भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता
भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक मुद्दा है। यह समस्या विभिन्न माध्यमों में देखी जा सकती है, जैसे कि टेलीविजन, फिल्म, समाचार पत्र, और सोशल मीडिया।
- लैंगिक रूढ़िवादिता न केवल समाज में स्त्री-पुरुष समानता को प्रभावित करती है, बल्कि महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िवादिता के प्रमुख पहलू
- महिलाओं का वस्तुकरण: टेलीविजन और फिल्मों में महिलाओं को अक्सर एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विज्ञापनों में महिलाओं को आकर्षक दिखाने के लिए उनकी शारीरिक सुंदरता का उपयोग किया जाता है। इससे महिलाओं की छवि ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
- 2 कृषि का नारीकरण
- 3 क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
- 4 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
- 5 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- 6 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
- 7 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
- 8 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
- 9 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
- 10 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव