भू-विरासत स्थलः महत्व तथा संरक्षण के प्रयास

‘भू-विरासत’ कोई नवीन अवधारणा नहीं है, फिर भी भू-विरासत स्थलों के संरक्षण की दिशा में प्रयास सीमित मात्रा में ही हुए हैं। यह एक ऐसी अवधारणा है; जिसमें प्राकृतिक, भू-वैज्ञानिक एवं भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को समग्र रूप में शामिल किया जाता है।

महत्व

  • भू-विरासत शब्द का प्रयोग भू-विज्ञान के उन सभी वैश्विक, राष्ट्रीय व स्थानीय स्थलों के लिए किया जाता है, जो पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास के विषय में एक व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं एवं इन भू-विरासत स्थलों का प्रयोग पृथ्वी के शिक्षण, अनुसंधान व सन्दर्भ के रूप में किया जाता है।
  • भू-विरासत शब्द का उल्लेख पहली बार 1991 में फ्रांस में आयोजित पहली भू-विरासत संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में किया गया था। शार्पल्स ने 1995 में गतिशील भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और भू-विविधता के संरक्षण को शामिल करने के लिए भू-विरासत की मूल अवधारणा को विकसित एवं आधुनिक रूप प्रदान किया।
  • उत्पत्ति स्थलों पर ही इनके गठन, भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं, पर्यावरण और विवर्तनिक घटनाओं का अध्ययन अधिक स्पष्ट रूप से किया जा सकता है।

भारत में भू-विरासत संरक्षण के प्रयास

  • भारत में स्वतंत्रता के पश्चात ही भू-विरासत संरक्षण की अवधारणा को अपना लिया गया था। सर्वप्रथम 1951 में तमिलनाडु के पेराम्बलुर जिले में ध्रुवकाराई, विल्लुपुरम एवं साथनूर के लकड़ी के जीवाश्मों को भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक स्मारक घोषित किया गया था।
  • वैश्विक स्तर पर भू-विरासत स्थलों की ओर 1990 के दशक में ध्यान दिया गया तथा जियो पार्क की अवधारणा का विकास यूरोपीय देशों में वर्ष 2000 में हुआ, जिसे यूनेस्को ने 2004 में मान्यता दी।
  • भारत सरकार द्वारा संसद में फरवरी 2009 में राष्ट्रीय विरासत स्थल आयोग विधेयक पेश किया गया, जिसे स्थायी समिति के पास भेजने के पश्चात जुलाई 2015 में वापस ले लिया गया।

आगे की राह

  • भारत में इस प्रकार के स्थलों की पहचान करके यूनेस्को के साथ मिलकर इनके संरक्षण हेतु प्रयास किए जाने चाहिए। इससे भारतीय स्थलों को वैश्विक पहचान प्राप्त होगी।
  • भू-विरासत स्थलों के समग्र संरक्षण में स्थानीय समुदाय के साथ गैर-सरकारी समूहों एवं निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
  • इस प्रकार के स्थल सांस्कृतिक तथा जैव विविधता स्थलों के समान ही महत्वपूर्ण हैं। अतः शिक्षित नागरिकों का पर्याप्त ध्यान आकर्षित करने के लिए इनसे संबंधित पाठ्यक्रम को स्कूल एवं कॉलेजों में शामिल किया जाना चाहिए।