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सामान्य प्रश्न ,ट्रिप्स और ट्रिक
आईएएस परीक्षा में यदि सफल होना है, तो पहली एवं सबसे प्राथमिक शर्त तो यही है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये अर्थात ‘अपनी क्षमता मूल्यांकन का सूक्ष्म परीक्षण’ (Diagnosing self assessment abilities)।’ जानकारी जुटाने से लेकर सफल होने तक के तीन चरण हैं। वस्तुतः ये चरण ठीक उसी तरह हैं जिस तरह एक डॉक्टर किसी मरीज के साथ करता है। ये चरण हैं-
1. केस स्टडी
2. निदान या डायग्नोसिस
3. इलाज या ट्रीटमेंट।
केस स्टडी से तात्पर्य है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। यह ‘खुद को जानों’ वाला चरण है। खुद को जानने से मतलब है ‘आत्मकथा’ लेखक की तरह अपनी सारी सच्चाइयाें को निष्पक्ष एवं बेबाकी से बयां कर देना और कुछ भी नहीं छिपाना। यह अपनी क्षमता का परीक्षण के समान है। तात्पर्य यह कि आपको अपनी सारी अच्छाइयों एवं कमजोरियों का ज्ञान एवं एहसास होना चाहिये। यहां अच्छाइयों एवं कमजोरियों का संबंध आईएएस परीक्षा के संदर्भ में हैं। इसके लिए खुद का अध्ययन या सूक्ष्म परीक्षण आवश्यक है। अपनी कमजोरियों या निर्बल पक्षों को जानना इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए अपने बारे में सारी सूचनाएं संग्रह करनी होगी और सिविल सेवा परीक्षा की आवश्यकताओं से उसका तालमेल बिठाना होगा। यह तभी संभव है जब आप परीक्षा एवं उसके प्रत्येक चरण की बारीकियों से आप सुपरिचित हों।
दूसरा चरण है डायग्नोसिस या निदान की। यही सबसे महत्वपूर्ण चरण है। डायग्नोसिस या निदान का मतलब होता है ‘समस्या को जानना’। चिकित्सा की भाषा में यह इसे ‘रोग की पहचान’ है और आईएएस परीक्षा की भाषा में ‘निर्बल पक्षों’ का पूरा ज्ञान। इस बिंदु तक पहुंचने में प्रथम चरण में जुटायी गयी सूचनाएं कार्य करती है। जब आप खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन कर लेते हैं तब आपके पास आपका सारा खाका सामने होता है जिसके बल पर आप जान जाते हैं कि आपकी समस्या क्या है और आपको करना क्या है?
तीसर चरण है इलाज या ट्रीटमेंट की। एक बार समस्या या निर्बल पक्षों को जानने के पश्चात उसके समाधान की प्रक्रिया आरंभ होती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक डॉक्टर किसी मरीज की बीमारी जानने के पश्चात उसका इलाज आरंभ करता है। जब आप सिविल सेवा परीक्षा की सारी प्रक्रियाओं एवं आवश्यकताओं से सुपरिचित हो जाते हैं तो आपका बल उन कमजोरियों को दूर करने की होती है या होनी चाहिये जिसे दूर किये बिना सिविल सेवा परीक्षा में सफल होना कठिन होता है।
अतएव उपर्युक्त तीनों प्रक्रिया का सार यही है कि परीक्षा में शामिल होने से पूर्व खुद की क्षमता का सूक्ष्म स्तर पर संपूर्ण निष्पक्ष मूल्यांकन जरूरी है। यह मूल्यांकन संभव है पर खुद से खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन आसान भी नहीं है। आपको भीड़ से अलग करने में आपके गुरु/मार्गदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे अंधकार मार्ग में प्रकाश दिखाने का कार्य करते हैं। जिस तरह कोई व्यक्ति अपने इलाज के लिए क्लिनिक में डॉक्टर के पास जाता है ठीक उसी प्रकार सिविल सेवा परीक्षा रूपी महासागर को सफलता पूर्वक तैरकर पार करने के लिए गुरू के मार्गदर्शन रूपी नैया की भी जरूरत होती है। उन्हें पूर्व में कई शिष्यों को महासागर पार कराने का अनुभव जो होता है। जाहिर है कि शिक्षक या मार्गदर्शक न केवल आपका सटीक आकलन करने में सफल होते हैं वरन् आपका मूल्यांकन कर कमजोर पक्षों को दूर करने का इलाज भी बताते हैं और उस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यदि आपने खुद की क्षमता का सटीक मूल्यांकन कर लिया तो फिर आईएएस परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफल होना असंभव नहीं रह जाता। हिंदी माध्यम के छात्र यहीं गलती कर बैठते हैं। ‘क्रॉनिकल आईएएस अकेडमी’ आज उसी गुरु या सफल मार्गदर्शक की भूमिका में है, जहां आपकी गलती करने की संभावना को शून्य कर देता है।
संघ लोक सेवा आयोग के आंकड़ें बताते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित छात्रों में 150 से अधिक अपने प्रथम प्रयास में ही सफल हो गये जो कि कुल सफल छात्रों का 15.8 प्रतिशत है। यह आंकड़ा कमोवेश एक समान ही रहता है। ये आंकड़ें यह दर्शाते हैं देश की कठिनतम परीक्षा होने के बावजूद इसमें सफल होना और वह भी प्रथम प्रयास में कठीन भले हो पर असंभव तो नहीं ही है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि केवल 15 प्रतिशत प्रत्याशी ही अपने प्रथम प्रयास में सफल होते हैं और शेष को कई प्रयासों की जरूरत पड़ती है तथा कई तो सारे प्रयासों के बावजूद भी सफलता का स्वाद नहीं चख पाते? आखिरकार शेष 85 प्रतिशत सफल छात्रों को तो एक से अधिक प्रयासों की जरूरत पड़ जाती है। दूसरी ओर, यूपीएससी के आंकड़ों की एक सच्चाई यह भी है कि इसमें अंतिम रूप से सफल होने वाले छात्रों की प्रतिशतता काफी कम होती है, लगभग 0.004 प्रतिशत। हिंदी माध्यम में तो आंकड़े और भी चौकाने वाले हैं। अंतिम सफल छात्रों में हिंदी माध्यम का आंकड़ा तो आजकल 100 भी पार नहीं कर पा रहा है।आखिर ऐसा क्यों है?
