हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कथित बलात्कार पीडि़तों का ‘टू-फिंगर टेस्ट’ कराने वालों को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि जब कोई महिला बलात्कार का आरोप लगाती है तो उसे, उसके यौन रूप से सक्रिय होने के कारण बलात्कार न मानना पितृसत्तात्मक और भेदभावपूर्ण का प्रतीक है। मई 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि टू फिंगर टेस्ट किसी महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और सरकार से यौन शोषण की पुष्टि के लिये बेहतर चिकित्सा प्रक्रिया प्रदान करने हेतु आग्रह किया था। अप्रैल 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य को टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया था।
क्या है ‘टू-फि़ंगर’ >टेस्ट? यह एक बेहद विवादास्पद टेस्ट है, जिसके तहत महिला के जननांग में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला संभोग की आदी है या नहीं। अगर जननांग में आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो महिला को यौन रूप से सक्रिय माना जाता है। इसी परीक्षण में महिला के कौमार्य या कौमार्य न होना भी मान लिया जाता है। |