मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश 2020
- 09 Nov 2020
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा ‘मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम’ 1996 में संशोधन करने के लिए ‘मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अध्यादेश 2020’ पर 4 नवंबर, 2020 को प्रख्यापित (promulgated) किया गया।
महत्वपूर्ण तथ्य: अध्यादेश में, ‘धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से किये जाने वाले मध्यस्थता समझौते अथवा अनुबंधों’ के मामले में संबंधित पक्षकारों को ‘मध्यस्थता निर्णय’ के प्रवर्तन पर बिना शर्त ‘रोक’ (Stay) लगाए जाने का अवसर प्रदान किया गया है।
- अध्यादेश में मध्यस्थता अधिनियम की 8वीं अनुसूची को निरसित कर दिया गया है। 8वीं अनुसूची में मध्यस्थों (Arbitrators) की आवश्यक अहर्ता के प्रमाणन संबंधी प्रावधान सम्मिलित थे।
- अभी तक किसी मध्यस्थता फैसले के खिलाफ कानून की धारा 36 के तहत अपील दायर किए जाने के बावजूद इसे लागू किया जा सकता था।
- संशोधन के अनुसार, यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट होता है, कि संबंधित मामले में दिया गया ‘मध्यस्थता निर्णय’, प्रथमदृष्टया, ‘धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से किये जाने वाले मध्यस्थता समझौते अथवा अनुबंधों’ पर आधारित है, तो अदालत अधिनियम की धारा 34 के तहत, प्रदान किये गए ‘मध्यस्थता निर्णय’ पर अपील लंबित रहने तक बिना शर्त रोक लगा देगी।
- अध्यादेश के द्वारा, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 36 में एक प्रावधान जोड़ा गया है जो 23 अक्टूबर, 2015 से पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।
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