गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधान) विधोयक, 2021

राज्यसभा ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के उद्देश्य से 16 मार्च, 2021 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक [Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill], 2021 पारित किया, जिसे 17 मार्च, 2020 में लोकसभा में पारित किया गया था।

  • इस विधेयक के माध्यम से 2003 के नियमों में संशोधन किया जाएगा। संशोधन के माध्यम से एक चिकित्सा बोर्ड के गठन की अनुमति होगी तथा साथ ही गर्भ के समापन के लिए 20 हफ्रते की अवधि को बढाकर 24 हफ्रते की जाएगी।
  • गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021 का उद्देश्य चिकित्सीय, मानवीय या सामाजिक आधार पर गर्भपात की सुरक्षित और वैधानिक रूप से मान्य सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच का विस्तार करना है।

विधेयक की मुख्य विशेषताएं: इस विधेयक के तहत राज्य स्तरीय चिकित्सा बोर्ड की स्थापना करना तथा उसकी शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करना है; जैसेः

  • गर्भ के चिकित्सकीय समापन के लिए पहुंचने पर महिला और उसकी रिपोर्ट की जांच करना,
  • गर्भावधि 24 हफ्रते से अधिक होने पर गर्भ के समापन की अनुमति देना या नहीं देना तथा महिलाओं के लिए पूरी प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • निर्धारित समयसीमा के भीतर जीवन को संभावित खतरे या भ्रूण की आजीवन शारीरिक और मानसिक विकृति की पहचान करना।
  • गर्भ के समापन का निर्णय लेने के लिए बोर्ड में अन्य विशेषज्ञों को सम्मिलित करना तथा आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त जांच का आग्रह करना।
  • इस विधेयक के दायरे में बलात्कार से पीड़ित, अनाचार की शिकार और अन्य कमजोर महिलाओं (जैसे दिव्यांग महिलाओं, नाबालिग) आदि को शामिल किया गया है।
  • गर्भधारण के 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिए एक प्रदाता (चिकित्सक) की राय और गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिए दो प्रदाताओं (चिकित्सकों) की राय की जरूरत होगी।
  • मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2021
  • महिला और बाल विकास मंत्रालय ने सभी हितधारकों से फ्मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2021य् (ज्प्च् विधेयक) के प्रारूप पर टिप्पणी/सुझाव आमंत्रित किए हैं।

विधेयक का लक्ष्यः इस विधेयक का लक्ष्य व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकना और उससे निपटना है।

  • इसके अतिरिक्त, पीड़ितों के अधिकारों का सम्मान करते हुए उनकी देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास करना है। उनके लिए सहायक कानूनी, आर्थिक एवं सामाजिक परिवेश सृजित करना है और यह भी सुनिश्चित करना है कि दोषियों को अवश्य दंड मिले।

विधेयक की विशेषताएं

  1. राष्ट्रीय अन्वेषक और समन्वयक अभिकरणः राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (छंजपवदंस प्दअमेजपहंजपवद ।हमदबलरू NIA), राष्ट्रीय अन्वेषक और समन्वयक अभिकरण के रूप में कार्य करेगा।
    • NIA मानव तस्करी की रोकथाम एवं इससे निपटने तथा मानव तस्करी से संबद्ध मामलों व इस अधिनियम के अंतर्गत अन्य अपराधों के अन्वेषण, अभियोजन एवं समन्वय हेतु उत्तरदायी होगा।
  2. राष्ट्रीय मानव तस्करी रोधी समितिः केंद्र सरकार द्वारा इस संस्था का गठन इस अधिनियम के प्रावधानों का समग्र रूप से प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु किया जाएगा।
    • भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय का सचिव इस समिति का अध्यक्ष होगा। इसी प्रकार की समितियों का गठन राज्य और जिला स्तरों पर भी किया जाएगा।
  3. राज्य मानव तस्करी रोधी नोडल अधिकारीः इसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। यह अधिकारी राज्य मानव तस्करी रोधी समिति के निर्देशानुसार, इस अधिनियम के अंतर्गत अनुवर्ती कार्रवाइयों के लिए उत्तरदायी होगा।
    • वह सरकारी एजेंसियों और नागरिकों समाज संगठनों के साथ समन्वय भी स्थापित करेगा।
  4. पीड़ित की सहमतिः मानव तस्करी के अपराध का निर्धारण अप्रासंगिक और सारहीन हो जाएगा, यदि सहमति बलात या भयभीत करके प्राप्त की जाती है।
    • विधेयक में मानव तस्करी को अंतरराष्ट्रीय निहितार्थों वाले संगठित अपराध के रूप में भी परिभाषित किया गया है।
    • प्रारूप विधेयक में तस्करी के अति निकृष्ट रूपों के तौर पर वर्गीकृत अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रस्ताव किया गया है।

