Question : योजना आयोग एवं राष्ट्रीय विकास परिषद का सार्वजनिक नीति निर्माण में क्या योगदान है, समझाइये।
(1994)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात भारत को अपने देश के नागरिकों के जीवनस्तर को सुधारने के लिए विकास की अनेक योजनाओं को लागू करना था। इसी उद्देश्य से मार्च 1950 में एक गैर-संवैधानिक निकाय ‘योजना आयोग’ का गठन किया गया। योजना आयोग द्वारा तैयार योजनाओं को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा मंजूरी मिलती है। योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद दोनों निकायों के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। योजना आयोग में इसके स्थायी सदस्यों के अलावा कुछ मंत्री एवं अन्य भी इसके सदस्य होते हैं। प्रधानमंत्री, योजना आयोग के सदस्य, राज्य के मुख्यमंत्री एवं केंद्र सरकार के मंत्री राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठकों में भाग लेते हैं। योजना आयोग योजना बनाने में निम्न प्रक्रिया अपनाता है-
(i) विकास प्रक्रिया की रूपरेखा को परिभाषित करना, (ii) विकास के लिए नीतिगत रूपरेखा तैयार करना, (iii) संवृद्धि की संरचना के लिए वृहत आर्थिक पैरामीटर्स तैयार करना, (iv) केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों को आवंटित करना, (v) सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा विशिष्ट परियोजनायें लागू करने पर विचार करना आदि।
योजनाओं को बनाने व उसके कार्यों का विस्तार होने के कारण इन दिनों योजना आयोग गैर-संवैधानिक निकाय होने के बावजूद एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभरा है। केंद्र एवं राज्य के आर्थिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्रों के कार्यक्रमों में आवश्यकता पड़ने पर योजना आयोग अपने विचार भी देता है। योजना आयोग आगामी 5 वर्षों की योजना का प्रारूप तैयार कर पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा तैयार करता है।
राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन भारत के संघ राज्यों की योजना निर्माण में भागीदारी को ध्यान में रखते हुए 6 अगस्त, 1952 को एक गैर-संवैधानिक निकाय के रूप में किया गया। इसका सचिव योजना आयोग का ही सचिव होता है। राष्ट्रीय विकास परिषद के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
योजना आयोग द्वारा तैयार किये गये योजनागत प्रस्तावों को अंतिम रूप से राष्ट्रीय विकास परिषद ही अनुमोदित करती है। चूंकि इसी बैठक में प्रधानमंत्री एवं राज्यों के मुख्यमंत्री भी भाग लेते हैं, अतः जो भी योजनाएं अनुमोदित होती हैं, उसे सर्वसम्मति से मान लिया जाता है और योजनाएं लागू होने में कोई दिक्कत नहीं होती है।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सार्वजनिक नीति निर्मित में योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद का महत्वपूर्ण योगदान है।
Question : राष्ट्रीय विकास परिषद के गठन और कार्यों का वर्णन कीजिए।
(1993)
Answer : योजना आयोग के कार्यकरण से एक और संविधानेत्तर तथा विधि बाह्य निकाय की स्थापना करनी आवश्यक हो गई, जिसे राष्ट्रीय विकास परिषद के नाम से जाना जाता है। राष्ट्रीय विकास परिषद एक गैर-संवैधानिक निकाय है तथा इसका आर्थिक आयोजन राज्यों व योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 6 अगस्त, 1952 को पारित एक प्रस्ताव के अनुसार किया गया था। भारत का प्रधानमंत्री इसका अध्यक्ष तथा योजना आयोग का सचिव इसका सचिव होता है। सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं योजना आयोग के सभी सदस्य इसके सदस्य होते हैं। 1967 से केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सभी सदस्य व केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को भी इसकी बैठकों में बुलाया जाने लगा।
राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्य
वस्तुतः राष्ट्रीय विकास परिषद का मुख्य प्रयोजन तकनीकी पक्ष (योजना आयोग), केंद्रीय राजनीतिक पक्ष (केंद्र सरकार) तथा राज्यीय राजनीतिक पक्ष (मुख्यमंत्री) के बीच समन्वय स्थापित करना है।
