कृषि निर्यात नीति 2018

भारत सरकार ने एक व्यापक ‘कृषि निर्यात नीति’ बनाई, जिसका उद्देश्य कृषि निर्यात को दोगुना करना और वैश्विक मूल्यश्रृंखलाओं के साथ भारतीय किसानों और कृषि उत्पादों को एकीकृत करना है। कृषि निर्यात नीति के माध्यम से भारतीय कृषि की निर्यात क्षमता का दोहन करने, भारत को कृषि में एक वैश्विक शक्ति बनने और 2022 तक किसान आय को दुगुना करना।

उद्देश्य

2022 तक कृषि निर्यात को दो गुना कर वर्तमान अमेरिकी $ 30 बिलियन से यूएस $ 60 बिलियन करना और आने वाले वर्षों में स्थिर व्यापार नीति के साथ यूएस $ 100 बिलियन तक पहुंचना।

  • निर्यात में विविधता लाने के लिए गंतव्यों पर ध्यान देने सहित उच्च मूल्य और मूल्य वर्द्धित कृषि निर्यातों को बढ़ावा देना।
  • स्वदेशी, जैविक, सजातीय, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना।
  • बाजार पहुंच को आगे बढ़ाने, बाधाओं और सैनिटरी और फाइटो- सेनेटरी मुद्दों से निपटने के लिए एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना।
  • जल्द से जल्द वैश्विक मूल्यश्रृंखला के साथ एकीकरण करके विश्व कृषि निर्यात में भारत की हिस्सेदारी को दोगुना करने का प्रयास करना।
  • विदेशी बाजार में निर्यात के अवसरों का लाभ पाने के लिए किसानों को सक्षम करना।

मुख्य विशेषताएं

रणनीतिक सिफारिशें

  • संरचनात्मक परिवर्तनों को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत उपायः एक स्थिर व्यापार नीति व्यवस्था जो स्थानीय घरेलू मुद्रास्फीति से अप्रभावित हो। उदाहरण के लिए- प्याज पर तदर्थ प्रतिबंध या न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाने से निर्यात आपूर्तिश्रृंखला टूट जाती है और विश्वसनीय आपूर्ति साझेदार के रूप में भारत की छवि प्रभावित होती है, इससे भारतीय उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने में अवरोध होता है।
    • एपीएमसी अधिनियम में सुधार और मंडी शुल्क को सुव्यवस्थित करना।
    • फसल-पूर्व और कटाई के बाद के कृषि उत्पादों, भंडारण, वितरण और प्रसंस्करण सुविधाओं के लिए मजबूत आधारभूत ढांचा का निर्माण करना।
    • निर्यात को बढ़ावा देने के लिए समग्र दृष्टिकोण।
    • कृषि निर्यात में राज्य सरकार की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिएः
      1. नोडल राज्य विभाग/एजेंसी की पहचान करना;
      2. राज्य निर्यात नीति में कृषि निर्यात को शामिल करना;
      3. कृषि निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए बुनियादी ढाँचा का विकास;
      4. निर्यात को समर्थन प्रदान करने के लिए संस्थागत तंत्र की संघ स्तर, राज्य स्तर और क्लस्टर स्तर पर स्थापना।

