक्षात्कार के बिगड़ने का परिचायक नहीं है। साथ ही यह भी कि सभी प्रश्नों का उत्तर दे देना ही एक अच्छे साक्षात्कार का प्रतीक नहीं है। यहां यह बात अधिक महत्वपूर्ण होती है कि आप अवधारणात्मक प्रश्नों के संदर्भ में कैसा दृष्टिकोण रखते हैं, प्रश्नों का उत्तर आप किस प्रकार से देते हैं, आपका शारीरिक हाव-भाव (Body Language) कैसा है। जैसे- कुछ अभ्यर्थी किसी प्रश्न का उत्तर न जानने पर सॉरी बोलते वक्त अपराध या ग्लानि की भावना से युक्त हो जाते हैं और यह उनके चेहरे से अभिव्यक्त होने लगता है। दूसरी ओर कुछ अति आत्मविश्वासी उम्मीदवार बेहतरीन प्रश्नों के संदर्भ में बिना किसी विनम्रता के, कठोरता के साथ ‘सॉरी सर’ बोल देते हैं। ये दोनों स्थितियां ठीक नहीं है।
साक्षात्कार की तैयारी के संदर्भ में आप अन्य अभ्यर्थियों, मित्रें, परिवारजनों, अध्यापकों, चयनित प्रशासकों से विभिन्न मुद्दों पर व्यक्तिगत या सामूहिक वाद-विवाद (Group Discussion) कर सकते हैं। इस क्रम में छद्म साक्षात्कार (Mock Interview) भी दें। इस प्रक्रिया के क्रम में आप कभी स्वयं को बोर्ड के सदस्य के रूप में प्रस्तुत करें, तो कभी साक्षात्कार देने वाले उम्मीदवार के रूप में। इससे आप अपने भीतर तेज गति से परिवर्धन कर सकते हैं, अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकते हैं।
साक्षात्कार की तैयारी आप तीन भागों में बांटकर कर सकते हैं-
1. बायोडेटा (Bio-data)
2. विषय (Subject)
3. समसामयिकी (Current Affairs-National & International)
1. नाम
- अपने नाम का अर्थ, नाम से संबंधित कोई महान व्यक्तित्व, उससे समानता और विषमता
- एक गुण, जो आप उस महान व्यक्तित्व से लेना चाहेंगे।
- अभ्यर्थी का नाम यदि किसी ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व का हो या किसी प्रमुख व्यक्तित्व से संबंधित है, तो फिर उस पर प्रश्न बन सकता है।
2. जन्म तिथि
- महत्व
- उस वर्ष यदि कोई विशेष घटना घटी हो, उसकी जानकारी
3. ग्राम
- प्रमुख समस्याएं
- प्रमुख विशेषताएं, संभावनाएं
- आस-पास का चर्चित स्थल/घटना
- ग्रामीण विकास के प्रमुख कार्यक्रम (केन्द्र + राज्य)
- सामाजिक-आर्थिक दशाएं, आजीविका के साधन
4- जिला
- जिले के नामकरण का आधार और उससे संबंधित जानकारी जैसे- सुलतानपुर, संत रविदास नगर, अम्बेडकर नगर, अहमदनगर, इलाहाबाद/प्रयागराज आदि।
- प्रमुख विशेषताएं, समस्याएं, संभावनाएं व सीमाएं
- चर्चित घटनाएं, प्रमुख व्यक्तित्व
- DM बनने पर जिले के लिए कौन-से तीन काम सबसे पहले करेंगे?
- जिला स्तरीय विकास कार्यक्रम
- जिले की सामाजिक-आर्थिक स्थिति
- अपने जिले का एक विकास मॉडल बताएं
5. राज्य
- प्रमुख विशेषताएं
- प्रमुख समस्याएं
- आपके राज्य में क्या संभावनाएं हैं?
- विस्तार व सीमाएं
- चर्चित घटना, चर्चित व्यक्तित्व
- राज्य स्तरीय विवाद (अन्य राज्यों से)
- आंतरिक विवाद के वर्तमान मुद्दे
- केन्द्र से संबंध की स्थिति (विवाद, मतभेद)
- राज्य की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक स्थिति
6. बायोडेटा
- IAS क्यों बनना चाहते हैं?
- आप में ऐसा कौन-सा गुण है कि आपको IAS बना दिया जाए?
- अपनी तीन कमजोरियां बताएं
- वरीयता क्रम और उसके निर्धारण का आधार
- IAS, IPS, IFS, IRS - कार्य एवं भूमिका
- अपना परिचय दें (1 मिनट में)
7. अन्य पक्ष
- इस कक्ष का वर्णन करें?
- यदि आप किसी सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं, तो फिर आपसे आपकी नौकरी, कार्य-क्षेत्र, समस्याएं, उसके निदान के उपाय, व्यक्तिगत अनुभव और उसे छोड़ने के कारण पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
8. गैप
- एकेडमिक कैरियर (अगर एकेडमिक कैरियर में कोई गैप हो तो उसका कारण क्या है)
- आपके स्कूल या कॉलेज का Motto क्या है।
- Switch Over यानी एक क्षेत्र को छोड़कर दूसरे में क्यों आना चाहते हैं (शिक्षा से प्रशासन में)
- आपने साइंस विषय को छोड़कर आटर्स के विषय को क्यों लिया है?
- आप इंजीनियर हैं तो प्राइवेट सेक्टर में क्यों नहीं जाना चाहते?
- शोध-विषय - मेथेडोलॉजी - डेटा कलेक्शन, परिकल्पना
- उच्च शिक्षा की स्थितिए गठित प्रमुख आयोग और उसकी सिफारिशें (उच्च शिक्षा से संबंधित अभ्यर्थी इस पर ध्यान देंगे)
9. विषय
- आपने विषय का चयन किस आधार पर किया है?
- आपने दर्शनशास्त्र/इतिहास/भूगोल/ समाजशास्त्र--- विषय को क्यों चुना?
- प्रशासन में इसकी क्या उपयोगिता है?
10. हॉबी
- आपकी हॉबी (Hobby) प्रशासन में किस तरह मददगार होगी?
- इसको अच्छी तैयारी करें तथा सभी संभावित पक्षों पर सोच लें।
- Hobby से संबंधित उत्तर केवल तथ्यात्मक होने के बजाय बौद्धिक एवं व्यावहारिक (Intellectual Orientation) होना चाहिए।
- जैसे यदि आपकी हॉबी Diary writing है तो फिर ऐसे प्रश्न बन सकते हैं कि-
- आप क्यों Diary writing करते हैं?
- लाभ एवं नुकसान क्या है?
- Diary writing हॉबी के रूप में कैसे विकसित हुई?
- क्या प्रशासन में आने के बाद भी आप इसे जारी रखेंगे?
- Diary writing का प्रशासन में क्या योगदान होगा?
- क्या आपने किसी की Diary पढ़ी है (हिटलर, जयप्रकाश नारायण आदि)?
- Interview देने के बाद आप अपनी Diary में क्या लिखेंगे?
- पिछली बार आपने Diary कब लिखी थी और क्या लिखा था?
- क्या आप अपनी Diary हमें पढ़ने के लिए देंगे?
- आज मोबाइल/आईपैड आदि का जमाना है ऐसे में Diary लिखना क्या अप्रासंगिक हो गया है?
11. जरूर पढे़ं
- कुछ प्रमुख अखबारों के संपादकीय
- मनोरमा ईयर बुक
12. आपके रोल-मॉडल कौन हैं?
13. आपके जीवन का दर्शन क्या है?
14. कोई अच्छा काम जो आपने किया है?
15. इंटरव्यू के दिन का महत्व (यदि कोई विशेष दिवस हो तो उससे संबंधित जानकारी)
- क्या आपने आज का न्यूज पेपर पढ़ा है? 'आज के मुख्य समाचार क्या-क्या हैं?'
उत्तर के दो तरीके-
- मुख्य पृष्ठ के समाचार को बताना
- राजनैतिक समाचार, सामाजिक पक्ष, खेल पृष्ठ, राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित घटना।
16. कल्पनात्मक प्रश्न
- अगर आपको CM या PM बना दिया जाए तो कौन-से तीन काम पहले करेंगे?
- एक तरफ कुआं है, और दूसरी तरफ खाई है, किसमें गिरना पसंद करेंगे?
- गाय और भैंस में क्या अंतर है?