वस्तुतः आईएएस परीक्षा में पहली बार शामिल होने वाले छात्रों में अधिकांश संख्या वैसे होते हैं जो महज दिखाने के लिए ही आईएएस परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं और उसमें शामिल होते हैं। कई छात्र ऐसे भी होते हैं जो परीक्षा को समझने के लिए इसमें प्रवेश लेते हैं। यहां, इन पर चर्चा करना हमारा उद्देश्य नहीं, क्योंकि न तो वे परीक्षा के प्रति गंभीर होते हैं और न आपको उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है और न हम यहां उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं। पर आईएएस परीक्षा में पहली बार शामिल होने वाले बहुत सारे छात्र गंभीर भी होते हैं और उन सभी की तमन्ना भी होती है कि पहली बार में ही आईएएस बन जायें। भला कौन ऐसा नहीं चाहेगा, पर चाहने से क्या होता है? सच तो यही है कि कुल सफल छात्रों में 15 प्रतिशत ही प्रथम प्रयासी होते हैं शेष लगभग 85 प्रतिशत को दोबारा, तिबारा कमर कसने की जरूरत होती है। पर यहां विचारणीय विषय यह है कि आखिरकार प्रथम प्रयास में सफल होने वाले उन 15 प्रतिशत छात्रों में ऐसा क्या है जो उन्हें शेष से अलग कर देता है और असंभव को संभव बना देते हैं? या फिर बहुसंख्यक छात्र अपने सारे प्रयास गंवाने के बावजूद सफलता का स्वाद नहीं चख पाते हैं? ऐसे छात्रों की भी कमी नहीं है जो प्रारंभिकी से पहले ही मुख्य परीक्षा की तैयारी तो कर लेते हैं परंतु उनके कोचिंग नोट्स खुलते ही नहीं, अर्थात उन्हें कभी भी मुख्य परीक्षा देने का मौका मिलता ही नहीं। वहीं जो 15000 छात्र मुख्य परीक्षा देते हैं उनमें महज 2500 ही साक्षात्कार तक पहुंचते हैं और इनमें भी लगभग 1000 ही अंतिम रूप से सफल होते हैं। अर्थात इस पूरी प्रक्रिया में 4 लाख छात्र बाहर हो जाते हैं और 1000 से 1200 ही मसूरी की प्रशासनिक प्रशिक्षण यात्रा पर जा पाते हैं। इनमें भी हाल के वर्षों में हिंदी माध्यम के सफल छात्रों की संख्या तो काफी कम हो गयी है।
यदि 4 लाख की बात न करें तो कम से कम यह तो मानना ही पड़ेगा कि इनमें से 1 लाख तो गंभीर होते ही हैं जो सिविल सेवक बनने के प्रति गंभीर होते हैं। सच कहा जाये तो इन सभी 1 लाख गंभीर छात्रों में सिविल सेवक बनने की कमोवेश क्षमता होती है और वे बन भी सकते हैं। हिंदी माध्यम के छात्रों पर भी यही लागू होता है। लेकिन कुछ तो ऐसी बात है जिसके कारण हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के समान सफल नहीं होते, हालांकि क्षमता के मामले में उनमें कोई कमी नहीं होती। यहां तक कि वे मेहनत भी अधिक करते हैं। इसके बावजूद वे अधिक सफल नहीं हो पाते। कुछ हद तक यूपीएससी की प्रणाली को हम दोष दे सकते हैं पर उसे सुधारना न तो आपके हाथ में है और न ही यह विषय आपके डोमेन में आता है।
• अंतिम चयन व रैंक निर्धारण करने के लिए मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार के अंकों को जोड़ा जाता है। इस प्रकार उम्मीदवारों द्वारा मुख्य परीक्षा (लिखित परीक्षा) तथा साक्षात्कार में प्राप्त किए गए अंकों के आधार पर उनके रैंक का निर्धारण किया जाता है।
• उम्मीदवारों को विभिन्न सेवाओं का आबंटन परीक्षा में उनके रैंकों तथा विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए उनके द्वारा दिए गए वरीयता क्रम को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
• प्रतिक्षा सूची- आजकल संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम के पश्चात एक प्रतिक्षा सूची भी निकालती है। जो सफल छात्र सेवा ज्वाइन नहीं करते हैं या बाद में छोड़ देते हैं उनकी जगह प्रतिक्षा सूची से छात्रों को सेवा में ज्वाइन करने के लिए बुलाया जाता है।
• जो उम्मीदवार मुख्य परीक्षा के लिखित भाग में आयोग के विवेकानुसार निर्धारित न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त करते हैं उन्हें साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया जाता है।
• साक्षात्कार कुल 275 अंकों का होता है। इसमें कोई न्यूनतम क्वालीफाइंग मार्क्स नहीं होता।
• साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या कुल रिक्तियों की संख्या से लगभग दुगनी होती है, अर्थात पदों की संख्या 1000 है तो साक्षात्कार के लिए 2000 से अधिक छात्र बुलाये जाते हैं।
वैकल्पिक विषय के चयन और उनकी तैयारी के लिए अभ्यार्थियों को निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. अभ्यर्थियों को वैकल्पिक विषय के चयन में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। अभ्यर्थी जब यूपीएससी की तैयारी आरंभ करते हैं तो अधिकतर वैकल्पिक विषय के चयन में दो ट्रेंडों का सर्वाधिक पालन करते हैं, प्रथम-अपने एकेडमिक विषयों में से किसी का चयन करना। द्वितीय- किसी सीनियर या कोंचिग संस्थान के अध्यापक के सलाह के अनुसार चयन। लेकिन ये दोनों ट्रेंड आत्माघाती हो सकता है क्योकि इनमें से किसी भी तरीके में अभ्यर्थी के रूचि विशेष की तरफ ध्यान दिया गया हो, ये नहीं कहा जा सकता। अतः अभ्यर्थी को वैकल्पिक विषय का चयन करते समय अपनी विशेष रूचि का ध्यान रखना चाहिए। भले ही वह विषय अपने शैक्षिक एकेडमिक का हो, किसी की सलाह से चयन किया गया हो या इनसे भिन्न ही क्यों न हो।
2. विषय के चयन के पश्चात् अभ्यर्थी को कुछ प्रमाणिक पुस्तकों का चयन करना चाहिए। साथ ही वैसे लेखकों की पुस्तकों का ही चयन करें जो तटस्थ लेखन करते हों। वैसे अब अभ्यर्थियों को पुस्तकों का अंबार लगाने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि पूर्व की भांति प्रारंभिक परीक्षा के लिए अत्यधिक तथ्यों के संग्रह की आवश्यक्ता नहीं रह गयी है।
3. वैकल्पिक विषय की पढ़ाई सामान्य अध्ययन की भांति नियमित रूप से प्रतिदिन करनी चाहिए। ऐसा न हो कि वैकल्पिक विषय की पढ़ाई वैकल्पिक तरीके से ही हो।
4. वैकल्पिक विषय का भी नियमित लेखन कार्य करना चाहिए क्योंकि परीक्षा में बिना लेखन अभ्यास के विचारों को शब्दों का रूप देना कठिन होता है।
5. अभ्यर्थियों को स्वयं का नोट्स बना लेना चाहिए ताकि परीक्षा के समय जल्दी से जल्दी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को दोहराया जा सकें।
जब से यूपीएससी ने वर्ष 2013 के मुख्य परीक्षा के लिए नये प्रारूप व पाठ्यक्रम को घोषित किया, तब से यूपीएससी के विशेषज्ञों में सामान्य अध्ययन एवं वैकल्पिक विषय की महत्ता को लेकर विभिन्न मत सामने आ रहे हैं। कोई सामान्य अध्ययन को चयन में सर्वेसर्वा मान रहा है तो दूसरा पक्ष इस मत को अस्वीकार भी कर रहा है। अतः यहाँ मुख्य समस्या चयन में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर है कि सामान्य अध्ययन ज्यादा महत्वपूर्ण होगा या वैकल्पिक विषय?
