प्रश्न : अंतिम रूप से चयन में सामान्य अध्ययन ज्यादा महत्वपूर्ण है या वैकल्पिक विषय?

उत्तर :

जब से यूपीएससी ने वर्ष 2013 के मुख्य परीक्षा के लिए नये प्रारूप व पाठ्यक्रम को घोषित किया, तब से यूपीएससी के विशेषज्ञों में सामान्य अध्ययन एवं वैकल्पिक विषय की महत्ता को लेकर विभिन्न मत सामने आ रहे हैं। कोई सामान्य अध्ययन को चयन में सर्वेसर्वा मान रहा है तो दूसरा पक्ष इस मत को अस्वीकार भी कर रहा है। अतः यहाँ मुख्य समस्या चयन में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर है कि सामान्य अध्ययन ज्यादा महत्वपूर्ण होगा या वैकल्पिक विषय?

  1. हम पहले नये और पुराने प्रारूप में दोनों के अंकों का मुख्य परीक्षा में भारांश (weightage) को देखते हैं। सामान्य अध्ययन के पुराने प्रारूप में दो पश्न-पत्र होते थे। दोनों प्रश्न-पत्र 300-300 अंकों के होते थे। सामान्य अध्ययन के 600 अंकों का मुख्य परीक्षा के अंकों में कुल 26% का भारांश होता था। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के चार प्रश्न-पत्र होते हैं। सभी प्रश्न-पत्र 250-250 अंकाें के साथ कुल 1000 अंकों के होते हैं। नये प्रारूप में सामान्य अध्ययन के अंकों का भारांश 49.5% हो गया है।
  2. पुराने प्रारूप में दो वैकल्पिक विषय होते थे। दोनों वैकल्पिक विषय 600-600 अंकों के थे और 300-300 अंकों के दो-दो प्रश्न-पत्रों में बंटे होते थे। लेकिन नये प्रारूप में एक ही वैकल्पिक विषय को शामिल किया गया है, जो कुल 500 अंकों के साथ  250-250 अंकों के दो प्रश्न-पत्रों में बंटा हुआ है। नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय का कुल भारांश 24.5% रह गया है।
  3. नये संदर्भ में मुख्य परीक्षा में अधिक महत्वपूर्ण कौन होगा या 1000 अंकों के सामान्य अध्ययन के सामने 500 अंकों के वैकल्पिक विषय की स्थिति क्या होगी? इसके लिए हमें पूर्व वर्षों में मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन और वैकल्पिक विषय में प्राप्त हुए औसत अंकाें के ट्रेंड को भी समझना आवश्यक है। वर्ष 2011 और 2012 के पूर्व तक साक्षात्कार देने वाले अभ्यार्थियों को वैकल्पिक विषयों में औसत 50% तक अंक प्राप्त हुए थे जबकि वर्ष 2011 और वर्ष 2012 में वैकल्पिक विषय के औसत अंकों में कमी आयी और यह 40-50% के बीच रहा। सामान्य अध्ययन में वर्ष 2008 से पूर्व औसत अंक 50% के आस-पास रहते थे, लेकिन वर्ष 2008 से अभ्यार्थियों के सामान्य अध्ययन के औसत अंकों में लगातार गिरावट हो रही है और वर्ष 2012 में औसतन 25-35% के बीच रहा। इसी प्रकार इन वर्षों में साक्षात्कार हेतु सफल अभ्यर्थियों के न्यूनतम् कट ऑफ अंकों में भी गिरावट जारी है, जो कि वर्ष 2013 में 750 अंकों के आस-पास रहा।
  4. अब हम बात करते हैं रणनीति की। विगत वर्षों में सामान्य  अध्ययन के अंकों का औसत प्राप्तांक तथा मुख्य परीक्षा के कुल अंकों का भारांश भले ही कम था। लेकिन वर्तमान प्रारूप और पाठ्यक्रम में सामान्य अध्ययन की महत्ता और मुख्य परीक्षा के अंकों के भारांश में विशेष स्थिति को नकारा नहीं जा सकता।  यदि निबंध और साक्षात्कार में सामान्य अध्ययन के सहयोग की महत्ता को भी जोड़ा जाये तो इसकी स्थिति और भी सशक्त हो जाती है। यदि इन सभी को समेकित किया जाये तो इसका भारांश 75% तक हो जाता है । इससे यह तो स्पष्ट है कि यूपीएससी परीक्षा के अंतिम चयन में सामान्य अध्ययन की विशेष स्थिति है लेकिन हम अब भी वैकल्पिक विषय की महत्ता को नकार नहीं सकते। यह सही है कि अब एक ही वैकल्पिक विषय है जो 500 अंकों के साथ 24.5% भारांश ही रखता है, लेकिन जब हम वैकल्पिक विषयों में विगत वर्षों में प्राप्त होने वाले प्राप्तांकों तथा इन प्राप्तांकों का कटऑफ में औसत भारांश देखें तो इसकी महत्ता स्वतः स्पष्ट हो जायेगी।