- यदि आप किसी जिले के DM हैं और आपकी कार को प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने घेर लिया है तो ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
- अगर आपको भारत का प्रधानमंत्री / कृषि मंत्री / वित्त मंत्री बना दिया जाए तो फिर आप महंगाई रोकने के लिये/बेरोजगारी दूर करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाएंगे।
17. इन शब्दों को कम बोलें या न बोलें
- ‘मतलब कि’, 'Actually', 'Basically', 'you know', 'Carry on', ‘जैसा कि मैने पहले भी कहा है', ‘देखिए' आदि
18. क्या करें
- बोर्ड के सदस्यों के समक्ष नम्र तथा सकारात्मक रुख (Positive Temperament) अपनाएं। यदि आप बोर्ड के किसी सदस्य के विचार से असहमत हैं तो आप अपनी असहमति को विनम्रता के साथ प्रस्तुत करें। सीधे विरोध करने से बचें।
- कई बार बोर्ड के किसी सदस्य द्वारा अभ्यर्थी को कुछ Hint दिया जाता है, ऐसी स्थिति में उस सदस्य को धन्यवाद दें।
- तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर में प्रश्न कर्त्ता से नजरें अवश्य मिलाए रखनी चाहिए। यदि प्रश्न का उत्तर लंबा हो, तो फिर आप अन्य सदस्यों की तरफ एक नजर डाल सकते हैं।
- यदि आपको किसी प्रश्न के उत्तर की पूर्ण जानकारी नहीं है या द्वं की स्थिति में हैं तो फिर वैसी स्थिति में आप Hint देने के लिये निवेदन कर सकते हैं, Guess करने की अनुमति मांग सकते हैं, या फिर आप जितना जानते हैं, उतना सीधे-सीधे बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं और अपनी अपूर्णता के लिये बोर्ड से क्षमा मांग सकते हैं।
- अगर आपका इंटरव्यू ‘तनावपूर्ण’ हो तो फिर वैसी स्थिति में आप अंतिम समय तक धैर्य को बनाए रखें। अगर आप अंतिम समय तक Positively बोर्ड के समक्ष विनयशीलता के साथ टिके रह जाते हैं, तो फिर वैसी स्थिति में बेहतरीन नंबर पाने की संभावना प्रबल हो जाती है, भले ही आपने कई प्रश्नों का जवाब पूरा न दिया हो या Sorry बोला हो।
- तथ्यात्मक प्रश्नों का उत्तर तुरन्त दें। परन्तु यदि कोई अवधारणात्मक प्रश्न हो या विवादास्पद मुद्दे से संबंधित कोई प्रश्न हो, तो फिर वहां थोड़ा Pause अवश्य लें। इससे उत्तर की Framing करने में आसानी होती है।
- सभी सदस्यों को समान रूप से सम्मान दें एवं विभिन्न सदस्यों को उत्तर देने के क्रम में समान रूप से दिलचस्पी दिखाएं। केवल अध्यक्ष के प्रति विशेष रूप से लगाव न दिखाएं। इसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।
- साक्षात्कार में अक्सर यह भी प्रश्न पूछा जाता है कि ‘आप अपनी कमजोरियों को बताएं'। ऐसी स्थिति में आप उन क्षेत्रें को बताएं जिसमें आप सुधार चाहते हैं तथा जिसके लिये आप प्रयासरत भी हैं।
19. क्या न करें
- कभी भी वर्तमान व्यवस्था या लोकतंत्र पर सीधी उंगली न उठाएं। जब तक बोर्ड के सदस्य द्वारा पूछा गया प्रश्न पूरा न हो, बीच में न बोलें, टोका-टोकी न करें। प्रश्न को पूरा होने दें। यदि आप प्रश्न को न समझ पाएं तो एक बार आप प्रश्न को दोहराने के लिये सदस्य से निवेदन कर सकते हैं। प्रश्न के उत्तर की जानकारी होने पर मुस्कुराना प्रारंभ न कर दें।
- यदि आप किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हैं तो फिर आप ईमानदारी का परिचय देते हुए स्पष्ट बता दें। घुमा-फिराकर जवाब देने का प्रयास न करें। बोर्ड को गलत या गड़बड़ उत्तर देकर भ्रमित करने का प्रयास न करें।
- राजनीतिक विवादों में न उलझें। किसी जाति, समुदाय, धर्म या दल विशेष के प्रति पक्षतापूर्ण विचार अभिव्यक्त न करें।
- कभी भी Chairman या सदस्यों के साथ कुतर्क न करें। अगर आप बोर्ड के किसी सदस्य की बात से असहमत हैं तो आप अपनी असहमति को विनम्रता के साथ प्रस्तुत करें।
- चेहरे, बाल, शर्ट के बटन पर अपने हाथों को न फिराएं। टाई को बार-बार ठीक करने का प्रयास न करें।
- साक्षात्कार बोर्ड की दया या सहानुभूति हासिल करने के लिये जज़्बाती न बनें या अपनी गरीबी या ग्रामीण पृष्ठभूमि आदि को बताकर सहानुभूति लेने का प्रयास न करें।
- प्रश्नों का उत्तर न जानने पर चेहरे पर ग्लानि का भाव, हताशा, निराशा या अपराधबोध का भाव न झलकने दें। आप विनम्रता के साथ Sorry बोल सकते हैं।
- कुर्सी पर बैठने के बाद आप अपनी स्थिति को बार-बार न बदलें। इससे बेचैनी, शिथिलता एवं आत्मविश्वास की कमी का पता चलता है।
20. साक्षात्कार के बाद
- यदि Chairman आपसे हाथ मिलाने के लिये अपना हाथ बढ़ाएं तो आप हाथ मिला सकते हैं। आप अपनी तरफ से हाथ न बढ़ाएं।
- Chairman द्वारा अनुमति दिये जाने पर आप सहज रूप से उठें और मन्द मुस्कान के साथ सभी को धन्यवाद कहकर बाहर आएं।
- कक्ष से बाहर जाते वक्त पीछे मुड़कर न देखें।
- अपना शिष्टाचार कक्ष से बाहर जाने तक बनाए रखें। कोई विशेष शारीरिक गतिविधि न करें।
- संदेशः मन, वचन और कर्म के साथ आत्मविश्वास से युक्त होकर किया गया प्रयास कभी निरर्थक नहीं जाता। ईश्वर भी अच्छे कर्म का अच्छा फल देने के लिये बाध्य है। अतः आप अपना ध्यान नंबर पर न लगाकर अपने कर्म पर केन्द्रित करें। प्रयास करें कि साक्षात्कार में कोई गलती न हो। कोई ऐसी चीज न बोलें जो बोर्ड के सदस्यों को नागवार लगे। आप यह ध्यान रखें कि साक्षात्कार में अंतिम समय तक सकारात्मक दृष्टिकोण से युक्त होकर (Positive Bent of Mind) रहना है।
आप सफलता को शिरोधार्य करें -
इस मंगलकामना के साथ।
'PATANJALI IAS CLASSES'
दर्शनशास्त्र ही क्यों चुनें?
- इसका पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत संक्षिप्त है, अतः इसका रिवीजन आसान है|
- यह विषय समसामयिक घटनाओं व मुद्दों पर अपेक्षाकृत कम निर्भर है|
- अन्य विषयों की तुलना में इसे कम समय (लगभग डेढ़ से दो माह) में तैयार किया जा सकता है|
- पाठ्यक्रम का विभाजन बहुत सरल है|
- विभिन्न दार्शनिकों केकथनोंका अनुसरण करना है, अतः अपनी कल्पना शक्ति के इस्तेमाल से बचा जा सकताहै|
- समय-समय पर कई उम्मीदवार इसे चुनकर अच्छी रैंक हासिल कर चुके हैं जैसे- अथर आमिर खान (2015, सेकंड रैंक)
- प्रश्न की मांग के अनुसार यदि उत्तर खूबसूरती से प्रस्तुत किया जाए तो यह अधिक अंकदायी विषय बन जाता है|
दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय और भ्रांतियां
दर्शनशास्त्र उबाऊ (बोरिंग) विषय है
यह मात्र एक कोरी कल्पना है क्योंकि यदिआपको ऐसा लगता है तो इसका अर्थ है कि आपने विषय को सिर्फ पढ़ना (रीडिंग) शुरू किया है अध्ययन (स्टडी) करना नहीं| एक बार विषयवस्तु, उद्देश्य तथा दार्शनिक के मन को समझ लेने के बाद दर्शनशास्त्र से रुचिपूर्ण विषय शायद ही कोई होगा।
दर्शनशास्त्र विषय चलन (ट्रेंड) से बाहर है|
आपको ऐसा इसलिए लग सकता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में चयनित अभ्यर्थियों में दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय रखने वाले अभ्यर्थी बहुत कम देखने को मिले हैं; परंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि यह चलन से बाहर है बल्कि तथ्य यह है कि अधिकतर उम्मीदवारों को दर्शनशास्त्र के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, अतः अपर्याप्त जानकारी तथा अन्य विषयोंके चयनकी बढ़तीआवृत्तिने दर्शनशास्त्र से चयन को हाल ही के वर्षों में प्रभावित किया है।
दर्शनशास्त्र विषय में अधिक अंक नहीं मिलते
यह बात बिल्कुल गलत है, क्योंकि पूर्व चयनित कई अभ्यर्थियों ने इस विषय के साथ अच्छे अंक अर्जित किए हैं ; जैसे- आनंदू सुरेश गोविंद ने वैकल्पिक विषय में कुल 319 अंक प्राप्त किए थे जो अपेक्षा से कहीं अधिक अच्छा स्कोर है|
यहां फिर यह बात दोहराना चाहूंगा कि यदि प्रश्न की मांग के अनुसार सुव्यवस्थित ढंग से उत्तर प्रस्तुत किया जाए तो यह विषय अधिक अंक अर्जित करने की क्षमता रखता है।
दर्शनशास्त्र अंग्रेजी माध्यम वाले अभ्यर्थियों हेतु सही विषय है
यह भी एक गलत भ्रांति है क्योंकि कोई भी विषय भाषा के अनुसार अंक प्रदान नहीं करता| आपकी कोई भी भाषा हो; विषय सामग्री की गुणवत्ता, कम शब्दों में अधिक बात कहना, दार्शनिकों के विचारों का प्रयोग व एक प्रवाहमय प्रस्तुतीकरण ही आपको अधिक अंक अर्जित करवाती है।
दर्शनशास्त्र प्राचीन इतिहास और एथिक्स जैसा विषय है
दर्शनशास्त्र में दार्शनिकों जैसे गौतम बुद्ध, महावीर जैन तथा षड्दर्शन के प्रवर्तकों आदि के शामिल होने के कारण इसे प्राचीन भारतीय इतिहास से संबद्ध कर दिया जाता है, परंतु इन दोनों विषयों में कुछ मौलिक अंतर भी है, जैसे-जहां दर्शनशास्त्र में इन दार्शनिकों की मीमांसा पर जोर होता है वहीं इतिहास में इनसे संबंधित सभी ऐतिहासिक पहलुओं को शामिल किया जाता है| इसी प्रकार एथिक्स की विषयवस्तु दर्शनशास्त्र के अंग ‘नीति मीमांसा’ का एक भाग है।
अंततः यह बात सत्य प्रतीतहोती है कि दर्शनशास्त्र में कुछ बिंदुओं पर इतिहास व एथिक्स विषय की झलक मिलती है।
दर्शनशास्त्र का मुख्य परीक्षा के अन्य प्रश्न-पत्रों में योगदान
दर्शनशास्त्र न सिर्फ वैकल्पिक विषय के रूप में बल्कि मुख्य परीक्षा के अन्य प्रश्न पत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे:-
- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1 में इतिहास तथा भारतीय समाज सेक्शन के टॉपिक दर्शनशास्त्र के प्रश्न-पत्र-2 (सामाजिक-राजनीतिक दर्शन) से प्रभावित हैं,
- इसी प्रकार सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-2 में संविधान का दर्शन तथा कल्याणकारी संकल्पना पर दर्शनशास्त्र का प्रभाव है,
- वहीं सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-3 में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति कुछ इस प्रकार की रहती है कि तकनीकी पर्यावरण आदि विषयों के उत्तर देते समय दर्शनशास्त्र से इनपुट लिए जा सकते हैं।
- सामान्य अध्ययन प्रश्न-पत्र-4 में नीतिशास्त्र स्वयं दर्शनशास्त्र की नीति मीमांसा पर आधारित है।
हाल ही में हुई 2021 की मुख्य परीक्षा के निबंध प्रश्न-पत्र पर गौर करें तो पाते हैं कि सभी 8 निबंधों के विषय सीधे दर्शनशास्त्र से लिए गए है जैसे:-
- आत्मसंधान की प्रक्रिया अब तकनीकी रूप से बाहरी स्त्रोतों को सौंप दी गई है।
- आपकी मेरे बारे में धारणा आपकी सोच दर्शाती है, आपके प्रति मेरी प्रतिक्रिया मेरा संस्कार है।
- इच्छा रहित होने का दर्शन काल्पनिक आदर्श (यूटोपिया) है, जबकि भौतिकता माया है।
- सत ही यथार्थ है और यथार्थ ही सत है।
- पालना झुलाने वाले हाथों में ही संसार की बागडोर होती है।
- शोध क्या है, ज्ञान के साथ एक अजनबी मुलाकात।
- इतिहास स्वयं को दोहराता है पहली बार एक त्रासदी के रूप में दूसरी बार एक प्रहसन के रूप में।
- सर्वोत्तम कार्य प्रणाली से बेहतर कार्य प्रणालियां भी होती हैं।
उक्त संदर्भित बातों से यदि गणितीय निष्कर्ष निकाला जाए तो दर्शनशास्त्र, अंक अर्जन की दृष्टि से महत्वपूर्ण वैकल्पिक विषय इस प्रकार साबित होता है।
वैकल्पिक विषय प्रश्न पत्र-1 |
250 अंक |
वैकल्पिक विषय प्रश्न पत्र-2 |
250 अंक |
निबंध |
250 अंक |
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-1, 2, 3 (संयुक्त रूप से) |
150 अंक (औसतन) |
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-4 |
150 अंक (औसतन) |
स्पष्ट है कि सही रणनीति द्वारा दर्शनशास्त्र वैकल्पिक विषय के साथ मुख्य परीक्षा में शामिल होने से लगभग 1050 अंक का वेटेज मिल सकता है।
यूपीएससी की अपेक्षाएं
वैकल्पिक विषय के संदर्भ में यूपीएससी यह मानकर चलता है कि विषय की समझ अभ्यर्थी में स्नातक/स्नातकोत्तर स्तर की है, अतः प्रश्नों के उत्तर देते समय आपको यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि उत्तर सारगर्भितएवं सटीक हो तथा विशिष्ट प्रकृति के हो, ना की सामान्य प्रकृति के (जैसे सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्रों में होते हैं)|
- यहां भाषा की कोई बाध्यता नहीं है, जिस भी भाषा में आप सहज महसूस करते हैं तथा उक्त अपेक्षाओं को पूर्ण कर सकते हैं उसी भाषा का चयन करना चाहिए।
विषय तैयार करने में आने वाली चुनौतियां व समाधान
दर्शनशास्त्र आपके स्नातक या स्नातकोत्तर स्तर पर विषय नहीं रहा है अर्थात यह आपके लिए नया है|
- समाधान: आप पहले विषय के पाठ्यक्रम व पूर्व वर्षो में पूछे गए प्रश्नों का अध्ययन करें| फिर पाठ्यक्रम को सुविधा अनुसार बांटकर पहले उन टॉपिक्स को तैयार करें जिनसे प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।
नोट्स बनाएं या सीधे प्रिंटेड मैटेरियल/बुक से पढ़ें?
