आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- 27 Sep 2021
अगस्त 2021 में आईपीसीसी की नवीनतम आकलन रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट (Arctic permafrost) में कमी आएगी और जमीन के विगलन (thawing) से मीथेन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सम्भावना है।
महत्वपूर्ण तथ्य: पर्माफ्रॉस्ट को ऐसी भूमि (मिट्टी, चट्टान और किसी भी शामिल बर्फ या कार्बनिक पदार्थ) के रूप में परिभाषित किया गया है, जो लगातार कम से कम दो वर्षों तक शून्य डिग्री सेल्सियस पर या उससे नीचे रहता है।
- पर्माफ्रॉस्ट 23 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो दुनिया के लगभग 15% भूमि क्षेत्र को कवर करता है।
पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने का प्रभाव: पहला प्रभाव बहुत तेजी से, उन देशों को प्रभावित करेगा जहां सड़कों या इमारतों का निर्माण पर्माफ्रॉस्ट पर किया गया है। रूसी रेलवे एक उदाहरण है।
- कार्बनिक पदार्थ, जो अब जमीन में समा गए हैं और जम गए है। यदि पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो जायेंगे, तो कार्बनिक पदार्थ अपघटित होकर सूक्ष्म जीवों के लिए उपलब्ध हो जायेंगे।
- कुछ वातावरणों में, सूक्ष्म जीव कार्बन डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं और अन्य में मीथेन उत्सर्जित करते हैं, जो कार्बन डाइ-ऑक्साइड की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के रूप में लगभग 25 से 30 गुना अधिक शक्तिशाली है।
- कार्बन की कुल मात्रा जो अब पर्माफ्रॉस्ट में दबी हुई है, अनुमानित रूप से लगभग 1500 बिलियन टन है और पर्माफ्रॉस्ट के उपरी तीन मीटर में लगभग 1000 बिलियन टन है।
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