प्रश्न : सफलता के लिए आखिर सही रणनीति क्या होनी चाहिए?

उत्तर :

आईएएस परीक्षा में यदि सफल होना है, तो पहली एवं सबसे प्राथमिक शर्त तो यही है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये अर्थात ‘अपनी क्षमता मूल्यांकन का सूक्ष्म परीक्षण’ (Diagnosing self assessment abilities)।’ जानकारी जुटाने से लेकर सफल होने तक के तीन चरण हैं। वस्तुतः ये चरण ठीक उसी तरह हैं जिस तरह एक डॉक्टर किसी मरीज के साथ करता है। ये चरण हैं-

1.             केस स्टडी

2.             निदान या डायग्नोसिस

3.             इलाज या ट्रीटमेंट।

केस स्टडी से तात्पर्य है कि आपको अपने बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। यह ‘खुद को जानों’ वाला चरण है। खुद को जानने से मतलब है ‘आत्मकथा’ लेखक की तरह अपनी सारी सच्चाइयाें को निष्पक्ष एवं बेबाकी से बयां कर देना और कुछ भी नहीं छिपाना। यह अपनी क्षमता का परीक्षण के समान है। तात्पर्य यह कि आपको अपनी सारी अच्छाइयों एवं कमजोरियों का ज्ञान एवं एहसास होना चाहिये। यहां अच्छाइयों एवं कमजोरियों का संबंध आईएएस परीक्षा के संदर्भ में हैं। इसके लिए खुद का अध्ययन या सूक्ष्म परीक्षण आवश्यक है। अपनी कमजोरियों या निर्बल पक्षों को जानना इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए अपने बारे में सारी सूचनाएं संग्रह करनी होगी और सिविल सेवा परीक्षा की आवश्यकताओं से उसका तालमेल बिठाना होगा। यह तभी संभव है जब आप परीक्षा एवं उसके  प्रत्येक चरण की बारीकियों से आप सुपरिचित हों।

दूसरा चरण है डायग्नोसिस या निदान की। यही सबसे महत्वपूर्ण चरण है। डायग्नोसिस या निदान का मतलब होता है ‘समस्या को जानना’। चिकित्सा की भाषा में यह इसे ‘रोग की पहचान’ है और आईएएस परीक्षा की भाषा में ‘निर्बल पक्षों’ का पूरा ज्ञान। इस बिंदु तक पहुंचने में प्रथम चरण में जुटायी गयी सूचनाएं कार्य करती है। जब आप खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन कर लेते हैं तब आपके पास आपका सारा खाका सामने होता है जिसके बल पर आप जान जाते हैं कि आपकी समस्या क्या है और आपको करना क्या है?

तीसर चरण है इलाज या ट्रीटमेंट की। एक बार समस्या या निर्बल पक्षों को जानने के पश्चात उसके समाधान की प्रक्रिया आरंभ होती है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक डॉक्टर किसी मरीज की बीमारी जानने के पश्चात उसका इलाज आरंभ करता है। जब आप सिविल सेवा परीक्षा की सारी प्रक्रियाओं एवं आवश्यकताओं से सुपरिचित हो जाते हैं तो आपका बल उन कमजोरियों को दूर करने की होती है या होनी चाहिये जिसे दूर किये बिना सिविल सेवा परीक्षा में सफल होना कठिन होता है।

अतएव उपर्युक्त तीनों प्रक्रिया का सार यही है कि परीक्षा में शामिल होने से पूर्व खुद की क्षमता का सूक्ष्म स्तर पर संपूर्ण निष्पक्ष मूल्यांकन जरूरी है। यह मूल्यांकन संभव है पर खुद से खुद का निष्पक्ष मूल्यांकन आसान भी नहीं है। आपको भीड़ से अलग करने में आपके गुरु/मार्गदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे अंधकार मार्ग में प्रकाश दिखाने का कार्य करते हैं। जिस तरह कोई व्यक्ति अपने इलाज के लिए क्लिनिक में डॉक्टर के पास जाता है ठीक उसी प्रकार सिविल सेवा परीक्षा रूपी महासागर को सफलता पूर्वक तैरकर पार करने के लिए गुरू के मार्गदर्शन रूपी नैया की भी जरूरत होती है। उन्हें पूर्व में कई शिष्यों को महासागर पार कराने का अनुभव जो होता है। जाहिर है कि शिक्षक या मार्गदर्शक न केवल आपका सटीक आकलन करने में सफल होते हैं वरन् आपका मूल्यांकन कर कमजोर पक्षों को दूर करने का इलाज भी बताते हैं और उस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यदि आपने खुद की क्षमता का सटीक मूल्यांकन कर लिया तो फिर आईएएस परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफल होना असंभव नहीं रह जाता। हिंदी माध्यम के छात्र यहीं गलती कर बैठते हैं। ‘क्रॉनिकल आईएएस अकेडमी’ आज उसी गुरु या सफल मार्गदर्शक की भूमिका में है, जहां आपकी गलती करने की संभावना को शून्य कर देता है।