- समाधान: यह पूर्णतः आपकी पसंद पर निर्भर करता है परंतु सलाह यही है कि आप उपलब्ध समय अनुसार शॉर्ट नोट्स जरूर बनाएं।
कितनी बार पढ़ें?
- समाधान: संपूर्ण पाठ्यक्रम को कम से कम 3 बार तो गहराई से पढ़ना चाहिए तथा 2 बार रिवीजन के तौर पर। इस प्रकार कुल 5 बार पढ़ा जा सकता है|
उत्तर लेखन अभ्यास कब करें?
- समाधान: कम से कम 4 माह तो उत्तर लेखन अभ्यास करना ही चाहिए। आप अपनी सुविधा अनुसार 3 माह लगातार प्रारंभिक परीक्षा के पहले तथा 1 माह लगातार प्रारंभिक परीक्षा के पश्चात यह लेखन अभ्यास कर सकते हैं|
उत्कृष्ट निबंध कैसे लिखें
आगामी मुख्य परीक्षा को ध्यान में रखते हुए हम इस अंक में प्राथमिकता के अनुरूप निबंध विषय के उत्तर लेखन के संबंध में विशेषज्ञ सलाह प्रस्तुत कर रहे हैं। सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र 1, 2 एवं 3 की तैयारी के लिए आवश्यक रणनीति की चर्चा पत्रिका के आगामी अंकों में प्रकाशित होने वाले विशेषज्ञ सलाह में की जाएगी।
संपादकीय मंडल
निबंध लेखन की वह महत्वपूर्ण विधा है जिसके द्वारा किसी भी विषय में लेखक के सामान्य ज्ञान, तार्किक विश्लेषण की योग्यता, सूक्ष्म निरीक्षण कला, जागरूकता, भाषा एवं अभिव्यक्ति की क्षमता के साथ-साथ उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जा सकता है। संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में निबंध एक महत्वपूर्ण प्रश्न-पत्र के रूप में शामिल है। चूंकि निबंध में रटने की कला का कभी भी मूल्यांकन नहीं होता तथा मौलिकता पर ही अच्छे नंबर निर्भर करते हैं, अतः अभ्यर्थी को मौलिक एवं सटीक निबंध लिखने का अभ्यास करना चाहिए। संघ लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में निबंध का प्रश्न-पत्र 250 अंकों का होता है। इस प्रश्न-पत्र में अभ्यर्थी को 50-60 से लेकर 160-170 अंक तक आते हैं, अतएव अभ्यर्थी के अंतिम चयन में निबंध में प्राप्त अंकों का निर्धारक योगदान माना जा सकता है।
निबंध क्या है?
वस्तुतः निबंध साहित्य का वह स्वरूप है, जिसमें किसी विषय का विचारपूर्ण एवं रोचक पद्धति से सुसम्बद्ध एवं तर्कपूर्ण प्रतिपादन किया जाता है। निबंध जहां मन के भावों की स्वच्छंद उड़ान है, वहीं यह किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि की दृष्टि से लेखन की गद्यात्मक अभिव्यक्ति भी है। चूंकि निबंध प्रायः अवधारणात्मक होते हैं, अतः उसमें बुद्धि की विश्लेषण क्षमता, समीक्षा शक्ति एवं अभिव्यक्ति सामर्थ्य की आवश्यकता होती है। उत्कृष्ट एवं प्रभावशाली निबंध की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं-
- निबंध का एक निश्चित लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही एक विचार एवं एक दृष्टिकोण के आलोक में लिखा जाना चाहिए।
- निबंध की आत्म-अभिव्यक्ति ही निबंध की प्रमुख विशेषता है। इस तरह निबंध पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए।
- निबंध में विचारों को निश्चित श्रेणी में रखा जाना चाहिए अर्थात् एकसूत्रता एवं क्रमबद्धता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। साथ ही इस क्रमबद्धता का अंत निष्कर्ष के साथ होना चाहिए।
- निबंध में लिखी गई बातों को साफ तौर पर लिखा जाना चाहिए अर्थात दृष्टिकोण स्पष्ट हो। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि निबंध के प्रत्येक विचार चिंतन हर एक भाव एवं आवेग की अभिव्यक्ति करते हों।
- निबंध में विचारों से यह स्पष्ट झलकना चाहिए कि उसमें मौलिकता है तथा उसमें आप के अनुभव शामिल हैं। किसी के विचारों या आदर्शों का अंधानुकरण निबंध में प्रभावहीनता भी पैदा कर सकता है।
निबंध के विषय
निबंध के अनेक विषय हो सकते हैं, यथा-राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भावात्मक, काल्पनिक, वैज्ञानिक आदि। किन्तु प्रतियोगी परीक्षाओं विशेषकर संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोगों की मुख्य परीक्षा में पूछे जा रहे ज्यादातर निबंध निम्नलिखित चार श्रेणियों के होते हैंः
- वर्णनात्मक निबंधः इस श्रेणी के अंतर्गत पूछे गए निबंध का संबंध विचारों, भावों तथा लेखक की प्रतिक्रियाओं से होता है तथा वह अपनी अनुभूति के आधार पर निबंध लिखता है।
- कथनात्मक निबंधः इस तरह का निबंध किसी घटना या घटनाओं कीशृंखला का कथनात्मक प्रस्तुतीकरण होता है। इसमें किसी घटना विशेष को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करते हुए अंत में अपना निष्कर्ष देने की अपेक्षा की जाती है।
- विवेचनात्मक या उद्घाटनात्मक निबंधः इस प्रकार के निबंधों की प्रमुख विशेषता यह होती है कि किसी विषय के संदर्भ में एक पूर्ण कथन द्वारा इसके समस्त पहलुओं का वर्णन करना होता है।
- तार्किक निबंधः इस प्रकार के निबंध का संबंध लोगों को तर्क से प्रभावित करने की योग्यता से जुड़ा होता है। इसलिए लेखक की सोच में गंभीरता तथा तर्क देने की मजबूत शैली ही इस प्रकार के निबंधों में चार चांद लगाती है। इस प्रकार के निबंध को लिखने में रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
निबंध कैसे लिखें?