- हम पहले नये और पुराने प्रारूप में दोनों के अंकों का मुख्य परीक्षा में भारांश (weightage) को देखते हैं। सामान्य अध्ययन के पुराने प्रारूप में दो पश्न-पत्र होते थे। दोनों प्रश्न-पत्र 300-300 अंकों के होते थे। सामान्य अध्ययन के 600 अंकों का मुख्य परीक्षा के अंकों में कुल 26% का भारांश होता था। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के चार प्रश्न-पत्र होते हैं। सभी प्रश्न-पत्र 250-250 अंकाें के साथ कुल 1000 अंकों के होते हैं। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के अंकों का भारांश 49.5% हो गया है।
- पुराने प्रारूप में दो वैकल्पिक विषय होते थे। दोनों वैकल्पिक विषय 600-600 अंकों के थे और 300-300 अंकों के दो-दो प्रश्न-पत्रों में बंटे होते थे। लेकिन नये प्रारूप में एक ही वैकल्पिक विषय को शामिल किया गया है, जो कुल 500 अंकों के साथ 250-250 अंकों के दो प्रश्न-पत्रों में बंटा हुआ है। नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय का कुल भारांश 24.5% रह गया है।
- नये संदर्भ में मुख्य परीक्षा में अधिक महत्वपूर्ण कौन होगा या 1000 अंकों के सामान्य अध्ययन के सामने 500 अंकों के वैकल्पिक विषय की स्थिति क्या होगी? इसके लिए हमें पूर्व वर्षों में मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन और वैकल्पिक विषय में प्राप्त हुए औसत अंकाें के ट्रेंड को भी समझना आवश्यक है। वर्ष 2011 और 2012 के पूर्व तक साक्षात्कार देने वाले अभ्यार्थियों को वैकल्पिक विषयों में औसत 50% तक अंक प्राप्त हुए थे जबकि वर्ष 2011 और वर्ष 2012 में वैकल्पिक विषय के औसत अंकों में कमी आयी और यह 40-50% के बीच रहा। सामान्य अध्ययन में वर्ष 2008 से पूर्व औसत अंक 50% के आस-पास रहते थे, लेकिन वर्ष 2008 से अभ्यार्थियों के सामान्य अध्ययन के औसत अंकों में लगातार गिरावट हो रही है और वर्ष 2012 में औसतन 25-35% के बीच रहा। इसी प्रकार इन वर्षों में साक्षात्कार हेतु सफल अभ्यर्थियों के न्यूनतम् कट ऑफ अंकों में भी गिरावट जारी है, जो कि वर्ष 2013 में 750 अंकों के आस-पास रहा।
- अब हम बात करते हैं रणनीति की। विगत वर्षों में सामान्य अध्ययन के अंकों का औसत प्राप्तांक तथा मुख्य परीक्षा के कुल अंकों का भारांश भले ही कम था। लेकिन वर्तमान प्रारूप और पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन की महत्ता और मुख्य परीक्षा के अंकों के भारांश में विशेष स्थिति को नकारा नहीं जा सकता। यदि निबंध और साक्षात्कार में सामान्य अध्ययन के सहयोग की महत्ता को भी जोड़ा जाये तो इसकी स्थिति और भी सशक्त हो जाती है। यदि इन सभी को समेकित किया जाये तो इसका भारांश 75% तक हो जाता है । इससे यह तो स्पष्ट है कि यूपीएससी परीक्षा के अंतिम चयन में सामान्य अध्ययन की विशेष स्थिति है लेकिन हम अब भी वैकल्पिक विषय की महत्ता को नकार नहीं सकते। यह सही है कि अब एक ही वैकल्पिक विषय है जो 500 अंकों के साथ 24.5% भारांश ही रखता है, लेकिन जब हम वैकल्पिक विषयों में विगत वर्षों में प्राप्त होने वाले प्राप्तांकों तथा इन प्राप्तांकों का कटऑफ में औसत भारांश देखें तो इसकी महत्ता स्वतः स्पष्ट हो जायेगी।
जैसा कि ऊपर की व्याख्या में देख चुके हैं कि विगत कई वर्षों से सामान्य अध्ययन, वैकल्पिक विषय तथा कटऑफ अंकों में लगातार गिरावट आ रही है लेकिन इसमें यह ध्यान देने की बात है कि वैकल्पिक विषय के प्राप्तांकों की औसत गिरावट सामान्य अध्ययन तथा कटऑफ अंकों के गिरावट से कम है अर्थात अंतिम परीक्षा परिणाम तक (वर्ष 2012) वैकल्पिक विषय के कुल प्राप्तांकों का औसत प्रतिशत कटऑफ अंकों में अभी भी प्रासंगिक है और जिस प्रकार से वर्ष 2013 व 2014 के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र में प्रश्न आ रहे हैं, इससे अभी भी इसके प्रासंगिक बने रहने की पूर्ण सम्भावना है। दूसरी तरफ सामान्य अध्ययन का पाठ्यक्रम अत्यन्त विस्तृत है। आईएएस टॉपर्स तक को सामान्य अध्ययन के पत्रों में 70 अंक लाते देखा गया है और इसके बावजूद वे न केवल सफल हुए वरन् टॉप 10 में स्थान बनाने में सफल रहे। इसके पीछे वैकल्पिक विषयों के अंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैसे भी मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के पत्रों में जिस विश्लेषणात्मक तरीके से प्रश्न पूछे जा रहे हैं, उन सबका जवाब देना छात्रों के लिए मुश्किल हो रहा है। प्रश्नों की संख्या भी 20 से 25 होती है। इन सभी कारणों से वैकल्पिक विषय अभी भी महत्ता बनाये हुये है। किसी के लिए भी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर समान रूप से विशेषज्ञता हासिल करना थोड़ा कठिन प्रतीत होता है जबकि वैकल्पिक विषय का पाठ्यक्रम सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम से सीमित है। साथ ही अधिकांश अभ्यर्थी का वैकल्पिक विषय उनके अकेडमिक विषय से ही संबंधित होता है। इससे वे कम से कम इस विषय से पूर्णतः अनभिज्ञ तो नहीं होते। यदि वे इस विषय में थोड़ा ज्यादा प्रयास करें तो इसके विशेषज्ञ भी बन सकते हैं।
वैकल्पिक विषय की महत्ता प्राप्त हो सकने वाले प्राप्तांक और इन प्राप्तांकों के कुल कटऑफ अंकों में प्रतिशत की अधिकता से भी देखा जा सकता है। कहने का मतलब यह है कि नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय पर भी पूर्ण ध्यान दिया जाये तो कम से कम प्राप्ताकों के लगभग एक तिहाई अंकों की ओर से तो निश्चिन्त रहा ही जा सकता है।
मुख्य परीक्षा में एक वैकल्पिक विषय का चयन करना पड़ता है। इस विषय का चुनाव निम्नलिखित विषयों में से करना होता है-
1- कृषि विज्ञान
2- पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान
3- नृविज्ञान
4- वनस्पति विज्ञान
5- रसायन विज्ञान
6- सिविल इंजीनियरी
7- वाणिज्य शास्त्र तथा लेखा विधि
8- अर्थशास्त्र
9- विद्युत इंजीनियरी
10- भूगोल
11- भू-विज्ञान
12- इतिहास
13- विधि
14- प्रबंधन
15- गणित
16- यांत्रिक इंजीनियरी
17- चिकित्सा विज्ञान
18- दर्शन शास्त्र
19- भौतिकी
20- राजनीति विज्ञान तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंध
21- मनोविज्ञान
22- लोक प्रशासन
23- समाज शास्त्र
24- सांख्यिकी
