Question : भारत के निर्वाचन आयोग के गठन और कार्यों का वर्णन कीजिए।
(1993)
Answer : संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया का पर्यवेक्षण करने, चुनाव न्यायाधिकरणों की स्थापना करने एवं चुनाव संबंधी अन्य मामलों की देखभाल करने के लिए एक स्वतंत्र संस्था के रूप में निर्वाचन आयोग को अपनाया गया है। निर्वाचन आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य उतने निर्वाचन आयुक्त होंगे, जितना राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर निर्धारित किया जाये। इनकी नियुक्ति 6 वर्ष के लिए की जाती है। आम चुनावों के वक्त अस्थायी रूप से प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्तों तथा उपनिर्वाचन आयुक्तों को अस्थायी नियुक्तियां की जाती हैं। ये अधिकारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके कार्यों को पूरा करने में सहायता प्रदान करते हैं।
आयोग के मुख्य कार्य
Question : सार्वत्रिक निर्वाचन, मध्यावधि निर्वाचन तथा उप-निर्वाचन में भेद बताइये व उसकी महत्ता स्पष्ट कीजिए।
(1998)
Answer : भारत में संसद सदस्यों को तीन प्रकार के निर्वाचन का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार इनमें से किसी एक निर्वाचन का चयन किया जाता है।
सार्वत्रिक निर्वाचन तभी होता है, जब लोकसभा ने अपने पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा कर लिया हो। आज की परिस्थिति में इस तरह के चुनाव कम ही हो रहे हैं। इस चुनाव में लोकसभा के कुल सदस्यों का निर्वाचन होता है। इस चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च होता है तथा इसका व्यापक आयाम अनेक दिक्कतें पेश करता है।
मध्यावधि चुनाव तब होता है, जब कोई सरकार अपने निर्धारित कार्यकाल से पूर्व ही गिर जाती है। ऐसी स्थिति में लोकसभा को भंग कर दिया जाता है तथा नये सरकार के गठन हेतु नये चुनाव आयोजित किये जाते हैं। सम्प्रति ऐसे चुनाव अधिक हो रहे हैं। अस्थिर साझा सरकारों के दौर में लोकसभा में बहुमत खो जाने के फलस्वरूप सरकारें गिरती रहती हैं। इस तरह के चुनाव हमारे अर्थव्यवस्था पर बोझ होते हैं, क्योंकि ऐसे थोपे गये चुनाव में अनावश्यक खर्च बहुत होता है। इस तरह के चुनाव दलबदल की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा देते हैं।
उप-निर्वाचन तब होता है, जब किसी सांसद या विधायक की मृत्यु हो जाने से वह सीट खाली हो जाती है या फिर कोई सांसद, अगर दो जगह से जीत जाता है, तो वह एक जगह की सीट को त्याग देता है। ऐसा चुनाव तब भी होता है, जब निर्वाचन आयोग किसी खास परिस्थिति के मद्देनजर किसी क्षेत्र के चुनाव को रद्द या स्थगित कर देता है। ऐसे चुनाव में जनता पूर्व चुनावों के नतीजों से प्रभावित होती है। इस तरह के चुनाव से भी दलबदल की राजनीति को बढ़ावा मिलता है तथा कई बार जानबूझ कर ऐसी परिस्थिति खड़ी कर दी जाती है, जिससे चुनाव को स्थगित करना पड़ जाता है।
Question : भारत में संसदीय चुनावों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार किया जाता है?
(1996)
Answer : लोकसभा के सदस्य भारतीय जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। चुनाव के लिए समस्त भारत में एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण किया जाता है। चुनाव आयोग चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करता है। ‘भारतीय परिसीमन आयोग अधिनियम 1952’ के अनुसार यह व्यवस्था की गई कि प्रत्येक 10 वर्ष बाद होने वाली जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन होना चाहिए। यह परिसीमन एक आयोग द्वारा किया जाता है, जिसका अध्यक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त होता है। इसके अलावा इस आयोग में उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के दो अवकाश प्राप्त न्यायाधीश भी सदस्य होते हैं। आयोग की सहायता के लिए प्रत्येक राज्य से दो सेसात तक सदस्य लिये जाते हैं। आयोग के समक्ष जनता अपने विचार या सुझाव प्रस्तुत कर कसती है। इसके बाद चुनाव आयोग ‘सीमांकन आदेश’ की घोषणा करता है, जो अंतिम है। उसके विरूद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं हो सकती। देश की बढ़ती हुई आबादी को देख कर 1971 की जनगणना के आधार पर आगामी 2001 तक के लिए संविधान में संशोधन लाकर लोकसभा की सदस्य संख्या निश्चित कर दी गई।
Question : दिनेश गोस्वामी समिति की सबसे अधिक महत्वपूर्ण सिफारिश क्या है?
(1996)
Answer : चुनाव सुधारों हेतु गठित दिनेश गोस्वामी समिति की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में बहुसदस्यीय चुनाव आयोग का गठन, राजनीति के अपराधीकरण को रोकना तथा मतदाता पहचान-पत्र प्रदान करना शामिल है।