किसी विषय पर विस्तार से सोचना और उसे विशेष रूप देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। दिमाग के सोचने की गति तेज है लेकिन लिखने की गति धीमी। दिमाग को एक विषय के इर्द-गिर्द बांधे रखना और सिलसिलेवार सोचने के लिए केंद्रित करना कठिन काम है। इसी अनुशासित किस्म के बंधे हुए रचना कर्म को निबंध कहा जाता है। इसके लिए मूलतः दिमाग के ऐसे प्रशिक्षण की जरूरत होती है कि वह एक मुद्दे पर टिककर विचार करे और उसे सिलसिलेवार अभिव्यक्त करे।
1.निबंध की सामग्रीः निबंध में क्या-क्या होना चाहिए, निबंध में किस-किस सामग्री का समावेश होना चाहिए यह तो निबंध का विषय ही तय करता है, किंतु फिर भी लगभग सभी तरह के निबंधों में कुछ खास सामग्री अवश्य होती है, जिसमें प्रमुख हैं- तथ्य, तर्क, कल्पना और अभिव्यक्ति कौशल। इन पर संक्षेप में विचार आवश्यक है।
क) तथ्यः हर निबंध में उस विषय से संबंधित कुछ तथ्य, सूचनाएं, आंकड़े आदि होने चाहिए। आर्थिक-वाणिज्यिक, वैज्ञानिक विषयों से संबंधित निबंधों में तो आंकड़ों की विशेष आवश्यकता होती है। ये तथ्य प्रामाणिक और यथासंभव अद्यतन होने चाहिए और हो सके तो उन स्रोतों का उल्लेख भी होना चाहिए जहां से ये तथ्य प्राप्त हुए हैं। तथ्यों के संबंध में मनगढ़ंत कल्पना की उड़ान से बचना चाहिए। किंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अधिक तथ्यों को भरने से मौलिक विचार दब जाते हैं तथा भाषा-शैली सपाट हो जाती है।
ख) विचारः निबंध में विचार की अभिव्यक्ति का विशेष महत्व है। विचारशील निबंधों में तो विचार ही मेरुदंड हैं। विचार न केवल सटीक और प्रासंगिक होने चाहिए, बल्कि वे एक के बाद दूसरे को पुष्ट करने वाले भी होने चाहिए। निबंध में मुख्यतः विचारशीलता की ही परीक्षा होती है। इसलिए निबंध में जो भी सामग्री प्रस्तुत की जाए वह वैचारिक दृष्टि से बहुत ही उत्कृष्ट होनी चाहिए। निबंध की समाप्ति एक वैचारिक परिणति के साथ होनी चाहिए। तथ्यों का प्रस्तुतीकरण एवं विशेष रूप से उनका विश्लेषण वैचारिकता पर आधारित होना चाहिए।
ग) कल्पनाः तथ्य एवं तर्क से किसी निबंध की नींव भरी जा सकती है, किन्तु उसकी सजावट विचारों की मौलिकता द्वारा होती है जो लेखक की कल्पना के द्वारा ही संभव है। एक भवन में जो महत्व सजावट का है, वही निबंध में कल्पना का है। बहुत से निबंध तो कल्पना केन्द्रित ही होते हैं।
- कल्पनाशीलता को न तो पुस्तकों से प्राप्त किया जा सकता है और न इसे तुरंत विकसित ही किया जा सकता है, किन्तु नए ढंग से सोचते रहने से तथा जो जैसा है उससे भिन्न वह कैसा हो सकता है, अर्थात विकल्पों पर सोचते रहने से कल्पनाशीलता विकसित होती है। कल्पना यद्यपि विचारों की मौलिक उड़ान होती है, किन्तु उसकी डोर तथ्यों और तर्कों के हाथ में होती है। निराधार कल्पना का कोई महत्व नहीं है।
- कल्पना के अपने वैकल्पिक तथ्य एवं तर्क होने चाहिए ताकि वे वास्तविक तथ्यों एवं तर्कों से सामंजस्य बिठाए रखे। किसी भी समस्या के समाधान जुटाने या निबंध में एक नई किस्म की दुनिया रचने में वह निरर्थक न लगे।
घ) अभिव्यक्ति कौशलः तथ्य, विचार और कल्पना को भाषा के माध्यम से व्यक्त करना होता है। यह भी कह सकते हैं कि भाषा के जरिए ही किसी व्यक्ति के तथ्य, विचार और कल्पना से परिचित हुआ जा सकता है। अतः निबंध में भाषा अपने-आप में एक सामग्री है। भाषा में निबंधकार का व्यक्तित्व सन्निहित होता है। अतः निबंध लेखन में भाषा का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
- भाषा मूल रूप से एक व्यवहार है, वह व्यक्ति की चेतना में निरंतर विकसित होती है। उसको तथ्यों की तरह कुछ समय में ही विकसित नहीं किया जा सकता है। अतः व्यावहारिक होने के नाते भाषा का विकास उसके निरंतर प्रयोग करते रहने से ही होता है।
निबंध में अच्छे अंक कैसे?
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में निबंध एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल है। इस पत्र में अच्छे अंक प्राप्त कर आसानी से प्रतियोगी अंतिम चयन में उच्च स्थान प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, इस पत्र में अभ्यर्थियों को 50-60 से लेकर 160-170 तक अंक प्राप्त होते हैं। जाहिर है ऐसे में जरा सी चूक न सिर्फ आपको 115-120 अंकों से वंचित कर देगी, बल्कि अंतिम चयन पर भी प्रश्न चिह्न लगा देगी। न्यूनतम एवं अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले प्रतियोगियों के लेखन में जो अंतर होता है, अगर आपने इस अंतर की पहचान कर ली तो यकीन मानिए आप इस प्रश्न-पत्र में काफी अच्छे अंक प्राप्त करेंगे।
आईएएस मुख्य परीक्षा में उम्मीदवारों को तीन घंटे की समय सीमा में किसी एक निर्दिष्ट विषय पर निबंध लिखना होता है। विषयों के संबंध में विकल्प दिया जाता है। उम्मीदवारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वो अपने विचारों को क्रमबद्ध करते हुए निबंध के विषय से निकटता बनाए रखें और अपनी बात संक्षेप में लिखें। प्रभावशाली एवं सटीक अभिव्यक्ति को विशेष वरीयता दी जाती है।
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा निबंध प्रश्न-पत्र में उम्मीदवार की विषय वस्तु पर पकड़, चुने हुई विषय वस्तु के साथ उसकी प्रासंगिकता, रचनात्मक तरीके से सोचने की उसकी योग्यता और विचारों को संक्षेप में युक्तिसंगत एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की क्षमता की जांच की जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए निबंध में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए निम्न बातों पर अमल करना चाहिए।
- विषय का चयनः सर्वप्रथम निबंध में विषय चयन पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। इस संबंध में पहली सावधानी यही होनी चाहिए कि प्रश्न-पत्र में दिए हुए विषयों में जो भी विषय आपको पहली नजर में प्रिय लगे तथा जिस पर आप ठीक ढंग से अपने विचार प्रस्तुत कर सकते हों, उसी विषय का चयन करें। उस विषय को चुनें, जिसके बारे में पर्याप्त तथ्य एवं तर्क हों और सबसे बड़ी बात जिसमें अपनी भाषायी सामर्थ्य दिखाने का पर्याप्त अवसर हो।
- विषय के प्रारूप पर विचारः विषय चुनने के बाद उसकी भूमिका से उपसंहार तक के प्रारूप पर विचार करें। विचार करने में जल्दी न करें, पर्याप्त समय दें। विचार करते समय बिंदुओं को लिखते चलें। फिर उन बिन्दुओं के क्रम को अच्छी तरह देख लें। यह कार्य रफ में करें। इसके लिए पर्याप्त समय लेकर चलें; प्रक्रिया का यह चरण बहुत आवश्यक है।
- निबंध लेखनः इसके बाद बिंदुवार निबंध लेखन आरम्भ करें। न तो शुरू में आधार बिन्दु लिखें और न ही बिन्दुओं के शीर्षक दें। हां, महत्वपूर्ण तथ्यों एवं विचारों वाले शब्दों तथा वाक्यों को रेखांकित (Underline) किया जा सकता है। अंत में लिखे हुए निबंध को गौर से पढ़ें तथा वर्तनी, शब्दों, तथ्यों, तर्कों, क्रमिकता आदि की दृष्टि से जहां जरूरी हो, संशोधन करें।
- निबंध वही लिखें जिस पर आपकी पकड़ सबसे अच्छी हो। कई प्रतियोगी उस विषय पर निबंध लिखने का प्रयत्न करते हैं, जिस पर प्रायः कोई नहीं लिखता। यह एकदम गलत दृष्टिकोण है। हमेशा ध्यान रखें कि आपको अंक उत्तर पर मिलते हैं, प्रश्न पर नहीं।
- कुछ विषयों पर विविध स्रोतों से सामग्री एकत्र करें, पढ़ें और उसका विश्लेषण करें।
- विषय से न भटकें। अगर भूलवश भटकाव हो भी जाए तो उस गिलहरी की भांति वापस लौट जाएं, जो पेड़ के निचले हिस्से से चढ़कर पेड़ की पत्ती-पत्ती तक घूमकर पुनः वापस आ जाती है।
- निबंध में प्रभावोत्पादक शुरुआत व सारगर्भित निष्कर्ष आधारस्तंभ की भूमिका निभाते हैं। अतः इसका विशेष ध्यान रखें।
- निबंध सरल, स्पष्ट, विशिष्ट तथा सुंदर शैली में होना चाहिए। विचारों को यथासंभव मौलिक तथा ‘टू द पॉइंट’ रखें।
ऐसा विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि उपर्युक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर प्रतियोगी, निबंध में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
विषयों की प्राथमिकता के आधार पर बनाएं अपनी रणनीति
- संपादकीय मंडल
पिछले अंक में हमने असफलता के लगभग प्रत्येक पहलू पर चर्चा की। इस अंक से हम लोग विधिवत रूप से समग्र तैयारी की रणनीति पर विचार करेंगे, कि हिंदी माध्यम में सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है।
सर्वप्रथम हम लोग थोड़ी चर्चा उस समय की करें, जिस समय हिंदी माध्यम से अच्छे परिणाम आते थे या हिंदी माध्यम के प्रतियोगी भी मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक से उत्तीर्ण होते थे, साथ ही वैकल्पिक व सामान्य अध्ययन के विषयों में भी अच्छे अंक प्राप्त करते थे।
- अगर हम वर्ष 2000 के आस-पास की तैयारी की रणनीति की चर्चा करें तो उस समय ज्यादातर विद्यार्थी अपने सीनियर या शिक्षक के मार्गदर्शन में तैयारी करते थे। सीनियर सामान्यतः दुर्भावना से प्रेरित नहीं होते थे। वे आपको अपना छोटा भाई या जूनियर समझकर सुझाव देते थे। प्रतियोगियों को भी अपने शिक्षकों व सीनियरों पर पूर्ण विश्वास होता था। क्लास में कम विद्यार्थी होते थे, शिक्षकों के पास भी समय होता था तथा उस समय शिक्षक भी विद्यार्थियों से खूब मेहनत कराने का प्रयास करते थे।
- उस समय ऐसे शिक्षक बहुत कम होते थे, जो वर्तमान शिक्षकों की तरह कक्षा में निम्न स्तर का हास्य व्यंग करके छात्रों का बहुमूल्य समय बर्बाद करते थे। उस समय के शिक्षक निम्न स्तर के हास्य व्यंग करने को अपनी गरिमा के अनुकूल नहीं मानते थे। छात्रों और शिक्षकों का व्यवहार गुरु-शिष्य परंपरा का पूरी तरह से पालन करता था। शिक्षक कक्षा में तनाव को कम करने के लिए विषय से संबंधित ही किसी रोचक जानकारी को साझा करता था, ना कि फालतू के विषयों पर चर्चा करके।
- वर्तमान में इस क्षेत्र में स्तरहीन शिक्षकों के आगमन ने क्लास का स्तर गिराया है। अब सामान्य तौर पर शिक्षक कथा-कहानी या व्यर्थ मुद्दों से संबंधित बातों में समय बर्बाद करने की कोशिश सिर्फ दो ही परिस्थितियों में करते हैं या तो उनके दिमाग में आगे पढ़ाने का कंटेंट ना हो या वे पूरी तैयारी के साथ ना आए हों।
- किसी शिक्षक को तीन घंटे की क्लास लेने के लिए कम से कम 100 पृष्ठों से अधिक की सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही शिक्षक को 3 घंटे का एक UPSC के स्तर की क्लास लेने के लिए खुद भी 3-4 घंटे पढ़ना होगा और हम सभी जानते हैं कि इतना समय तो अब किसी शिक्षक के पास है ही नहीं, तो फिर वह आपकी कमियों और अच्छाइयों पर कितना ध्यान दे पाएगा।
- उपरोक्त बातों से समस्या तो स्पष्ट हो गई कि शिक्षक तो योग्य हैं, परन्तु उनकी वर्तमान शिक्षण शैली अयोग्य है। अतः अभ्यर्थी को अपनी तैयारी की रणनीति बनाते समय उपलब्ध विकल्पों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करते हुए अपनी क्षमताओं के अनुसार उचित विकल्प का चयन करना चाहिए।
गुरु या मेंटर का चयन
हमें सबसे पहले गुगल गुरु, साक्षात्कार, यू-ट्यूब तथा सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी पढ़ने की रणनीति बनाने का त्याग करना होगा। हमारा मानना है कि जो भी टॉपर यू-ट्यूब या न्यूज चैनल या संस्थान में जाकर अपना अनुभव शेयर करता है वह ज्यादातर अपनी तैयारी की रणनीति से इतर अपने अनुभव बताता है और सबसे बड़ी बात यह कि ये टॉपर ज्यादातर अंग्रेजी माध्यम के होते हैं। वास्तव में अधिकांश सफल अभ्यर्थी तो यह भी कहने की स्थिति में नहीं होते कि रिजल्ट से पहले वे आश्वस्त थे सफलता मिलेगी ही।
- जरा सोचें हम सभी अलग-अलग परिवेश, संस्कार, संस्कृति, शैक्षणिक पृष्ठभूमि, विश्वविद्यालयों आदि से आते है, हमने अलग-अलग विषय पढ़े होते हैं, ऐसे में हमारी तैयारी एक किसी व्यक्ति की सलाह या मार्गदर्शन के आधार पर कैसे हो सकती है?