जैसा कि ऊपर की व्याख्या में देख चुके हैं कि विगत कई वर्षों से सामान्य अध्ययन, वैकल्पिक विषय तथा कटऑफ अंकों में लगातार गिरावट आ रही है लेकिन इसमें यह ध्यान देने की बात है कि वैकल्पिक विषय के प्राप्तांकों की औसत गिरावट सामान्य अध्ययन तथा कटऑफ अंकों के गिरावट से कम है अर्थात अंतिम परीक्षा परिणाम तक (वर्ष 2012) वैकल्पिक विषय के कुल प्राप्तांकों का औसत प्रतिशत कटऑफ अंकों में अभी भी प्रासंगिक है और जिस प्रकार से वर्ष 2013 व 2014 के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के प्रश्न-पत्र में प्रश्न आ रहे हैं, इससे अभी भी इसके प्रासंगिक बने रहने की पूर्ण सम्भावना है। दूसरी तरफ सामान्य अध्ययन का पाठ्यक्रम अत्यन्त विस्तृत है। आईएएस टॉपर्स तक को सामान्य अध्ययन के पत्रों में 70 अंक लाते देखा गया है और इसके बावजूद वे न केवल सफल हुए वरन् टॉप 10 में स्थान बनाने में सफल रहे। इसके पीछे वैकल्पिक विषयों के अंकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैसे भी मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के पत्रों में जिस विश्लेषणात्मक तरीके से प्रश्न पूछे जा रहे हैं, उन सबका जवाब देना छात्रों के लिए मुश्किल हो रहा है। प्रश्नों की संख्या भी 20 से 25 होती है। इन सभी कारणों से वैकल्पिक विषय अभी भी महत्ता बनाये हुये है। किसी के लिए भी सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर समान रूप से विशेषज्ञता हासिल करना थोड़ा कठिन प्रतीत होता है जबकि वैकल्पिक विषय का पाठ्यक्रम सामान्य अध्ययन के पाठ्यक्रम से सीमित है। साथ ही अधिकांश अभ्यर्थी का वैकल्पिक विषय उनके अकेडमिक विषय से ही संबंधित होता है। इससे वे कम से कम इस विषय से पूर्णतः अनभिज्ञ तो नहीं होते। यदि वे इस विषय में थोड़ा ज्यादा प्रयास करें तो इसके विशेषज्ञ भी बन सकते हैं।

वैकल्पिक विषय की महत्ता प्राप्त हो सकने वाले प्राप्तांक और इन प्राप्तांकों के कुल कटऑफ अंकों में प्रतिशत की अधिकता से भी देखा जा सकता है। कहने का मतलब यह है कि नये प्रारूप में वैकल्पिक विषय पर भी पूर्ण ध्यान दिया जाये तो कम से कम प्राप्ताकों के लगभग एक तिहाई अंकों की ओर से तो निश्चिन्त  रहा ही जा सकता है।