मानव तस्करी को रोकने के लिए उठाए गए कदम

उज्ज्वला योजनाः यह एक व्यापक योजना है, जिसे तस्करी से निपटने के लिए वर्ष 2007 से आरंभ किया गया था।

  • इसमें, वाणिज्यिक लैंगिक उत्पीड़न के लिए तस्करी की गई पीड़िताओं की रोकथाम, बचाव, पुनर्वास, समाज में पुनः समेकन और देश-प्रत्यावर्तन का प्रावधान किया गया है।
  • इसे मुख्य रूप से गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।

मानव तस्करी रोधी इकाइयां: गृह मंत्रालय (MHA) ने प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से मानव तस्करी के विरुद्ध भारत कानून प्रवर्तन की अनुक्रिया को सुदृढ़ बनाने की व्यापक योजना के अंतर्गत देश के 270 जिलों में मानव रोधी इकाइयों की स्थापना हेतु धनराशि जारी की है।

  • तस्करी रोधी प्रकोडः वर्ष 2006 में गृह मंत्रालय के अधीन तस्करी रोधी नोडल प्रकोष्ठ का गठन किया गया था।

उद्देश्यः मानव तस्करी के अपराध से निपटने के लिए राज्य सरकारों द्वारा लिए गए विभिन्न निर्णयों और उनके द्वारा की गई अनुवर्ती कार्रवाइयों के बारे में संचार के मुख्य केंद्र के रूप में कार्य करना था।

  • गृह मंत्रालय समय-समय पर, सभी राज्यों/संघ राज्यक्षेत्रों में मनोनीत मानव तस्करी रोधी इकाइयों के नोडल अधिकारियों के साथ समन्वय बैठक करता है।
  • कानूनी उपायः लैंगिक अपराधों से बालाकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बालकों के विरुद्ध होने वाले लैंगिक अपराधों की रोकथाम हेतु उपाय किए गए हैं।
  • दंड विधि (संसोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 370 और 370। के अंतर्गत मानव तस्करी की समस्या से निपटने के लिए व्यापक उपाय किए गए हैं।
  • महिलाओं और बच्चों की तस्करी की रोकथाम के लिए अन्य कुछ विशिष्ट अधिनियम निर्मित किए गए हैं, यथाः बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976, बालक श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, मानव अंग और ऊतक प्रतिरोपण अधिनियम, 1994 आदि। इनके अतिरिक्त, भारतीय दंड संहिता (IPC) की विशिष्ट धाराओं, जैसे कि देह व्यापार के उद्देश्य से लड़कियों की बिक्री और खरीददारी से संबंधित धारा 372 व 373 के माध्यम से भी तस्करी निवारण प्रयास किए जा रहे हैं।
  • न्यायिक सेमिनारः ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित करने और संवेदनशील बनाने के लिए, मानव तस्करी पर न्यायिक सेमिनार उच्च न्यायालय स्तर पर आयोजित किया जाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोगः भारत ने राष्ट्रीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNTOC) के मानव तस्करी की रोकथाम, दमन और दंड से संबंधित प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • नागरिक समाजः विभिन्न NGOS जैसे कि रेस्क्यू फाउंडेशन, बचपन बचाओ आंदोलन आदि ने तस्करी के पीड़ितों को बचाने, उनके पुनर्वास और उन्हें वापस उनके परिवार के पास पहुंचाने में सफल भूमिका निभाई है।