क्षेत्रवाद की चुनौती : सांस्कृतिक मुखरता और असमान क्षेत्रीय विकास
क्षेत्रवाद एक ऐसी विचारधारा और राजनीतिक आंदोलन है जो एक क्षेत्र विशेष के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक हितों को सर्वोपरि मानता है। इस क्षेत्र विशेष के व्यक्ती धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक पहचान के प्रति अधिक मुखर हो सकते हैं।
- भारत में क्षेत्रवाद के लिए कई कारक उत्तरदायी हैं जिनमें पृथक् भाषा, अलग भौगोलिक पहचान, नृजातीय पहचान, असमान विकास आदि प्रमुख है। भारत में क्षेत्रवाद की अभिव्यक्ती पृथक राज्य की मांग या विशेष राज्य की मांग आदि के रूप में अभिव्यक्त होती है।
सांस्कृतिक मुखरता: क्षेत्रवाद का एक प्रमुख कारक
सांस्कृतिक विभिन्नता एवं अपनी संस्कृति के प्रति सांस्कृतिक मुखरता (cultural ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 पारंपरिक ज्ञान प्रणाली
- 2 कृषि का नारीकरण
- 3 ग्रामीण महिलाएं: आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्व
- 4 वैश्वीकरण के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक प्रभाव
- 5 सामाजिक मूल्यों पर बढ़ती सांप्रदायिकता का प्रभाव
- 6 भारतीय मीडिया में लैंगिक रूढ़िबद्धता
- 7 महिलाओं के लिए स्वामित्व का अधिकार: मुद्दे एवं समाधान
- 8 पॉपुलेशन एजिंग: चुनौतियां एवं सामाजिक निहितार्थ
- 9 महिलाओं की श्रम बल में घटती भागीदारी: कारण एवं सुझाव
- 10 भारत में आंतरिक प्रवासन