संविधान में राज्यपाल के पद का गठन (अनुच्छेद 153), अलगाववाद के खिलाफ एक दृढ़ अवरोध और साथ ही नवगठित राज्यों को विधायी विशेषज्ञता उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। संवैधानिक पूर्वजों ने जानबूझकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विपरीत संबंध बनाए, ताकि संविधान के शब्दों और भावना का पालन किया जा सके। बहरहाल राजनीतिक अपरिपक्वता का परिणाम हमेशा इन दो संवैधानिक पदों के बीच संघर्ष के रूप में हुआ है।
इसी तरह का मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल (एलजी) के कार्यालय के बीच सामने आया। निर्वाचित मुख्यमंत्री से संबंधित इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली एलजी की संवैधानिक स्थिति के बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
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राज्यपाल कार्यालय के दुरुपयोग के उदाहरण