- आज भी गुरु के रूप में सबसे अच्छा विकल्प आपके शिक्षक तथा चयनित विद्यार्थी होते हैं। ऐसे छात्र भी आपके मेंटर हो सकते हैं जिन्हें परीक्षा का अच्छा अनुभव हो तथा जिन्होंने अच्छे अंकों के साथ मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण की हो। ऐसे मेंटर आपकी क्षमताओं का आकलन करके रणनीति तैयार करने में आपकी मदद कर सकते हैं। ध्यान रहे कि ये शिक्षक या चयनित विद्यार्थी अपनी कमियों में सुधार के फलस्वरूप ही सफल हुए है अतः वे अगर ईमानदारीपूर्वक आपका मार्गदर्शन करें तो आपको सफलता दिलवा सकते हैं।
- आप जिस भी व्यक्ति, शिक्षक या अभ्यर्थी को अपना गुरु बनाएं, उस पर पूरा विश्वास करें, उनके मार्गदर्शन में आपने जो भी रणनीति बनायी हो उस पर पूरी तरह से अमल करें।
तैयारी की विधिवत रणनीति
सबसे पहले आप अंकों को ध्यान में रखकर योजनाबद्ध रूप में विचार करें कि कैसे आप 950-1050 अंक तक प्राप्त कर सकते हैं। आपको यह निर्धारित करना होगा कि किस विषय की तैयारी कब करें, कैसे करें; क्या पढ़ें, क्या न पढ़ें।
- सामान्यतः हिदी माध्यम का विद्यार्थी हर जगह शॉर्ट कट ढूंढताहै। वह सफलता के शॉर्टकट के चक्कर में अपना समय बर्बाद कर लेता है। उसकी कोशिश हमेशा वैसी सामग्री ढूंढने में होती है जिसमें उसे ज्यादा पढ़ना ना पड़े। इसलिए वह फालतू की अध्ययन सामग्री, यू-ट्यूबर के वीडियो आदि में अपना ज्यादा समय बर्बाद करता है। मानक पुस्तकों का अध्ययन करने की बजाय वह गाइड जैसी पुस्तकों या कोचिंग के स्टडी मैटेरियल से ही परीक्षा में टॉप करने की अपेक्षा रखता है। टॉपर बनने के लिए विधिवत रणनीति के साथ समग्र अध्ययन की जरूरत होगी, जिसके लिए किसी एक कोचिंग, शिक्षक या किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
- हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों की एक सामान्य सोच यह होती है कि पहले प्रीलिम्स पास कर लें फिर मेंस देंगे या सिविल नहीं भी होगा तो क्या हुआ, पीसीएस कर लेंगे या कोई और नौकरी तो मिल ही जाएगी। यह वैकल्पिक सोच ही उसे संघर्ष करने से रोकती है। अगर आपने संकल्प ले लिया है कि हमें सिविल सेवा में जाना है तो तैयारी के शुरुआती दिनों में दूसरे विकल्प के बारे में सोचना घातक है।
- वर्तमान दौर में सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए प्रत्येक विषय को मुख्य परीक्षा के दृष्टिकोण से पढ़ने की जरूरत है, ना कि प्रीलिम्स के दृष्टिकोण से।
- मुख्य परीक्षा की तैयारी करते समय पाठ्यक्रम के उन प्रश्न-पत्रों को सबसे पहले पढ़ें, जिनमें अपेक्षाकृत आसानी से बेहतर अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। आप निम्नलिखित तरीके से प्राथमिकता के आधार पर अपनी तैयारी की रणनीति बना सकते हैं-
क्र. |
प्रश्न-पत्रों की प्राथमिकता |
लक्षित अंक |
1. |
वैकल्पिक विषय |
310 |
2. |
निबंध |
120 |
3. |
एथिक्स (पेपर-4) |
110 |
4. |
साक्षात्कार |
170 |
5. |
पेपर-1 |
100 |
6. |
पेपर-2 |
80 |
7. |
पेपर-3 |
80 |
कुल |
970 |
- उपर्युक्त से स्पष्ट है कि वैकल्पिक विषय को सबसे पहले पढ़ें, तत्पश्चात प्राथमिकता के आधार पर क्रमशः निबंध, एथिक्स, साक्षात्कार तथा जीएस पेपर-1, 2, 3 की तैयारी करें। वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स एवं साक्षात्कार की तैयारी के लिए आवश्यक रणनीति की चर्चा आगे की गई है तथा जीएस पेपर-1, 2, 3 की तैयारी की रणनीति पर सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के अगले अंक (जनवरी 2022) में चर्चा की जाएगी।
वैकल्पिक विषय की तैयारी की रणनीति
- आज भी आपका वैकल्पिक विषय आपकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। मुख्य परीक्षा पास करने के लिए वैकल्पिक विषय में 300-330 अंक का टार्गेट करना होगा, जो कि ईमानदारीपूर्वक किये गए प्रयास से प्राप्त किया जा सकता है। हिन्दी माध्यम में बहुत से ऐसे शिक्षक हैं जिनके मार्गदर्शन से आप मानविकी विषयों में 300-330 अंक तक प्राप्त कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम तैयारी के शुरुआती 6 माह अपने वैकल्पिक विषय पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करें। इस चरण में मानक पुस्तकों को पढ़ना, कोचिंग करना तथा व्यक्तिगत नोट्स बनाना महत्वपूर्ण है।
- इसके पश्चात विगत 15 वर्षों में पूछे गए प्रश्नों को पाठ्यक्रम के अनुसार वर्गीकृत करके उनका उत्तर लिखना शुरू करें। क्रमशः पुराने से नये वर्ष की तरफ बढ़ते हुए उत्तर लेखन अभ्यास करें तथा अपने लिखे गए उत्तरों की तुलना पुस्तकों की हल सामग्री से करें। इस तुलना के आधार पर अपने उत्तर लेखन में सुधार कर सकते हैं। क्रॉनिकल बुक्स द्वारा विभिन्न वैकल्पिक विषयों के लिए प्रश्नोत्तर रूप में प्रकाशित “15 वर्ष- अध्यायवार हल प्रश्न-पत्र” पुस्तक इस सन्दर्भ में आपके लिए उपयोगी रहेगी।
- आप शिक्षक या मेंटर से उन्हीं प्रश्नों का मूल्यांकन करवाएं जो पिछले 5 वर्षों के हों। इसके पहले के वर्षों के प्रश्नों के उत्तर लेखन का मूल्यांकन या तो आप स्वयं करें या अपने किसी समकक्ष अभ्यर्थी से इनका मूल्यांकन करवाएं तथा अपने समकक्ष अभ्यर्थी के उत्तर लेखन का मूल्यांकन आप करें। इस प्रक्रिया से आप एक-दूसरे की कमी और अच्छाई को जान पाएंगे। एक-दूसरे की कमियों का आकलन कर आपसी विमर्श से अपने उत्तर लेखन में सुधार लाया जा सकता है।
- ध्यान रखें कि परीक्षा हॉल में आपको 10 अंक वाले प्रश्न को 7 मिनट में तथा 15 अंक वाले प्रश्न को 11 मिनट में लिखना होता है। इतने कम समय में उत्तर लिखने का अभ्यास अगर आप पहले से नहीं करेंगे तो परीक्षा हॉल में आप समय से अपना पेपर पूरा नहीं लिख पाएंगे। हिंदी माध्यम के ज्यादातर छात्रों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि परीक्षा हॉल में वे समय प्रबंधन नहीं कर पाते, ऐसे में या तो उनके कुछ प्रश्न छूट जाते हैं या वे आखिर में लिखे गए प्रश्नों को बेहद कम समय दे पाते हैं। अभ्यर्थी द्वारा समय प्रबंधन ना कर पाने के कारण एग्जामिनर को उनके उत्तरों में वह स्तर नहीं मिलता, जो उसके पूर्व के प्रश्नों के उत्तर में होता है, जिससे अभ्यर्थी को उस प्रश्न-पत्र में अच्छे अंक प्राप्त नहीं हो पाते।
- जैसा कि हमने पहले कहा वर्तमान में हिंदी माध्यम के बहुत से ऐसे शिक्षक हैं जो अगर आपका उचित मार्गदर्शन करें तो वैकल्पिक विषय में 300+ अंक दिला सकते हैं। हमारा सुझाव है कि ऐसे शिक्षकों से आपको बचना चाहिए जो आपको समय ना दें, चाहे वे कितने भी बड़े शिक्षक क्यों न हों। वास्तव में समस्या सामग्री की नहीं बल्कि लेखन शैली की है। लेखन शैली में भी शब्दों का चयन तथा कम से कम शब्दों में अपने उत्तर का प्रस्तुतीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। निर्धारित समय सीमा और शब्द सीमा के अंदर सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को परीक्षा हॉल में प्रस्तुत करना भी काफी चुनौतीपूर्ण है। अतः बड़े नाम के पीछे ना भागकर वैसे लोगों के साथ जुड़ें, जो आपकी कमियों को उजागर कर आपको तराश सकें।
- वैकल्पिक विषय के द्वितीय प्रश्न-पत्र पर अलग से ध्यान देने की जरूरत है। प्रायः यह सामान्य प्रक्रिया है कि वैकल्पिक विषयों के शिक्षक पेपर-2 पर कम ध्यान देते हैं या आपको करेंट अफेयर्स एवं विभिन्न पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित आलेखों से अपने नोट्स को अपडेट कर लेने की सलाह देते हैं। यहां ध्यान देने की जरूरत है कि वैकल्पिक विषय का दूसरा पेपर, पहले पेपर से अधिक अंकदायी है। अगर उसका अध्ययन ठीक से किया जाए, तो इसमें आप बढ़त ले सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वैकल्पिक विषय का दूसरा पेपर व्यावहारिक (applied) स्वरूप का है तथा इसके प्रश्नों का उत्तर लिखते समय इनपुट के रूप में व्यावहारिक या समसामयिक सामग्री शामिल की जा सकती है, जिससे आपके उत्तर औरों से अलग व बेहतर हो सकते हैं।
- इसलिए अपने शिक्षक या मेंटर से पेपर-2 से संबंधित तैयारी की विशेष रणनीति पर चर्चा करें। ध्यान रहे कि प्रत्येक शिक्षक पेपर-2 पढ़ाने से बचता है, क्योंकि यह प्रश्न-पत्र समय बहुत लेता है और शिक्षक को इसे पढ़ाने के लिए खुद भी काफी समय देना पड़ता है। पेपर-2 को जब तक अंतरविषयी तथा बहुविषयी दृष्टिकोण (Interdisciplinary-Multidisciplinary approach) से नहीं पढ़ा जाएगा तब तक इसमें अच्छे अंक मिलना संभव नहीं है। अतः हमारा सुझाव है कि सर्वप्रथम वैकल्पिक विषय पर ध्यान दें और उसकी तैयारी में कोई कसर ना छोड़ें।
