डीप फ़ेक: साइबर सुरक्षा की चुनौतियाँ

डीप फेक (Deep Fkae) झूठी खबरों का कहीं अधिक विकसित और खतरनाक रूप है- यह दुष्प्रचार और अफवाहों को तेजी से फैलाने का नया विकल्प बनकर उभरा है।

सामान्य झूठी खबरों को कई तरीके से जांचा जा सकता है वहीं डीप फेक को पहचान पाना किसी आम इंसान के लिए बेहद मुश्किल है।

  • डीप फेक ‘डीप लर्निंग’ और ‘फेक’ का सम्मिश्रण है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग कर किसी मीडिया फाइल जैसे चित्र, ऑडियो व वीडियो की नकली कॉपी तैयार की जाती है, जो वास्तविक फाइल की तरह ही दिखती हैं और आवाज करती है।

कार्यविधि

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रयोग कर किसी व्यक्ति द्वारा बोले गए शब्दों, शरीर की गतिविधि या अभिव्यक्ति को दूसरे व्यक्ति पर स्थानांतरित किया जाता है।

  • Generative adversarial networks (GAN) का इस्तेमाल कर इसे और ‘विश्वसनीय’ बनाया जा सकता है। अधिकांश स्थितियों में यह पता करना बहुत ही कठिन हो जाता है कि दिखाया गया मीडिया असली है अथवा नकली।
  • सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ओपन सोर्स कम्युनिटी GitHub पर भारी मात्र में ऐसे सॉफ्टवेयर्स पाए जाते हैं जो डीपफेक बना सकने में सक्षम हैं।

डीप फेक से नुकसान

किसी भी तकनीक का गलत इस्तेमाल विनाशकारी साबित हो सकता है। डीपफेक तथा झूठी खबरें भी इसका एक उदाहरण हैं।

  • इससे किसी व्यक्ति का राजनतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन बर्बाद किया जा सकता है। इसका, इस्तेमाल कई क्षेत्रों में खतरनाक साबित हो सकता है।
  • खासतौर से चुनावों में इसके गलत इस्तेमाल की सबसे ज्यादा आशंका है। इसके माध्यम से किसी को बदनाम करने का प्रयास किया जा सकता है।

भारत पर प्रभाव

वर्तमान में डीप फेक के रूप में चिह्नित अधिकांश मामले (लगभग 61%) अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से संबंधित हैं, परंतु पिछले कुछ समय से दक्षिण कोरिया, जापान और भारत में भी ऐसे मामलों में तीव्र वृद्धि देखी गई है।

  • पिछले कुछ वर्षों में भारत (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए व्यापक सुधार के कारण इंटरनेट
  • और सोशल मीडिया से जुड़ने वाले लोगों की संख्या में तीव्र वृद्धि हुई है। वर्ष 2019 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंच में 45% की वृद्धि देखी गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि मात्र 11% ही रही।
  • मई 2020 के एक अनुमान के अनुसार, भारत में मासिक रूप से सक्रिय कुल इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की संख्या लगभग 574 मिलियन बताई गई थी।
  • दिसंबर 2020 तक यह आंकड़ा बढ़कर 639 मिलियन तक पहुंच जाने का अनुमान है।
  • हालांकि देश की एक बड़ी आबादी के बीच इंटरनेट और साइबर सुरक्षा संबंधी जागरूकता का अभाव ऐसे लोगों को साइबर अपराधों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य बनाता है।
  • साथ ही भारत में डेटा सुरक्षा के मामले में कानून का अभाव भी इस चुनौती को और अधिक बढ़ा देता है।

राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ

डीप फेक जैसी तकनीकों के दुरुपयोग से राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है।

  • सत्ता में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों, भू-राजनीतिक आकांक्षा रखने वाले लोगों, हिंसक अतिवादियों या आर्थिक हितों से प्रेरित लोगों द्वारा डीप फेक के माध्यम से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं में हेर-फेर कर और गलत सूचनाओं के प्रसार से बड़े पैमाने पर अस्थिरता उत्पन्न की जा सकती है।
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2019 में अफ्रीकी देश ‘गैबॉन गणराज्य’ (Gabon Republic) में राजनीतिक और सैन्य तख्तापलट के एक प्रयास में डीप फेक के माध्यम से गलत सूचनाओं को फैलाया गया।
  • इसी प्रकार ‘मलेशिया’ में भी कुछ लोगों द्वारा विरोधी राजनेताओं की छवि खराब करने के लिये डीप फेक का प्रयोग देखा गया।
  • आतंकवादी या चरमपंथी समूहों द्वारा डीप फेक का प्रयोग राष्ट्र-विरोधी भावना फैलाने के लिये किया जा सकता है।