भारत के तमिलनाडु राज्य के पुदुकोट्टई जिले में स्थित सित्तनवासल गुफाओं (Sittanavasal Caves) के अधिकांश चित्र क्षतिग्रस्त हो जाने या नष्ट कर दिए जाने के बाद, ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ द्वारा इनके संरक्षण हेतु उपाय शुरू किए गए हैं तथा इस प्राचीन धरोहर तक लोगों की पहुंच को आसान करने के लिए यहाँ ‘डिजिटल तकनीक’ का भी इस्तेमाल शुरू किया गया है।
यहाँ 7वीं शताब्दी के उत्कृष्ट भित्तिचित्रें के अवशेष मिले हैं। भित्तिचित्रें को मंदिर के अंदर स्तंभों और छत के शीर्ष भागों पर संरक्षित किया गया है। उनमें से कई 9वीं शताब्दी के पांड्य काल के हैं और इनमें जानवरों, मछलियों, बत्तखों, तालाब से कमल इकट्टा करने वाले लोग और नाचती हुई लड़कियों के उत्कृष्ट चित्र शामिल हैं।
सित्तनवासल का इतिहासः सित्तनवासल गुफा का इतिहास पहली शताब्दी ईसा पूर्व से 10वीं शताब्दी ईस्वी तक का है। यहाँ जैन धर्म का विकास हुआ। आरम्भ में इस मंदिर-गुफा को पल्लव राजा महेंद्रवर्मन् प्रथम (580-630 ईस्वी) के समय का समझा गया था। एक अभिलेख से पता चलता है कि इस मंदिर-गुफा का पुनरुद्धार पांड्य राजा, संभवतः मारण सेंडन (654-670 ई.) अथवा अरिकेसरी मारवर्मन, (670-700 ई.) के द्वारा किया गया था।