Question : भारतीय संविधान के तिहत्तरवें संशोधन की महत्ता पर प्रकाश डालिये।
(1998)
Answer : भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में ग्राम पंचायत की कल्पना को साकार करने हेतु 73वें संविधान संशोधन द्वारा भाग-9 में पंचायती राज विषयक प्रावधान किये गये हैं।
पंचायती राज विधेयक का पारित होना एक ऐतिहासिक कदम था। इसके द्वारा केंद्रीकरण की नीति को त्याग कर विकेंद्रीकरण की नीति अपनायी गई। इस विधेयक से शासन व विकास प्रक्रिया के बदले हुए रूप के अनुरूप केंद्र व राज्य की भूमिका और कार्यप्रणाली पुनर्परिभाषित करनी पड़ी। देश के सबसे पिछड़े और दलित तबकों को न्यूनतम राष्ट्रीय औसत क्षमताओं के निर्माण, शक्तिकरण तथा विकास में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिला है। इस अधिनियम द्वारा महिलाओं को भी आरक्षण देकर शासन संबंधी मामलों में भागीदार बनाया जा रहा है। हमारी विकास की नीति का लक्ष्य हर व्यक्ति को एक न्यूनतम जीवन स्तर तथा क्षमता-अभिवृद्धि के संसाधन और अवसर प्रदान करना है। पंचायती राज अधिनियम इस लक्ष्य की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। ग्रामीण या क्षेत्रीय स्तर पर यह देश के समूचे विकास की नींव है। ग्रामीण स्तर पर गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, भूमि सुधार तथा रोजगार, कृषि व पेयजल संबंधी कार्यक्रमों को पंचायतों के माध्यम से ज्यादा कारगर ढंग से लागू किया जा सकेगा। इस प्रकार, सामाजिक न्याय व प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण को अंजाम देने वाला यह संशोधन एक ऐतिहासिक कदम था, परंतु प्रशासनिक अवहेलना, आर्थिक संकट तथा जनभागीदारी के अभाव से इसकी वास्तविक महत्ता में कमी आयी है और इसका क्रियान्वयन शिथिल पड़ गया है।
Question : भारत में नवीन राज्यों का गठन किस प्रकार होता है? विदर्भ, तेलंगाना जैसी अलग राज्यों की मांगों पर शासन द्वारा हाल में विचार क्यों नहीं किया गया?
(1998)
Answer : भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार, केंद्र को एक सामान्य विधि की प्रक्रिया द्वारा नया राज्य बनाने, राज्यों की सीमा में परिवर्तन करने तथा राज्यों के भौगोलिक अस्तित्व को नष्ट करने तक का अधिकार दिया गया है। इसके लिए केंद्र संविधान में आवश्यक संशोधन कर सकती है और ऐसे संशोधन अनुच्छेद 368 के अधीन संवैधानिक संशोधन नहीं माने जायेंगे। वे साधारण विधि की तरह उपस्थित सदस्यों के बहुमत से पारित हो सकेंगे।
राज्य के गठन संबंधी विधेयक लाने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति अनिवार्य है। इसके पश्चात प्रभावित राज्यों की विधानसभाओं के विचार एक निश्चित अवधि के अन्दर प्राप्त किये जाते हैं। असहमति के मामले में केंद्र ऐसे विचार को मानने को बाध्य नहीं है।
सरकार ने विदर्भ व तेलंगाना जैसी अलग राज्यों की मांगों पर विचार नहीं किया। इसका मुख्य कारण यह था कि सरकार के राष्ट्रीय एजेन्डा में इन राज्यों के गठन की बात नहीं कही गई थी। इस एजेन्डा में केवल वनांचल, उत्तरांचल व छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिलाने की बात कही गई थी। इसके अलावा जिन नये राज्यों को बनाने की बात कही गई थी, वहां के संबंधित राज्य इसके पक्ष में थे, जबकि महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश क्रमशः विदर्भ व तेलंगाना राज्य के गठन के विरूद्ध थे। साथ ही, इन राज्यों के गठन से सरकार को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला था। इन्हीं कारणों से इन मांगों पर विचार नहीं किया गया।
Question : संविधान के कौन-से प्रावधान भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पद को स्वतंत्र बनाते हैं?
(1996)
Answer : उनके वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। 65 वर्ष की आयु अथवा 6 वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पूर्व सामान्य प्रक्रिया द्वारा उन्हें पदच्युत नहीं किया जा सकता है। सेवानिवृत्ति के बाद वे किसी लाभ के पद पर कार्य नहीं कर सकते हैं।