ऐतिहासिक परम्पराओं, भौगोलिक स्थिति और भूतकालीन अनुभव भारतीय विदेश नीति के निर्माण में प्रभावक कर्तव्य रहे हैं।
नीति के निर्धारक तत्वों का वर्णन निम्नलिखित है-
ऐतिहासिक परम्पराएं: प्राचीन काल से ही भारत की नीति शांतिप्रिय रही है। भारत ने किसी भी देश पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न नहीं किया। भारत की यह परम्परा वर्तमान विदेश नीति में स्पष्ट दिखाई देती है। भारत की विदेश नीति में विश्व शांति और बंधुत्व पर बल दिया गया है, जिसके पीछे ऐतिहासिक परम्परा ही है।
विचारधाराओं का प्रभावः भारत की विदेश नीति के निर्धारण में शांति और अहिंसा पर आधारित गांधीवादी विचारधारा का भी गहरा प्रभाव दिखाई देता है।
आर्थिक तत्वः भारत की आर्थिक उन्नति तभी संभव, जब अन्तरराष्ट्रीय शांति बनी रहे। आर्थिक दृष्टि से भारत का अधिकांश व्यापार पाश्चात्य देशों के साथ था और पाश्चात्य देश भारत का शोषण कर सकते थे।
सैनिक तत्वः स्वतंत्रता के समय भारत की सैन्य स्थिति काफी दुर्बल थी। अपनी रक्षा के लिए वह पूरी तरह विदेशों पर निर्भर था। इस दृष्टिकोण से भारत का सभी देशों के साथ मैत्री का बर्ताव रखना भी आवश्यक था।
राष्ट्रीय हितः नेहरू ने संविधान सभा में कहा था, ‘किसी भी देश की विदेश नीति की आधारशिला उसके राष्ट्रीय हित की सुरक्षा होती है और भारत की विदेश नीति का भी ध्येय यही है’।
5. पंचशील की नीतिः साधनों की शुद्धता के विश्वास ने भारत को पंचशील का सिद्धांत अपनाने के लिए प्रेरित किया है। पंचशील सिद्धांत का अर्थ है व्यवहार या आचरण के पांच नियम। 20 जून, 1954 को प्रधानमंत्री नेहरू तथा चीनी प्रधानमंत्री चानुऊ एन लाई के बीच पंचशील के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
6. संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व शांति के लिए समर्थनः भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल सदस्यों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र की विचारधारा का समर्थन करने तथा इसके क्रियाकलापों में सक्रियता, सकारात्मक तथा रचनात्मक रूप से भाग लेना भारतीय विदेश नीति का महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है।