आपकी सफ़लता में निबंध महत्वपूर्ण
- हिंदी माध्यम की सफलता में दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न-पत्र निबंध विषय का है। उत्कृष्ट निबंध लेखन कौशल कभी किसी एक पुस्तक को पढ़कर या किसी एक शिक्षक से क्लास लेकर अथवा परीक्षा के आखिरी दिनों में पढ़कर विकसित नहीं किया जा सकता। निबंध लेखन कौशल विकसित करने में शिक्षक की भूमिका सिर्फ इतनी ही है कि वह आपको इसके लिए मार्गदर्शन दे सकता है या निबंध के लिए महत्वपूर्ण विषय बता सकता है। शिक्षक द्वारा मार्गदर्शन से आप सिर्फ यह जान पाते हैं कि तैयारी के लिए क्या करना है; तैयारी तो आपको ही करनी होगी। यानी अगर तैरना है तो पानी में आपको स्वयं ही उतरना होगा।
- निबंध लेखन में शिक्षक की भूमिका वैसी ही है, जैसे आप घोड़े को पानी तक तो ले जा सकते हैं, परन्तु उसे पीने के लिए बाध्य नहीं कर सकते; पानी तो घोड़ा अपनी मर्जी से ही पियेगा। उसी प्रकार निबंध लेखन के लिए आपको अपने आप को स्वयं तैयार करना होगा; अगर आप अपने निबंध लेखन में पुस्तकों द्वारा अर्जित ज्ञान ही लिखेंगे तो आपकों इसमें औसत अंक ही मिलेंगे।
- निबंध में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए आपको वे सभी प्रयास करने होंगे जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक हैं। आपको समाज के प्रति अपने नजरिये, जीवन पद्धति तथा धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यताओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में तटस्थता लानी होगी, साथ ही विकास के साथ-साथ सांविधानिक पहलुओं की स्वतंत्र समझ भी विकसित करनी होगी।
- एक अच्छा निबंध वही व्यक्ति लिख सकता है, जो विषयों को समझने और समझाने में सक्षम हो। इसकी सबसे पहली जरूरत है कि आप सभी विषयों की अधिक से अधिक सामग्रियों का अध्ययन करें और अपने सहपाठियों व शिक्षक से महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करें। इस परिचर्चा से आप अपने अंदर संवाद करने की क्षमता विकसित कर सकेंगे। निबंध लेखन के लिए इनपुट सिर्फ पुस्तकों से ही प्राप्त नहीं किये जा सकते बल्कि विषयों को सुनकर, देखकर या समझकर भी ये इनपुट प्राप्त किये जा सकते हैं। इसलिए तो निबंध, निरंतर तैयारी का विषय है।
- परीक्षा के आखिरी दिनों में निबंध का सिर्फ अभ्यास ही किया जा सकता है। इसलिए अगर सही शिक्षक या मेंटर का मार्गदर्शन मिल जाए तो टेस्ट सीरीज जरूर कर लें, हालांकि टेस्ट सीरीज का लाभ तभी मिलेगा, जब वह शिक्षक स्वयं आपकी कॉपी चेक करे। आजकल विभिन्न संस्थानों द्वारा जो टेस्ट सीरीज संचालित की जाती है, उसमें ज्यादातर कोई विद्यार्थी ही कॉपी जांच रहा होता है। वैसे टेस्ट सीरीज से भी ज्यादा अच्छा यह होगा कि आप महत्वपूर्ण मुद्दों या प्रश्नों को कहीं से भी प्राप्त करके लिखें तथा अपने सहपाठियों के साथ समूह में चर्चा करें।
- मानविकी पृष्ठभूमि वाला हिंदी माध्यम का कोई भी छात्र अच्छा निबंध लिख सकता है, क्योंकि मानविकी विषयों को पढ़ने के कारण उसका अपनी बातों को अभिव्यक्त करने का कौशल अन्य तकनीकी पृष्ठभूमि वाले छात्रों की तुलना में बेहतर होता है। हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की एक चुनौती यह है कि उन्हें अंग्रेजी माध्यम की तुलना में किसी भी तथ्य या महत्वपूर्ण बिंदु को अभिव्यक्त करने के लिए अधिक शब्द लिखने पड़ते हैं, परन्तु ‘शब्द संख्या की अधिकता’ की आपकी यह चुनौती निबंध लेखन में आपको बढ़त दिला सकती है। अतः निबंध में कैसे 120-130 अंक लाए जाएं इसका प्रयास कर आप दूसरी बाधा पार कर सकते हैं।
- अच्छा निबंध लेखन आपके साक्षात्कार में बहुत सहायक होता है, क्योंकि स्तरीय निबंध लेखन से विषयों की समझ के मामले में आप बहुत परिपक्व हो चुके होते हैं। सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल के आगे के अंकों में उत्कृष्ट निबंध लेखन से संबंधित विशेषज्ञ सलाह प्रकाशित की जाएगी।
मुख्य परीक्षा की सफ़लता में तीसरी महत्वपूर्ण भूमिका पेपर-4 की है
मुख्य परीक्षा की सफलता में तीसरा किरदार जीएस पेपर-4 का है। सामान्यतः शिक्षक तथा विद्यार्थी इस प्रश्न-पत्र को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। पाठ्यक्रम या पिछले वर्षों में पूछे गए प्रश्नों को देखने पर यह विषय काफी सहज लगता है, परन्तु व्यावहारिक रूप में यह इतना सहज है नहीं।
- नीतिशास्त्र का प्रश्न-पत्र ना तो मानविकी विषयों की तरह तथ्यात्मक है और ना ही तकनीकी विषयों की तरह सिद्धांतों पर आधारित। यह विषय पूरी तरह से व्यावहारिक व अनुभवजन्य स्वरूप का है। यह समाज, शासन-प्रशासन, मानवीय मूल्य, संस्कृति, जीवन दर्शन, कार्य शैली आदि से व्युत्पन्न विषय है, जो मानव व उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था में आई विकृति तथा अप्राकृतिक व अव्यावहारिक समस्याओं से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में सुधार की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसलिए इसे न ही कोई शिक्षक पढ़ा सकता है और न ही कोई पुस्तक।
- यह विषय भी निबंध और साक्षात्कार की तरह ज्ञानार्जन की निरंतर प्रक्रिया के माध्यम से ही तैयार किया जा सकता है, जिसमें आपके द्वारा अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान का इस्तेमाल कर आप प्रश्नों का हल खोज पाएंगे। अगर आप ऐसा कर पाते हैं, तब आपको यह विषय स्कोरिंग लगेगा तथा इसमें अच्छे प्रयास से आप बेहतर अंक प्राप्त कर सकेंगे।
- यह विषय आपकी समझ की परीक्षा लेता है ना कि सिर्फ ज्ञान की। यह विषय, सामान्य अध्ययन के अन्य तीन प्रश्न-पत्रों से अर्जित ज्ञान के आधार पर आपकी जो समझ विकसित हुई है, उसी की जांच करता है। इसीलिए इस विषय के संबंध में विभिन्न लोगों की अलग-अलग राय है। क्योंकि इस विषय को जिसने जैसा समझा है तथा जो जिस विषय का विशेषज्ञ है, उसी हिसाब से इस विषय की व्याख्या करता है।
- सामान्यतः इतिहास और भूगोल को छोड़कर प्रायः सभी विषयों के शिक्षक इस विषय को पढ़ाते हैं और इसे अपने विषय के सबसे करीब बताते हैं। यही बात इस विषय को अलग बनाती है। इसलिए हम इस विषय को ज्ञान की परीक्षा नहीं समझ की परीक्षा का विषय बोलते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि इसके लिए आवश्यक समझ कैसे विकसित की जाए।
- सर्वप्रथम इस विषय के लिए कोई एक ऐसी पुस्तक पढ़ें, जिसमें पाठ्यक्रम के अनुरूप सामग्री दी गई हो। इससे आप इस विषय से संबंधित शब्दावलियों (Terminologies) को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे तथा उसका प्रयोग सामान्य जन-जीवन, मानवीय, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर प्रशासन के दृष्टिकोण से समस्याओं को सुलझाने में कर पाएंगे। सभी दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर प्रश्नों का हल सोचें, विचार करें, अपने सामान्य जीवन में अमल करें तो इस विषय को आसानी से तैयार किया जा सकता है।
- इसलिए सुझाव यह है कि इस विषय की तैयारी के लिए कोचिंग से ज्यादा जरूरत पुस्तकों के अध्ययन और लेखन अभ्यास की है। LEXICON जैसी पुस्तक ने यह काम काफी आसान किया है, जिसने आपको पेपर-4 से संबंधित सभी टर्मिनोलॉजी से पूरी तरह से परिचित कराया है। सफलता सुनिश्चित करने के लिए पेपर-4 में आपको 110 अंक का टार्गेट करना होगा।
अंततः
- अतः हमारा सुझाव यह है कि वर्तमान समय में विद्यार्थियों को वैकल्पिक विषय का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए तथा वैकल्पिक विषय, निबंध और एथिक्स पर सबसे ज्यादा जोर देते हुए 550 अंक सुरक्षित करने की रणनीति तैयार करनी चाहिए। अगर इन तीन पर आपकी पकड़ अच्छी हो गई तो साक्षात्कार में आप कम से कम 125 अंक जरूर ले आएंगे तथा इस प्रकार आप वैकल्पिक विषय, निबंध, एथिक्स व साक्षात्कार को मिलाकर 675 अंक तक ला सकेंगे।
- अगर आप जीएस पेपर-I, II और III में सामान्य अंक (80-100) प्राप्त करने की रणनीति के तहत सोचें तो भी आप 975-1000 अंक तक पहुंचते हैं। पेपर-I, II एवं III को अंडर स्कोर करने का हमारा कारण हिंदी माध्यम के छात्रों का इन पेपरों में कम अंक प्राप्त होना है। जिसका मूल कारण निर्धारित शब्द-सीमा व समय-सीमा में सटीक उत्तर नहीं लिख पाना है। अतः आप उपरोक्त बातों को अपनी रणनीति में शामिल कर सकते हैं। आगामी अंक में जीएस पेपर-I, II एवं III की तैयारी से संबंधित रणनीति की चर्चा की जाएगी।
सिविल सेवा में हिन्दी माध्यम के छात्रों की असफलता की जिम्मेदारी किसकी?
