अपशिष्ट प्लास्टिक से डीजल बनाने का संयंत्र

अगस्त, 2019 को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (IIP) में ‘अपशिष्ट प्लास्टिक से डीजल बनाने के संयंत्र’ (Waste Plastic to Diesel Plant) को स्थापित किया गया।

  • इस संयंत्र की तकनीक देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा गेल इंडिया लिमिटेड के सहयोग से विकसित की गई है।
  • इस संयंत्र में एक टन प्लास्टिक कचरे से 800 लीटर डीजल प्रतिदिन बनाया जा सकता है। इस संयंत्र में बनने वाले ईंधन में आमतौर पर गाड़ियों में उपयोग होने वाले डीजल के गुण मौजूद हैं और इसका उपयोग कारों, ट्रकों और जनरेटर्स में किया जा सकेगा।
  • इस संयंत्र में पॉलियोलेफिनिक कचरे (Polyolefinic Waste) को डीजल में रूपांतरित किया जा सकता है। पॉलियोलेफिनिक कचरा देश में मौजूद कुल प्लास्टिक कचरे का 70 प्रतिशत है।

बायोरेमीडिएशन

  • बायोरेमीडिएशन एक उपचार प्रक्रिया है, जो खतरनाक पदार्थों को तोड़कर व निम्नीकरण करके उन्हें कम विषाक्त या गैर विषैले पदार्थों में रूपांतरित करने के लिए स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजीवों (खमीर, कवक या बैक्टीरिया) का उपयोग करती है।
  • सूक्ष्मजीव (Microorganisms), मनुष्यों की तरह, पोषक तत्वों और ऊर्जा के लिए कार्बनिक पदार्थों को खाते और पचाते हैं।
  • हालांकि कुछ सूक्ष्मजीव ईंधन या सॉल्वैंट्स जैसे कार्बनिक पदार्थों को भी पचा सकते हैं, जो कि मनुष्यों के लिए खतरनाक है।
  • सूक्ष्मजीव, कार्बनिक संदूषित पदार्थों (Organic Contaminants) को गैर-हानिरहित उत्पादों (मुख्य रूप से CO2 व H2O) में तोड़ते हैं।
  • बायोरेमीडिएशन तकनीक सूक्ष्मजीवों के विकास में सहायता करती है और उनके लिए इष्टतम पर्यावरणीय स्थिति बनाकर माइक्रोबियल आबादी को बढ़ाती है, ताकि ये सूक्ष्मजीव अधिक से अधिक संदूषकों या विषैले पदार्थों को अपघटित कर सकें।