25- प्राणि विज्ञान
26- निम्नलिखित भाषाओं में से किसी एक भाषा का साहित्यः असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू और अंग्रेजी।
मुख्य परीक्षा में निम्नलिखित प्रश्नपत्र होते हैं_
अर्हक प्रश्नपत्र
प्रश्न पत्र कः संविधान की आठवीं अनसूूची में सम्मिलित भाषाओं में से उम्मीदवारों द्वारा चुनी गई कोई एक भारतीय भाषा। कुल अंकः 300
प्रश्न पत्र खः अंग्रेजी, कुल अंकः 300
-उपर्युक्त दोनों प्रश्नपत्रें में न्यूनतम अंक लाना अनिवार्य है, इनमें न्यूनतम अंक नहीं लाने पर शेष पत्रें की उत्तर पुस्तिका नहीं जांची जाती। पर इनके अंक मेरिट तैयार करने में नहीं जोड़े जाते।
मेरिट को निर्धारित करने वाले पत्र
प्रश्न पत्र-1ः निबंध, कुल अंकः 250
प्रश्न पत्र-2ः सामान्य अध्ययन 1 (भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज) कुल अंकः 250
प्रश्न पत्र-3ः सामान्य अध्ययन 2 (शासन व्यवस्था, संविधान, शासन-प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध), कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-4ः सामान्य अध्ययन 3 (प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन), कुल अंक-250,
प्रश्न पत्र-5ः सामान्य अध्ययन 4 (नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरूचि), कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-6ः वैकल्पिक विषय प्रथम पत्र, कुल अंक-250
प्रश्न पत्र-7ः वैकल्पिक विषय द्वितीय पत्र, कुल अंक-250
लिखित कुल अंकः 1750
साक्षात्कारः 275 अंक
कुल योगः 2025
सामान्य अध्ययन प्रथम (प्रश्न पत्र द्वितीय), कुल अंक-250
(भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज):
- भारतीय संस्कृति के तहत प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला रूपों, साहित्य एवं वास्तुकला के मुख्य पहलुओं से प्रश्न पूछे जाएंगे।
- 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं, व्यक्तित्व, मुद्दे।
- स्वतंत्रता संघर्ष : इसके विभिन्न चरण तथा देश के विभिन्न हिस्सों का योगदान तथा योगदान देने वाले व्यक्ति।
- स्वतंत्रता के पश्चात देश के अंदर एकीकरण व पुनर्गठन।
- विश्व का इतिहास में 18वीं शताब्दी की घटनाएं जैसे;औद्योगिक क्रांति, विश्व युद्ध, राष्ट्रीय सीमाओं का पुनःअंकन, औपनिवेशीकरण, विऔपनिवेशीकरण, साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद जैसे राजनीतिक दर्शन और उनके रूप तथा समाज पर उनका प्रभाव।
- भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत की विविधता,
- महिलाओं तथा महिला संगठनों की भूमिका, जनसंख्या व संबंधित मुद्दे, गरीबी व विकास मुद्दे, शहरीकरणः समस्याएं व निदान।
- भारतीय समाज पर भूमंडलीकरण का प्रभाव।
- सामाजिक सशक्तीकरण, सांप्रदायिकता क्षेत्रवाद व धर्मनिरपेक्षतावाद।
- विश्व की भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएं।
- पूरे विश्व में मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (दक्षिण एशिया एवं भारतीय उपमहाद्वीप सहित)_ विश्व के विभिन्न हिस्सों में (भारत सहित) प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रक उद्योगों की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारक।
- भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय गतिविधियां, चक्रवात इत्यादि जैसे मुख्य भौगोलिक घटनाएं, भौगोलिक विशेषताएं एवं उनकी अवस्थिति-आकस्मिक भौगोलिक पहलुओं (जलीय निकाय और हिम शीर्ष) तथा वनस्पती व प्राणी समूहों में परिवर्तन व इन परिवर्तनों का प्रभाव।
सामान्य अध्ययन द्वितीय (प्रश्न पत्र तृतीय), कुल अंक-250
(शासन व्यवस्था, संविधान, शासन-प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध):
- भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान व मूल ढ़ांचा।
- संघ एवं राज्यों का कार्य व उत्तरदायित्व, संघीय ढ़ांचा से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां, स्थानीय स्तर तक शक्ति व वित्त का हस्तांतरण व उसकी चुनौतियां।
- विभिन्न घटकों के बीच शक्ति का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र व संस्थान।
- भारतीय सांविधानिक योजना का अन्य देशों के साथ तुलना।
- संसद् व राज्य विधायिकाएं : संरचना, कार्य, कार्यों का संचालन, शक्ति व विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
- कार्यपालिका व न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य, सरकार के मंत्रलय व विभाग,दबाव समूह एवं औपचारिक/अनौपचारिक संगठन तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएं।
- विभिन्न सांविधानिक पदों पर नियुक्तियां, विविध सांविधानिक निकायों की शक्तियां, कार्य एवं उत्तरदायित्व।
- सांविधिक, विनियामक व विविध अर्द्ध- न्यायिक निकाय।
- सरकारी नीतियां एवं विभिन्न क्षेत्रकों में विकास हेतु हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व क्रियान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।
- विकास प्रक्रियाएं एवं विकास उद्योग : एनजीओ, स्वयं सहायता समूह, विविध समूह एवं संगठनों, दानकर्त्ता, चैरिटी, संस्थागत व विभिन्न हिस्सेदारियों की भूमिका,
- केंद्र व राज्य द्वारा आबादी के अति संवेदनशील वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा इन वर्गों की बेहतरी व सुरक्षा के लिए गठित तंत्र, कानून, संस्थाएं एवं निकाय।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से जुड़े सामाजिक क्षेत्रक/सेवाओं के विकास व प्रबंधन से जुड़े मुद्दे।
- गरीबी व भूखमरी से जुड़े मुद्दे।
- शासन, पारदर्शिता व उत्तरदायित्व से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे, ई-शासनः अभिक्रियाएं, आदर्श, सफलता, सीमाएं व क्षमता, सिटिजन चार्टर, पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व एवं अन्य उपाय।
- लोकतंत्र में सिविल सेवा की भूमिका।
- भारत एवं इसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध।
- भारत से जुड़े एवं/या भारत के हित को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह व समझौते।
- भारतीय हित में विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव, इंडियन डायस्पोरा।
- महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्थान, एजेंसी एवं मंच : उनका गठन एवं मैंडेट।
सामान्य अध्ययन तृतीय (प्रश्न पत्र चतुर्थ), कुल अंक-250
(प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन):
- भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना से संबंधित मुद्दे, संसाधनों की लामबंदी, संवृद्धि, विकास एवं रोजगार।
- समावेशी विकास एवं इससे संबंधित मुद्दे।
- सरकारी बजट।
- प्रमुख फसलें : देश के विभिन्न हिस्सों में फसल पैटर्न, सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली-भंडारण, परिवहन एवं कृषि उपज विपणन व इससे संबंधित मुद्दे और बाधाएं, किसानों की सहायता में ई-प्रौद्योगिकी।
- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि सब्सिडी एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित मुद्दे, सार्वजनिक वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्यप्रणाली, सीमाएं, सुधार, खाद्य सुरक्षा एवं बफर स्टॉक से संबंधित मुद्दे, प्रौद्योगिकी मिशन, पशुपालन व्यवसाय।
6. खाद्य प्रसंस्करण एवं भारत में इससे संबंधित उद्योग-संभावनाएं एवं महत्व, अवस्थिति, ऊपरी एवं निचले तबकों की बुनियादी जरूरतें, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन।
7. भारत में भूमि सुधार।
8. उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन और औद्योगिक वृद्धि पर उनके प्रभाव।
9. अवसंरचनाः ऊर्जा, पत्तन, सड़कें, रेलवे आदि।
10. निवेश मॉडल।
11. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-वैकासिक घटनाक्रम एवं उनके प्रयोग तथा दैनिक जीवन में इनका प्रभाव।
12. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियां, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं नव प्रौद्योगिकी का विकास।
13. सूचना प्रौद्योगिकी (IT), अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-तकनीक, जैव-प्रौद्योगिकी एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) से संबंधित मुद्दों पर जागरूकता।
14. संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
15. आपदा एवं आपदा प्रबंधन।
16. विकास एवं अतिवाद (Extremism) के प्रसार के बीच संबंध।
17. आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियां पैदा करने में बाह्य एवं गैर-राज्यों की भूमिका।
18. संचार नेटवर्क से आंतरिक सुरक्षा को चुनौतियां, आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों में मीडिया एवं सोशल नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा संबंधी मूल अवधारणाएं, मनी-लांडरिंग व इसकी रोकथाम।
19. सुरक्षा चुनौतियां एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में उनका प्रबंधन - आतंकवाद का संगठित अपराध के साथ संबंध।
20. विभिन्न सुरक्षा बल एवं एजेंसी तथा उनके जनादेश।
सामान्य अध्ययन चतुर्थ (प्रश्न पत्र पंचम) , कुल अंक-250
(नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरुचि)
- नीतिशास्त्र व मानवीय सह-संबंध : मानवीय क्रियाकलापों में नीतिशास्त्र का सार तत्व, इसके निर्धारक तत्व व नैतिकता के प्रभाव, नीतिशास्त्र के आयाम, निजी व सार्वजनिक संबंधों में नीतिशास्त्र, मानवीय मूल्यः महान नेताओं, सुधारकों, प्रशासकों के जीवन व शिक्षाओं से शिक्षा मूल्य विकसित करने में परिवार, समाज व शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका,
- अभिवृत्तिः सारांश, संरचना, वृत्ति, विचार व व्यवहार के साथ इसका संबंध व प्रभाव, नैतिक व राजनीतिक अभिवृत्ति, सामाजिक प्रभाव व अनुनय,
- सिविल सेवा के लिए अभिरूचि एवं बुनियादी मूल्यः सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता एवं गैर पक्षपाती, वस्तुनिष्ठता, लोक सेवा के प्रति समर्पन, कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति, सहिष्णुता तथा संवेदना,
- भावनात्मक समझ (बुद्धि) : अवधारणाएं तथा प्रशासन व शासन में उनकी उपयोगिता व अभिक्रियाएं।
- भारत एवं विश्व के नैतिक विचारकों व दार्शनिकों का योगदान।
- लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य एवं नीतिशास्त्र : स्थिति एवं समस्याएं,सरकारी एवं निजी संस्थानों में नैतिक चिंताएं एवं दुविधाएं,नैतिक निर्देशन के स्रोत के रूप में विधि, नियम, विनयम एवं अंतःकरण, उत्तरदायित्व एवं नैतिक शासन, शासन में नैतिक व आचारिक मूल्य सुदृढि़करण, अंतरराष्ट्रीय संबंधों व वित्तीयन में नैतिक मुद्दे,कॉरपोरेट गवर्नेंस ।
- शाासन में नैतिकताः लोक सेवा की अवधारणा, शासन व नैतिकता का दार्शनिक आधार सूचना का आदान-प्रदान व सरकार में हिस्सेदारी, सूचना व अधिकार, नैतिक संहिता, आचार संहिता, सिटिजन चार्टर, कार्य संस्कृति, सेवा प्रदान करने की गुणवत्ता, सार्वजनिक निधि का उपयोग, भ्रष्टाचार की चुनौतियां।
- उपर्युक्त मुद्दों पर केस स्टडी।
प्रारंभिक परीक्षा में दो अनिवार्य प्रश्न पत्र होते हैं जिसमें प्रत्येक प्रश्न पत्र 200 अंकों का होता है। अनिवार्य का मतलब यह कि आपको दोनों पत्रें की परीक्षा में शामिल होना होगा।
- दोनों ही प्रश्न-पत्र वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय) प्रकार के होते हैं।
- प्रश्न-पत्र हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में तैयार किए जाते हैं।
- प्रारंभिक परीक्षा का दूसरा प्रश्न पत्र केवल क्वालीफाइंग नेचर का होता है। इसमें न्यूनतम 33% अंक लाना अनिवार्य है तभी आपका रिजल्ट घोषित हो सकता है। प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम केवल सामान्य अध्ययन-प्रथम पत्र में प्राप्त अंकों के आधार पर घोषित किया जाता है।
- प्रारंभिक परीक्षा में निगेटिव मार्किंग भी होती है। अर्थात वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पत्रों में उम्मीदवार द्वारा दिए गए गलत उत्तरों के लिए दंड (ऋणात्मक अंक) दिया जायेगा। किसी प्रश्न का उत्तर गलत होने पर उस प्रश्न को आवंटित अंक में से एक तिहाई (1/33) अंक काटे जाएंगे। यदि कोई छात्र किसी प्रश्न का एक से अधिक उत्तर देता है तो उसे गलत उत्तर माना जाएगा। यदि किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जाता है तो उस प्रश्न के लिए कोई अंक नहीं काटे जाएंगे।