- संपादकीय मंडल
सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल इस अंक से “हिंदी माध्यम में कैसे हों सफल” नामक मार्गदर्शन शृंखला की शुरुआत कर रही है, जिसमें हम हिंदी माध्यम की असफलता से जुड़ी समस्याओं व चुनौतियों की चर्चा करेंगे तथा समाधान भी देंगे। आज सोशल मीडिया या ऑनलाइन सामग्री या कोचिंग द्वारा दी गई सामग्रियों के बीच यह चयन करना मुश्किल हो गया है कि कौन सी सामग्री सही है, कौन सी गलत। इसी को देखते हुए सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल आने वाले अंकों में तथ्य व प्रमाण के साथ एक-एक विषय की पड़ताल कर आपका मार्गदर्शन करेगी, बिना किसी लाग लपेट के।
परीक्षार्थियों की भूमिका
छात्रों को परीक्षा की तैयारी से पहले स्वयं की क्षमताओं का आकलन करना चाहिये। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि विगत 5-6 वर्ष पहले के प्रश्नों को हल करके देखें, अगर उसमें से 25 प्रश्नों का भी उत्तर आप कर पाते हैं तो कोचिंग से जुड़ें; अन्यथा पहले सेल्फ स्टडी के माध्यम से तैयारी की रूपरेखा तैयार करें, जिसमें मानक पुस्तकों या एनसीईआरटी के विस्तृत अध्ययन को प्राथमिकता दें।
- सामान्यतः परीक्षार्थी अपना स्वयं का आकलन किए बगैर परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं। छात्र, इस नाम पर इस परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर देते हैं कि उनका कोई दोस्त, परिवार के किसी सदस्य की इच्छा है कि वो आईएएस बने।
- छात्र सिर्फ साक्षात्कार, विज्ञापन और संस्थानों के बहकावे में आकर बिना जांच-पड़ताल के किसी भी संस्थान में जाकर एडमिशन ले लेते हैं। वैसे इस सोशल मीडिया मार्केटिंग के युग में सही जानकारी हासिल करना और उस पर विश्वास करना आसान भी नहीं है।
- परीक्षा की तैयारी का सही समय स्नातक का प्रथम वर्ष है, खासकर हिंदी माध्यम के लिए; इसमें परीक्षा से पूर्व की बेसिक तैयारी का समय मिल जाता है तथा बेसिक तैयारी की समाप्ति के बाद की रणनीति बनाने में सुविधा होती है। साथ ही बेसिक तैयारी के दौरान ही अपनी विषय में रुचि या समझ विकसित हो जाती है, जिससे वैकल्पिक विषय का चयन करने में सहायता मिल जाती है। बेसिक तैयारी के बाद परीक्षा केन्द्रित होकर तैयारी की रणनीति बनानी चाहिये, यानी पहले आई.ए.एस. या पी.सी.एस. किसकी तैयारी करनी है, इसका निर्धारण करें।
- यह निर्धारण अपनी-अपनी जरूरतों के अनुसार करना चाहिए। यानी अगर आपके पास समय (उम्र) है तो आप पहले पी.सी.एस. से शुरुआत कर सकते हैं तथा जब आप अपने अंदर विषयों को तार्किक रूप से समझने की क्षमता का विकास कर लें तब आई.ए.एस. की तैयारी के लिए आगे बढ़ें।
- जिस स्थान यानी शहर से आपको तैयारी करनी है उसके चयन की रणनीति भी शुरुआत में ही तैयार करनी चाहिये, जिससे आप सोच-समझकर सहपाठियों व मार्गदर्शक का चयन कर पाएंगे। सहपाठियों व मार्गदर्शक का योगदान मुख्य परीक्षा में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, वे आपको भटकाव से बचाते हैं।
- करेंट अफेयर्स के लिए न्यूज पेपर, पत्रिका आदि का चयन, उनके पढ़ने के तरीके व उन पर स्वयं के नोट्स बनाने की रणनीति भी शुरुआत में ही तैयार करें। शुरू से ही अंग्रेजी भाषा का कोई एक न्यूज पेपर या पत्रिका का अध्ययन अवश्य करें। तैयारी के शुरुआती दिनों में करेंट अफेयर्स या नोट्स के पीछे समय बर्बाद नहीं करना चाहिये; नोट्स तब बनाना शुरू करें, जब आप यह निर्धारित कर लें कि अगला प्रीलिम्स आपको कब देना है।
- ऑनलाइन साइट, सामग्री व सोशल मीडिया के इस्तेमाल, चयन और जरूरतों को समझना, अनावश्यक के सुझावों से दूरी बनाना तथा क्या पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है, इसकी समझ विकसित करना भी जरूरी है।
- पहले प्रिलिम्स या मेंसः हिंदी माध्यम का छात्र सामान्यतः यह सोचता है कि पहले प्रीलिम्स पास कर लें, फिर मेन्स की पढ़ाई की जाएगी, जबकि होना यह चाहिये कि सबसे पहले छात्र को वैकल्पिक विषय पर ध्यान देना चाहिए, तत्पश्चात मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन की तैयारी करनी चाहिए तथा इसके बाद प्रीलिम्स के लिए रिवीजन और अंत में टेस्ट सीरीज करनी चाहिये।
- अपनी कमियों को पहचान कर लक्ष्य को निर्धारित करते हुए टाइम टेबल तैयार करना, समय की कीमत समझना और उसके अनुसार क्लास व स्टडी मैटेरियल आदि को पढ़ने में तालमेल बैठाना भी आपकी रणनीति का एक हिस्सा होना चाहिए। सामान्यतः छात्र क्लास के साथ-साथ स्टडी मैटेरियल का अध्ययन भी शुरू कर देते हैं; ऐसा करना नुकसानदेह है। स्टडी मैटेरियल का अध्ययन या तो क्लास से पहले करें या उस विषय की क्लास खत्म होने के बाद, रिवीजन के लिए। क्लास करते समय सिर्फ क्लास पर फोकस करें, क्लास में प्रश्न पूछना सीखें तथा ‘स्वयं द्वारा बनाए गए’ प्रश्न पूछें।
- टेस्ट सीरिजः शुरुआत में ही टेस्ट सीरीज, उत्तर लेखन शैली, निबंध लेखन कला आदि की तैयारी के अनावश्यक दबाव से बचना चाहिये। इनकी तैयारी तब शुरू करें, जब आपका पाठ्यक्रम 60 प्रतिशत तक कम्पलीट हो गया हो।
- अन्य से तुलनाः यदि आपने एक अच्छे कॉलेज/संस्थान से पढ़ाई की है, तो तैयारी की रणनीति अलग बनाएं तथा अगर आपने एक सामान्य कॉलेज/संस्थान से पढ़ाई की है, तो आपको तैयारी की रणनीति अलग बनाने की जरूरत है।
- यदि आप 10+2 के स्तर पर या स्नातक स्तर पर या नौकरी में रहते हुए तैयारी करे रहे हैं, तो इन सभी के लिए आपको अपनी तैयारी की रणनीति अलग-अलग बनानी होगी। यहां तक कि यदि आप डिस्टेंस लर्निग से पढ़ाई कर रहे हैं, तब भी आपकी रणनीति अन्य प्रतियोगियों से अलग होनी चाहिए।
- साथ ही आपको अंग्रेजी माध्यम के छात्रों एवं इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले छात्रों की तुलना में भी तैयारी की रणनीति अलग बनानी होगी, खासकर हिंदी माध्यम के छात्रों को।
स्टडी मैटेरियल व क्लास नोट्स की भूमिका
प्रायः सभी कोंचिंग संस्थान के स्टडी मैटेरियल तथा क्लास नोट्स आदि पाठ्य सामग्रियों में नयापन नहीं है। इन पाठ्य सामग्रियों में प्रकाशन संस्थानों द्वारा छापी गई गाइड की तरह की सामग्रियों की ही नोट्स के रूप में प्रस्तुति होती है। ये पाठ्य सामग्रियां 2013 से पहले ही अपनी उपयोगिता खो चुकी हैं।
- कोचिंग संस्थान की पाठ्य सामग्री के चयन में सावधानी बरतने की जरूरत है। स्टडी मैटेरियल या क्लास नोट्स के नाम पर कुछ भी खरीद कर पढ़ना हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए घातक सिद्ध हुआ है। छात्रों के लिए यह जानना जरूरी है कि सामान्य तौर पर कोई भी संस्था यह पाठ्य सामग्री उसके क्लास में पढ़ाने वाले शिक्षक से तैयार नहीं करवाती। सामग्री और क्लास में तालमेल नहीं होने के कारण परीक्षार्थी नोट्स को नवीनतम करने के बजाय, नए नोट्स तैयार करने में लग जाते हैं।
- वर्तमान में स्टडी मैटेरियल या क्लास नोट्स, पत्र-पत्रिकाएं व पुस्तकें ऐसी होनी चाहिए कि छात्र इनके माध्यम से अपने उत्तर को कम से कम शब्दों में लिख सके। इनमें नवीन टर्मिनोलॉजी या शब्दों का समावेशन होना चाहिए। उत्तर लेखन में शब्दों के चयन का बहुत बड़ा योगदान है।
विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की भूमिका
सामान्यतः हिदी भाषी राज्यों में स्नातक स्तर में मानविकी विषयों की पढ़ाई का स्तर इतना निम्न है कि उससे मुख्य परीक्षा का उत्तर लिखना तो दूर एक साधारण प्रतियोगिता परीक्षा भी पास नहीं की जा सकती।
- हिदी भाषी राज्यों के कॉलेजों में मानविकी विषयों की पढ़ाई, विषयों के विशेषज्ञों के ऊपर निर्धारित होती है। इन राज्यों में कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थानों को छोड़कर ज्यादातर कॉलेजों की स्थिति ऐसी है कि शिक्षक सामान्य तौर पर छात्रों को 5-10 प्रश्न तैयार करने को बोल देते हैं और परीक्षा में ज्यादातर प्रश्न उन्ही में से आ जाते हैं।
