कार्यक्रम का पहला चरण वर्ष 2003 में विश्व बैंक की सहायता के साथ शुरू किया, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर तेजी से होने वाले आर्थिक एवं तकनीकी विकास के लिए, तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए, संस्थानों की मौजूदा क्षमताओं को बढ़ाने, गतिशील, गुणवत्ता के प्रति सजग, कुशल एवं अग्रगामी और संवेदनशील बनने की ओर अग्रसर होना था। कार्यक्रम का दूसरा चरण 2010 से 2016 तक चला। वर्ष 2016 में कार्यक्रम के तीसरे चरण के लिए 3,600 करोड़ के परिव्यय का अनुमोदित किया गया।
चरण I और II की प्रमुख उपलब्धियां हैं:
कार्यक्रम के तीसरे चरण में छः निम्न आय वाले राज्य - बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश; तीन पहाड़ी राज्य - हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर तथा उत्तराखंड, आठ पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम एवं त्रिपुरा तथा केंद्र शासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।