प्रारंभिक परीक्षा में वस्तुनिष्ठ (बहुविकल्पीय प्रश्न) प्रकार के दो प्रश्न पत्र होते हैं। प्रत्येक पत्र 200-200 अंकों का होता है। सामान्य अध्ययन प्रथम एवं सामान्य अध्ययन द्वितीय। सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र केवल क्वालीफाइंग है अर्थात इसमें प्राप्त अंक प्रारंभिकी की अर्हता तैयार करने में शामिल नहीं किये जाते। लेकिन इस पत्र में न्यूनतम अंक लाना अनिवार्य है।
प्रथम पत्र (200 अंक)
प्रश्नः 100
1. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाएं।
2. भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन।
3. भारत एवं विश्व भूगोलः भारत एवं विश्व का प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक भूगोल।
4. भारतीय राज्यतंत्र और शासन-संविधान, राजनैतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोक नीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे, आदि।
5. आर्थिक और सामाजिक विकास,सतत विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि।
6. पारिस्थितकीय पारितंत्र पर सामान्य मुद्दे-जैव विविधता व जलवायु परिवर्तनः विषय की विशेषज्ञता की जरूरत नहीं।
7. सामान्य विज्ञान।
द्वितीय प्रश्नपत्र (200 अंक)
अवधि: दो घंटे
प्रश्नः 80
1- बोधगम्यता,
2- संचार कौशल सहित अंतर-वैयक्तिक कौशल।
3- तार्किक कौशल एवं विश्लेषणात्मक क्षमता।
4- निर्णय लेना और समस्या समाधान।
5- सामान्य मानसिक योग्यता।
6- आधारभूत संख्यनन (संख्याएं और उनके संबंध, विस्तार क्रम आदि) (दसवीं कक्षा का स्तर), आंकड़ों का निर्वचन (चार्ट, ग्राफ, तालिका, आंकड़ों की पर्याप्तता आदि-दसवीं कक्षा का स्तर)
सिविल सेवा परीक्षा (यूपीएससी ) तीन चरणों में संपन्न होती है जो निम्न है-
1- सिविल सेवा प्रांरभिक परीक्षा जो कि वस्तुनिष्ठ प्रकृति की होती है।
2- सिविल सेवा मुख्य परीक्षा वर्णनात्मक प्रकृति के होते हैं।
3- साक्षात्कार। संघ लोक सेवा आयोग के मुख्य परीक्षा में प्राप्त प्राप्तांक तथा साक्षात्कार में प्राप्त प्राप्तांक को मिलाकर मेधा सूची तैयार की जाती है।
- प्रारंभिक परीक्षा केवल अर्ह परीक्षा है अर्थात इस परीक्षा के माध्यम से मुख्य परीक्षा में शामिल होने के लिए छात्रों का चयन किया जाता है। यह एक प्रकार की छंटनी प्रक्रिया है जिसके तहत अगंभीर छात्रों को परीक्षा प्रक्रिया से बाहर किया जाता है। यह अलग बात है कि कोई छात्र पहली बार में प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर पाता, जबकि अगले वर्ष उसे प्रॉपर आईएएस मिलता है। इसलिए यदि आप प्रथम प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में सफल नहीं भी होते हैं तो निराश होने की जरूरत नहीं है। इसलिए प्रथम प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में पास नहीं होने का मतलब कतई नहीं है कि आप सिविल सेवक बनने के लायक नहीं है। इसका मतलब यही है कि प्रारंभिक परीक्षा की आपकी रणनीति में कहीं चूक हुयी है जिसे सुधारकर आप अगली बार सफल हो सकते हैं।
- दूसरी बात यह कि मुख्य परीक्षा में प्रवेश हेतु अर्हता (प्रारंभिक परीक्षा में सफल छात्र) प्राप्त करने वाले उम्मीदवार द्वारा प्रारंभिक परीक्षा में प्राप्त किए गए अंकों को उनके अंतिम योग्यता क्रम यानी मेरिट को निर्धारित करने के लिए नहीं गिना जाएगा। इसका मतलब यह है कि प्रारंभिक परीक्षा में आपको केवल पास होना है, इसमें जो भी अंक आपको आएगा वह आगे काम नहीं आएगा यानी मुख्य परीक्षा में नहीं जोड़ा जाएगा। इसलिए तो प्रारंभिक परीक्षा केवल अर्हक परीक्षा है।
- मुख्य परीक्षा में प्रवेश दिये जाने वाले उम्मीदवारों की संख्या उक्त वर्ष में विभिन्न सेवाओं तथा पदों में भरी जाने वाली रिक्तियों की कुल संख्या का लगभग बारह से तेरह गुना होती है। अर्थात कुल पदों की संख्या का 12 से 13 गुना। अमूमन विगत चार- पांच वर्षों से देखा गया है कि विज्ञप्ति में पदों की संख्या लगभग 1000 के करीब होती है। ऐसे में प्रतिवर्ष लगभग 13000 छात्रों को मुख्य परीक्षा में बैठने का मौका मिलता है।
संघ लोक सेवा आयोग अमूमन मई माह में विज्ञापन के जरिय विभिन्न राजपत्रित पदों पर भर्ती के लिए आयोजित होने वाली सिविल सेवा परीक्षा के लिए सुपात्र उम्मीदवार से आवेदन मांगता है। प्रारंभिक परीक्षा एक दिवसीय होती है।
सिविल सेवा परीक्षा के लिए अब आवेदन ऑनलाईन लिये जाते हैं। अभ्यर्थी संघ लोक सेवा आयोग की http://www.upsconline.nic.in वेबसाइट का इस्तेमाल करके ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। यह भी कि आवेदकों को केवल एक ही आवेदन पत्र प्रस्तुत करने का परामर्श दिया जाता है। फिर भी किसी अपरिहार्य परिस्थितिवश यदि वह एक से अधिक आवेदन पत्र प्रस्तुत करता है, वह यह सुनिश्चित कर लें कि उच्च आरआईडी वाला आवेदन पत्र हर तरह अर्थात आवेदक का विवरण, परीक्षा केन्द्र, फोटो, हस्ताक्षर, शुल्क आदि से पूर्ण है।
- एक से अधिक आवेदन पत्र भेजने वाले उम्मीदवार ये नोट कर लें कि केवल उच्च आरआईडी (रजिस्ट्रेशन आईडी) वाले आवेदन पत्र ही आयोग द्वारा स्वीकार किए जाएंगे और एक आरआईडी के लिए अदा किए गए शुल्क का समायोजन किसी अन्य आरआईडी के लिए नहीं किया जायेगा।
- सभी उम्मीदवारों को चाहे वे पहले से सरकारी नौकरी में हों या सरकारी औद्योगिक उपक्रमों में हों या इसी प्रकार के अन्य संगठनों में हों या गैर-सरकारी संस्थाओं में नियुक्त हों, अपने आवेदन प्रपत्र आयोग को सीधे आवेदन करना होता है।
- जो व्यक्ति पहले से सरकारी नौकरी में स्थायी या अस्थायी हैसियत से काम कर रहें हों या किसी काम के लिए विशिष्ट रूप से नियुक्त कर्मचारी हों, जिसमें आकस्मिक या दैनिक दर पर नियुक्त व्यक्ति शामिल नहीं है, उनको अथवा जो लोक उद्दमों के अधीन कार्यरत हैं उनको यह अंडरटेकिंग प्रस्तुत करना होता है कि उन्होंने लिखित रूप से अपने कार्यालय/विभाग के अध्यक्ष को सूचित कर दिया है कि उन्होंने इस परीक्षा के लिए आवेदन किया है।
सामान्यतः छात्र ऐसे भी सवाल करते हैं कि अवसर को गिना कैसे जाता है। वो कैसे समझें कि उनका एक अवसर समाप्त हो गया। तो आईए जानें कि परीक्षा में बैठने की अवसरों की गणना कैसे की जाती हैै?