- कॉलेज स्तर की परीक्षाओं में जो प्रश्न पूछे जाते हैं, उनके उत्तर की शब्द सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं होती, जबकि इसके ठीक विपरीत UPSC द्वारा जो प्रश्न पूछे जाते हैं उनकी शब्द सीमा 150 तथा 250 शब्द की ही होती है। इसलिए स्नातक स्तर की सामान्य शिक्षा UPSC में उपयोगी साबित नहीं होती।
पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों की भूमिका
ऐसी पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें से बचे, जिनमें नवीन पाठ्यक्रम तथा लगातार बदलती प्रश्नों की प्रकृति के अनुरूप परिवर्तन नहीं किया गया है, उनमें पूर्व की भांति ही विषयों तथा सामयिक मुद्दों की प्रस्तुति जारी है।
- मुख्य परीक्षा की तैयारी कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है, इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति बनाकर उसके अनुरूप पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तकों का चयन करना चाहिए। साथ ही मुख्य परीक्षा की निरंतर तैयारी जरूरी है, इसके लिए पाठ्यक्रम पर आधारित पत्रिकाओं के आलेख, विशेष सामग्री तथा नए संस्करण की पुस्तकों को पढ़ना जरूरी है।
- पुस्तकों का चयन और हिंदी माध्यम में उनकी अनुपलब्धता सबसे बड़ी समस्या है, साथ ही बाजार में उपलब्ध अधिकांश पुस्तकें ऐसी हैं, जो प्रीलिम्स परीक्षा को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। अगर आपको UPSC की तैयारी करनी है तो स्नातक से ही अपनी पाठ्य-पुस्तकों का चयन सोच समझ करना चाहिये।
छात्रों की विरोधात्मक प्रवृत्ति
आयोग प्रशासकीय जरूरतों के अनुरूप अपने पाठ्यक्रम का निर्धारण करता है। इसलिए आयोग से यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वह अपने स्तर को हमारे अनुरूप करे, बल्कि हमें अपने आप को UPSC के अनुरूप ढालना होगा। अभी तक जिन समस्याओ के कारण रिजल्ट नहीं आ रहे हैं उन पर सुधार की कोई चर्चा ही नहीं होती।
- हिंदी माध्यम के छात्र बात-बात पर आंदोलन करने चल देते हैं। छात्रों के आंदोलन करने से या आंदोलन का समर्थन करने से UPSC अपने आपको नहीं बदलेगा। यानी वह वर्तमान हिन्दी माध्यम के छात्रों की मांगों के अनुरूप अपने प्रश्न-पैटर्न व पाठ्यक्रम को नहीं बदलेगा।
आयोग की भूमिका
प्रश्नों के निर्माण से लेकर प्रारूप उत्तर लेखन तक आयोग की परीक्षा प्रक्रिया अंग्रेजी माध्यम के लोगों द्वारा संचालित की जाती है। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं तथा हिंदी माध्यम के छात्रों के सामने आने वाली मूल समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता; जैसे प्रश्न-पत्र का हिंदी के अनुकूल न होना तथा हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में प्रश्नों के ट्रांसलेशन में विषय विशेषज्ञों की जगह अनुवादकों का इस्तेमाल करना आदि।
- तथ्य यह है कि अंग्रेजी में लिखी गई किसी सामग्री को हिंदी में लिखने के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता होती है। कभी-कभी तो ऐसा देखा जाता है कि किसी बात को लिखने के लिए अंग्रेजी में कम शब्दों की जरूरत पड़ती है, जबकि हिंदी में वही सामग्री लिखने में ज्यादा शब्द खर्च करने पड़ते हैं।
- अतः यह स्पष्ट है कि जिस शब्द सीमा में UPSC द्वारा अपने प्रश्न के उत्तर की अपेक्षा की जाती है, उस शब्द सीमा में उत्तर लिखना हिंदी माध्यम के छात्र के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।
- आयोग को यह चाहिए कि वह हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए प्रश्न-पत्र तैयार करने में अंग्रेजी माध्यम के विशेषज्ञों व अनुवादकों के बजाय हिंदी माध्यम के विशेषज्ञों को शामिल करे तथा एग्जामिनर की मॉडल उत्तर पुस्तिकाएं भी हिंदी माध्यम में ही बनाई जाएं।
शिक्षक की भूमिका
विचारणीय तथ्य यह है कि वर्तमान पाठ्यक्रम अधिकांशतः मानविकी विषयों पर आधारित है तथा इन विषयों पर हिन्दी माध्यम में आई.ए.एस. के क्षेत्र में विद्वानों की कमी नहीं है, फिर भी परिणाम क्यों नहीं आ रहे?
- हिंदी माध्यम के शिक्षक, अंग्रेजी माध्यम की तुलना में विषयों को पढ़ाने में समय तो काफी देते हैं, लेकिन उन व्यावहारिक पक्षों को नहीं पढ़ाते जहां से प्रश्न पूछे जाते हैं।
- वर्तमान में हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को इस तरह से पढ़ाने की आवश्यकता है कि वह मुख्य परीक्षा के प्रश्नों को निर्धारित समय में 150 से 250 शब्दों में सटीक रूप से लिख सके। साथ ही वह इतना सक्षम हो कि प्रश्नों की प्रवृत्ति या प्रकृति को आसानी से समझ सके।
- वर्तमान में सबसे ज्यादा प्रश्न उन क्षेत्रों से आ रहे हैं, जो व्यावहारिक हैं, जिन्हें किसी पुस्तक या पाठ्य सामग्री में ढूंढा नहीं जा सकता। चूंकि प्रश्न बहु-विषयी तथा अंतरविषयी प्रकृति के आ रहे हैं, इसलिए इन्हें अपनी समझ से ही लिखा जा सकता है।
- सामान्यतः वर्तमान में प्रश्न विभिन्न विषयों या मुद्दों से जुड़ी समस्याओं, चुनौतियों, प्रभाव तथा परिणाम परअपने परंपरागत स्वरूप के साथ-साथ समकालीन संदर्भ लिए हुए होते हैं। इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को छात्रों में विषय की व्यापक समझ विकसित करनी होगी, ताकि वे ‘विश्लेषण करने के स्तर’ की क्षमता का विकास कर सकें।
- आयोग विगत 10 वर्षों में 3 बार प्रश्नों की प्रकृति व प्रवृत्ति में व्यापक परिवर्तन ला चुका है, ऐसे में शिक्षक को छात्रों को हॉलिस्टिक रूप से पढ़ाना होगा, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जिस समय छात्र कोचिंग में पढ़ता है तथा जिस समय वह परीक्षा में शामिल होता है, उसमें 3 या उससे अधिक वर्ष का अंतर हो जाता है।
- विडंबना यह है कि 5-7 साल का अनुभव रखने वाले शिक्षक भी परीक्षा की जरूरतों को अच्छी तरह समझने के बावजूद अपने पढ़ाने के तरीके में परिवर्तन नहीं ला रहे हैं। इसका कारण यह है कि वर्तमान में व्यावहारिक स्वरूप के तथा बहु-विषयी या अंतरविषयी प्रकृति के प्रश्न आ रहे हैं।
- इन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षकों को अपने अध्यापन में व्यावहारिक पक्ष को ज्यादा पढ़ाना पड़ेगा, जिसे पढ़ाने में ज्यादा समय लगता है तथा उन्हें स्वयं भी अपने अध्ययन पर समय देना होगा, जिनका उनके पास अभाव है।
कोचिंग संस्थानों की भूमिका
सामान्यतः कोचिंग संस्थान के प्रबंधक बिना परीक्षार्थी की योग्यता को परखे उन्हें अपनी व्यावसायिक मजबूरियों की चलते परीक्षा के लिए प्रोत्साहित कर एडमिशन ले लेते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि हर एक छात्र की क्षमता एवं स्तर का व्यक्तिगत रूप से आकलन कर उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुरूप मार्गदर्शन प्रदान किया जाए। साथ ही संस्थानों को अपने पढ़ने-पढ़ाने के तरीके में व्यापक परिवर्तन लाना होगा, जो 500 या 1 हजार की संख्या वाले क्लास में संभव नहीं है।
- कोई भी संस्थान सिर्फ परंपरागत तरीके से नोट्स लिखवाकर मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक नहीं दिलवा सकता। इस प्रकार के अध्ययन से आप अधिक से अधिक प्रारंभिक परीक्षा ही पास कर सकते हैं।
- कोचिंग संस्थानों के फाउण्डेशन कोर्स के लिए छात्र लाखों रुपये तथा अपना 18 से 24 महीने का समय खर्च करते हैं। इन फाउण्डेशन कोर्स में संस्थान, छात्रों को सतही तौर पर सामान्य अध्ययन की तैयारी कराकर उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ देते हैं। कोचिंग संस्थानों की इस प्रवृत्ति में व्यापक सुधारक की जरूरत है।
- वर्तमान में कोचिंग संस्थान शिक्षा को व्यवसाय की तरह देखते हैं और छात्रों को एक उत्पाद की तरह; जबकि शिक्षा एक सेवा है ना कि व्यवसाय।