सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संपत्ति अधिकारों की पुष्टि
- 04 Jan 2025
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी भी व्यक्ति को पर्याप्त मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है, जो अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकार को सुदृढ़ करता है।
मुख्य तथ्य व पृष्ठभूमि:
- संवैधानिक अधिकार: 1978 में 44वें संशोधन के बाद से संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रहा, फिर भी यह एक कल्याणकारी राज्य में एक संवैधानिक और मानवाधिकार है।
- निर्णय संदर्भ: यह फैसला बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले से उत्पन्न हुआ, जहां जमींदारों को 22 वर्षों से अधिक समय से मुआवजा नहीं मिला था।
- मुआवजा देरी: अदालत ने नोट किया कि सरकारी अधिकारियों की सुस्ती के कारण मुआवजा देरी से दिया गया, जो अनुच्छेद 300-ए के तहत स्थापित सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
- बाजार मूल्य निर्धारण: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्तमान बाजार दरों के आधार पर उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए मुआवजे के लिए मूल्यांकन तिथि को स्थानांतरित करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।
- वैधानिक लाभ: अदालत ने निर्देश दिया कि जमीन मालिक संशोधित मुआवजे के अलावा 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत उपलब्ध सभी वैधानिक लाभों के हकदार हैं।
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