1. प्रारंभिक परीक्षा में बैठने को परीक्षा में बैठने का एक अवसर माना जाता है।
2. यदि उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा के किसी एक प्रश्न पत्र में वस्तुतः परीक्षा देता है तो उसका परीक्षा के लिए एक अवसर समझा जाता है।
3. अयोग्यता/उम्मीदवारी के रद्द होने के बावजूद उम्मीदवार की परीक्षा में उपस्थिति का तथ्य एक अवसर गिना जाता है।
इसलिए आप सिविल सेवा परीक्षा में तभी बैठें जब आप खुद को पूरी तरह तैयार समझें।
आप प्रथम प्रयास में ही सिविल सेवा परीक्षा पासकर आईएएस बन सकते हैं यद्यपि कि आपकी सही रणनीत हो। ऐसे छात्रें की संख्या कम नहीं है, जो प्रथम प्रयास में ही सिविल सेवा परीक्षा के सफल छात्रों की सूची में अपना नाम दर्ज करवा लेने में सफल रहे हैं। कई बार तो टॉप दस में भी ऐसे छात्र दिखाई देते हैं। ऐसे में आपका प्रयास पहली बार में सफल होने का होना चाहिये।
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए श्रेणीवार निम्नलिखित अवसर प्रदान करता है_
- सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए अधिकतम छह अवसर।
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के छात्रों के लिए अवसरों की संख्या को सीमित नहीं किया गया है अर्थात वे जितनी बार चाहें सिविल सेवा परीक्षा में बैठ सकते हैं, लेकिन उनकी उम्र सीमा अधिकतम 37 वर्ष ही रखा गया है अर्थात वे 37 वर्ष तक परीक्षा डे सकते हैं।
- अन्य पिछड़ी श्रेणियों के उम्मीदवारों को भी परीक्षा में बैठने के लिए नौ अवसर प्रदान किये गये हैं। यह रियायत/छूट केवल वैसे अन्य पिछड़ी श्रेणी के अभ्यर्थियों को मिलेगा जो आरक्षण पाने के पात्र हैं।
- शारीरिक रूप से विकलांग छात्रों को अपनी श्रेणी के अन्य छात्रों के समान ही अवसर प्राप्त होंगे। पर सामान्य श्रेणी के विकलांग छात्रों को सात अवसर प्रदान किये गये हैं, वशर्तें की उन्हें आरक्षण प्राप्त हो।
प्रायः यह सवाल किया जाता है कि जिस संस्थान से छात्रों ने स्नातक या उसके समकक्ष डिग्री ली है, उसकी मान्यता है या नहीं। इसके लिए आप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय या संबंधित राज्य सरकारों के शिक्षा मंत्रलय की वेबसाइट विजिट कर इसकी जांच कर सकते हैं। वहां उन विश्वविद्यालयों या शैक्षणिक संस्थानों की सूची दी गई होती है जो मान्यता प्राप्त हैं।
•सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थियों के पास भारत के केन्द्र या राज्य विधानमंडल द्वारा निगमित किसी विश्वविद्यालय की या संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 1956 के खंड 3 के अधीन विश्वविद्यालय के रूप में मानी गई किसी अन्य शिक्षा संस्था की डिग्री अथवा समकक्ष योग्यता होनी चाहिए।
• यदि छात्र सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के लिए आवेदन देते समय स्नातक के अंतिम वर्ष की परीक्षा दे चुका है पर उसका परिणाम जारी नहीं किया जा सका है, वे भी प्रारंभिक परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं, परंतु उन्हें मुख्य परीक्षा के लिए आवेदन देते समय अपने सभी प्रमाणपत्रों की छायाप्रति देनी होगी। अर्थात मुख्य परीक्षा के लिए आवेदन देते समय उन्हें स्नातक परीक्षा जरूर पास कर लेनी होगी।
•विशेष परिस्थितियों में यूपीएससी ऐसे किसी भी उम्मीदवार को परीक्षा में प्रवेश पाने का पात्र मान सकता है जिसके पास उपर्युक्त अर्हताओं में से कोई अर्हता न हो, बशर्ते कि उम्मीदवार ने किसी संस्था द्वारा ली गई कोई ऐसी परीक्षा पास कर ली हो जिसका स्तर आयोग के मतानुसार ऐसा हो कि उसके आधार पर उम्मीदवार को उक्त परीक्षा में बैठने दिया जा सकता है। इसके अलावा जिन उम्मीदवारों के पास ऐसी व्यावसायिक और तकनीकी योग्यताएं हों, जो सरकार द्वारा व्यावसायिक और तकनीकी डिग्रियों के समकक्ष मान्यता प्राप्त हैं वे भी उक्त परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे।
•जिन उम्मीदवारों ने अपनी अंतिम व्यावसायिक एमबीबीएस अथवा कोई अन्य चिकित्सा परीक्षा पास की हो लेकिन उन्होंने सिविल सेवा (प्रधान) परीक्षा का आवेदन प्रपत्र प्रस्तुत करते समय अपना इण्टर्नशिप पूरा नहीं किया है तो वे भी अनन्तिम रूप से परीक्षा में बैठ सकते हैं, बशर्ते कि वे अपने आवेदन-प्रपत्र के साथ संबंधित विश्वविद्यालय/संस्था के प्राधिकारी से इस आशय के प्रमाणपत्र की एक प्रति प्रस्तुत करें कि उन्होंने अपेक्षित अंतिम व्यावसायिक चिकित्सा परीक्षा पास कर ली है। ऐसे मामलों में उम्मीदवारों को साक्षात्कार के समय विश्वविद्यालय/ संस्था के संबंधित सक्षम प्राधिकारी से अपनी मूल डिग्री अथवा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने होंगे कि उन्होंने डिग्री प्रदान करने हेतु सभी अपेक्षाएं (जिनमें इण्टर्नशिप पूरा करना भी शामिल है) पूरी कर ली है।
•शैक्षणिक योग्यता के मामले में प्रायः छात्रों का यह सवाल होता है कि स्नातक के अंतिम वर्ष वाले छात्र परीक्षा में बैठ सकते हैं या फिर जहां से उन्होंने स्नातक की डिग्री ली है उसकी मान्यता है। कई छात्रों का यह भी सवाल होता है कि डिस्टेंस एजुकेशन या इवनिंग क्लासेस या फिर किसी अन्य बोर्ड (मदरसा या संस्कृत शिक्षा बोर्ड) के प्रमाणपत्रों की मान्यता है या नहीं। जहां तक पहले सवाल की बात है तो पूर्व में ही कहा जा चुका है कि जो छात्र स्नातक के अंतिम वर्ष में हैं वे भी प्रारंभिक परीक्षा में बैठ सकते हैं परंतु उन्हें मुख्य परीक्षा के आवेदन करते वक्त स्नातक की परीक्षा अवश्य रूप से पास कर लेनी होगी क्योंकि संघ लोक सेवा आयोग मुख्य परीक्षा के आवेदन मांगते वक्त सभी प्रमाणपत्रों की छायाप्रति मांगता है।
संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिए न्यूनतम एवं अधिकतम उम्र सीमा श्रेणीवार निम्नलिखित हैः
- परीक्षा वर्ष में 1 अगस्त को न्यूनतम उम्र 21 वर्ष और अधिकतम 32 वर्ष
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्रों को अधिकतम उम्र सीमा में पांच वर्ष की छूट दी जाती है यानि परीक्षा वर्ष के 1 अगस्त को यदि उनकी आयु 37 वर्ष या उससे कम हैं तो वे सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं।
- अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों को भी उपरी आयु सीमा में तीन वर्ष की छूट प्रदान की जाती है।
- कुछ अन्य वर्गों के लोगों को भी ऊपरी आयु सीमा में छूट प्रदान की गई है जिसका उल्लेख यहां नहीं किया गया है।
