प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत की आर्थिक प्रणालियां

आर्थिक प्रणाली के तहत पशुपालन, कृषि व्यवस्था, भू-राजस्व, वाणिज्य तथा व्यापार के क्रमबद्ध विकास का अध्ययन किया जाता है। इस संदर्भ में भारत में प्राचीन काल से ही अर्थव्यवस्था के विभिन्न रूपों का समुचित विकास हुआ। हड़प्पा काल से लेकर मध्यकाल तक भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता यह रही कि यह अपने स्वरुप में स्वाबलंबी रही तथा व्यापार संतुलन हमेशा भारत के पक्ष में रहा।

विभिन्न कालों की अर्थव्यवस्था

पाषाण कालीन अर्थव्यवस्था

पाषाण काल में मनुष्य मुख्यतः शिकारी एवं खाद्य संग्राहक ही बना रहा। उच्च पुरापाषाण काल तक मानव अग्नि, कृषिकर्म तथा पशुपालन से परिचित नहीं था और ना ....

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष