उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 को भारत के राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई और इसे 9 अगस्त, 2019 को अधिकारिक गजट में प्रकाशित किया गया। नया अधिनियम तीन दशक से अधिक पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को प्रतिस्थापित करता है।
पृष्ठभूमि आज भारतीय बाजार पर उपभोक्तावाद हावी है, खासकर आर्थिक सुधार प्रक्रिया से एक दशक बाद। यह धीरे-धीरे मुख्य रूप से विक्रेताओं के बाजार से खरीदारों के बाजार में तब्दील हो रहा है, जहां उपभोक्ताओं की पसंद उनकी जागरुकता स्तर पर निर्भर करता है। एक प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा तभी की जा सकती है, जब वस्तुओं और सेवाओं के लिए सही मानक हों। उपभोक्ता कल्याण सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है; क्योंकि देश का प्रत्येक नागरिक एक उपभोक्ता है। |
मुद्दे
अधिनियम अपने वर्तमान रूप में एक अप्रभावी कानून है, जो नए बाजार की गतिशीलता, बहु-स्तरित वितरणशृंखला, नवाचार, अक्सर भ्रामक विज्ञापन और विपणन मशीनरी के साथ तालमेल नहीं रख पाता है।
इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय संसद ने 6 अगस्त, 2019 को उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 पारित किया, जिसका उद्देश्य उपभोक्ता के विवादों का समय पर और प्रभावी तरीके से निपटाना है।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
उपभोक्ताओं के अधिकार
प्रभाव
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सुझाव
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) को सतर्क रहने की आवश्यकता है।