परिचालन-संबंधी सिफारिशें

  • क्लस्टर्स के विकास पर ध्यान देना।
  • मूल्य वर्धित निर्यात को बढ़ावा देनाः
    1. स्वदेशी वस्तुओं और मूल्यवर्द्धन के लिए उत्पाद विकास करना।
    2. मूल्य वर्द्धित जैविक निर्यात को बढ़ावा देना।
    3. जैविक उत्पादों का विपणन और ब्रांडिंग करना।
    4. जैविक और जातीय उत्पादों के लिए समान गुणवत्ता और पैकेजिंग मानकों का विकास करना।
    5. उत्तर-पूर्व में जैविक उत्पाद विकास करना।
  • नए बाजारों के लिए उत्पाद विकास करना एवं अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक मूल्यश्रृंखला के पूरक के लिए युवाओं में कौशल विकास करना।
  • ‘ब्रांड इंडिया’ का विपणन और प्रचार करना।
  • निर्यात उन्मुख गतिविधियों और बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को आकर्षित करना।
  • अधिक गुणवत्ता अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए बेहतर गुणवत्ताशासन (regime) की स्थापना करना।
  • अधिक से अधिक डिजिटलीकरण द्वारा सुचारु लॉजिस्टिक हैंडलिंग को सुगम बनाना और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार करना।
  • दूरस्थ बाजारों में भारतीय उत्पादों की पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर जल्द खराब होने वाली वस्तुओं के लिए सी-प्रोटोकॉल विकसित करना।
  • घरेलू और निर्यात बाजार के लिए एकल आपूर्तिश्रृंखला से सम्बंधित मानक स्थापित करना और बनाए रखना।
  • एग्री स्टार्ट अप फंड की स्थापना करना, जिससे उद्यमियों को जोखिम उठाकर नए उद्यम में निवेश करें।

राष्ट्रीय कृषि नीति

कृषि वानिकी एक भूमि उपयोग पद्धति है, जिसकी सहायता से खेतों व ग्रामीण क्षेत्रों के पेड़ों और झाड़ियों को एकीकृत कर उत्पादकता, लाभप्रदता, विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता को बढ़ाया जाता है। यह एक गतिशील प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली है, जो वनस्पति कवर को बेहतर बनाता है। राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति को अपनाने के साथ ही भारत एक व्यापक कृषि वानिकी नीति अपनाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया।

उद्देश्य

  • ग्रामीण परिवारों विशेषकर सीमांत किसानों की उत्पादकता, रोजगार, आय एवं आजीविका में सुधार करना, फसलों और पशुधन के साथ पूरक तथा एकीकृत तरीकों से वृक्षारोपण को प्रोत्साहित और विस्तारित करना।
  • चरम जलवायु घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने के लिए पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करना, स्थिर फसल और कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देना।
  • लकड़ी आधारित उद्योगों के कच्चे माल की आवश्यकताओं को पूरा करना, लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों के आयात को कम करना, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
  • कृषि-वानिकी उत्पादों (AFPs) की उपलब्धता बढ़ाना, जिससे मौजूदा वनों पर दबाव कम हो।
  • पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए वृक्षावरण को बढ़ाना।
  • कृषि-वानिकी में अनुसंधान को मजबूत करना और मौजूदा वनों पर दबाव को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी बढ़ाना

रणनीति

कृषि-वानिकी नीति को लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक संस्थान की स्थापना की गयी है जो हितधारकों को प्राथमिकताओं और रणनीतियों की पहचान करने, अंतर-मंत्रालयी समन्वय को बढ़ावा देने, वित्तीय संसाधन जुटाने और क्षमता निर्माण के लिए एक साझा मंच प्रदान करेगा।

  • कृषि मंत्रालय को कृषि वानिकी को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। कृषि-वानिकी मिशन/बोर्ड कृषि और सहकारिता विभाग (डीएसी), कृषि मंत्रालय के अधीन होगा।
  • कृषि वानिकी में अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) सहित क्षमता विकास एवं परीक्षण और कार्रवाई अनुसंधान आईसीएआर की जिम्मेदारी होगी।
  • अंतः राज्यीय और अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने, कृषि वानिकी उत्पादन की कटाई और पारगमन को विनियमित करने के लिए एक सरल नियामक तंत्र की स्थापना करने की सिफारिश करता है। एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से अनुमोदन प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री तक किसान की पहुंच में सुधार करना।
  • कृषि-वानिकी के लिए संस्थागत ऋण और बीमा कवर प्रदान करना।
  • पेड़ उत्पादों के लिए बाजारों तक किसानों की पहुंच मजबूत करना।
  • किसानों को कृषि-वानिकी अपनाने के लिए प्रेरित करना।
  • अक्षय बायोमास आधारित ऊर्जा की क्षमता का दोहन करने के लिए धारणीय कृषि-वानिकी को बढ़ावा देना।