•वर्ष 2013 की सिविल सेवा परीक्षा के पश्चात पूर्णांक के दृष्टिकोण से सामान्य अध्ययन की तुलना में वैकल्पिक विषयों की महत्ता कम हो गयी है। सामान्य अध्ययन के चारों पत्रों का पूर्णांक 1000 है, तो वैकल्पिक विषय का पूर्णांक 500 अर्थात सामान्य अध्ययन का 50 प्रतिशत है। परंतु इसका यह मतलब यह नहीं है कि सफलता में वैकल्पिक विषय की महत्ता कम हो गयी है। जहां 1-1 अंक पर सफलता-असफलता का निर्धारण होता हो, वहां एक-एक अंक काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसे में वैकल्पिक विषय के लिए भी सही रणनीति व तैयारी आवश्यक है। यह तभी संभव है जब आप जान सकें कि आपके लिए कौन सा वैकल्पिक विषय उचित व अनुकूल है।
•इसके लिए विगत वर्षों में विभिन्न वैकल्पिक विषयो में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या व उनकी सफलता दर का विश्लेषण आवश्यक है। हिंदी माध्यम के छात्रों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय विषय इतिहास, भूगोल, लोकप्रशासन, दर्शनशास्त्र हैं। हिंदी भाषा एवं साहित्य लेने वाले छात्रों की भी कमी नहीं है। अब सिविल सेवा परीक्षा में विभिन्न विषयों की सफलता दर देख लें, जिससे विषय की महत्ता व लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
•विभिन्न विषयों का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि भले ही सफलता दर अरबी, बंगाली भाषा एवं साहित्य में अधिक दिख रही हो परंतु लोकप्रियता व सफल होने वाले छात्रों की संख्या के मामले में भूगोल, लोक प्रशासन, इतिहास, समाजशास्त्र जैसे विषय ही आगे हैं। वर्ष 2014 की सिविल सेवा परीक्षा में कुल सफल छात्रों में सर्वाधिक 255 लोक प्रशासन थे। इसके पश्चात 193 समाजशास्त्र से व 102 इतिहास विषय के थे। ये आंकड़ें स्पष्ट करते हैं कि भूगोल, लोकप्रशासन, समाजशास्त्र व इतिहास आज काफी लोकप्रिय व सफल विषय हैं।
•सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि आखिर आईएएस की परीक्षा प्रणाली क्या है। इसके लिए सबसे पहले परीक्षा की मूलभूत जानकारियों से परिचित होना जरूरी है। जो लोग एक-दो प्रयास दे चुके हैं वे इससे सुपरिचित होते हैं पर जो छात्र इस क्षेत्र में आना चाहते हैं या स्नातक में हैं उनके लिए इससे परिचित होना जरूरी है। बिना परीक्षा की बेसिक्स को समझे आपका सारा प्रयत्न बेकार जाएगा। सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल आईएएस एकेडमी को ऐसे ढ़ेरों पत्र एवं ई-मेल प्रतिमाह आते हैं जिनसे ज्ञात होता है कि बहुत से छात्र सिविल सेवा परीक्षा की सामान्य बातों से भी परिचित नहीं होते। यहां तक कि उम्र व अवसर जैसे तथ्यों से भी वे अवगत नहीं होते। परीक्षा की बारिकियों को समझना तो दूर की बात है। लेकिन ऐसे छात्रों की जिज्ञासाओं पर हंसने के बजाये हमें उनकी प्रशंसा करनी चाहिये क्योंकि वो अपने मन में उत्पन्न सारे संदेहों को परीक्षा में प्रवेश से पूर्व दूर करना चाहते हैं और यह एक प्रशंसनीय कदम हैं।
•देश के छोटे-छोटे कस्बों व गांवों में रहने वाले छात्रों से परीक्षा की सभी बारिकियों से परिचित होने की अपेक्षा करना उचित नहीं है। पर इतना जरूर है कि सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने से पूर्व इसकी प्रक्रियाओं से अवगत तो अवश्य रूप से होना चाहिये। यदि आप इन प्रक्रियाओं से अवगत नहीं है और परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं तो आप क्रिकेट के उस बॉलर के समान हैं जिसे वाईड व नो बॉल की भी जानकारी नहीं है और बॉलिंग करने के लिए तैयार है। ऐसे में एक मार्गदर्शक के रूप में क्रॉनिकल आईएएस अकेडमी का यह कर्तव्य बनता है कि आपको सिविल सेवा परीक्षा की उन बारिकियों से परिचय करवाएं जो कि सिविल सेवा परीक्षा के एक अभ्यर्थी से अपेक्षा की जाती है।
पदों की संख्या के लगभग दोगुने छात्रों को साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया जाता है। साक्षात्कार कुल 275 अंकों का होता है। अमूमन प्रतिवर्ष 2600 से 3000 अभ्यर्थी साक्षात्कार में शामिल होते हैं। परंतु इनमें हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या की बात करें तो वह काफी कम है। वर्ष 2014 के सिविल सेवा साक्षात्कार में कुल 2825 छात्र शामिल हुये थे जिनमें हिंदी माध्यम से महज 370 छात्र ही शामिल हुये थे, जबकि मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से कुल 2191 छात्र सम्मिलित हुये थे। अर्थात महज 17 प्रतिशत हिंदी माध्यम के छात्र साक्षात्कार तक पहुंच सके। हालांकि यह भी हो सकता है कि जो छात्र मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से शमिल हुये हों, उनमें से कई छात्रों ने साक्षात्कार में अंग्रेजी माध्यम को चुना हो। परंतु इनकी संख्या काफी कम है। वैसे साक्षात्कार के आंकड़ों से हिंदी माध्यम के छात्रों की स्थिति का अंदाजा तो कम से कम लगाया ही जा सकता है।
निम्न टेबल से स्पष्ट हो जाता है कि प्रारंभिक परीक्षा में सम्मिलित औसतन 4.5 लाख छात्रों में महज 14000-15000 को ही मुख्य परीक्षा लिखने का सुअवसर प्राप्त होता है। इनमें भी हिंदी माध्यम के छात्र काफी कम होते हैं। हाल के वर्षों में तो इनकी संख्या और भी कम हो गयी है। यदि वर्ष 2014 व 2015 की मुख्य परीक्षा के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो वर्ष 2014 में मुख्य परीक्षा में अनिवार्य निबंध पत्र में कुल 16279 छात्र बैठे थे जिनमें हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या महज 2191 थी अर्थात महज 13.5 प्रतिशत। इसी तरह वर्ष 2015 में मुख्य परीक्षा के निबंध अनिवार्य पत्र में कुल 14640 छात्र शामिल हुये थे, जिनमें हिंदी माध्यम के छात्रें की संख्या 2439 थी। स्पष्ट है कि हाल के वर्षों में मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले कुल छात्रों में हिंदी माध्यम के छात्रों की प्रतिशतता 15% तक सीमित रह गयी है। इसे निम्नलिखित टेबल से समझा जा सकता है_
2014 व 2015 में मुख्य परीक्षा में हिंदी माध्यम से सम्मिलित छात्रों की संख्या
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निबंध |
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सामान्य अध्ययन-1 |
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मानवविज्ञान |
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अर्थशास्त्र |
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भूगोल |
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इतिहास |
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दर्शनशास्त्र |
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राजनीति विज्ञान |
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लोक प्रशासन |
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समाजशास्त्र |
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उपर्युक्त स्थिति काफी चिंतनीय है और सोचने को मजबूर करता है। प्रायः इसके लिए हम परीक्षा प्रणाली व हिंदी माध्यम को ही दोषी ठहरा देते हैं जबकि हकीकत में ऐसा है नहीं।